तकदीर का तोहफा (लघुकथा)
कहते हैं की इंसान अपनी तकदीर स्वयं ही बनाता है। इंसान की तकदीर उसके हाथों में होती है। वो कितना मेहनत करता है, कितना संघर्ष करता है, कितना अपने जमीर के साथ चलता है, यह उसकी तकदीर बनाने के लिए जरूरी होता है। लेकिन जब इंसान स्वयं को भूलना शुरू कर देता है तो अपनी सभी नकाबलियतों, दुर्दशा और बुरे दौर के लिए तकदीर को कोसना शुरू कर देता है।“तकदीर का तोहफा” लघु कथा पढने के बाद जो पहली बात मेरे दिमाग आई वो थी इकबाल साहब की निम्न पंक्ति -
खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
प्रभात चावला नाम था उस शख्स का जो जिन्दगी भर अपनी तक़दीर को कोसता आया था। उसका ये सोचना था की तकदीर ने हमेशा उसकी जिन्दगी में डांडी मारी थी और इसमें हाथ का काम भिन्न-भिन्न लोगों ने किया था। नौकरी के चले जाने के लिए वह अपने सहकर्मी को दोषी ठहराता था, जिसके कारण उसकी नौकरी चली गयी थी। अपनी माँ से बिछड़ने के लिए, अपने सौतेले बाप को दोषी ठहराता था, जिसके कारण उसकी माँ इस दुनिया से चल बसी। अपने पत्नी से कम प्यार और अलहदगी के लिए, अपने बच्चे को दोषी मानता था जिसने इस दुनिया में आकर उससे प्यार छीन लीया था।
अपनी प्रेमिका शैलजा से दूरी के लिए तकदीर ने अतुल वर्मा नाम के शख्स को अपना हाथ बनाया था। अब शैलजा की जिन्दगी में प्रभात चावला रुखसत और अतुल वर्मा दाखिल हो चूका था। प्रभात चावला के इस घटना के बाद उदगार थे – “ऐसा न होता तो मेरी खोटी तकदीर की वो जंजीर न टूट जाती जो मेरे जन्म से ही कड़ी-दर-कड़ी बढती जा रही थी, मजबूत होती जा रही थी।”
प्रभात चावला, अतुल वर्मा के क़त्ल के जुर्म में मौकयेवारदात पर पुलिस द्वारा धर दबोच लिया जाता है। वो उस समय इतने नशे में होता है की वो यह मानने को तैयार हो जाता है की अतुल वर्मा का क़त्ल उसने किया हो सकता है।
शैलजा के फ्लैट पर हुआ अतुल वर्मा का क़त्ल और मौकाए-वारदात पर मौजूद पाया जाता है तक़दीर को कोसते रहने वाला प्रभात चावला। जिस गन से क़त्ल हुआ – वह प्रभात चावला का। नशे की ऐसी हालत की वह अपनी एलिबाई प्रस्तुत नहीं कर सकता।
ऐसे में क्या लगता है आपको – क्या तकदीर की मार प्रभात चावला पर जारी रहेगी।
क्या प्रभात चावला – अतुल वर्मा – अपने रकीब का खून कर सकता था।
प्रभात चावला के पास हर वो चीज मौजूद था – जिससे एक इंसान का क़त्ल करने के लिए जरूरी होता है - उद्दयेश, मौका, हथियार।
एक बहुत ही सुलझी हुई लेकिन उलझी हुई गुत्थी – क्यूँ? – पढ़िए फिर इसका जवाब जरूर मिलेगा।
कैसे एक इंसान तकदीर की मार के आगे घुटने टेक देने को तैयार हो जाता है। कैसे एक इंसान तकदीर से लड़ने की कोशिश करता है। खुदा भी उसका ही साथ देता है जो अपनी सहायता खुद करने की सोचता है।
एक साधारण सी मर्डर मिस्ट्री - लेकिन मजा पूरा। एक छोटा सा पटाखा – लेकिन आवाज ऐसी की अच्छे से अच्छा बम भी इसके आगे फीका पड़ जाए।
एक अद्भुत और अद्वित्य कथानक में लिपटी हुई, सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की एक शानदार रचना – तकदीर का तोहफा।
कहानी का इबुक लिंक- http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/Takadir-Ka-Tohapha/b-43285
सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कहानियों का संग्रह इबुक के रूप में प्रकाशित हो चूका है। आप उसका भी आनंद उठा सकते हैं।
संपूर्ण कथा साहित्य लिंक वॉल्यूम १ -http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/Sampurn-Katha-Sahitya---Vol-1/b-42653
संपूर्ण कथा साहित्य लिंक वॉल्यूम २ -http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/Sampoorn-Katha-Sahitay---Vol-2/b-43227
नोट:- लघुकथा का छायाचित्र राजीव रोशन जी द्वारा बनाया गया है जिसका किसी भी प्रकार व्यावसायिक प्रयोग प्रतिबंधित है| छायाचित्र के लिए चित्रों का प्रयोग गूगल इमेज सर्च द्वारा लिया गया है|
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