मृणालिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगाल साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी उपकृत हुई है। उनकी लोकप्रियता का यह आलम है कि पिछले डेढ़ सौ सालों से उनके उपन्यास विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो रहे हैं और कई-कई संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं। उनके उपन्यासों में नारी की अन्तर्वेदना व उसकी शक्तिमत्ता बेहद प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त हुई है। उनके उपन्यासों में नारी की गरिमा को नयी पहचान मिली है और भारतीय इतिहास को समझने की नयी दृष्टि।
वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं।
मृणालिनी बंकिम दा द्वारा लिखा गया तीसरा उपन्यास था। यह उपन्याश प्रेम - प्रसंग पर आधारित था। इस उपन्यास की ख्याति ने बंकिम दा को प्रेम-प्रसंग पर आधारित उपन्यासों के लेखक की श्रेणी में बहुत ऊपर ला खड़ा किया था।
"मृणालिनी" कहानी है एक ऐसी स्त्री की जो मगध के राजकुमार हेमचन्द्र से अथाह प्रेम करती है और हेमचन्द्र भी मृणालिनी से उतना ही प्रेम करते हैं। लेकिन अपने प्रेम हेमचन्द्र इस कदर खो गया था की उसे अपने राज्य में हो रहे क्रियाकलापों की कोई जानकारी नहीं होती। हेमचन्द्र के गुरु माधवाचार्य हेमचन्द्र को बताते हैं की उसके राज्य पर यवनों ने कब्ज़ा कर लिया है। माधवाचार्य उसे समझाते हैं एवं उपदेश देते हैं की उसे अपने राज्य को यवनों से छुड़ाना चाहिए। लेकिन मृणालिनी के प्रेमपाश में जकड़े हुए हेमचन्द्र को माधवाचार्य की बात सही नहीं लगती और वह इसे अनसुना कर देता है। माधवाचार्य गुप्त रूप से एवं छल से मृणालिनी को गौड़ देश में एक धनिक हर्षिकेश के यहाँ भिजवा देता है। हेमचन्द्र को जब इस बात का पता चलता है तो वह गुस्से में अपने गुरु को ही मारने को दौड़ता है। लेकिन जब उसे आत्मानुभूति होती है तो वह गुरु से क्षमा मांगता है। वह माधवाचार्य के सम्मुख यह प्रण लेता है की वो अपने देश को यवनों के अधिकार से निकालेगा लेकिन उससे पहले वह मृणालिनी से एक बार मिलना चाहता है। माधवाचार्य उसकी लगन और प्रतिज्ञा सुन उसे मृणालिनी का पता बता देते हैं।
हेमचन्द्र गौड़ देश पहुँचता है और एक गीत गाने वाली लड़की गिरिजया की सहायता से हर्षिकेश के घर मृणालिनी को सन्देश भिजवाता है जिसमे वह उससे न मिलने की विवशता और अपनी प्रतिज्ञा के बारे में बताता है जिसके प्रत्युतर में मृणालिनी उससे सिर्फ एक बार मिलने की मांग रखती है। गिरिजया यह सन्देश हेमचन्द्र को बता देती है और तय समय और स्थान पर उससे मिलने का प्रबंध करती है। मृणालिनी तय समय और स्थान पर रात्रि के समय हेमचन्द्र से मिलने जाती है परन्तु उसे वहां गिरिजया मिलती है जो उसे बताती है की माधवाचार्य हेमचन्द्र को नवद्वीप ले गए हैं। घर वापिसी पर हृषिकेश का लड़का व्योमकेश मृणालिनी से जबरदस्ती करता है लेकिन गिरिजया उसकी सहायता करती है। इसी शोरगुल में घर के सभी सदस्य उठ जाते हैं तो व्योमकेश मृणालिनी पर इलज़ाम लगाता है की वह एक पराये मर्द से मिलने रात को जाती है। हर्षिकेश उसे अपशब्द और कुलटा आदि कह कर घर से निकाल देता है।
मृणालिनी हर्षिकेश का घर छोड़ कर गिरिजया के साथ हेमचन्द्र की तलाश में नवद्वीप जा पहुँचती है। गिरिजया हेमचन्द्र को तलाश करके मृणालिनी का हाल बताती है तभी माधवाचार्य आकर हेमचन्द्र को हर्षिकेश द्वारा कही गयी घटना के बारे में बताता है। यह सुनकर हेमचन्द्र गुस्से में आग बबूला हो जाता है और मृणालिनी को जान से मारने की कसम खाता है। गिरिजया एक
बार फिर हेमचन्द्र को समझाती है। हेमचन्द्र समझ बूझ कर फिर मृणालिनी से मिलता है। दोनों फिर से प्यार के सागर में डूब जाते है। ऐसा लगता है की ये दो उन हंसों के जोड़े हैं जो कई शीतकाल के बाद मिले हों। हेमचन्द्र फिर से मृणालिनी से हर्षिकेश के घर हुई घटना के बारे में पूछता है। मृणालिनी की पूरी बात सुने बिना ही वहां से चला जाता है। मृणालिनी दुबारा हेमचन्द्र को पत्र भेजती है पर उसे वह गुस्से में फाड़ देता है।
इसी दौरान नवद्वीप पर यवनों का हमला हो जाता है। यवन पूरी तरह से नवद्वीप को बर्बाद कर रहे हैं। घर घर में घुसकर लोगों को लूटना और मारना लग जाता है। यवनों का ऐसा अत्याचार देखकर हेमचन्द्र के अन्दर का क्षत्रिय खून जग जाता है। वह लोगों को बचने और यवनों को मारता हुआ आगे बढ़ता जाता है। एक झोपडी में उसकी मुलाक़ात एक बीमार व्यक्ति से होती है जो अपने बारे में बताता है की उसकी यह हालत एक स्त्री के कारण हुई है। हेमचन्द्र उससे परिचय पता है तो पता चलता है की वह व्योमकेश है। हेमचन्द्र व्योमकेश से उसके घर में घटी घटना की सच्चाई जानता है तो खुद पर बहुत ही शर्मिंदा होता है। वह मृणालिनी को खोजते हुए उसके पास पहुँचता है और माफ़ी मांगता है। मृणालिनी उसे दिल से माफ़ कर देती है। फिर माधवाचार्य को हेमचन्द्र यह बताता है की मृणालिनी से उसका विवाह बहुत पूर्व मथुरा में ही हो गया था। इस प्रकार अब हेमचन्द्र और मृणालिनी एक हो गए।
हम कई अनुच्छेदों में हेमचन्द्र और मृणालिनी के विरह के पीड़ा को देख सकते हैं। यह कहानी है दो बिछड़े हुए प्रेमियों के बीच मिलन की आशा के बारे में। जब हेमचन्द्र को मृणालिनी मिलती है तो वह उससे मिल भी नहीं पता क्यूंकि उसका कर्त्तव्य सबसे आगे आ जाता है। प्रेम की सुन्दर और सरल परिभाषा बंकिम डा ने बहुत ही खूबसूरती से दिया है।
हम इस प्रसंग से भी दो-चार होते हैं की जब प्रेम किसी पर अविश्वास पैदा हो जाता है तो उसमे दूरिय और खटास आ जाती हैं। हेमचन्द्र बार बार मृणालिनी पर अविश्वास करती है जबकि मृणालिनी बार बार उस पर विश्वास करते हुए उसके द्वारा किये जा रहे अविश्वास को भुला देती है। इस कहानी से यह तो जरूर जानने को मिलता है की प्रेम में अगर एक अविश्वास या शक की भावना ले बैठता है तो दुसरे को उस तूल न देते हुए मामले को संभालना चाहिए।
कहानी में और भी कई पात्र है जिनका मैंने यहाँ कोई जिक्र नहीं किया क्यूंकि कहानी के मुख्य आधार इन दो किरदारों पर ही टिका है। इस कहानी में आपको प्रेम, धैर्य, बलिदान, सच्चाई, झूठ, षड़यंत्र, राजनीती, युद्ध इन सभी घटनाओ से रूबरू होने का मौका मिलेगा। हेमचन्द्र और मृणालिनी का प्रमुख है और बंकिम दा ने इन दो किरदारों पर बहुत अधिक मेहनत भी किया है। इन दो किरदारों को शसक्त और जीवंत रच गया है। माधवाचार्य का किरदार भी मजबूत है और उन्होंने एक गुरु एवं मार्गदर्शक के रूप में अच्छा कार्य किया है। मुझे इस कहानी में "गिरिजया" का किरदार बहुत सुन्दर और जबरदस्त लगा। बंकिम दा ने उसके द्वारा जो भी गीत गवाए सभी बहुत ही सुन्दर थे। हिंदी अनुवाद में थोड़ी समस्या जरुर है। लेकिन अंतत: यह एक सुन्दर और सुदृढ़ कहानी है। बंकिम दा ने कहानी के पत्रों को बहुत ही मजबूती से पेश किया है। उसी प्रकार कहानी के पत्रों ने भी इस कहानी को अपना पूर्ण योगदान दिया है। मुगलों द्वारा किसी राज्य को जीतना और पुरे शहर में उत्पात मचाना इस पर बंकिम दा बहुत ही सुन्दर प्रकार से प्रकाश डाला है। लगभग २-३ ऐसे अनुच्छेद है बड़े बड़े जिनमे आप मुगलों द्वारा किये गए अत्याचार को देख सकते हैं। वैसे कई प्रेम कहानियां आपने पढ़ी होंगी और देखी होंगी परन्तु इस कहानी में बहुत कुछ अलग है। एक क्लासिक प्रेम प्रसंग पर आधारित कहानी पढने का मजा ही कुछ और होता है।
मैं आप सभी को इस क्लासिक कहानी को पढने की सलाह जरूर दूंगा।
विनीत
राजीव रोशन
बहुत ही अच्छे तरह से आपने इस कहानी को लिखा है. बंकिमचंद्र जी लेखन प्रतिभा के धनी थे. बंगाली साहित्य को सबके सामने अस्तित्व में लाने का काम इन्होंने ही किया था. बंकिमचंद्र जी ने वंदेमातरम् राष्ट्रगीत पहली बार बंगाली भाषा में ही लिखा था. इसे फिर आगे संस्कृत में लिखा गया. https://www.jivaniitihashindi.com/bankim-chandra-chattopadhyay-biography-%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0/
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