सुहाग का नूपुर
लेखक – स्वर्गीय अमृतलाल नागर
“सारा इतिहास सच-सच ही लिखा है, देव! केवल एक बात अपने महाकाव्य में और जोड़ दीजिये – पुरुष जाति के स्वार्थ और दंभ-भरी मुर्खता से ही सारे पापों का उदय होता है। उसके स्वार्थ के कारण ही उसका अर्धांग – नारी जाति – पीड़ित है। एकांगी दृष्टिकोण से सोचने के कारण ही पुरुष न तो स्त्री को सटी बनाकर सुखी कर सका और न वेश्या बनाकर। इसी कारण वह स्वयं भी झकोले खाता है और खाता रहेगा। नारी के रूप में न्याय रो रहा है, महाकवि! उसके आंसुओं में अग्निप्रलय भी समाई है और जल प्रलय भी!”
महास्थिर और महाकवि दोनों ही आश्चर्यचकित हो उसे देखने लगे। सहसा महाकवि ने पूछा, “तुम माधवी हो?”
“मैं नारी हूँ – मनुष्य समाज का व्यथित अर्धांग।” पगली कहकर चैत्यगृह के ओर चली गई।
******************
श्री अमृतलाल नागर जी के उपन्यास “सुहाग के नूपुर” के यह अंतिम प्रसंग हैं। यह प्रसंग इस उपन्यास की कहानी को खुद-ब-खुद बखान कर देता है। श्री अमृतलाल नागर जी के बारे में जब इन्टरनेट के जरिये जानकारी ली तो जाना की उनका जन्म लखनऊ में हुआ था और वे हिंदी के प्रसिद्द लेखक थे। इस बात ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया की कैसे एक हिंदी बेल्ट के लेखक ने हिंदी बेल्ट के शहरों को छोड़ दक्षिण के एक शहर की कहानी लिख डाली। वैसे अभी मैं उनके बारे में कई बातो से अनिभिज्ञ हूँ लेकिन यह थोडा बहुत सत्य भी तो है।
कावेरीपट्टनम नगर, चोल राज्य के महत्वपूर्ण नगरों में से एक नगर है क्यूंकि यह उनका व्यापारिक केंद्र है जहाँ से देश-विदेश में इस राज्य के व्यापारी व्यापार करते हैं। यह नगर कावेरी नदी के किनारे बसा है जो अपने “रूप के बाज़ार” के लिए भी प्रसिद्द है। साथ यह नगर, वर्ष में होने वाले दो उत्सवों के लिए भी प्रसिद्द है जिसमे नगर के कई नार्तिकियाँ अपनी कला से महाराज को मोहित करती हैं एवं कई पुरष्कार पाती हैं। कावेरीपट्टनम में जहाँ पुरुषों का एक ही वर्ग है वहीँ नारी को दो वर्गों में विभाजित किया गया है। एक है कुलीन वर्ग की महिलायें और दूसरी वैश्या वर्ग कि महिलायें हैं।
“सुहाग का नूपुर” उपन्यास की कहानी, तीन इंसानों के इर्द-गिर्द घुमती है- माधवी, कोवलन और कन्नगी। माधवी “रूप के बाज़ार” की सबसे महँगी वैश्या है, जिस पर कावेरीपट्टनम का युवा वर्ग पूर्ण रूप से मोहित है और उसे किसी भी तरह पाना चाहता है। माधवी, कावेरीपट्टनम की वर्ष का सर्वश्रेष्ठ नर्तकी है। कोवलन कावेरीपट्टनम के एक धनी व्यापारी का बेटा है जो विदेशों से व्यापार में खूब धन कमा कर लाया है और जिसका दिल माधवी तीखे नेत्रों से घायल हो चूका है। कन्नगी भी कावेरीपट्टनम के एक धनी व्यापारी की बेटी है जिसका विवाह कोवलन से तय हो चूका है।
कोवलन, माधवी के ऐसे मोहजाल में फंस जाता है की माधवी जो चाहती है कोवलन वह करता जाता है। यहाँ तक की कन्नगी से विवाह के प्रथम रात्री पर वह छुप कर माधवी के घर जाता है जहाँ पर वह माधवी के घमंड को चूर-चूर करता है और कन्नगी के साथ अपना जीवन निर्वाह करता है। वहीँ माधवी कुट्टनीनिति से बार-बार कोवलन को को पाने का भरषक प्रयास करती है जबकि कोवलन हमेशा उससे दूरियां बना कर रखता है। लेकिन अंततः माधवी सफल हो जाती है और कोवलन पर पूर्ण रूप से राज करने लगती है।
यहाँ कोवलन के दो नारियों से सम्बन्ध है। माधवी को वह हमेशा वैश्या ही मानता है जिसे वह हमेशा धन खर्च करके अपना बना कर रख सकता है जबकि कन्नगी को अपनी पत्नी मानता है उसके लिए सब कुछ कर सकती है। लेकिन माधवी भी एक सती, एक कुलीन स्त्री की तरह कोवलन के साथ रहकर जीवन निर्वाह करना चाहती है जबकि कोवलन ऐसा कर नहीं सकता।
एक तरह से देखा जाए तो यह कहानी एक वैश्या की उस जिद कि कहानी है जिसमे वह वैश्या से कुलीन स्त्री में दर्जा पाना चाहती है। वह चाहती है की वह भी सती का जीवन बिताएं, एक पुरुष का सदा के लिए बन कर रहे। ऐसा ही कुछ बनने कि कोशिश माधवी पुरे उपन्यास में करती रहती है। माधवी, कोवलन पर अपने त्रियाचरित्र का जादू रच कर, कोवलन और कन्नगी का सब कुछ हड़प लेती है। अंत में वह कन्नगी का “सुहाग का नूपुर” भी अपने जिस्म पर सुशोभित देखना चाहती है। लेकिन कन्नगी अपने पति से बुरी तरह से तिरस्कृत कर दिए जाने के बावजूद “सुहाग के नूपुर” को उसे नहीं सौंपती। कन्नगी को “सुहाग का नूपुर” उसके श्वसुर ने दिया था जो कि कोवलन के कुल के मर्यादा थी (या ऐसा कोई रिवाज़ था उस वक़्त)। माधवी के लिए सबसे बड़ा धन भी “सुहाग का नूपुर” ही होता जो कि उसे कोवलन के खानदान में एक बहु के रूप में स्थापित कर देता।
माधवी एक स्थान पर उपन्यास में कहती है की वह बचपन से वैश्या नहीं है, उसका पालन-पोषण एक वैश्या ने किया है इसलिए वह वैश्या कहलाती है लेकिन वह वैश्या नहीं है। वह भी एक कुलीन स्त्री कि तरह जीवन बिताना चाहती है, विवाह करना चाहती है, एक पतित्व तक सिमित रहना चाहती है। लेकिन उसकी यह पुकार पुरे उपन्यास में कोई किरदार नहीं सुनता जिसके कारण वह अपने हठ पर टिकी रहती है और इस उपन्यास के निर्मम अंत का कारण बनती है।
कन्नगी एक पतिवर्ता स्त्री के रूप में पुरे उपन्यास में सभी किरदारों पर भारी नज़र आती है। उपन्यास के अंत से पहले तक पाठक की करुना का वह पात्र बनी रहती है लेकिन उपन्यास का अंतिम प्रसंग माधवी के किरदार को कन्नगी के किरदार से दो हाथ उंचा ले जाता है।
कोवलन का चरित्र एक पहले एक कर्मठ पुरुष का नज़र आता है लेकिन धीरे-धीरे वह विलाशी पुरुष में बदलता जाता है। कहते हैं कि स्त्री का मन बहुत चंचल होता है लेकिन यह उपन्यास इस बात का विरोधाभाष प्रस्तुत करता है जिससे मैं स्वयं सहमत भी हूँ। इस उपन्यास में जहाँ नारी का मन शांत और स्थिर नज़र आता है वहीँ पुरुष मन चंचल नज़र आता है। लेकिन पुरुष मन कि बात सिर्फ कोवलन तक ही सिमित है जबकि उसके पिता और श्वसुर एक स्थिर मन वाले व्यक्ति का किरदार निभा रहे हैं।
बहुत समय बाद एक साहत्यिक कृति को पढ़ा लेकिन इस कृति के अंतिम प्रसंग ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। एक बात तो सच है कि इंसान कर्म से पहचाना जाता है न कि जन्म से।
आशा है यह समीक्षा आप सभी को पसंद आएगी।
आप सभी के शब्दों के इंतज़ार में।
आपका खादिम
राजीव रोशन
हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार आदरणीय श्री अमृतलाल नागर जी की कृति 'सुहाग के नूपुर' का इतने संक्षिप्त में वर्णन करना सराहनीय है
ReplyDeleteहिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री अमृतलाल नगर जी के उपन्यास 'सुहाग के नूपुर की यह समीक्षा सराहनीय है
ReplyDelete