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Showing posts from March, 2013

ट्रिपल क्रॉस (समीक्षा)

ट्रिपल क्रॉस - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक पल्प फिक्शन साहित्य का वह नाम है जिसे पल्प फिक्शन साहित्य का राजा कहा जाता है। श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी रहस्य , थ्रिल , सस्पेंस , मर्डर मिस्ट्री वगैराह विषय पर लिखने वाले एक मात्र लेखक हैं जिन्होंने बुलंदी का सितारा छुआ है। पाठक साहब लगभग ५० वर्षों से लेखन विधा में अपने पैर जमाये हुए हैं। पाठक साहब ने अपने लेखन की शुरुआत एक ऐसे किरदार को लेकर की जिसकी उस समय सफल होने की कम संभावनाएं थी। पाठक साहब ने सुनील कुमार चक्रवर्ती नामक एक खोजी पत्रकार से अपने उपन्यास लेखन की शुरुआत की। आज सुनील सीरीज में १२० आ चुके हैं। यह संख्या विश्व रिकॉर्ड में सम्मिलित किया जा सकता है क्यूंकि किसी भी लेखक ने एक स्थायी किरदार को लेकर इतने उपन्यास नहीं लिखे हैं। मैं आज भी पाठक साहब की सुनील सीरीज की एक कृति की समीक्षा लेकर आप सभी के बीच आया हूँ। "ट्रिपल क्रॉस" सुनील सीरीज का ५४वा उपन्यास था जो अप्रैल १९७५ में छपा था। वहीँ पाठक साहब के कुल उपन्यासों की संख्या में यह ७७वा उपन्यास था। पाठक साहब ने सुनील सीरीज के कई उप

अहिरवाल केस (समीक्षा)

अहिरवाल केस - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक  २३ दिसम्बर १९९७ राजनगर  राजनगर के पश्चिम में बसी एक कॉलोनी - हरिज़न बस्ती गजोधर सुबह सुबह उठ के, नहा-धो कर घर से बाहर निकला। लगभग ३ महीने से उसकी यही दिनचर्या थी। ३ महीने पहले वो बिहार से अपने मौसा के यहाँ रहने आया था। उसके मौसा राजनगर में एक फैक्ट्री में काम करते हैं। काम की तलाश में गजोधर को राजनगर आना पड़ा। लेकिन ३ महीने हो गए थे और उसे अभी तक कोई काम नहीं मिला। वो रोज सुबह फ्रेश हो कर करीब के एक चौक पर जा कर चाय पीता था और अखबार पढता था। जिस दुकान पर गजोधर चाय पीता था उसका मालिक था चम्पकलाल और वो भी बिहार का रहने वाला था। घर से निकलते ही तंग गलियों से होते हुए गजोधर पहुँच गया चौक पर। चम्पकलाल के दुकान में आज बहुत ग्राहक बैठे थे। कुछ चाय पी रहे थे, कुछ गप्पे लड़ा रहे थे, कुछ देश की राजनीति के बारे में चर्चा कर रहे थे, कुछ हिंदुस्तान - पाकिस्तान पर गपिया रहे थे, ३-४ नौजवान लड़के जिनको देश और देश की राजनीति से कोई मतलब नहीं था वो अखबार में खेल-कूद पन्ने में या फ़िल्मी पन्नो में घुसे थे। अचानक उनमे से एक लड़का ब

बन्दर की कारामात (समीक्षा)

बन्दर की कारामात - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक  श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने कई ऐसे किरदारों को गढ़ा है जो आज के समय में अमर हो गए हैं। आज पाठक सर के किरदारों ने अजब ही धूम मचा राखी है। पाठक साहब ने शुरुआत किया था "सुनील" से, फिर विमल फिर सुधीर फिर और भी कई किरदार आते गए। पाठक सर ने कई सह-किरदार भी गढ़े हैं जिनमे सुनील सीरीज के किरदारों को कौन भूल सकता है, उसी प्रकार से विमल सीरीज के भी कई शानदार किरदार हैं, और सुधीर सीरीज में भी कई सह किरदार हैं। सह किरदारों में पाठक साहब ने एक किरदार को मुख्य रूप से लेकर भी उपन्यास भी लिखे हैं। इस किरदार का नाम है "बन्दर" उर्फ़ जुगल किशोर। ऐसे ही एक उपन्यास की आज मैं बात करने जा रहा हूँ। वैसे तो उपन्यास का नाम "बन्दर की कारामात" है लेकिन इसमें मुख्य कलाकार के रूप में सुनील भी मौजूद है। वही सह किरदार में रमाकांत, जोहरी, दिनकर, प्रभुदयाल और रेनू भी मौजूद है। मतलब बन्दर के नाम से प्रकाशित इस उपन्यास में सुनील के साथ सुनील सीरीज के सभी किरदार मौजूद हैं।  अब मैं बात कर लेता हूँ "बन्दर" के बारे में क

दीवाली की रात (समीक्षा)

दीवाली की रात - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक दीवाली की रात - १३ नवम्बर २०१२ मैं बोला - "यार आज दिवाली है, आज वो सब नहीं करने वाले हम"। मैं अपने तीन दोस्तों के साथ घर में बैठा था और दीवाली की रात है । मैं पूजा कर के हटा ही था की टपक पड़े तीनो राहू, केतु और शनि। मेरे दोस्त बड़े ही मंसूबे बना के आये हिं, कहते हैं आज की कुछ धमाल करें। मैं आजकल घर पर अकेला था, मेरे माता-पिता-भाई-बहन सब गाँव गए थे। मैं बोला - "यार मेरे पास कोई जुगाड़ नहीं है"। मेरा बस इतना बोलना था की राहू ने अपनी बड़ी सी जेब में से रॉयल स्टैग का फुल निकला। मैं बोला - "अबे ये सब क्या है, अभी कितने मेहमान आने हैं यहाँ और हम यहाँ ड्रिंक करेंगे। तुम लोग पागल हो गए हो"। शनि -"यार तू तो दिल तोड़ रहा है। हमने सोचा तू घर पे अकेला होगा। चल दीवाली की मुबारकबाद के साथ तुझे कंपनी भी दे देंगे"। केतु - "यार तू अब गद्दारी कर रहा है, पिछली दिवाली हमने सूखे सूखे गुजर दी थी। अबकी बार ऐसा बिलकुल नहीं होगा।" मैंने अपने दोस्तों से हार मान ली। मैं बो

काला कारनामा (समीक्षा)

 काला कारनामा -  श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक  विक्रम और बेताल ================= अमावस्या की काली रात। चाँद न जाने किसके डर से आज छुप गया था। जंगले सुनसान सा पड़ा था। कहीं से किसी भी बड़े या छोटे जीव-जंतु की आवाज़ नहीं आ रही थी। ऐसा लगता था की अँधेरे और सन्नाटे ने पुरे जंगले को निगल सा लिया था। ऊँचे ऊँचे पेड़ ऐसे खड़े थे जैसे की भूत हों। उन पेड़ो की शाखाएं ऐसे हिल रही थी जैसे कोई भूत अपने हाथ हिला रहा हो। जंगले बीच के पगडण्डी पर एक व्यक्ति अपने कंधे पर किसी को उठा कर चले जा रहा था। व्यक्ति के रख रखाव और वेश-भूषा को देख कर लगता था की कहीं का राजकुमार हो। उसके मुख पर तेज़ का ऐसा प्रकाश था की सामने की पगडण्डी प्रकाशमान हो रही थी। उसने अपने कंधे पर एक व्यक्ति को लादे हुए था। ऐसा लगता था की वह व्यक्ति मृत है । व्यक्ति ने साधारण से कपडे पहने हुए थे। अचानक एक आवाज़ आई- "तो अगली कहानी क्या है बेताल"। राजा से लग रहे व्यक्ति ने किससे बात की दिखाई नहीं दे रहा था। चूंकि व्यक्ति ने बेताल कहा। इसका अर्थ कोई प्रेतात्मा उसके साथ था। फिर आवाज आई : - &q

निम्फोमानियाक (समीक्षा)

निम्फोमानियाक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक नाटक ------------- एक नाटक जिसे कभी खेल नहीं गया........ लेकिन.... भविष्य कहता है की आगे यही नाटक खेल जाने वाला है और बुलंदियों को छूने वाला है ..... दोस्तों मैं पेश करने जा रहा हूँ आज एक ड्रामा/नाटक........ -----------------------------------प्रथम दृश्य ------------------------------------------ पर्दा उठता है ..... [कमरे का दृश्य। कमरे में हलकी सी रोशीनी। रात का समय। घडी लगभग २:३० बजा रही है। सुधीर कोहली अपने बिस्तर पर लेटा लेटा विचारों में खोया हुआ था की घर के बाहर उसे एक गाड़ी रुकने की आवाज सुने दी, साथ ही साथ एक और गाड़ी की खरखराती हुई आवाज सुनाई दी। तभी फ़ोन की घंटी दुबारा बजी। ] सुधीर - "हेल्लो, कौन? हाँ बोल रहा हूँ।" [दरवाजे की घंटी बजती है। सुधीर उठ कर दरवाजा खोलता है तो वह अपनी भूतपूर्व पत्नी मंजुला को पाता है। मंजुला दरवाजे के सहारे झूल रही थी। ] सुधीर "अब तुमने पीना भी शुरू कर दिया?" [मंजुला बस लहराकर गिरने ही वाली थी की सुधीर ने उसे अपनी बाहों में संभल लिय