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Showing posts from April, 2016

10 Best SMP Novel: Which Can Be Turn into A Movie In Future

10 Best SMP Novel: Which Can Be Turn into A Movie In Future आज मैं जिस बात को लेकर आप सभी के पास आया हूँ कोई नयी नहीं है। यह बात बहुत पुरानी है। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब के प्रशंसक हमेशा से ऐसी चाहत रखते आये हैं जिसके अनुसार उनका मानना है की पाठक साहब के किसी उपन्यास पर आधारित फिल्म बने। दोस्तों, हम प्रशंसकों की यह चाहत बहुत पुरानी है। लेकिन हमारी यह चाहत हमेशा से एक ख्वाब ही रही है। सुना था कभी की सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास “डायल १००” पर “लम्बे हाथ” नामक फिल्म बन रही है। लेकिन यह बात कब वर्तमान से समय के गर्त में पहुँच गयी, कुछ पता ही नहीं चला और न ही कोई सही कारण पता लग सका क्यूँ घोषित हुई फिल्म बनी नहीं। आज भी प्रशंसकों के मन में यह प्रश्न है लेकिन जवाब सिफ़र है। अगर हम पाठक साहब द्वारा लिखित कुछ ऐसे उपन्यासों पर दृष्टि डालें जिस पर भविष्य में फिल्म बन सकती है तो ऐसी उपन्यासों की सूची प्राप्त करना बहुत मुश्किल काम है। फिर भी कई मित्रों से विचार-विमर्श के बाद, मैं आप सभी के सामने १० उपन्यासों के नाम रख रहा हूँ जिन पर फिल्म बन सकती है। इन उपन्यासों की कहा

A Diary of SMPian – 3

A Diary of SMPian – 3 बचपन के सुनहरे वक़्त:- सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की कृतियों से मुलाक़ात होना मेरे जिदंगी का बहुत ही खुशनुमा वक़्त था। लेकिन उस वक़्त से पहले भी कोई वक़्त था जब मुझे स्कूल की किताबों के अतिरिक्त किसी भी किताब से प्रेम नहीं था। जब भी मैं नयी कक्षा में जाता था तो सबसे पहले इतिहास की किताब पढता था जिसकी कहानियाँ मुझे बहुत पसंद आती थी। दुसरे स्थान पर मैं हिंदी की किताबों को पढता था ज िसमे साहित्यिक कहानियां होती थी और साथ ही कवितायें भी। उसके बाद मैं अंग्रेजी की किताबों की ओर मुड़ता था। वैसे मेरा पसंदीदा सब्जेक्ट गणित था जो की आज तक है। खैर मैं अपनी इन स्कूल की किताबों से आगे बढ़ता हूँ। जब भी मैं अपने माता-पिता के साथ दिल्ली से बिहार और बिहार से दिल्ली की यात्रा करता था तो ट्रेन में २० रूपये में ४ किताबों की सेट मिला करती थी जिसमे नंदन, चम्पक, सरस-सलिल आदि के पुराने अंक होते थे। इन किताबों को पढ़ कर ही मेरी यात्रा पूरी हुआ करती थी। जहाँ नंदन और चम्पक की कहानियां बचपन में उन नैतिक मूल्यों को सिखाने में सहायता करती थी जो मेरे माता-पिटा चाहकर भी नहीं सिखा पाते थे

बीवी का हत्यारा - The story of Love, Lust, relation, incredulity, Infidelity & Murder

बीवी का हत्यारा “इर्ष्या ही इंसान की संहारक प्रवृति की जननी होती है।” “अविश्वास और अनास्था ही इंसानी रिश्तों को दीमक लगाती है।” दोस्तों उपरोक्त दोनों ही सूक्तियां पाठक साहब द्वारा लिखित उपन्यास “बीवी का हत्यारा” से लिया गया है। “बीवी का हत्यारा” सर सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखित एक बेहतरीन शाहकार है जो थ्रिलर की श्रेणी में गिना जाता है। लेकिन अभी २ हफ्ते पहले जब मैंने इस पुस्तक को पढना शुरू किया और अपने मित्रों को बताया की मैं “बीवी का हत्यारा” पढ़ रहा हूँ तो उनके कमेंट बहुत ही मजाकिया थे। वैसे ऐसा होना भी चाहिए क्यूंकि अभी बमुश्किल एक महीने ही मेरी शादी को हुए हैं और मैं शादी के बाद पहला उपन्यास पढना शुरू भी किया तो कौन सा – “बीवी का हत्यारा”। तो ऐसी स्थिति में मेरे मित्रों द्वारा मजाक किया जाना वाजिब है। मैं इस उपन्यास को इस बार से पहले भी, कई बार पढ़ चूका हूँ। लेकिन इस उपन्यास में एक कशिश है जो मुझे इसे बार-बार पढने को मजबूर कर देती है। इस उपन्यास का केंद्रीय किरदार एक पुलिस इंस्पेक्टर है जो अविश्वास और अनास्था की एक ऐसी राह पर पड़ता है जहाँ से वापिस लौटन

खुली खिड़की (लघुकथा) - समीक्षा

खुली खिड़की (लघुकथा) - समीक्षा  सभी सहपाठियों को मेरा नमस्कार, बहुत ही लम्बे अरसे के बाद आप सभी से रूबरू हो रहा हूँ। एक लम्बा अरसा गुजर गया है कुछ लिखे हुए या दुसरे शब्दों में कहूँ तो जंग लग गयी है मेरी सोच में क्यूंकि मैं अब कुछ नया लिख भी नहीं पा रहा हूँ। खैर, अभी बीते दीनों मैं फेसबुक की दुनिया से पूरी तरह नदारद था लेकिन जब वापिस इधर आया तो पता चला की पाठक साहब का पिछले वर्ष बुरी तरह से मुह की खाए हुए उपन्यास या यूँ कहूँ की असफल उपन्यास “कातिल कौन?” को कागज़ के पन्नों पर जगह मिल गयी। यह बहुत ही हर्ष का विषय है की लगभग ३ वर्ष के बाद “राजा पॉकेट बुक्स” “कातिल कौन?” के जरिये फिर से पाठक साहब के साथ जुड़ गया है। “कातिल कौन?” उपन्यास कैसा था और कैसा है, मैं इस पर बात नहीं करूँगा क्यूंकि दुनिया में कई ऐसे पाठक हैं जिन्हें उपन्यास के स्तर से मतलब नहीं होता, उनके लिए तो पाठक साहब का उपन्यास मिलना सबसे बड़ी बात है। ऐसे पाठकों के लिए “कातिल कौन?” उपन्यास पेपर पर छापना एक संजीविनी बूटी की तरह होता है। इसके लिए “राजा पॉकेट बुक्स” और सर सुरेन्द्र मोहन पाठक को मैं कोटि-कोटि धन्यवाद् प्रेष