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प्रतिशोध - श्री दुर्गा प्रसाद खत्री


पुस्तक - प्रतिशोध 

लेखक - श्री दुर्गा प्रसाद खत्री
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मैं इस लेखक से बिलकुल ही अपरिचित था। मैंने कभी इनका नाम भी नहीं सुना था। पर इश्वर की लीला भी अपरम्पार है, इस पुस्तक मेले में मुझे शरद जी के सौजन्य से एक ऐसे लेखक के बारे में जानने को मिला जिसके बारे में कुछ नहीं जानता था। शरद जी के अनुरोध पर लहरी बुक डिपो के स्टाल से मैंने श्री दुर्गा प्रसाद खत्री की ८-९ पुस्तकें खरीदी। साथ ही श्री दुर्गाप्रसाद कह्त्री जी के पिता बाबु देवकीनंदन खत्री जी की कुछ अमर रचनाएँ भी ली। 

आज मैं इस उपन्यास "प्रतिशोध" के बारे में लिखना चाहुगा। यह एक प्रकार का क्रांतिकारी उपन्यास है। "क्रांतिकारी" अर्थात इस कहानी का घटना क्रम उस समय का है जब अंग्रेज भारत वर्ष पर राज करते थे और हम गुलामी के जंजीरों में जकड़े हुए असहाय से कहदे थे। जब अंग्रेज भारत में भारतीयों पर ज़ुल्म और अत्याचार का तांडव कर रही थी तो इससे पीड़ित हो कर कुछ लोगों ने विद्रोह सा किया और एक गुप्त संगठन की स्थापना की । देश के कई भागों में कई प्रकार की संस्थाओं का गठन किया गया। पर ये संस्था अलग-अलग काम करती थी जिसके कारण इनका मतलब हल नहीं हो पा रहा था। फिर इन सभी संस्थाओं ने मिलकर एक मुख्य संता का गठन किया जिसे नाम दिया "रक्त-मंडल"। रक्त मंडल के प्रत्येक सदस्य को यह शपथ दिलाई गयी की वह अपना सर्वश्व अपनी मातृभूमि पर न्योछावर करना पड़ेगा। कभी उसके और देश के बीच में अगर उसके सगे-सम्बन्धी भी आ जाए तो उसे भी दो -चार होना पड़ेगा। 

यह कहानी है एक क्रांतिकारी संस्था के उत्थान की और पतन की । जहाँ शुरुआती पन्नों में "रक्त-मंडल" के उठान का बयान छपा है वही आखिरी पन्नों तक आते आते पतन की कहानी आ जाती है। लेखक ने इस कहानी में अंग्रेजों के समय के उस भारत को दिखाने का प्रयास किया जिसमे सभी जाति एक दुसरे के साथ मिल जुल कर रहती है लेकिन वही किसी के भड़काने भर से उनमे विद्वेश्ता भी उत्पन्न हो जाती है। आज के भारत को देखता हूँ तो उसी प्रकार का नज़र आता है। 

इस उपन्यास में जासूसों, हथियारों, राजनीति, साम्प्रदायिकता और बलिदान , या कहूँ की हर प्रकार का वह भाव मौजूद है जो एक प्रकार के क्रांतिकारी उपन्यास में होना चाहिए। 

उपन्यास में कमी प्रकाशक की तरफ से दिखी। इतने पुराने उपन्यास के लिए भी प्रकाशक ने पुराना कागज़ ही प्रयोग किया। गत्ता चढ़ा के जिल्द चढ़ा के नया बनाने की भरपूर कोशिश की। उपन्यास में कई स्थानों पर टाइपिंग की विसंगतियां नज़र आती है।

एक और बात जो महत्वपूर्ण है। यह उपन्यास के एक सीरीज का शुरुआत है। इस सीरीज में शायद ६ उपन्यास हैं। इसे "रक्त मंडल " सीरीज कहा जाता है। 

लहरी बुक डिपो ही इस किताब का प्रकाशन करती है और यही से आप डाक के द्वारा अपनी किताबें माँगा सकते हैं। 

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विनीत
राजीव रोशन

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