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ताज़ा खबर (समीक्षा)






एक अधूरी बातचीत 
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२३ दिसम्बर २०१२,
रात्रि ११:४० पूर्वाहन

मैंने NDLS BCT RAJ SP के S5 डिब्बे में कदम रखा। मैंने अपने टिकेट पर देखा प्रस्थान तारिख २३ दिसम्बर २०१२ और प्रस्थान समय ११:४० पूर्वाहन। टिकट नई दिल्ली से मथुरा तक का था । हाँ, मैं मथुरा जा रहा था। क्यूंकि आज रविवार २३ तारिख था और कल मैंने ऑफिस से छुट्टी ले ली है और परसों २५ दिसम्बर को क्रिसमस है। तो मैं बस इन छुट्टियों का पूरा आनंद लेने के लिए मथुरा की ओर निकलने को तैयार हूँ। मैं अपने "बांकेबिहारी" से मिलने जा रहा हूँ उनके दर्शन करने जा रहा हूँ। मेरे पास सामान के नाम पर बस एक बैग था जो कंधे पर लटक रहा था। बैग में कुछ कपडे और किताबें थी। किताबें इसलिए ताकि यह दो घंटे का सफ़र आराम से कट जाए। मेरे कुछ दोस्त शाम की लोकल ट्रेन पकड़ के मथुरा के लिए निकल चुके थे, अरे नहीं अब तक तो वो लोग पहुच भी गए होंगे। मुझे एक महोत्सव में जाना पहले से तय था, मैं महोत्सव में सम्मिल्लित हुआ और वह से लगभग ६ बजे के आसपास छूता था। शुक्र था की मैं स्टेशन पर समय से पहले पहुच गया था। मैंने अपने आरक्षित स्थान पर बैठा तो देखा की मेरे सामने वाले सीट पर एक महाशय चद्दर तान के सोये पड़े हैं। बस उनका चेहरा बहार की ओर झाँक रहा था। लगभग ४५-५० की उम्र होगी, आधे बाल पके हुए थे, मूछों के कुछ बाल भी पके हुए थे और काले बालों में लगभग तारों की तरह चमक रहे थे। मस्तिष्क सामान्य से चौड़ा था। लगता था की कोई बुद्धिजीवी होंगे। मैंने उन पर से ध्यान हटाया और अपना बैग कंधे से हटाकर सीट पर रख जूते खोले और सीट पर पसर गया। कम से कम दो घंटे ट्रेन को नई दिल्ली से मथुरा पहुचने में लगना था और हो सकता था की और समय भी ले क्यूंकि ठण्ड भी बढ़ गयी थी धुंध भी बहार अधिक हो रही थी। मैंने अपनी घडी पर निगाह दौराई तो पाया की बस ट्रेन को खुलने में २ मिनट का समय बांकी रह गया था। मैंने बैग से मेरे परम पूज्य पाठक साहब का उपन्यास "ताजा खबर" सुनील सीरीज का निकाला और शुरू हो गया। 
मैं उपन्यास का दो तिहाई हिस्सा पढ़ चूका था। और आगे पढना शुरू किया। तभी देखा वो साहब जो मेरे सामने वाले सीट पर लेते थे उठ बैठे। उन्होंने मुझे घूर कर देखा और फिर अपना चस्मा अपने छोटे से बैग से निकाला और आँखों पर चढ़ाया फिर घूरना शुरू। पता नहीं उनको मुझमे क्या दिख रहा था। 
मुझे तो दर लगा की कही इन्होने वो "चश्मा" तो नहीं लगा लिया जो "बादशाह" फिल्म में शाहरुख खान ने लगाया था जिसको लगाने पर कपडे के नीचे तक दिखाई देता है। 

मैं डर के मारे पूछ बैठा " क्या देख रहे हैं सर, क्या आपके घर में बाप भाई नहीं हैं।"
वो हंस बैठे " अरे नहीं, बाप भाई तो है, माँ, बहन और पत्नी भी है पर ऐसा कोई नहीं है जिसके पास "ताजा खबर" उपलब्ध हो"
मैंने राहत की सांस ली। अच्छा तो महाशय की नज़र मुझ पर नहीं मेरे उपन्यास "ताज़ा खबर" पर थी।

उन्होंने पूछा " तुम भी पाठक साहब को पढ़ते हो या बस ऐसे ही टाइम पास करते हो"
मैं बोल" नहीं महाशय, मैं पाठक साहब की रचनाओं को खूब सिद्दत से पढता हूँ।"
उन्होंने बोल" अच्छा!!! फिर तो ठीक है। सिर्फ सुनील को पढ़ते हो या सुधीर, विमल, थ्रिलर भी पढ़ते हो?"
मैं बोल" महाशय मैं मुख्यतः विमल को छोड़कर सभी को पढता हूँ। लेकिन अगले सप्ताह से विमल भी शुरू कर रहा हूँ।"
उन्होंने कहा" मेरे लख्तेजिगर तुम तो बड़े नामाकूल किस्म के पाठक हो, जिसे दुनिया सुनील और सुधीर से पहले पढ़ती है उसे तुम बाद में पढोगे। चलो सब की choices अलग होती है, पसंद अलग होती है, रुझान अलग होता है।"
मैं बोल" हाँ, ये तो है।"
उन्होंने कहा" तो यह ताज़ा खबर तुम्हे कहा से प्राप्त हुई?"
मैं बोल " महाशय, मैं एक समूह से जुड़ा हूँ फेसबुक पर जो सम्पूर्ण रूप से पाठक साहब को समर्पित है। उन्होंने ही एक लाइब्रेरी शुरू की है और पाठक साहब के सभी प्रसंशक जो इस समूह से जुड़े हैं उन्होंने कुछ उपन्यासों का योगदान किया। जिसके फलस्वरूप मुझे यह पुस्तक पढने को मिल रही है। क्या आप भी पाठक साहब को पढ़ते हैं?"
उन्होंने कहा " हाँ मैं भी पाठक साहब का बहुत बड़ा प्रसंशक हूँ। लेकिन मैंने यह पुस्तक बहुत पहले पढ़ी थी। क्या तुमने यह पुस्तक पूरा पढ़ लिया?"

मैंने सोचा था की वो थोडा सा और लाइब्रेरी के बारे में या ग्रुप के बारे में बात करेंगे ताकि मैं उनको उस ग्रुप में जोड़ सकता पर उन्होंने तो बातों की रूप रेखा ही बदल दी। 

मैंने कहा" हाँ लगभग दो तिहाई पढ़ ली है।"

उन्होंने कहा" क्या तुम इसकी कहानी सुनोगे ताकि मुझे याद आ जाये की कहानी क्या थी। जितना तुमने पढ़ा है उतना ही सुना दो"
मैंने कहा" नेकी और पूछ पूछ , मैं तो हमेश कहानी सुनाने के लिए तत्पर रहता हूँ"
उन्होंने कहा " तो सुलतान फिर शुरू हो जाओ।"

मुझे यह नाम सुना सुना सा लगा। फिर मैंने सोचा इसमें भेजा लगा के क्या फायदा। मैं अपनी कहानी सुनाने पर लग गया -


मैंने बोलना शुरू किया-
"जनार्दन मोदी राजनगर के बहुत ही जाने माने उद्योगपति और व्यवसायी हैं। लेकिन पिछले तीन महीने से उनके व्यवहार में आन्दोलन रूपी बदलाव आया था। वो कभी भी आते हैं फिर कुछ दिनों के लिए किसी को भी बिना बताये गायब हो जाते है। यहाँ तक उनकी निजी सचिव नम्रता कोहली को भी इसकी जानकारी नहीं रहती है। निशा मोदी जनार्दन मोदी की धर्मपत्नी को भी इस बात की जानकारी नहीं रहती की वो कहा गायब हो जाते हैं। निशा मोदी इसी कारण से नम्रता कोहली से खफा भी रहती है की जनार्दन मोदी की निजी सचिव होने पर उसे तो जानकारी होनी चाहिए। निशा मोदी को लगता है की जनार्दन मोदी का नम्रता कोहली के साथ कोई अवेध सम्बन्ध है। "

सामने बैठे उस महाशय ने मुझे हाथ का पंजा दिखा कर इशारे से रोका लेकिन अपना हाथ निचे नहीं किया। मैं भी उनके हाथों को गौर से देखने लगा जैसे की मैं कोई ज्योतिषाचार्य हूँ। लेकिन उनका दूसरा हाथ अपने माथे की पेशानी पर था। लग रहा था की वो कुछ सोच रहे थे या याद करने की कोशिश कर रहे थे। मैंने सोचा की अब मुझे कहानी नहीं सुनना पड़ेगा और मैं आगे का उपन्यास पूरा कर पाऊंगा। 

मैंने बोला " महाशय कुछ याद आया?"

उन्होंने कहा " हाँ याद आया, वो जनार्दन मोदी के कंपनी में एक अकाउंटेंट था जिसकी प्रेमिका का नाम नताशा मदान था। और वो अकाउंटेंट जुए का बड़ा शौक़ीन था जिसके कारण उसने अपनी कंपनी के खाते से लगभग ५५००० रूपये का गबन किया था फिर बाद में भी २०००० का गबन किया था। उसने जनार्दन मोदी के उस गुप्त मिशन के बारे में नताशा मदान को भी बताया था। लेकिन क्या बताया था और उस अकाउंटेंट का क्या नाम था वो मुझे याद नहीं आ रहा है। बहुत टाइम हो गया ना। मैंने गलत तो नहीं कहा।

मैंने कहा " जी महाशय, आपने बिलकुल शत प्रतिशत सही कहा और आपको प्रभात सक्सेना की प्रेमिका का नाम याद है वो आकडे याद हैं जो उसने गायब किये लेकिन वो गुप्त मिशन के बारे में प्रभात सक्सेना ने नताशा मदान को क्या बताया ये याद नहीं। कमाल है! दाद देनी पड़ेगी आपकी यादाश्त की।"

महाशय बोले " दाद ही देना बंधू, खाज मत देना। अब आगे की कहानी सुना दोगे तो बड़ी कृपा होगी।"

मैं हंस पड़ा और बोलना शुरू किया " प्रभात सक्सेना ने नताशा मदान को बताया की जनार्दन मोदी झेरी से ५ किलोमीटर दूरी पर स्थित झेरी गाँव में है (झेरी एक पर्यटन स्थल है जो राजनगर से लगभग ६५ मिल की दूरी पर स्थित है) और नेमचंद जैन के नाम से वह एक बंजर जमीन पर मुर्गी का फार्म खोलने की सोच रहा है। लेकिन उसका नाम और काम दोनों गाँव वालों के लिए छलावा है। वो चुपके -चुपके उस गाँव की सभी ज़मीने खरीद रहा था। ताकि वहाँ एक बड़ा होटल, गोल्फ फील्ड वगेराह बना सके। गाँव वाले उससे बहुत नाराज़ थे। जिन्होंने जमीन बेचा दिया था और जिन्होंने नहीं बेचा था सभी जनार्दन मोदी से खुंदक खाए बैठे थे। उनके अनुसार अगर जनार्दन मोदी उनके हत्थे लग जाए तो उसका काम तमाम कर दे। इसलिए उसने आपना नाम छुपाया था ताकि गाँव वाले उसे पहचान न ले और वो गाँव वालों के आक्रोश का शिकार न हो।"

महाशय ने फिर टोका" अरे हाँ याद आया। वहां एक किसान था हुकुम चंद थलिया नाम का जो की अपनी ज़मीन नहीं देना चाहता था पर जनार्दन मोदी ने उस ज़मीन के असली वारिस को खोज निकल कर उससे ज़मीन अपने नाम करवा लिया था। हुकुम चंद थालिया को क्षेत्रीय पटवारी से नोटिस भी मिल गया था उस ज़मीन को खाली करने का। थालिया ने अपने दोस्त जवाहर सिंह जो झेरी से झेरी टाइम्स नामक छोटा सा अखबार निकालते थे उनसे दरख्वास्त की थी की वो इस धांधली के बारे में अपने अखबार में कुछ लिखे। और जवाहर सिंह ने भी थालिया से वडा किया था की वो इसके बारे में जरूर लिखेगा"

मैंने बोल " वाह महाशय, आपको तो सब कुछ याद आ गया। तो अब मैं अपनी "ताज़ा खबर" में लग जाऊं क्यूंकि मथुरा पहुचने तक मैंने इसे ख़तम नहीं किया तो बहुत टाइम बाद ही मैं इसे पढ़ पाऊंगा"

महाशय बोले" तो आप मथुरा जा रहे हैं, वैसे क्या करने जा रहे हैं?"
मैं बोल " मैं तो मथुरा बांके बिहारी के दर्शन करने जा रहा हूँ और पूरा मथुरा में सभी तीर्थस्थलों पर जाने का सोचा है । आप कहा जा रहे हैं?"

महाशय बोले " मैं तो कोटा जा रहा हूँ, फिर वह से "नागौर" जाऊँगा। मैं वहां काम करता हूँ और आजकल मेरी रिहायश भी वही है। चलो इसको छोड़ो तुम इससे आगे की कहानी बताओ।"

मैंने अपने मुह सिकोडा और बोल" नम्रता कोहली को एक मोहरबंद लिफाफा प्राप्त होता एटलस डिटेक्टिव एजेंसी से जिसके ऊपर "गोपनीय" लिखा होता है। जनार्दन मोदी की सभी डाक खोलने की उसे आज़ादी थी पर वो पशोपेश में थी की इस गोपनीय डाक को खोले की नहीं। वो जनार्दन मोदी की तलाश में जनार्दन मोदी की कोठी पर फ़ोन करती है जहाँ उसकी बात निशा मोदी से होती है। वो निशा मोदी को उस डाक के बारे में बताती है जिसपर निशा मोदी उसे लिफाफा खोल कर देखने को कहती है। लिफाफा खोल कर देखने के बाद नम्रता कोहली के छक्के छुट जाते हैं उसमे नम्रता कोहली अपने पारिवारिक दोस्त अनिल महरा के साथ अन्तरंग स्थिति में गुत्थमगुत्था अवस्था की कई तस्वीरें थी। नम्रता कोहली निशा मोदी को झूठ बोलती है की ये किसी स्टॉक से सम्बंधित कागज हैं। लेकिन निशा मोदी की संदेह हो जाता है । वो जनार्दन मोदी के ऑफिस जाती है और उस दिन की सभी डाक नम्रता कोहली से ले लेती है। लेकिन नम्रता कोहली उसे डिटेक्टिव एजेंसी वाला डाक नहीं देती और छुपा लेती है। लेकिन निशा मोदी बड़ी चालाकी से नम्रता कोहली को बैंक भेज देती है और वो लिफाफा हथिया लेती है। "

मैंने घडी पर निगाह डाली तो पाया की १:३० बजने को है । ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार से दौरे जा रही थी। पुरे डिब्बे में सन्नाटा था। सभी अपनी कम्बल तान के सोये थे। और मैं अपनी उपन्यास को ख़तम करने के बजे कहानी सुनाने में लगा था। कितना अजीब लग रहा था। 

मैंने कहानी को आगे बढाया " सुदर्शन तलवार एक व्यवसायी है और जनार्दन मोदी का प्रतिद्वंदी है। वो इस बात से परेशान है की जनार्दन मोदी आजकल क्या कर रहा है, कहा गायब रहता है। सुदर्शन तलवार को यह जानकारी मिलती है की प्रभात सक्सेना मोदी की कंपनी से पैसों का गबन कर रहा है। सुदर्शन तलवार प्रभात सक्सेना से मिलता है और इस जानकारी के आधार पर उससे जनार्दन मोदी की जानकारी मांगता है। प्रभात सक्सेना उसे जानकारी देने को हामी भरता है पर उस जानकारी के ७५००० रूपये मांगता है। सुदर्शन तलवार इसके हामी भर देता है।"

महाशय बोले " अरे यार तुम बीच का वो हिस्सा भूल गए जब सुनील झेरी पहुँचता है और जवाहर सिंह से मिलता है। उससे इस ज़मीन के खरीद-फरोख्त के बारे में पूछताछ करता है। जनार्दन मोदी की जानकारी मांगता है। जवाहर सिंह सुनील को बताता है की जनार्दन मोदी अभी इसी गाँव में है लेकिन वो पहचाने में नहीं आ रहा । वो बताता है की जनार्दन मोदी लगभग तीन महीने से यहाँ जमीन की खरीद फरोख्त कर रहा है। सुनील जवाहर सिंह को ये बता के जाता है की अगर उसे जनार्दन मोदी की कोई खबर मिले तो उसे भी बताये। फिर सुनील चौपाल पर पहुँचता है जहाँ अर्जुन गाँव वालो से बातचीत कर रहा होता है। अर्जुन को भी वह से कोई जानकारी नहीं मिलती है। तभी सुनील को एक बुढ़ा दिखाई देता है । सुनील अर्जुन को उस बूढ़े की पड़ताल करने को कहता है। "

मैं बोल " मैं भी अभी यही हिस्सा बयां करने वाला था। पर आपने बीच में अपने यादाश्त से वो हिस्सा सुना दिया। जबकि आपको कहानी कुछ याद नहीं"
मेरे इस शब्द में कटाक्ष पूरा था। लेकिन ये सुनकर उनके चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गयी। 

महाशय बोले " चलो यार हो जाता है ऐसा कौन सी बड़ी बात है...जैसे जैसे तुम कहानी आगे बढा रहे हो मुझे धीरे धीरे याद आता जा रहा है। अब आगे का हिस्सा सुनाओ।"

मेरा हो रहा था मूड ख़राब लेकिन क्या कर सकता था वो इतना मीठा बोल ही रहे थे की मुझसे उनके अनुरोध को ठुकराना सही नहीं लगा। 

मैं बोल " सुदर्शन तलवार हुकुमचंद थालिया का बहुत ही पूरा कॉलेज के ज़माने का दोस्त था। तलवार ने हुकुमचंद थालिया को ये बता दिया की "नेमचंद जैन ही जनार्दन मोदी है"। थलिया ये खबर सुनने के बाद जवाहर सिंह के पास जाता है और उसे इस खबर के बारे में बताता है। थालिया और जवाहर सिंह जनार्दन मोदी उर्फ़ नेमचंद जैन के पास जाने का सोचते हैं। जवाहर सिंह थालिया को अपना लेख दिखाता है जो अगले दिन के अखबार में छापना चाहता है। थोड़े बहुत बदलाव के बाद वो उस लेख का ड्राफ्ट तैयार कर लेते हैं। फिर दोनों लगभग शाम को ५:३० बजे शाम को नेमचंद जैन के फार्म पर पहुँचते हैं। थालिया जवाहर सिंह को बताता है की कोई खिड़कियाँ और परदे बंद कर रहा है। जवाहर सिंह भी इस को देखता है। दोनों नेमचंद जैन के दरवाजे पर पहुँचते हैं और उसको आवाज लगते हैं लेकिन अन्दर से कोई आवाज नहीं आती। थालिया जवाहर सिंह को पीछे के दरवाजे पर जाने को कहता है । जवाहर सिंह पीछे के दरवाजे पर पहुचता है तो उसे अन्दर से किसी भारी पैरों की आवाज सुनाई देती है। बहुत आवाज लगाने के बाद भी जब कोई दरवाजा नहीं खोलता है तो दोनों वापिस चल पड़ते हैं। थालिया जवाहर सिंह को बताता है की उसने अन्दर जूतों की आवाज सुनी और शायद रेवोल्वर घुमाने की आवाज भी सुनाई दी। जवाहर सिंह भी इस बात को कहता है।"

महाशय बोले " अब मुझे बोलने दो, अर्जुन सुनील को बताता है की नेमचंद जैन ही जनार्दन मोदी है। दोनों सुबह सुबह १० बजे नेमचंद के घर पर पहुँचते हैं तो पाते है की वह पुलिस की गाडी खड़ी है। सुनील जवाहर सिंह को बुलाता है और पूछता है क्या हुआ। जवाहर सिंह बताता है की अन्दर जनार्दन मोदी उर्फ़ नेमचंद जैन की लाश है। जवाहर सिंह अपने कल शाम के आगमन के बारे में भी उसे बताता है जब वो और थालिया नेमचंद जैन से मिलने आये थे। वो सभी बाते सुनील को बताता है। सुनील गाँव के थाना अध्यक्ष कृपाराम से मिलता है उसे अपनी अखबार पर फोटो छापने का लालच देता है ताकि वो अन्दर जनार्दन मोदी की लाश देख सके और मौकाए वारदात का मुआयना कर सके । कृपा राम उसे अन्दर ले जाता है । सुनील देखता है की जनार्दन मोदी की लाश कुर्सी पर है एक हाथ में एक बन्दूक है । बगल ही एक मोमबत्ती जल रही है और बस एक तिहाई से भी कम बची है। सुनील को वह एक सफ़ेद कागज पर अखबार के अक्षरों का प्रयोग कर कुछ वाक्य लिखे हैं। जो सीधे सीधे sucide नोट लगता है।कृपा राम सुनील को बताता है की एक लड़कियों द्वारा प्रयोग होने वाला शीशा मिला है जिसके पीछे के प्रथमाक्षर N M हैं। तब तक प्रभात सक्सेना वह आता है और जनार्दन मोदी की सिनाख्त करता है। सुनील बाहर निकल कर जाता है और थालिया से बात करता है। थालिया उसे बताता है की उसने कल शाम ५:३० बजे जनार्दन मोदी के चलने की आवाज सुनी थी और उसके हाथ में रिवाल्वर भी थी। तभी वहां और भी पत्रकार पहुँचते हैं। उनमे से एक पत्रकार "ताज़ा खबर" से भी होता है जो लगभग ६ महीने पहले शुरू हुआ था और शाम को निकलता था। इसलिए उसने जल्दी ही प्रसिद्धि की स्तर को छू लिया था। सुनील उसे उस अखबार के शब्दों से बने sucide नोट को दिखता है तो "ताज़ा खबर" का पत्रकार उसे झट पहचान लेता है की यह शब्द बीस तारीख के "ताज़ा खबर" अखबार से लिए गए हैं।"

मैं बोल " वाह महाशय आपको तो सब याद आ गया और देखिये एक ही सांस में बहुत कुछ कह दिया आपने।"
महाशय बोले " हाँ याद तो आ गया। और लगता है आपका स्टेशन आने वाला है। "
मैंने बाहर नज़र दौरे तो गाड़ी "छाता" स्टेशन पर कर रही थी। अब बस अगले १५-२० मिनटों में मैं मथुरा पहुचने वाला था। घडी पर नज़र पड़ी तो २:३० बजने को थे। मुझे तो टाइम पता ही नहीं चला की कब बीता। 

मैं बोला " फिर थोडा सा और सुना दीजिये, मैंने इससे भी आगे पढ़ रखा है वह तक जब सुनील नताशा मदान को लेकर झेरी जवाहर सिंह और थालिया से मिलता है"

महाशय बोले " नहीं कहानी तुमने शुरू की थी इसलिए तुम ही ख़तम करना, इसलिए तुम ही बोलो।"

मैं बोल " ठीक है। अनिल मेहरा निशा मोदी से मिलने आता है जहाँ निशा मोदी अनिल मेहरा पर अपने पति के खून करने का शक जाहिर करती है वैसा ही शक अनिल मेहरा निशा मोदी पर करती है। सुनील राजनगर पहुँचता है । वो जनार्दन मोदी के ऑफिस जाता है। नम्रता कोहली से मिलता है लेकिन बीच में अनिल मेहरा पहुच जाता है। वो नम्रता कोहली से मिलता है। और जब नम्रता कोहली उससे मिल के आती है तो उसके चेहरे का रंग उदा होता है और वो रो रही होती है। सुनील वह से निकल जाता है। सुनील और अर्जुन एक बार में पहुचते हैं जहाँ प्रभात सक्सेना और सुदर्शन तलवार आपस में बात कर रहे होते हैं। सुनील दोनों की कुछ कुछ बातों को सुन लेता है। प्रभात सक्सेना नताशा मदान के साथ "सपना क्लब" में मिलती है। प्रभात सक्सेना नताशा मदान पर जनार्दन मोदी के खून का शक जाहिर करता है और नताशा मदान भी वैसा ही शक प्रभात सक्सेना पर करती है। प्रभात सक्सेना कुछ देर के लिए नताशा को छोड़ कर जाता है तो सुनील जो बहुत देर से दोनों को वाच कर रहा था नताशा के पास पहुँचता है"

अब ट्रेन ने अपनी रफ़्तार को कम कर दिया था। ट्रेन "भूतेश्वर" स्टेशन को पार कर रही थी। अब बस अगले २ मिनट में मैं मथुरा स्टेशन पर होऊंगा। 

मैंने महाशय को कहा " महाशय मेरा स्टेशन आने वाला है। अब मैं आपसे विदा लूँगा। लेकिन आपकी और हमारी बातचीत तो अधूरी ही रह गयी। हो सके तो आप हमारे फेसबुक समूह में जुड़िये और लाइब्रेरी से पुस्तकें मंगाकर पढ़िए ।"

अब मैं उन्हें पसंद करने लगा था। वो एक सभ्य इंसान लग रहे थे। 

महाशय बोले" ठीक है। लेकिन सुल्तान , शहजादे तुमने मेरा नाम नहीं पूछा"

मैंने कहा " ओह्ह!!!माफ़ी चाहुगा। आपका शुभ नाम क्या है महाशय। हो सके तो आप अपनी id भी बता दें ताकि मैं आपको ग्रुप में जुड़ने के लिए रिक्वेस्ट भेज सकूँ।"

उन्होंने कहा " सुलतान -ऐ- आली, मैं उस समूह में पहले से हूँ। तुम से पहले से हूँ। लगता है तुमने मुझे पहचाना नहीं। मेरा नाम है "डॉ. राजेश पराशर" "नागौर" वाले ।"

मैं तो यह सुनते ही अचंभित हो गया की उन्होंने मुझे पहचान लिया तभी तो "सुलतान" जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे थे और मैं उन्हें ना पहचान सका।

मैंने कहा " डॉ. साहब।"
और उन्हें गले लगा लिया। डिब्बे की बंद लाईटें जल पड़ी । सभी उठ बैठे। सभी हम दोनों को गले लगते देख रहे थे की ट्रेन मथुरा स्टेशन पर लग चुकी थी।

मैंने कहा"डॉ. साहब ये तो बिलकुल अधूरी बातचीत रही। अगली बार मिलेंगे तो मुलाक़ात पूरी होगी। और अगली बार हम ट्रेन में नहीं कही ऐसी जगह मिलेंगे जहा बहुत सी बाते हो सके।"

ऐसा लग रहा था की डॉ. साहब के आँखों में आंसू आने वाले हो अचानक उन्होंने अपनी आँखे मली और बोले " ठीक है"

मैंने उन्हें अलविदा कहा और ट्रेन से निचे उतर गया । ट्रेन खुल पड़ी मैं हाथ तब तक हाथ हिलाता रहा जब तक ट्रेन मेरे आँखों से ओझल नहीं हो गई।
वाह मजा आ गया था आज। अब मैं बाहर निकला और एक रिक्शे वाले को उस होटल का नाम बताया जहाँ मेरे दोस्त ठहरे थे। हम अगली सुबह मथुरा में जन्म भूमि देखने जा रहे थे फिर उसके बाद के और भी प्लान्स थे...।



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नोट : - दोस्तों यहाँ मेरे द्वारा गढ़ा गया यह संस्मरण पूरी तरह से काल्पनिक है। लेकिन डॉ. साहब काल्पनिक नहीं है क्यूंकि मैंने उन्हें २३ दिसम्बर को हुए परिवार मिलन समारोह में मिला था। आशा करता हूँ की यह "ताज़ा खबर" का यह सारांश आप सभी को पसंद आएगा। मेरा विश्लेषण नीचे कमेंट सेक्शन में आपको मिलेगा। 

तब तक " हैप्पी रीडिंग"

विनीत
राजीव रोशन


विश्लेषण - "ताज़ा खबर"

दोस्तों आज फिर सुनील की चमत्कृत कर देने वाली सूझ-बूझ से भरपूर मेरे परम पूज्य लेखक श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का उपन्यास "ताज़ा खबर" का विश्लेषण ले आया हूँ। दोस्तों जिस शाम "पाठक परिवार मिलन समारोह" में समिल्लित हुआ था उस दिन इस कृति का एक page पढना बाकी रह गया था लेकिन जब पाठक साहब सामने आ गए तो मैं उस पन्ने को पढना ही भूल गया। जबकि सुनील सीरीज के उपन्यासों में आखिरी के १०-१५ पन्ने बड़े ही मजेदार और आंदोलित कर देने वाले होते हैं। सुनील द्वारा तर्क और तथ्यों से सबूतों को जोड़ना और मुख्य आरोपी को पकड़ना। यही बातें तो मुझे सुनील की बहुत अच्छी लगती है। अब इस उपन्यास पर आऊं तो पाठक साहब ने सभी प्रमुख किरदारों को टुकडो टुकडो में एक के बाद एक परत दर परत हमसे मिलवाया। फिर कहानी आगे बढती है जहाँ एक खून हो जाता है और सबूतों के नाम पर बस २ लोगो की गवाही, एक मोमबत्ती, एक अखबार के शब्दों से बना Sucide नोट , एक लड़कियों के प्रयोग वाला शीशा। सुनील के द्वारा मोमबत्ती से सम्बंधित टाइम फैक्टर को समझाना शानदार लगता है। सुनील ने बहुत ही खूबी से कृपा राम के Sucide नोट की धज्जियां उड़ाई। मुझे तो तब बहुत हंसी आई जब नताशा और प्रभात एक दुसरे को कातिल समझ रहे थे और निशा - अनिल मेहरा एक दुसरे को कातिल समझ रहे थे। एक क़त्ल हुआ था और इतने सारे Suspect थे। एक बहुत ही सुन्दर रहस्य को सुनील बड़े ही मजाकिया ढंग से हल कर दिखाया। रमाकांत और प्रभुदयाल की कमी बहुत खली इस उपन्यास में। वही कृपाराम का किरदार भी बहुत ही सुन्दर था। उपन्यास का प्लाट बहुत ही सिमित था । पाठक सर ने बहुत ही सिमित प्लाट में भी बहुत सुन्दर मर्डर मिस्ट्री पेश कर दी थी। सुनील द्वारा पेश किया गया इस उपन्यास का अंत बहुत ही शानदार है। उपन्यास में नताशा मदान और नम्रता कोहली का किरदार बहुत ही ऊँचे स्तर का लगता है । और निशा मोदी के किरदार का स्तर बहुत छोटा रखा। ये बातें इस उपन्यास के बहुत ही जरूरी थी। हुकुम चंद थालिया का किरदार सच में दिल को छु लेने वाला है। एक किसान की ज़मीन जब छिनती है वो भी किसी होटल प्रोजेक्ट के लिए या हाईवे प्रोजेक्ट के लिए या बिल्डिंग प्रोजेक्ट के लिए तो उस किसान को बड़ा दर्द होता है। जो भूलवश ज़मीन बेच चुके होते हैं वो बाद में पछताते हैं। आज भी ऐसा ही कुछ रोज कही न कही भारत में हो ही रहा है। 
मैं पाठको को सलाह दूंगा की जिन्होंने इसे नहीं पढ़ा वो एक बार जरूर पढ़े और जिन्होंने पढ़ रखा है वो इसे दुबारा पढ़ें......

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विनीत
राजीव रोशन


Comments

  1. I am not having a copy of Taaza Khabar. However fortunately, the library of our organization contains it. Hence I get it issued from there from time to time and keep on reading it. It's the introductory novel of Sub-Inspector Kirparaam. This is one novel which is so interesting that we don't miss Prabu Dayaal. It's a compact novel with maximum reading matter and nothing superfluous to fill the pages. You have presented the review quite interestingly, creating an urge in the prospective readers to read it as soon as possible and rekindling the memories of those who have read it. Compliments.

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कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया ग...

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया औ...

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को ...