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Showing posts from June, 2015

The Scenario of Prequels on SMP Novel

The Scenario of Prequels on SMP Novel:- कैसिनो रॉयल, जेम्स बांड सीरीज उन फिल्मों में से है जो उससे पहले रिलीज़ हुई सभी फिल्मों की प्रीक्वल थी। यहाँ प्रीक्वल का अर्थ यह है की कैसिनो रॉयल फिल्म जेम्स बांड सीरीज के शुरूआती उपन्यासों में से एक है। लेकिन इस उपन्यास की कहानी पर फिल्म, इस सीरीज की २० फ़िल्में बन जाने के बाद बनाया गया था। ऐसे ही “द लार्ड ऑफ़ द रिंग्स ट्राईलोजी” पहले आई जबकि “द होबीट” सीरीज उसके प्री-क्वल के रूप में बाद में आई। वैसे “प्री-क्वल” शब्द का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। सन १९५८ में अन्थोनी बाउचर ने एक कहानी को लेकर लेख लिखा था जो जेम्स ब्लिस द्वारा लिखी गयी कहानियों के ऊपर था। उसने उस लेख में इस शब्द का प्रयोग किया था। लगभग बीस साल बाद इस शब्द का प्रचलन शुरू हुआ। स्टार-वार सीरीज ने इस शब्द को प्रसिद्धि प्रदान किया। विमल सीरीज की शुरुआत सन १९७१ में हुई थी। पाठक साहब ने अपने आगामी १० उपन्यासों में सिर्फ जिक्र भर किया था कि कैसे वह एक अकाउंटेंट से इश्तहारी मुजरिम बना था। पाठक साहब ने इस सीरीज के ११ वें उपन्यास “हार-जीत” में इस बात का पुर्णतः खुलासा किया कि कैसे

गुनाह का कर्ज (The Debt of Crime)

गुनाह का कर्ज (The Debt of Crime)  Written By- Sir Surender Mohan Pathak अरस्तु ने कहा था “गरीबी, क्रांति और अपराध की जनक होती है।” सत्य ही कहा था उन्होंने और मेरे ख्याल से आप सभी भी इस बात से सहमत होंगे। प्रदीप मेहरा, एक आम इंसान था जो अपना प्रिंटिंग प्रेस चलाता था। लेकिन उसकी जिन्दगी की सबसे बड़ी समस्या और कोई नहीं उसकी बीवी थी। वह गरीब नहीं था लेकिन उसकी पत्नी ने ऐसी समस्याएं उत्पन्न कर दी थी जिसके कारण वह गरीब से कम भी नहीं था। लेकिन जुर्म की ओर उसके कदम ऐसे नहीं पड़े। प्रदीप मेहरा जहाँ एक-एक रुपया इकठ्ठा करने वाला इंसान था वहीँ उसकी बीवी पैसों को पानी की तरह बहाती थी। प्रदीप मेहरा की क्या परेशानी थी और वह किस तरह से पैसे कमाता था इससे उसे कोई मतलब नहीं था। उसकी बीवी का कहना था – “ मर्द की जिस कमाई से औरत की ख्वाहिशात पूरी न हों, उसके अरमान न निकलें, वो कमाई कम ही कहलाएगी। बीवी अफोर्ड नहीं कर सकते थे तो शादी क्यों की।” प्रदीप मेहरा जहाँ एक पत्नीव्रत धारण किये हुए था वहीँ उसकी पत्नी इस बात को लेकर खुल्ला खेल खेलने लगी थी। इतने से भी कम नहीं पडा था तो

गुनाह का कर्ज – श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक

गुनाह का कर्ज – श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक गुनाहगार चाहे गुनाह करके कितना भी बचने की कोशिश करे लेकिन वह अपने आप को   कानून के लम्बे हाथों से बचा नहीं सकता। कई गुनाहगार गुनाह करके बच तो जाते   हैं परन्तु जिन्दगी भर उनको इस गुनाह के भेद खुलने का डर समाता रहता है। कई   गुनाहगार अपने एक गुनाह को कानून से छुपाने के लिए गुनाह पर गुनाह करते जाते   हैं। “ गुनाह का कर्ज ” भी पाठक साहब के द्वारा लिखित ऐसा ही उपन्यास है जिसमे   मुख्य किरदार अपने एक गुनाह को छुपाने के कई गुनाह करता जाता है। वह भरसक   कोशिश करता है की कानून के हाथ उसके तक ना पहुँच सके लेकिन फिर भी वह बच नहीं   पाता। “ गुनाह का कर्ज ” श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित १८१ वां शाहकार उपन्यास   है जो सन १९९१ में मई माह में पहली बार प्रकाशित हुआ था। पाठक साहब के थ्रिलर   उपन्यासों की श्रेणी में इस उपन्यास का स्थान ३१ वां आता है। वैसे तो , श्री   सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब सीरिज पर आधारित उपन्यास लिखते हैं जिसमे उनके मुख्य   किरदार या हीरो सुनील , सुधीर या विमल होते हैं लेकिन पाठक साहब ने थ्रिलर या   विविध श्रेणी के उप