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Showing posts from 2014

झेरी हत्याकांड - Find out the murderer

झेरी हत्याकांड - Find out the murderer गौरीशंकर जालान न जाने कैसा शख्स था। हर कोई उसकी मौत की तमन्ना लिए बैठा था। वैसे तो वह प्रसिद्ध उद्योगपति था लेकिन ४ साल से वह झेरी में अपनी नवयुवा पत्नी भावना के साथ बसा हुआ था। गौरीशंकर जालान को दो बार दिल का दौरा पड़ चुका था और तीसरे के आते ही वह भगवान् का प्यारा हो जाने वाला था। गौरीशंकर जालान के घर में पदमा नाम की नर्स भी रह रही थी जो उसकी तंदरुस्ती के हिसाब से उसके देखभाल का काम देखती थी। वैसे पदमा का काम सिर्फ नर्स के काम तक ही सिमित नहीं था वह तो भावना पर भी नज़र रखती थी। गौरीशंकर जालान की तंदरुस्ती का ख्याल रखते हुए राजनगर के एक बड़े डॉ. रुस्तम जरीवाला ने लोकल डॉ. निर्मल पसारी को नियुक्त किया था जो कि प्रतिदिन जालान के तंदरुस्ती का मुआयना किया करता था। लेकिन कहते हैं न जिसकी आनी होती है आ के ही रहती है। मौत और ग्राहक के आने का कोई समय नहीं होता। जब धरती पर ईश्वर द्वारा मुक़र्रर किया गया समय आपके लिए समाप्त होता है तो यमराज आपको दुसरे लोक ले जाने के लिए आ ही जाता है। ऐसा ही कुछ गौरीशंकर जालान के साथ हुआ जब सोते-सोते ही वह चिरनिंद्रा क

Belly Dance in SMP Novels

Belly Dance in SMP Novels “सिल्विया दिल्ली में जैसे आसमां से टपकी थी। आरम्भ में उसकी खूबसूरती और नौजवानी का दिल्ली में किसी ने रोब नहीं खाया था लेकिन एक बार उसका बैली डांस वाला टेलेंट नुमायाँ होने की देर थी कि लोग उसके दीवाने हो गए थे। पहली बार उसकी गोरी चमड़ी का रोब खाकर दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल मौर्य ने उसे अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया था। अपनी पहली परफॉरमेंस के साथ ही मिस सिल्विया ग्रेको हिटहो गयी थी। सिल्विया का बैली डांस देखने लोग होश में आते थे और बिना पिए होश खोकर जाते थे।” साहेबान, मेहरबान, कद्रदान और इसे पढने वाले पाठकगण, वैसे मैं तो अभी जीवन की पहली कक्षा का ही छात्र हूँ और इसका एहसास अधिकतर मुझे तब होता जब मैं सुधीर सीरीज के उपन्यास पढने लगता हूँ। “बैली डांस” कोई डांस का प्रकार भी होता है इसकी जानकारी मुझे बिलकुल भी नहीं थी जब तक की सुधीर सीरीज के एक उपन्यास में मैं सिल्विया ग्रेको से नहीं मिला था। पाठक साहब के सदके मुझे डांस के इस प्रकार की जानकारी मिली थी। वैसे आपके खादिम, राजीव रोशन को कभी, साक्षात डांस के इस रूप के दर्शन नहीं हुए हैं। लेकिन कामना है क

५० लाख – "जीता" के जुनून का अंजाम

५० लाख – "जीता" के जुनून का अंजाम क्या भारत की न्यायव्यवस्था इतनी कमजोर है की एक गुनाहगार को मात्र एक झूठी गवाही पर रिहा कर दिया जाए। जो गवाह कल तक उस व्यक्ति के गुनाहों को दुनिया के सामने नग्न करने को राजी था, आज भरी अदालत में उसको गुनाहगार मानने से पलट गया वो भी इस पर कि उसने बाइबिल पर हाथ रख कर सच कहने की सपथ ली थी। बहुत ही अजीब दुनिया और कानून व्यवस्था है हमारे देश की। उस गवाह “गाईलो” ने “जीत सिंह उर्फ़ जीता” के खिलाफ इसलिए गवाही नहीं दिया क्यूंकि जीत सिंह, गाईलो के कजन एंजो का दोस्त था। पुलिस ने इतनी मेहनत मसक्कत से सुपर सेल्फ सर्विस स्टोर के दिन दहाड़े डकैती के केस के एक मुख्य मोहरे को गिरफ्तार किया था। जहाँ पुलिस को इस काम के लिए तारीफ के फूल मिलने चाहिए थे वहीँ उन्हें यह काँटा मिला की मुलजिम जीत सिंह को जमानत पर रिहा कर दिया गया। अगर और गहराई में जाएँ तो पता चलता है कि जीत सिंह को पकड़ने में पुलिस ने कोई ख़ास मेहनत नहीं की थी बल्कि उनको तो जीत सिंह थाली में सजाकर, लौंग का वर्क लगा कर मिला था। सुपर सेल्फ सर्विस स्टोर की डकैती में शामिल जीत सिंह के साथियों

आखिरी मकसद (द लास्ट गोल)

आखिरी मकसद (द लास्ट गोल) सुधीर कोहली – द फिलोस्फर डिटेक्टिव – द लक्की बास्टर्ड – सीरीज दो बहनें सुधा और मधु, शायद समाज के एक ऐसे दृश्य को दिखाती हैं जिसे हम बार बार दरकिनार कर जाते हैं। सुधा, मधु से ३-४ वर्ष बड़ी है। दोनों ही बहने अपने नव-यौवन की अवस्था में हैं। सुधा, जो कृष्ण बिहारी माथुर नामक दिल्ली के बूढ़े अपाहिज धनवान सेठ से विवाहित है और जिसके नाजायज सम्बन्ध अपने ही सौतेले बेटे अर्थात माथुर के पहली पत्नी के बेटे मनोज के साथ हैं। सुधा और मनोज में भी ३-४ वर्ष का ही अंतर होगा। मधु जिसने लेखराज मदान जैसे दिल्ली के दादा से बस इसलिए शादी की ताकि धन की बारिश से उसकी प्यास बुझ सके लेकिन उसने अपने शारीरिक पूर्ति के लिए अपने पति के वकील पुनीत खेतान के साथ ही नाजायज सम्बन्ध बना लिए और किसी से भी सम्बन्ध बना लेने में उसे हिचक नहीं होती है। सुधीर कोहली, द फिलोस्फर डिटेक्टिव, द लकी बास्टर्ड ने दिल्ली की इन खास किस्म की महिलाओं के बारे में अगर कुछ खास विचार कहे हैं तो गलत नहीं कहे होंगे (नीचे कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये गए हैं)। उपरोक्त पंक्ति, हमें सभ्य समाज में रहने वाले ऊँचें

कार्पस ड़ेलेक्टी – ए क्राइम इन्वेस्टीगेशन टर्म

कार्पस ड़ेलेक्टी – ए क्राइम इन्वेस्टीगेशन टर्म सभी सुमोपाई बंधुओं को सलाम। फिर से एक बार आप लोगों के लिए साधारण सी जानकारी लेकर आया हूँ। पाठक साहब ने एक लघु कथा “किताबी क़त्ल” लिखा था जिसे एक बार उपन्यास के रूप में भी छापा गया था। अगर आप इस कहानी को पढेंगे तो आप क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन के एक नुक्ते से आसानी से परिचित हो जायेंगे। खैर आप सभी को अगर ध्यान न हो तो मैं आप सभी की कृपा दृष्टि उस नुक्ते की ओर ले जाना चाहूँगा। “किताबी क़त्ल” की कहानी में जब इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर मौकायेवारदात पर पहुँचता है तो उसे ऐसा लगता है की वहां क़त्ल हुआ है लेकिन उसे वहां लाश नज़र नहीं आती है। मौकायेवारदात से मिले कई सूत्रों से पता चलता है की वहां घर के मालिक का क़त्ल हुआ है लेकिन लाश न मिलने की सूरत में इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर उसे एक नुक्ते के रूप में लेता है। इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर ने इस नुक्ते को “कार्पस डेलिक्टी” का नाम दिया। इस बिंदु पर जब थोड़ी बहुत इन्टरनेट द्वारा खोज बीन किया तो पता चला की इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर द्वारा बोला गया यह टर्म क्राइम इन्वेस्टीगेशन में बहुत मायने रखती है। “कार्पस डिलेक

तीस लाख (एक तालातोड़ के जुनून की दास्तान)

तीस लाख (एक तालातोड़ के जुनून की दास्तान) “उस्तादजी, जिससे मुहब्बत हो, उसका बुरा नहीं चाहा जाता।” जीतसिंह उर्फ़ जीता जैसे तालातोड़, कातिल, वॉल्ट बास्टर से ऐसे शब्दों को सुनना, विश्वास करने के काबिल नहीं लगता है। एक तरफ तो पाठक साहब ने इस किरदार को नेगेटिव शेड में ही बनाया और उस नेगेटिव शेड में स्याही डालने का काम सुष्मिता ने किया जब वह अपने किये वादे से फिर गयी और जीत सिंह को दिए गए वक़्त के मियाद खत्म होने से पहले ही बूढ़े, मालदार, सेठ पुरुसुमल चंगुलानी से शादी कर लिया। अब सोचने वाली बात आती है कि इस किरदार ने इतनी पते की बात कह कैसे दी। क्या सच ही उसे सुष्मिता से बेपनाह मोहब्बत थी जैसा की उपरोक्त पंक्ति दर्शाती है। “उस एक औरत के अलावा अब मुझे दुनिया जहान की औरतों से नफरत है। मेरा बस चले तो मैं दुनिया के तख्ते से औरत जात का नामोनिशान मिटा दूँ।” “सिवाय उस एक औरत के?” “हाँ। वो सलामत रहेगी तो देखेगी कि मैंने क्या किया? वो भी मर गयी तो फिर क्या फायदा?” “बेटा, तू किसी जुनून के हवाले है। तू नहीं जानता तू क्या कह रहा है।” अब यहाँ, हमें नज़र आता है की कैसे जीत सिंह उर्

The Inductive and Deductive Reasoning in Crime investigation

The Inductive and Deductive Reasoning in Crime investigation पाठक साहब के सभी सैदाइयों को दिल से नमस्कार। आप सभी ने कई बार देखा होगा और गौर भी किया होगा की सुनील जब भी मौकायेवारदात पर पहुँचता है तो वहां देखे गए तथ्यों के अनुसार क़त्ल के होने का सूरत-ए-अहवाल या खाका खींच देता है। वह यह बात या तो रमाकांत को बताता है या प्रभुदयाल को। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है की पुलिस की लाइन ऑफ़ एक्शन और सुनील की लाइन ऑफ़ एक्शन एक ही रही हो। ऐसा ही आप सभी ने देखा होगा की, सुनील हर उपन्यास के अंत में तथ्यों, तर्कों और विश्लेषणों के आधार पर एक कहानी सुनाता है जो की तर्कपूर्ण लगता है, जिससे कि हत्यारा या मुजरिम आसानी से पकड़ा जाता है। इस कहानी में सुनील अपनी खोजबीन और तहकीकात को तो शामिल करता ही है साथ ही कल्पनाओं के आधार पर कुछ बातें उस बिंदु से आगे की भी कह देता है। सुनील इस कहानी में प्रभुदयाल से मिली मटेरियल ज्ञान का भी इस्तेमाल करता है – जैसे की फॉरेंसिक रिपोर्ट, फिंगर प्रिंट्स रिपोर्ट, बैलेस्टिक रिपोर्ट आदि। इस तरह से सुनील की इस कहानी में कुछ उसके अपने तर्क के साथ-साथ, तहकीकात से जुडी सत्य बातो

The impact of Crime fiction on Society

The impact of Crime fiction on Society एक ऐसा इंसान जो की समाज के ऊँचे स्तंभों के गुंडागर्दी और जुल्म से तंग आकर अपने शहर को छोड़ देता है और दुसरे शहर में शरण ले लेता है लेकिन वो एक दिन वापिस लौटता है और अपने ऊपर हुए जुल्म का बदला लेता है। एक शहर में चार बेरोजगार नौजवान, अपनी बेरोजगारी से तंग आकर जुर्म की राह पकड़ लेते हैं और अपनी धन की लालसा को पूरा करने के लिए हर प्रकार का जुर्म करने को तैयार हो जाते हैं। एक मुजरिम, अपनी सजा काट कर सभ्य इंसान बनना चाहता है। लेकिन हमारा समाज उसे कहीं भी टिक कर दो जून की रोटी खाने भी नहीं देता क्यूंकि उसने अपने भूतकाल में कुछ जुर्म किये थे और हमारा समाज ऐसे मुजरिमों को नौकरी पर रखना पसंद नहीं करता। ऐसे में वह फिर से अपराध की राह पर चल निकलता है क्यूंकि समाज के ताने और ठोकरों ने उसके धैर्य की सीमा को पार कर दिया है। ऐसे कई किस्से और कहानियां आपको देखने और पढने को मिल जायेंगे लेकिन कहानियां समाज पर अपना असर छोड़ जाती हैं। समाज को अगर आप कुछ सिखाना चाहते हैं तो उसे दो तरीकों से कुछ सिखाया जा सकता है। एक तो आप सीधे तरीके से उन्हें सिखाइए