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Showing posts from August, 2014

तकदीर का तोहफा (लघुकथा) - समीक्षा

तकदीर का तोहफा  (लघुकथा) कहते हैं की इंसान अपनी तकदीर स्वयं ही बनाता है। इंसान की तकदीर उसके हाथों में होती है। वो कितना मेहनत करता है, कितना संघर्ष करता है, कितना अपने जमीर के साथ चलता है, यह उसकी तकदीर बनाने के लिए जरूरी होता है। लेकिन जब इंसान स्वयं को भूलना शुरू कर देता है तो अपनी सभी नकाबलियतों, दुर्दशा और बुरे दौर के लिए तकदीर को कोसना शुरू कर देता है। “तकदीर का तोहफा” लघु कथा पढने के बाद जो पहली बात मेरे दिमाग आई वो थी इकबाल साहब की निम्न पंक्ति - खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है प्रभात चावला नाम था उस शख्स का जो जिन्दगी भर अपनी तक़दीर को कोसता आया था। उसका ये सोचना था की तकदीर ने हमेशा उसकी जिन्दगी में डांडी मारी थी और इसमें हाथ का काम भिन्न-भिन्न लोगों ने किया था। नौकरी के चले जाने के लिए वह अपने सहकर्मी को दोषी ठहराता था, जिसके कारण उसकी नौकरी चली गयी थी। अपनी माँ से बिछड़ने के लिए, अपने सौतेले बाप को दोषी ठहराता था, जिसके कारण उसकी माँ इस दुनिया से चल बसी। अपने पत्नी से कम प्यार और अलहदगी के लिए, अपने बच्चे को दोषी मान

जुए की महफ़िल (लघुकथा) - समीक्षा

जुए की महफ़िल (लघुकथा) दिवाली का रात थी, पाठक साहब अपने दो दोस्तों शामनाथ और बृजकिशोर और उनके दो मित्रों खुल्लर और कृष्णबिहारी के साथ जुए की महफ़िल में बैठे थे| रात के दस बजे यह महफ़िल शुरू हुई और सुबह सात बजे समाप्त हुई| पाठक साहब पहले तो जीतते रहे लेकिन अंत तक अपने ५०० रूपये भी हार चुके थे| शाम के अखबार में पाठक साहब को पता चला की “अरविन्द कुमार” नामक एक व्यक्ति की हत्या अपने फ्लैट में हो गयी थी| अरविन्द कुमार भी एक जुआरी था और उसके ऊपर कई लोगों का कर्जा था| जिनमे से शामनाथ, बृजकिशोर, खुल्लर और कृष्णबिहारी का भी कर्जा उसके ऊपर था| इंस्पेक्टर अमीठिया इस क़त्ल की तहकीकात कर रहा था| अमीठिया के अनुसार इन चारों में से किसी ने या चारों ने मिलकर ही अरविन्द की हत्या की थी जबकि चारो पाठक साहब की गवाही की वजह से बच गए क्यूंकि पूरी रात वे पाठक साहब के साथ जुए की महफ़िल में थे| अब यहाँ से हमारे पाठक साहब के दिमाग में कहीं घंटी बजती है की क्यूँ अमीठिया को इन चारों पर शक है और क्यूँ वे इसे मान नहीं पा रहे हैं| कैसे उन चारों में से कोई दस मिनट में 12 मील का फासला तय करके अरविन्द की हत्या कर पाए|

57 साल पुराना आदमी (लघुकथा) - समीक्षा

57 साल पुराना आदमी  (लघुकथा) सन १९५९ में एक १९ वर्षीय इंजीनियरिंग के छात्र ने उस समय की मशहूर पत्रिका “मनोहर कहानियां” के लिए इस छोटी सी कहानी को लिखा था। यह कहानी उस नवयुवक की पहली रचना थी। आज उस १९ वर्षीय इंजीनियरिंग के विद्यार्थी को भारत के हिंदी क्राइम फिक्शन की दुनिया में लिखते-लिखते ५५ वर्ष हो गए हैं। इन ५५ वर्षों में उस समय का नवोदित लेखक आज इस ट्रेड का माहिर खिलाड़ी हो गया है। ५५ वर्षों में इस लेखक ने ३०० के करीब किताबें लिख दी हैं। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की पहली रचना के बारे में अपने कुछ उदगार लेकर इस बार आपके सम्मुख प्रस्तुत हुआ हूँ। पाठक साहब का जीवन “५७ साल पुराना आदमी” से लेकर “सिंगला मर्डर केस” तक का बहुत ही संघर्ष पूर्ण रहा है। आज हम देखना चाहेंगे की एक महान लेखक की पहली रचना किस प्रकार की है। कहानी एक साधारण से नवयुवक की है जिसके नाम एक धनवान व्यक्ति अपनी कंपनी के लाखों रूपये के शेयर छोड़ जाता है। नवयुवक यह समझ नहीं पाता है की क्यूँ और किसलिए उस धनवान व्यक्ति ने उसके नाम इतने शेयर छोड़ दिए। धनवान व्यक्ति के वकील के अनुसार, इतनी राशि तो धनवान व्यक्ति ने अपने रिश्ते

क़त्ल की दावत (लघुकथा) - समीक्षा

क़त्ल की दावत  (लघुकथा) सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने कुछ ऐसी नायाब कृतियों की रचनाएं की हैं जिन्हें पढने के बाद ऐसा महसूस नहीं होता की पाठक साहब एक अन्तराष्ट्रीय लेखक नहीं है। इनमे से उनके द्वारा लिखे गए थ्रिलर उपन्यास एवं लघुकथाएं मुख्य हैं।  लघुकथा “क़त्ल की दावत” भी ऐसी ही लघुकथाओं में से एक है।  अरविन्द वर्मा एक धनकुबेर है जो इस बात से परेशान है की उसकी दो बार क़त्ल करने की कोशिश की गयी है। वह यह जानना चाहता है की उसकी हत्या करने या करवाने की चाहत किसे है। उसके अनुसार वह उसका करीबी ही हो सकता है।  इस समस्या से निजात पाने के लिए अरविन्द वर्मा ने अपने सबसे करीबी और जो उसका क़त्ल कर सकते थे, सभी को एक दावत या पिकनिक पर बुलाया। अरविन्द वर्मा ने इस पिकनिक का इंतजाम शहर से दूर एक जंगल में किया जहाँ उसकी एक शानदार कोठी थी और वहां से निकलने का एक मात्र साधन हेलीकाप्टर था। अरविन्द वर्मा का इरादा था की वह सभी मेहमानों को एक-एक बार क़त्ल करने का मौका देगा। इसके लिए वह सभी को ऐसा सयोंग मुहैया कराता है जिससे वे उसे क़त्ल कर सके। तो यह जानना की कैसे अरविन्द वर्मा सभी मेहमानों को क़त्ल करने

क़त्ल की कोशिश (लघुकथा) - समीक्षा

क़त्ल की कोशिश  (लघुकथा) “जुर्म छुपाये नहीं छुपता” माला सिन्हा, सिने जगत की उभरती हुई अदाकारा, जिसे आज इंस्पेक्टर प्रभुदयाल पागल करार दे रहा था। सिर्फ प्रभुदयाल ही नहीं, पूरी दुनिया उसे पागल करार दे रही थी। इसके पीछे कारण यह था की उसने तीन बार आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन मरते-मरते बची। पहले जहर खा कर, फिर अपनी हाथों की नशें काटकर, फिर ७ वीं मंजिल से कूदने की कोशिश करके। ७ वीं मंजिल से कूदने से माला सिन्हा को सुनील ने बचाया। माला सिन्हा का कहना था कि कोई उसे मारने की कोशिश कर रहा है। पुलिस ने माला सिन्हा को आत्महत्या के आरोप में गिरफ्तार कर, मानसिक इलाज़ के लिए अस्पताल भेज दिया। लेकिन उससे पहले माला सिन्हा सुनील को अपने घर की चाबी देकर, अपनी लिखी डायरी पढने की सलाह देती है ताकि वह पुलिस को विश्वास दिला सके की वह बेगुनाह है। तो दोस्तों, क्या लगता है सुनील भाई मुल्तानी, यह खोज कर निकाल पायेगा की माला सिन्हा आत्महत्या नहीं कर रही बल्कि उसकी हत्या की कोशिशें की जा रही है। क्यूँ, क्यूँ की जा रही है ऐसी कोशिशें। माला सिन्हा के क़त्ल के पीछे, क्या उद्येश्य है? क्या सुनील अपने जादुई

वह रात (लघुकथा) - समीक्षा

वह रात  (लघुकथा) सर सुरेन्द्र मोहन पाठक हिंदी पॉकेट के ऐसे जाने माने पहचाने लेखक हैं जिनके बारे में लोग कम तो जानते हैं लेकिन जो जानते हैं, बहुत खूब जानते हैं| उन्होंने अपने उपन्यासों में मानवीय भावनाओं को थ्रिलर की चासनी लगा कर इतना सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है की ये कहना मुश्किल हो पड़ता है की कहानी सामाजिक है या थ्रिलर| “वह रात” एक लघु कथा है, जो की १०-१५ पन्नों में सिमटी है| कहानी के बारे में यह कयास लगाना की यह थ्रिलर है या सामाजिक, मेरे लिए तो इस कहानी के लिए अन्याय करने जैसा है| कहानी, एक ऐसे रहस्यमय दुर्घटना की ओर इशारा करती है, जिसमें पुलिस यह पता लगा पाने में संभव नहीं हो पायी थी, की क़त्ल हुआ या दुर्घटना| सबूतों के अभाव में पुलिस ने इसे दुर्घटना ही करार दिया| एक सर्कस में, एक ट्रैंड शेर ने अपने मालिक की हत्या कर दी और उसकी पत्नी के चेहरे को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया| यह एक असाधारण दुर्घटना होने के बावजूद पुलिस कुछ सवालों के जवाब खोज नहीं पायी| लेकिन, जब इंसान के ऊपर गुनाह का बोझ सताने लगता है, जब इंसान के अन्दर का जमीर जाग कर पुकार-पुकारकर कहता है की उसे अब सच बो

खन्ना की कॉकटेल पार्टी (लघुकथा) - समीक्षा

खन्ना की कॉकटेल पार्टी (लघुकथा)  एक लेखक, अपने एक मित्र के साथ, एक मित्र के द्वारा दी जा रही कॉकटेल पार्टी में शरीक होता है| जहाँ मौजे-बहारा की महफ़िल, मयखाने की बुलंदियों तक जाती है| लेखक का घर दूर होने के कारण, उसके साथ आया मित्र उसे वादा करता है की, उसे ऐसी जगह तक छोड़ कर आएगा जहाँ से घर के लिए टैक्सी मिल जायेगी| लेकिन पार्टी के समाप्त होने पर, लेखक को अपने मित्र का नामोनिशान नहीं मिलता| सर्दियों के समय, ऊपर से दिल्ली की सर्द भाई रातें, जहाँ रात के ८ बजे ही बारह बजने का अहसास होने लगता हो| ऐसे में, लेखक इस पशोपेश में है की कैसे घर जाए| पार्टी में आया एक जानकार अपने स्कूटर पर लेखक को करीबी टैक्सी स्टैंड तक छोड़ आने की बात मान लेता है| दोस्तों, ये कहानी है, पाठक साहब द्वारा रचित लघुकथा “खन्ना की कॉकटेल पार्टी” की| इसमें खुद पाठक साहब ने लेखक के रूप में प्रथम व्यक्ति के रूप में कहानी का बखान किया है| पाठक साहब ने कहानी को कुछ ऐसे ढंग से कहा है की बरबस लग पड़ता है की, यह घटना तो हमारे साथ भी घट चुकी है| आप अपने एक मित्र के साथ, एक पार्टी में जाते हैं और रात भर पार्टी चलती है| देर रा

विशालगढ एक्सप्रेस (लघुकथा) - समीक्षा

विशालगढ एक्सप्रेस (लघुकथा) विशालगढ एक्सप्रेस जैसी कहानी शायद कभी कभार ही लिखी जाती है। जिस प्रकार से पाठक साहब ने किसी बच्चे के मन में उपजे और बैठे ख्यालात को एक कहानी का रंग दिया, वह कबीलेतारीफ़ है। एक बच्चे के मन में एक पुस्तक के बीच स्थित साधारण सी तस्वीर को देखकर ऐसा ख्याल पनपा की वह उस तस्वीर से आगे की कहानी पढ़ ही नहीं पाया। वह बच्चा जब भी सीधे तस्वीर से आगे की कहानी पढने की कोशिश करता, कहानी समझ ही नहीं आता था। और जब भी कहानी को शुरू से पढने की कोशिश करता, उस तस्वीर से आगे बढ़ ही नहीं पाता था। बच्चा बड़ा हुआ और उस कहानी को भूल गया। लेकिन जब उसे कारोबारी कार्य से कहीं जाना हुआ तो उसी नज़ारे के दर्शन हुए जिसे वह तस्वीर में देखता था। और दोस्तों पता है आपको उस कहानी का नाम क्या था जिसे वह पढता था - "विशालगढ़ एक्सप्रेस". और दोस्तों उसे उस तस्वीर की समानता अपने जीवन में कब नज़र आई - जब वह विशालगढ एक्सप्रेस का इंतज़ार कर रहा था एक प्लेटफोर्म पर। और क्या आपको पता है उस तस्वीर में क्या था? नहीं ना तो पढ़िए न इस शानदार कहानी को जिसने मेरी साँसे रोक दी थी। इतना रोमांच, इतना रहस्

सात ख़त (लघुकथा) - समीक्षा

सात ख़त (लघुकथा) "सात ख़त" एक लघु कथा के रूप में लेकिन थोडा बड़े कैनवास पर पाठक साहब ने लिखा है। मैं इसे प्रेमकथा, रहस्यकथा, रोमांच-कथा में से क्या कहूँ। क्यूंकि इसमें तीनों ही प्रकार का समावेश है। सूर्यबहादुर थापा एक हसीना को दिल बैठता है। लेकिन उसे हसीना की कोई जानकारी ही नहीं। इसका हल वह अखबार में एक विज्ञापन निकाल कर करता है। विज्ञापन का जवाब आता है। जिसमे लड़की उसके सामने यह शर्त रखती है की थापा के पास सात दिन उसे प्रसन्न करने के लिए। वह थापा के सामने यह शर्त रखती है की अगर वह अगले सात दिनों में सात खतों द्वारा, ऐसा कोई रहस्य और रोमांच से भरपूर कथा सुना दे जो उसे इम्प्रेस कर दे। सोचिये दोस्तों, ऐसा भी शर्त रख देते हैं लोग मोहब्बत में! खैर छोडिये! आप तो बस ये जानिये की क्या थापा ने ऐसा कोई पत्र लिखा। हाँ, दोस्तों उसने पुरे सात पत्र लिखे। तो क्या उस लड़की को उन पत्रों में लिखी कहानी पसंद आई। ऐसा क्या लिखा था सूर्यबहादुर थापा ने। उन खतों कि गहराई में नहीं जाऊँगा लेकिन अपने अनुभव से कहना चाहूँगा की - थापा की कहानी ने प्रेमकथा के ऊपर रहस्य कथा का एक आवरण ओढा दिया था। पहले पत

अनोखा जासूस (लघुकथा) - समीक्षा

अनोखा जासूस  (लघुकथा) राजनगर के एक प्रतिष्ठित एवं गणमान्य व्यक्ति, सर जहाँगीर अपनी कोठी के पीछे मृत अवस्था में पाए जाते हैं। पुलिस को शक है की उनका विश्वासपात्र नौकर बिहारी ने सर जहाँगीर का क़त्ल किया और लगभग तीस हजार रूपये लेकर भाग गया| पुलिस को बिहारी की भरपूर तलाश है। लेकिन यहाँ खीर में मक्खी की तरह टपक जाता है, अपना सुनील भाई मुल्तानी। अरे ख़ास बात, इस केस की तहकीकात इंस्पेक्टर प्रभुदयाल कर रहा है। आज वो किसी भी अखबार वाले को अपने पास फटकने नहीं दे रहा है। क्या पुलिस जैसा सोच रही है वैसा ही है। क्या सुनील भाई मुल्तानी इसमें कुछ नया मिस्ट्री खोद निकालने में सफल होंगे। 5-7 पन्नों में सिमटी, इस लघुकथा में पाठक साहब ने हर उस मसाले का प्रयोग किया है जो अमूमन वृहद् उपन्यासों में करते हैं। शानदार रहस्य और रोमांच से भरपूर मर्डर मिस्ट्री जो बिलकुल सीधी और सपाट लिखी गयी है पर मनोरंजन की कोई कमी नहीं है। तो क्या आपने इस लघु कथा को पढ़ा है ? कहानी का इबुक लिंक-  http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/Anokha-Jasus/b-42697 सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कहानियों का संग्रह इबुक के रूप में प्

आधी रात के बाद (उपन्यास) और प्रमोद की वापिसी

आधी रात के बाद  आज फिर सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के एक और रचना के बारे में अपनी हकीर राय देने का मन हो उठा है। उक्त उपन्यास “आधी रात के बाद” का प्रकाशन सन १९६७ में हुआ था। यह पाठक साहब के द्वारा कृत उपन्यासों कि श्रेणी में सोलहवें स्थान पर आता है। यह उपन्यास “प्रमोद” सीरीज का है। प्रमोद सीरीज के कुल चार उपन्यास ही अभी तक प्रकाशित हुए हैं – “मौत का साफर (अक्टूबर १९६६)”, “आधी रात के बाद (अगस्त १९६७)”, “जान की बाजी (अक्टूबर १९७०)” और “एक रात एक लाश (जुलाई १९७६)”। प्रमोद सीरीज का आखिरी उपन्यास प्रकाशित हुए आज ३८ साल हो चुके हैं। लगभग ३८ वर्ष से पाठक साहब ने इस किरदार के ऊपर कुछ नहीं लिखा और न ही इसकी वापिसी करने की कोशिश की। समय-समय पर पाठक साहब के प्रशंसकों ने उन्हें “प्रमोद सीरीज” को पुनः लिखने की सिफारिश की लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया की अब यह किरदार अप्रासंगिक हो चूका है। पाठक साहब का कहना था की चूँकि “प्रमोद सीरीज” की अधिकतर घटनाएं उसके करीबी मित्रों के साथ ही घटी और उन्होंने लगभग सभी के साथ प्रयोग करके, प्रमोद सीरीज के चार उपन्यास लिख डाले और अब आगे ऐसा