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Showing posts from January, 2013

ओस की बूँद

समीक्षा - सन्देश- असर- प्रेरणा- कटाक्ष ---------------------------------------------------------------------- पुस्तक - ओस की बूँद (उपन्यास) लेखक - राही मासूम रज़ा जब हम सुबह सुबह उठते हैं तो अपनी छत की मुंडेर से लगे नीम के पेड़ के पत्तों पर कुछ बूंदे देखते हैं, जब पार्क में घुमने जाते हैं तो घासों और फूलों के ऊपर बूंदे देखते हैं जिन्हें ओस की बूँद कहा जाता है।  लेकिन ये ओस की बूंदे सूरज की गर्मी से धीरे धीरे भाप बन कर उड़ जाती है। ये ओस की बूँद हमें सुबह तो दिखाई देती हैं लेकिन शाम होते होते इनका कोई नामोनिशान नहीं होता। आज हमारा समाज कई प्रकार की कुरीतियों, बुराइयों, भ्रस्टाचारों से भरा हुआ है। ये कुरीतियाँ, ये बुराइयाँ ओस की बूंदों की तरह हैं । जब हम सुबह उठते हैं तो समाचार पत्रों द्वारा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा इस प्रकार की कई ओस की बूंदों को देखते हैं। ये ओस की बूंदे सुबह सवेरे हमारे मानस पटल पर छप जाती हैं लेकिन शाम होते होते हम इन ख़बरों को भूल जाते हैं।  ओस की बूँद हमें दर्शाता है की किस प्रकार एक कहानी की शुरुआत तो होती है, हम उसे पढ़ते भी हैं, हम उस पर

फिल्म - स्वदेश, एक समीक्षा - एक नज़र - एक असर - एक सन्देश

एक समीक्षा - एक नज़र - एक असर - एक सन्देश फिल्म - स्वदेश  स्वदेश मतलब अपना देश । Hesitating to act because the whole vision might not be achieved, or because others do not yet share it, is an attitude that only hinders progress. ---स्वर्गीय महात्मा गाँधी जी स्वदेश कहानी है एक भारतीय नवयुवक "मोहन" की जो भारत से कोसों दूर, मीलों दूर, सात समुद्र पार अमेरिका में रहकर पढाई कर रहा है और नासा में एक प्रोजेक्ट पर काम भी कर रहा है। १२ साल अमेरिका में रहने के बाद "मोहन", भारत वापिस आता है ताकि अपनी दादी "कावेरी अम्मा" को अपने साथ अमेरिका ले जा सके। "कावेरी अम्मा" "गीता" और "चीकू" के साथ चरणपुर नाम के गाँव में रहती है। "मोहन" जब चरणपुर गाँव पहुँचता है तो उसे पता चलता है "भारत" के गाँव में वह आधुनिक भारत नहीं बसता जिसे उसने दिल्ली जैसे सहर में देखा था। "मोहन" गाँव के पोस्टमॉस्टर से मिलता है जिसने पहली बार ईमेल और इन्टरनेट के बारे में मोहन के मुह से सुना है। पोस्टमॉस्टर ईमेल और इन्टरनेट के बारे में बह

Man Eaters of Kumaon

समीक्षा  चोगढ़ के नरभक्षी बाघ  लेखक - जिम कॉर्बेट  हर जंग में मौत होती है। हर युद्ध में लाशें गिरती हैं। दोनों तरफ जान-माल का नुकसान होता है । दोनों तरफ के सैनिकों में जोश होता है, उत्साह होता है, लेकिन डर भी होता है है। लेकिन दोनों तरफ इंसान होते हैं। इंसान अपनी फितरत से पूरी तरह से वाकिफ होता है । सैनिको को यही शिक्षा दी जाती है की कौन तुम्हारा दोस्त है कौन तुम्हारा दुश्मन।  लेकिन अगर दुश्मन एक हो और उसमे भी नरभक्षी बाघ, जिसे सिर्फ और सिर्फ अपने शिकार से मतलब है। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की शिकार मनुष्य है या जानवर। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की वह जिस मनुष्य का शिकार कर रहा है वह किसी का बाप, किसी का बेटा, किसी का पति, किसी की माँ, किसी की बेटी और किसी की पत्नी हो सकती है। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसके कारण किसी के घर में चूल्हा नहीं जलेगा, किसी के घर में शहनाई नहीं बजेगी, किसी के घर में त्यौहार नहीं मनाया जाएगा। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसके कारण लोग भय से अपने घरों से कई दिनों तक बाहर नहीं निकलते। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की जिस ज

समीक्षा - अ गोल्डन ऐज (तहमीमा अनाम )

समीक्षा - पुस्तक - A  Golden  Age लेखिका - तहमीमा अनाम तीन बार मेरे साथ ऐसा हो चूका है की जब में किसी काम से जा रहा होता हूँ मुझे रास्ते में फूटपाथ पर किताब की दूकान नज़र आती है और एक मैं एक पुस्तक उठा लेता हूँ और वह पुस्तक पढने के बाद एक शानदार पुस्तक बन जाती है। पहली बार - द वाइट टाइगर (अरविन्द अडिगा) दूसरी बार - वर्जिल एंड बीट्राइस (यान मार्टेल) तीसरी बार - अ गोल्डन ऐज   (तहमीमा अनाम ) मैं आज आप लोगो के साथ "अ गोल्डन ऐज" की समीक्षा और अपना अनुभव साझा करूंगा जो इस पुस्तक द्वारा मिला। देश - धर्म- कर्त्तव्य- निष्ठा - प्रेम- बलिदान - मातृत्व - सुख - दुःख - मिलना - बिछुड़ना - तानाशाही - युद्ध - भयानकता - डर- संघर्ष मैं इन शब्दों एक क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित नहीं कर पाया हूँ। कैसे करूँ समझ नहीं आता। इसलिए जैसे दिमाग में आया वैसे ही लिख दिया है। कहानी की पृष्ठभूमि पूर्वी पाकिस्तान है या हम उसे अब "बांग्लादेश" के नाम से जानते हैं। कहानी एक मुस्लिम विधवा "रेहाना" की है जो अपने बेटे और बेटी को कोर्ट ट्रायल के दौरान खो देती है। यहाँ खो दे