आधी रात के बाद
आज फिर सर सुरेन्द्र मोहन
पाठक जी के एक और रचना के बारे में अपनी हकीर राय देने का मन हो उठा है। उक्त
उपन्यास “आधी रात के बाद” का प्रकाशन सन १९६७ में हुआ था। यह पाठक साहब के द्वारा
कृत उपन्यासों कि श्रेणी में सोलहवें स्थान पर आता है। यह उपन्यास “प्रमोद” सीरीज
का है। प्रमोद सीरीज के कुल चार उपन्यास ही अभी तक प्रकाशित हुए हैं – “मौत का
साफर (अक्टूबर १९६६)”, “आधी रात के बाद (अगस्त १९६७)”, “जान की बाजी (अक्टूबर
१९७०)” और “एक रात एक लाश (जुलाई १९७६)”। प्रमोद सीरीज का आखिरी उपन्यास प्रकाशित
हुए आज ३८ साल हो चुके हैं। लगभग ३८ वर्ष से पाठक साहब ने इस किरदार के ऊपर कुछ
नहीं लिखा और न ही इसकी वापिसी करने की कोशिश की।
समय-समय पर पाठक साहब के
प्रशंसकों ने उन्हें “प्रमोद सीरीज” को पुनः लिखने की सिफारिश की लेकिन उन्होंने
यह कह कर मना कर दिया की अब यह किरदार अप्रासंगिक हो चूका है। पाठक साहब का कहना
था की चूँकि “प्रमोद सीरीज” की अधिकतर घटनाएं उसके करीबी मित्रों के साथ ही घटी और
उन्होंने लगभग सभी के साथ प्रयोग करके, प्रमोद सीरीज के चार उपन्यास लिख डाले और
अब आगे ऐसा संभव नज़र नहीं आता है। पाठक साहब का कहना था की “विमल सीरीज” को
प्रसिद्धि के हिमालयी स्तर तक पहुंचाने में वे ऐसे खो गए की उन्होंने इस किरदार को
लगभग भुला दिया। पाठक साहब ने एक किरदार को आगे बढाने के लिए अपने एक किरदार को
गुमनामी की गर्त में धकेल दिया।
वैसे यह पाठक साहब पर कोई
इलज़ाम नहीं है। क्यूंकि हमें एक लेखक को स्वतंत्रता तो देनी चाहिए की वह अपने
किरदारों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार कर सके। सर आर्थर कैनन डोयले ने जब
अपने प्रसिद्द किरदार शर्लाक होल्म्स को “द फाइनल प्रॉब्लम(१८९३)” में मृत घोषित
कर दिया था तो उनके प्रशंसकों ने खूब हंगामा किया था। मजबूरन सर आर्थर कैनन डोयले
को पुनः सन १९०१ में अपने लघुकथाओं के संग्रह में से एक कहानी (द एडवेंचर ऑफ़
एम्प्टी हाउस) में शर्लाक होल्म्स को वापिसी दिखानी पड़ी। लगभग १७ वर्ष बाद शर्लाक
होल्म्स किरदार ने वापिसी किया। मेरी पाठक साहब से गुजारिश है कि वे प्रमोद की
वापिसी का भी कोई जरिया निकालें।
अब प्रश्न यह उठता है की
प्रमोद की वापिस क्यूँ लाना चाहिए। पाठक साहब इस किरदार को पुनः क्यूँ लिखें। मेरे
हिसाब से तो प्रमोद एक साधारण इंसान है जिसके पास कोई खास शक्तियां नहीं है।
प्रमोद प्रेम के दो नावों में सवार व्यक्ति था जिसके कारण उसे भारत छोड़ कर चीन में
अपनी जिंदगी के सात-आठ वर्ष गुमनामी में बिताने पड़े। प्रमोद का पूरा नाम प्रमोद
कुमार तिवारी है, आयु बत्तीस वर्ष (इस उपन्यास के अनुसार), कद लगभग पांच फूट आठ
इंच, वजन लगभग अस्सी किलोग्राम, एथलीटों जैसा पुष्ट शारीर, साफ़-सुथरा नाक नक्शा,
भूरे बाल, नीली आँखें। प्रमोद ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल
की और बाद में एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की। कानून का विद्यार्थी होने के
बावजूद भी कभी वकील बनने में दिलचस्पी नहीं ली। पढाई समाप्त करने के उपरान्त
राजनगर में रहने लगा। राजनगर में अपने प्रिय मित्र की पत्नी कविता ओबेराय से
मोहब्बत वह गिरफ्तार हो गया लेकिन प्रिय मित्र के मृत्यु के पश्चात जब उसने कविता
के सामने अपने दिल को खोल कर रख दिया तो पश्चाताप के कारण अगले ही दिन राजनगर से
गायब हो गया। प्रमोद चीन पहुँच गया जहाँ सात-आठ वर्ष रहकर पुराने मठों में
कंसंट्रेशन का आर्ट सीखा। चीन में उसकी मुलाक़ात याट-टो से हुई जिसने प्रमोद की
सेवा करने अपनी पूरी जिंदगी बिता दी। प्रमोद याट-टो पर बहुत निर्भर था और याट-टो
ने कई बार प्रमोद की जान बचाई थी। भारत और चीन में जब युद्ध शुरू हुआ तब प्रमोद
चीन छोड़कर फिर राजनगर वापिस लौट आया। प्रमोद एक एडवेंचरप्रिय व्यक्ति है जो किसी
भी प्रकार के बंधन में बंधकर रहना पसंद नहीं करता है। मुझे यकीन है इतनी बातें
जानने के बाद आप सभी पुनः “प्रमोद” को देखना पसंद करेंगे। पाठक साहब जरूर कोई न
कोई कहानी “प्रमोद” के लिए भी लिखेंगे क्यूंकि लेखक को स्वतंत्रता हासिल है इसलिए
जिन बंधनों का जिक्र उन्होंने “प्रमोद सीरीज” को न लिखने के लिए कहा है, सभी को
हटाकर एक बेहतरीन शाहकार हमारे सामने आएगा।
हालांकि मैंने शुरुआत एक
समीक्षा के लिए किया था लेकिन लिखते-लिखते कब यह लेख “प्रमोद सीरीज” के वापिसी को
लेकर हो गया, पता ही नहीं चला चलिए अब आपको इस उपन्यास की एक सामीक्षा की ओर ले
जाऊं।
कहानी एक मर्डर मिस्ट्री
में जो की टाइम फैक्टर के ऊपर आधारित है। जगन्नाथ नाम का एक अखबारची जो अखबार के
पीछे ब्लैक-मैलिंग का काम करता है, अपने फ्लैट में मृत पाया जाता है। उसकी मौत
स्लीवगन नामक चीनी हथियार से जहर बुझी तीर से हुई बताई जाती है। पुलिस का अनुसार
प्रमोद को आखिरी बार जीवित दो महिलाओं ने देखा था जो क़त्ल वाली रात को जगन्नाथ के
फ्लैट में आई थी। जिनमे से एक महिला फ्लैट के अन्दर जाते ही तो देखी गयी लेकिन
वापिस आती हुई नहीं देखी गयी। वहीँ दूसरी महिला एक चीनी लड़की थी जो जगन्नाथ से
मिलने आई थी और फिर कुछ देर बाद चली भी गयी थी। वहीँ “ब्लास्ट” के पत्रकार सुनील
कुमार चक्रवर्ती के अनुसार जगन्नाथ के फ्लैट में पीछे से भी एक रास्ता था। उसी
बिल्डिंग में रहने वाले एक व्यक्ति ने एक महिला को एक जगन्नाथ की पोट्रेट पेंटिग
हाथ में लेकर जाते हुए देखा था।
ये तो हुई क़त्ल की बाबत बात।
अब आप सभी यह जानना चाहते होंगे की “प्रमोद” का दखल इस क़त्ल में कैसे हुआ। पहला
दखल तो इस बात से हुआ की “जगन्नाथ” का क़त्ल जिस स्लीवगन से हुआ वह “प्रमोद” का था।
दूसरा दखल तब हुआ जब उसे पता चला की जिस पोट्रेट की बात चल रही है वह सुषमा ओबेराय
बना रही थी। सुषमा ओबेराय, कविता ओबेराय की छोटी बहन थी जिससे प्रमोद मोहब्बत करता
था। ओबेराय बहने विख्यात कलाकार थी। जहाँ प्रमोद कविता से मोहब्बत करता था वहीँ
सुषमा प्रमोद से मोहब्बत करती थी। कविता का देवर राजेंद्रनाथ सुषमा से मोहब्बत
करता था। वहीँ जिस चीनी लड़की का दखल जगन्नाथ के क़त्ल के दौरान आया था वाह सोहा नाम
की चीनी लड़की थी जो राजनगर में स्थित चायना टाउन नामक जगह पर अपने पिता के साथ
रहती है। प्रमोद के इस चीनी परिवार से घनिष्ट सम्बन्ध है जैसे ओबेराय परिवार हैं।
इंस्पेक्टर आत्माराम जो कि
क़त्ल के केस की तहकीकात करता है उसके संदेह के दायरे में प्रमोद, सुषमा, कविता,
राजेन्द्रनाथ और सोहा आते हैं। प्रमोद सभी से इस क़त्ल से जुड़े तथ्यों के बारे में
पूछताछ करता है और उन्हें जोड़कर इस क़त्ल की गुत्थी तक पहुँचता है।
यह उपन्यास एक बेहतरीन
मर्डर मिस्ट्री तो नहीं कही जा सकती लेकिन एक नवोदित लेखक जिसका यह १६ वां उपन्यास
था उसके हिसाब से यह उतनी बुरी भी नहीं की आप पढ़ न सकें। इस उपन्यास की सबसे बड़ी
कमी घटनाओं को सही प्रकार से प्रस्तुत न करना है जबकि पाठक साहब खुद जानते हैं कि
मर्डर मिस्ट्री कहानियों में घटनाओं को सही प्रकार से सेट करके प्रस्तुत करना ही
प्रमुख कार्य है। यही कारण है की मैंने इस उपन्यास को सिर्फ तीन सितारे दिए हैं।
वैसे इस उपन्यास में दार्शनिक बातों से एक अलग ही नजरिया पेश होता है। चीनी लोगों
का बात करने का ढंग और सुषमा के साथ प्रमोद के वार्तालाप बड़े ही मजेदार हैं।
उपन्यास के सभी किरदार को पाठक साहब ने बड़े प्रेम से और शसक्त रूप से लिखा है| आशा
है आपको यह उपन्यास पसंद आएगा। समीक्षा आपको कैसी लगी जरूर बताइयेगा|
प्रमोद सीरीज को जानने के
लिए निम्न लिंक पर दिए लेख को जरूर पढ़ें –
आभार
राजीव रोशन
That's a fantastic review of Aadhi Raat Ke Baad. The mystery of this novel is ordinary but it's the characters (Pramod and others) which makes it memorable. Being fans of SMP Saheb, we should bring to fore such long forgotten novels too. You have done a great job.
ReplyDeleteThank u very much. I will write more about Pramod in future.
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