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Showing posts from February, 2015

“जहन्नुम कि अप्सरा” – इब्ने सफी

“जहन्नुम कि अप्सरा” – इब्ने सफी अभी हाल ही में न्यूज़-हंट पर ईबुक में इब्ने-सफी कि सभी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। सभी हिंदी में अनुवादित उपन्यास हैं। इब्ने-सफी अपने आप में एक ब्रांड नेम हैं। सुना है कि उन्हें हिंदी एवं उर्दू क्राइम फिक्शन का जनक माना जाता है। पहले वे भारत में ही कहानियां लिखा करते थे पर बाद में वे पाकिस्तान माइग्रेट कर गए और वहीँ से अपना पब्लिकेशन संस्था खोल कर अपनी कहानियां प्रकाशित करने लगे थे। आज भी भारत में उनके प्रशंसकों कि संख्या बहुत है। कई लेखक उनको पढ़-पढ़ कर ही लेखन के ऊँचे मुकाम पर पहुंचे हैं। वैसे तो मैं 2-3 किताबें उनके द्वारा लिखी गयी पहले भी पढ़ चूका था लेकिन आज उनकी किसी कहानी के बारे में लिखने कि सोचा है। “जहन्नुम कि अप्सरा” इस पुस्तक का नाम है जो कि अली इमरान सीरीज कि ५ वीं पुस्तक है। कई वर्षों बाद उनकी कहानी को हिंदी में छाप कर हार्पर कॉलिंस ने एक अलग ही दौर कि शुरुआत कर दी है। मेरे हिसाब से इब्ने-सफी के कई प्रशंसक हार्पर-कॉलिंस के इस कदम का स्वागत करते हैं। वहीँ ऑनलाइन पढने वाले पाठक भी बहुत ही आनंदित महसूस करते होंगे क्यूंकि अब हार्पर क

खतरे कि घंटी (सुधीर सीरीज)

खतरे कि घंटी (सुधीर सीरीज) सुधीर सीरीज मुझे हमेशा बहुत ज्यादा पसंद आता है। ऐसा इसलिए है क्यूंकि सुधीर का किरदार खालिस दिल्ली वासी जैसा ही लगता है। जिस तरह से सुधीर दुनिया को देखता है उसी तरह हम भी आम जीवन में दुनिया को देखते हैं। आपको अपने आस पास कई सुधीर देखने को मिल जायेंगे। सुधीर जितना प्रोफेशनल है, उससे तो मैं यह सोचता हूँ कि उसकी मिशाल पेश कि जानी चाहिए कॉर्पोरेट फर्म, कम्पनीज और मैनेजमेंट यूनिवर्सिटीज में। सुधीर लम्पट स्वभाव का है जो लड़की देखते ही लार टपकाना शुरू कर देता है जो उसके घुटनों तक पहुँचती है। सुधीर कि तरह ही, मैंने आम जीवन कई ऐसे लोगों को देखा है जो इस तरह का ही किरदार रखते हैं। यूँ भी कहना सही होगा कि मैं भी इस मामले में कम नहीं हूँ। लेकिन सुधीर कि बात कि तरह ही कहना चाहूँगा कि, मैं ताजमहल देख तो सकता हूँ, उसकी सुन्दरता का वर्णन तो कर सकता हूँ लेकिन उसे पाने कि कल्पना करना, कोरी कल्पना ही रहेगी। अब इस उपन्यास कि तरफ आता हूँ, जो सुधीर सीरीज का चौदहवाँ उपन्यास है। सन २००० में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ था जिसका खास आकर्षण इस उपन्यास के साथ एक्स्ट्रा में आये

कफ़न – मेरी नज़र से

कफ़न – मेरी नज़र से प्रेमचंद जी द्वारा लिखी कई कहानियां मैंने पढ़ी हैं। अधिकतर कहानियां तब पढ़ी थी जब मैं स्कूल में पढ़ा करता था। मैं समझता हूँ उस समय किसी कहानी के लिए निकला हुआ अर्थ और भावना, अब जब मैं उसी कहानी को दुबारा पढूं तो, एक समान नहीं रहेगा। मुझे याद नहीं कि मैंने इस “कफ़न” इससे पहले कभी पढ़ा था या नहीं लेकिन प्रेमचंद जी के कहानियों के संकलन “मानसरोवर” के सभी भाग पढ़े हैं। अब मैं “कफ़न” कि तरफ आता हूँ। माधव, उसका बेटा बुधिया, बुधिया की पत्नी और कफ़न – ये चार किरदार हैं इस कहानी के। नहीं, नहीं, अगर ये चार ही किरदार हैं इस कहानी के तो फिर ये इस कहानी के साथ न्याय नहीं होगा। इस कहानी के और भी ऐसे किरदार हैं जिनको मानव शरीर का आकार नहीं दिया गया है। शायद भूख, गरीबी, आलस्य, पैसा, लालच और समाज की कई बुराइयां भी इस कहानी कि किरदार हैं। बुधिया कि पत्नी प्रसव पीड़ा से पीड़ित है पर मजाल है कि माधव और बुधिया के कानों पर जूं रेंगी हो। मजाल है कि ये पत्थर दिल लोग उसकी इस पीड़ा से अपने अन्दर सोये इंसान को जगा पाए। ये दोनों पुरुष इंतज़ार कर रहे हैं कि प्रसव पीड़ा से पीड़ित परिवार का यह

दशाराजन- ऋग्वेद में वर्णित दस राजाओं के युद्ध की गाथा

पुस्तक - दशाराजन लेखक - अशोक के. बैंकर हाल ही में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में मेरी कई हाजिरियां दर्ज हुई। इस बार बहुत सी पुस्तकों ने मुझे आकर्षित किया, जिनमे से एक थी अशोक के. बैंकर के नयी पुस्तक “दशाराजन”। “Ten Kings” के नाम से अंग्रेजी में प्रकाशित पुस्तक, मंजुला प्रकाशन द्वारा हिंदी में अनुवादित एवं प्रकाशित हुई जिसका नाम “दशाराजन” है। अमूमन मैं “क्राइम फिक्शन” को पढना बहुत पसंद करता हूँ और बहुत पहले से पढता आया हूँ। अशोक बैंकर जी के बारे में प्राथमिक जानकारी भी मुझे क्राइम फिक्शन कि दुनिया के द्वारा ही हुआ। इन्टरनेट पर सर्च करने के दौरान कई सालों पहले मुझे अशोक बैंकर जी के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी। अशोक बैंकर जी ने भी नब्बे के दशक में लगभग तीन क्राइम थ्रिलर लिखे थे। बस उसके बाद से मैं उनके द्वारा लिखे गए क्राइम थ्रिलर और माय्थोलोजिकल सीरीज भी पढना चाहता था। अशोक बैंकर जी कि पुस्तक ज्यों ही मैंने पुस्तक मेले में देखी त्यों ही मैं उसे खरीदने लगा तब मेरे साथ के मित्र लोकेश गौतम ने कहा कि उसके पास यह पुस्तक है। तब फिर क्या था, मैंने शाम को ही उससे इस पुस्त