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Showing posts from April, 2015

इन्तक़ाम (The Revenge)

इंतकाम ---------------- बहुत पुरानी एक कहावत अपने बुजर्गों से सुनने को मिली थी – “ज़र, ज़ोरु और ज़मीन, हर झगड़े की जड़ होते हैं।” सही बात भी है, क्यूंकि सोना (धन), स्त्री या भूमि के कारण ही आज कि तारीख में भारतीय न्यायालयों में मुकदमे भरे पड़े हैं। मुझे अचानक इस कहावत कि याद इसलिए आई क्यूंकि मैं आज ही “इंतकाम” उपन्यास पढ़ कर हटा हूँ। मैं सोचने पर मजबूर हुआ कि क्यूँ नहीं विक्रम गोखले जैसे शख्स को फांसी कि सजा मिल जाए। भले ही बाद में वह बेक़सूर साबित हो जाए। विक्रम गोखले, मुंबई में एक गाइड के रूप में फ्रीलांसर काम करता था। कहने को तो वह शादीशुदा था लेकिन अपनी पत्नी से अधिक उसे दूसरी औरतों में लगाव था। अगर सिर्फ जिस्मानी तौर पर लगाव रहता तो बात दूर थी, वो तो उनसे धन ऐंठने से भी बाज नहीं आता था। मतलब उसने “जड़ और जोरू” से दो-दो हाथ करने शुरू कर दिए थे। इंसान की एक खासियत है कि उसे पूरा पंचतंत्र याद हो, उसे पूरा मदभगवद गीता याद हो लेकिन वह इनमे प्रस्तुत किये गए जीवन मूल्यों को अपनी जिन्दगी में कभी लागू नहीं करता बल्कि इनका वह इस्तेमाल हमेशा दूसरों को सलाह देने में लगाता है। ऐसे ही वि

डायल 100 (Dial 100) - A Masterpiece From Sir Surender Mohan Pathak

“यह पुलिस का नंबर है। लेकिन यह सिर्फ नंबर नहीं, जहाँगीरी घंटा है जो मदद और इन्साफ कि जरूरत के वक़्त बजाया जाता है। यह मुल्क के निजाम और उसके कायदे कानून के प्रति लोगों कि आस्था का प्रतीक है। जब कोई शख्स नंबर १०० डायल करता है तो वह मुल्क कि कानूनी व्यवस्था पर अपना विश्वास प्रकट करता है। इस विश्वास कि रक्षा करना हमारा फर्ज है। लेकिन हम अपना यह फर्ज कैसे निभा सकते हैं अगर हम फर्ज निभाने के वक़्त किसी ऐसे ही जालिम शख्स कि ड्योढ़ी पर सिजदा कर रहे हों जिसके जुल्म का शिकार होकर किसी मजलूम ने १०० नंबर डायल करके इन्साफ कि दुहाई दी होगी। हमारा पहला फर्ज लाचार, बेसहारा, मजलूम लोगों कि मदद करना है, न कि जालिम का हुक्का भरना, उसकी चौखट पर कुत्ते कि तरह दुम हिलाना और उसका मैला चाटना।” - -     इंस्पेक्टर विक्रमसिंह (“डायल १००” उपन्यास का एक केंद्रीय किरदार) उपरोक्त प्रसंग सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के प्रसिद्द उपन्यास “डायल 100” से लिया गया है। यह उपन्यास सन १९८५ में पहली बार प्रकाशित हुआ था। जब यह उपन्यास पाठक सर के पाठकों के बीच आया और उन्होंने पढ़ कर यही जवाब दिया था कि ऐसा उपन्यास कभी