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Showing posts from September, 2015

Top 10 - How done it - Written by - Sir Surender Mohan Pathak

Top 10 - How done it?  Written by - Sir Surender Mohan Pathak क्राइम-फिक्शन में मर्डर मिस्ट्री को उसके अन्दर मौजूद रहस्य के आधार पर दो भागों में बांटा जाता है – ‘हु डन इट’ और ‘हाउ डन इट’। ‘हु डन इट’ एक ऐसी कहानी होती है जिसमे इस बात पर ध्यान जाता है की कातिल या अपराधी कौन है। जबकि ‘हाउ डन इट’ में इस बात पर जोर दिया जाता है की अपराध हुआ कैसे। वैसे एक नज़र से देखा जाए तो ‘हाउ डन इट’ एक प्रकार का ‘हु डन इट’ भी होता है लेकिन इसमें सबसे ज्यादा फोकस “कैसे हुआ” पर होता है इसलिए इसे अलग टर्म के रूप में जाना जाता है। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के लिए कहा जाता है कि वो मर्डर-मिस्ट्री को बहुत ही शानदार तरीके से प्रस्तुत करते हैं। उनके द्वारा लिखे मर्डर-मिस्ट्री नोवेल्स में हर वह एलिमेंट मौजूद होता है जो पाठक को नावेल से बाँध कर रखता है। पाठक साहब ने बहुत ही शानदार मर्डर-मिस्ट्री उपन्यासों की रचना की है जिसमे से अधिकतर ‘हु डन इट’ की श्रेणी में आता है। लेकिन उनके द्वारा लिखे ‘हाउ डन इट’ को सबसे अधिक पसंद किया जाता है। एक बात और बता दूँ, कई पाठक सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों अ

A Psychological study of Book Reading

A Psychological study of Book Reading क्या आपने किसी पुस्तक को समाप्त किया है? मेरा मतलब है, दिल से समाप्त किया है? फ्रंट कवर से शुरू करते हुए बेक कवर तक। मेरे हिसाब से तो सभी एसएमपियन पाठक साहब की पुस्तकों को दिल से ही पढ़ते हैं। आप गहरी सांस लेते हैं, बहुत ही गहरी जो सीधे आपके फेफड़ों की गहराई से आपकी नलिका तक पहुँचती है और आप अपने दोनों हाथों में किताब को लेकर, नावेल के फ्रंट कवर पर गर्दन झुकाए बैठ जाते हैं। पहले तो आप फ्रंट कवर को बहुत ही ललचाई हुई दृष्टि से देखते हैं जैसे की जलेबी खाने वाला जलेबी को मुहं में लेने से पहले ही स्वाद का अहसास पा लेता है। फ्रंट कवर पर मौजूद चित्र के बाद आपका ध्यान उसके शीर्षक पर जाता है जो आपको कहानी का २०% हिस्सा का संक्षेप में ही सुना जाता है। फिर आप लेखकीय में डूबते हैं और डूब डूब कर उसे पढ़ते हैं। फिर बारी आती है कहानी की, जो की किसी पुस्तक की मुख्य आत्मा है। फिर अंत में आप बेक कवर पर पहुँच कर पाठक साहब की शानदार तस्वीर का दीदार करते हैं और पुस्तक बंद कर देते हैं। लेकिन आपके हाथ से पुस्तक छुटता नहीं है। आप किन्हीं विचारों में गुम हो जाते

द कलर्स ऑफ़ मर्डर (The Colors of Murder) - Part 2

द कलर्स ऑफ़ मर्डर भाग- 2 फॉरेंसिक साइंस ने आज जो तरक्की की है, आज जिस मुकाम पर फॉरेंसिक साइंस पहुँच चूका है उस तक पहुँचने के लिए 3-४ शताब्दियों का सहारा लिया है। आधुनिक युग के फॉरेंसिक साइंस हमारे लिए बहुत उपयोगी तो है लेकिन इसके पीछे लगी कितने ही वैज्ञानिक, डॉक्टर्स, पेथालोजिस्ट और केमिस्ट की मेहनत को हम लगभग भुला ही चुके हैं। इस ४०० वर्षों के वृहद् इतिहास में कई ऐसे तकनीक थे जिन्होंने फॉरेंसिक साइंस को उसके मौजूदा आधुनिक जामा पहनाया है। विकिपीडिया से हासिल एक कमाल की जानकारी के अनुसार सन १२४८ में पहली बार एक कहानी संग्रह में मेडिसिन और कीटविज्ञान का प्रयोग किसी केस को हल करने में किये जाने का जिक्र है। यह कहानी संग्रह चाइना के लेखक Song Ci   द्वारा लिखा गया था जिसका नाम Xi Yuan Lu   (अनुवादित नाम - Collected Cases of Injustice Rectified   या   Washing Away of Wrongs ) था। इस संग्रह की एक कहानी में एक व्यक्ति की ह्त्या दरांती से होती है जिसके बाद केस का इन्वेस्टिगेटर सभी को अपनी अपनी दरांती लाने को कहता है। इन्वेस्टिगेटर सभी दरांती से एक पशु के शव पर घाव बनाता है और मकतू

A Diary of SMPian - 1

A Diary of SMPian - 1 अप्रैल-मई, सन २००३ – दसवीं की परीक्षा बस ख़त्म हो कर हटी थी। उन दिनों गर हवा की रफ़्तार तेज़ भी हो उठती थी तो विज्ञान के पुस्तक में पढ़े कुछ फोर्मुले और थ्योरम अचानक ही याद आते थे। कभी-कभी रात में सपने में भी त्रिकोणमिती दस्तक दे जाती थी। दिन बहुत मुश्किल से ही कटता था और ऊपर से लू का कहर जिसके कारण दिन भर घर में पड़ा रहता था। ऐसे में एक दिन देखा , घर के करीब ही एक दूकान के सेल्फ में कई किताबें लगी हैं। मैं जानता था कि वे उपन्यास थे ( कैसे जानता था उसकी बात आगे) लेकिन जेब में उतने पैसे नहीं होते थे की मैं वहां जाकर उसे खरीद सकता या किराए पर ले सकता। कुछ दिनों की मेहनत के बाद कुछ पैसे इकट्ठे हुए और मैं उस दूकान पर पहुँच गया। उस छोटी सी दूकान में 2 सेल्फ थे जिनमे उपन्यास ही उपन्यास करीने से लगे हुए थे। उस दूकान पर मुख्यतः रेलवे रिजर्वेशन, मोबाइल रिचार्ज, मोबाइल के छोटे-मोटे सामान और कंप्यूटर के कुछ समान मिला करते थे। मैं दूकान पर गया और पूछा की नावेल बेचने के लिए थे या किराए पर देने के लिए। उसने कहा की किराए पर मिल सकते हैं पर नावेल का पूरा दाम चुकाना

एक ही अंजाम - A fast paced thriller from Sir Surender Mohan Pathak

एक ही अंजाम (Spoiler Alert) एक कॉर्पोरेट कंपनी के निजाम में कुर्सी के लिए दो समूहों का युद्ध ऐसे स्तर पर पहुँच जाता है की खून-खराबे तक नौबत आ जाती है। जब इस खून-खराबे में एक शख्स नाजायज ही फंस जाता है तो खुद को बचाने की उसकी कोशिश एक ऐसे सफ़र को जन्म देती है जो कदम-कदम पर खतरों से भरा रहता है। अब दुसरे कोण से इसे देखते हैं, एक टीवी स्टूडियो में काम करने वाला शख्स जब अपनी शराब पीने की बुरी आदतों के कारण अपने परिवार को खो बैठता है। वह अपनी पत्नी से तलाक ले लेता है और अपनी छोटी सी प्यारी बच्ची को जिसे वह अपने दिल-ओ-जान से प्यार करता था उसे खो बैठता है। लेकिन कोई जुगत करके वह अपनी बेटी से फिर मिलता है और उसे मुंबई घुमाने के बहाने गोवा अपने दोस्त के कोठी पर ले जाता है जहाँ ऐसा हंगामाखेज सनसनीपूर्ण हादसा घटित होता है जिसमे वह इतनी बुरी तरह फंस जाता है की अपनी कई कोशिशों के बावजूद भी नहीं निकल पाता है।  दोस्तों यह कहानी है सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित थ्रिलर उपन्यास “एक ही अंजाम” की। एक ही अंजाम की सबसे बड़ी खासियत है कॉर्पोरेट संसार में कुर्सी के लिए दो समूहो

30 SMP Novels Presents – Social Issues – Paths to Crime

30 SMP Novels Presents – Social Issues – The Paths to Crime A Sociological Study लोग कहते हैं की क्राइम-फिक्शन उपन्यासों में आखिर होता क्या है – सिवाय खून-खराबा, सेक्स और अपराध के अलग-अलग रूपों के। मेरा कहना है की पता नहीं आप किस लेखक द्वारा लिखे क्राइम फिक्शन उपन्यासों को पढ़ते हैं, मैं तो सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखे क्राइम-फिक्शन उपन्यासों को पढता हूँ। सबसे पहले तो यह समझिये की क्राइम या अपराध हमारे समाज का अभिन्न अंग हैं। हम वर्षों से इस समस्या से जूझते हुए आ रहे हैं लेकिन कभी इस समस्या का समूल नाश नहीं कर सके। इसका सबसे कारण हम स्वयं हैं। हाँ, हम इंसान ही अपराध के उन्मोलक हैं यही कारण है की हम इसको समाप्त नहीं कर पाते हैं। अपराध हमारे समाज की वह सामाजिक समस्या है जिसे हम समाज से ऊपर राष्ट्रीय दृष्टि से देखते हैं। क्राइम-फिक्शन उपन्यासों में अपराध का होना और फिर उस अपराध के अपराधी को सजा मिलना ही क्राइम-फिक्शन उपन्यासों का मुख्य मकसद है। “क्राइम डज नॉट पे!” – यह वाक्य ही सभी क्राइम-फिक्शन उपन्यासों का मूल मंत्र है जिसे सभी लेखक अपने साथ लेकर चलते हैं। सर सुरे