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दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय






दुर्गेश नंदिनी 


लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय



उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य
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बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया। 
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यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को कहा। और वो आये उन्होंने मुझे यह पुस्तक दे कर कृतार्थ किया।
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मेरा अनुभव :-
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दोस्तों यह बड़ा अजीब लगता है की प्रत्येक पुरुष आज की तारीख में आपनी जिंदगी में हमसफ़र के रूप में एक स्त्री को पाना चाहता है। एक ऐसी स्त्री जो सुशिल हो, जिसमे एक अनोखी गृहणी बन्ने की प्रतिभा हो, जो बड़ो का आदर करे आदि । लेकिन साथ में वो इनके अलावा एक और गुण चाहता है आपनी पत्नी में वो है सुन्दरता। लेकिन वह सुन्दरता क्या होती । उस सुन्दरता की परिभाषा क्या है। आप किस प्रकार से सुन्दरता का व्याख्यान कर सकते हैं। 
बंकिम दा का यह उपन्यास अवश्य ही आपको उस सुन्दरता को समझने और जानने का जरिया बन सकता है। प्रस्तुत उपन्यास में बंकिम दा ने चार स्त्रीयों की सुन्दरता का बखान किया है - विमला, तिलोत्तमा, आयशा और आसमानी। स्त्री की सुन्दरता का इतना विस्तृत विवरण शायद ही मैंने कही पढ़ा और सुना हो। स्त्री की सुन्दरता का बहुत ही सुन्दर, अद्वित्य और अकल्पनीय वर्णन बंकिम दा ने यहाँ किया है। 



यह उपन्यास उस प्रेम की परिभाषा को समझने में भी सार्थक होगा जिसके लिए हमारा देश का नाम है। एक ऐसा प्रेम जिसमे त्याग है, बलिदान है, इंसानियत है आदि। प्रेम के बारे में अधिक नहीं लिख सकता क्यूंकि इस विषय में मैं कमजोर था। लेकिन मेरे जानकार एक डॉक्टर हैं जो इस पर रौशनी डाल सकते हैं। प्रस्तुत उपन्यास में आयशा का जगत सिंह और तिलोत्तमा के प्रेम के लिए अपने प्रेम का बलिदान, भारत के संस्कृति और इतिहास को सार्थक करता है। उसी प्रकार विमला द्वारा आपने पति की गुमनाम होकर सेवा करना भी अद्भुत उदहारण है आज के दिनों में।



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कहानी का संछिप्त विवरण
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बंकिम दा का यह उपन्यास उस समय की पृष्ठभूमि पार आधारित है जब मुग़ल सम्राट अकबर आपने राज्य का विस्तार कर रहे थे। उस समय बंगाल और उड़ीसा पर पठानों का राज था। अकबर ने बंगाल पर आक्रमण किया और बंगाल को जीत आपने राज्य में शामिल कर लिया। पठान बंगाल से भाग कर उड़ीसा चले गए। लेकिन पठानों ने बंगाल में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। सम्राट अकबर द्वारा बंगाल के सिहांसन पर बिठाये गए सभी सामंतो को वे धोखे से मार देते थे। अकबर की नज़र अब उड़ीसा जितने की भी थी। सम्राट आकबर ने पठानों द्वारा मचाये जा रहे उत्पातो को ख़तम करने और पठानों को बंगाल से खदेरने के लिए आपने सबसे विश्वसनीय सेनापति और आमेर के राजा मान सिंह को १५००० सैनिको सहित बंगाल भेजा। मान सिंह राजपूत थे और बहुत ही प्रसिद्ध योद्धा थे। मान सिंह का पुत्र जगत सिंह भी उनके साथ गया था। जगत सिंह भी आपने पिता की तरह प्रसिद्ध योद्धा था। बस कहानी यहाँ से शुरू होती है।



जगत सिंह विमला और तिलोत्तमा से एक मंदिर में अचानक मिलते हैं। जगत सिंह तिलोत्तमा की सुन्दरता पर मोहित हो उस से प्रेम करने लगता है पर उसे बताता नहीं है। वही तिलोत्तमा भी जगत सिंह के तेज से प्रसन्न हो उस से मन ही मन प्रेम करने लगती है। उसके साथ की संगनी विमला इस बात को समझ जाती है। विमला और तिलोत्तमा आपना परिचय नहीं देते। पर जगत सिंह जब आपना परिचय देते हैं तो वे खुश हो जाते हैं। विमला जगत सिंह को वादा करती है की पंद्रह दिन बाद वो उसे इसी मंदिर में मिलेगी और आपना परिचय देगी।



तिलोत्तमा गढ़ मंदारण के राजा वीरेंदर सिंह की बेटी है। वीरेंदर सिंह के करीबी में उसके गुरु अभिराम हैं। तिलोत्तमा के करीबी वह विमला और आसमानी नाम की दासी है । वही एक अभिराम का शिष्य है विद्यादिग्ग्ज जो बड़ा ही हास्यप्रद बातें करता है और आसमानी को प्रेम करता है। विमला आपने मन की बात और तिलोत्तमा के मन की बात गुरु अभिराम से कहती है। 



वही राजा वीरेंदर सिंह के पास पठानों के सामंत कतलू खां का सन्देश आता है की वो पठानों से संधि कर मुगलों को पराश्त करने में उसकी सहायता करे। वीरेंदर सिंह मुगलों से संधि करने को तैयार है पर मान सिंह से नहीं क्यूंकि बीते जीवन में मान सिंह ने उसे कुछ ऐसे घाव दिए हैं जिसे वो भुला नहीं सकता। पर गुरु अभिराम के समझाने पर वो इस बात को मान जाता है और पठानों को सहायता करने से मना करता है और मुगलों को अर्थात मान सिंह को सहायता के लिए हाँ कर देता हैं। यह बात सुनते ही कतलू खां उस पर धावा बोलने की योजना बनता है।



पंद्रह दिन पूरा होते ही विमला रात के समय विद्यादिग्ग्ज को ले कर उसी मंदिर में जाती है। विद्यादिग्ग्ज भूतो के दर के मारे उसे अकेले छोर भाग जाता है। मंदिर में विमला जगत सिंह से मिलती है और उसे आपना और तिलोत्तमा का परिचय देती है। जगत सिंह भी वीरेंदर सिंह और मान सिंह के बीच की खटास को जानता है इसलिए वो इस प्रेम को खतम करने की बात करता है। लेकिन वो आखिरी बार तिलोत्तमा से मिलना चाहता है। विमला उसे राजमहल ले कर जाती है और आपने कमरे में ठहरती है। उसी समय पठानों ने गुप्त रूप से हमला कर दिया। और वीरेंदर सिंह को बंदी बना लिया। जगत सिंह ने तिलोत्तमा और विमला को पठानों से बचने की कोशिश में अकेले ही पठानों की सेना भीड़ जाते हैं। लेकिन कुछ क्षणों के पश्चात वे घायल हो कर मूर्छित हो जाते हैं। पठान उन्हें बंदी बना कर आपने राजमहल ले जाते हैं। राजमहल में जगत सिंह का इलाज शुरू होता है उसकी देखभाल की ज़िम्मेदार आयशा उठती है जो की कतलू खां की बेटी है। गढ़ मंदारण के सेना नायक उस्मान खां जो की दिल से साफ़ है। वो आयशा से प्रेम करता है। लेकिन आयशा उसे आपने भाई जैसा मानती है। जगत सिंह की सेवा करते करते आयशा को जगत सिंह से प्रेम हो जाता है लेकिन वो यह बात उसे नहीं बताती। उसी दौरान वीरेंदर सिंह को सजा दी जाती है और उसका सरेआम फंसी दे दी जाती है। जब जगत सिंह पूरी तरह से स्वस्थ होता है तो वो उस्मान और आयशा से तिलोत्तमा और विमला और वीरेंदर सिंह के बारे में पूछता है। उस्मान उसे बताता है की वीरेंदर सिंह को फांसी दे दी गयी है। लेकिन उस्मान तिलोत्तमा और विमला के बारे में नहीं बताता। इतनी बात आयशा भी बताती है। तब एक दिन जगतसिंह को विद्यादिग्ग्ज जिसने की ब्रह्मण से मुस्लिम धर्म में परिवर्तन कर लिया है से पता चलता है की तिलोत्तमा और विमला अब कतलू खां की उपपत्नी हैं। जगत सिंह जब यह बात सुनता है तो जितना प्यार तिलोत्तमा के लिए था वो भी ख़त्म हो जाता है। उस्मान जगत सिंह को एक प्रस्ताव के बारे में बताता है जिसमे कतलू खां के अनुसार वे बंगाल मुगलों को सौप देंगे पर अगर मुग़ल उड़ीसा की तरफ आपने कदम ना बढ़ाये। उस्मान जगत सिंह से कहता है की यह प्रस्ताव वह लेकर आपने पिता के पास जाये और मनाये। पर जगत सिंह इसके लिए तैयार नहीं होता। कतलू खां इस अवमानना पर जगत सिंह को कारगर में डलवा देता है। उधर विमला जो की वीरेंदर सिंह की पत्नी है जिसके बारे में कुछ लोगो को ही पता था वो उस्मान से तिलोत्तमा को कतलू खां की कैद से निकलने की प्रार्थना करती है। विमला ने उस्मान की जान बचपन में बचाई थी जिस कारन उस्मान उनकी सहायता के लिए तैयार हो जाता है। कतलू खां के जनम दिवस पर विमला तिलोत्तमा को भगा जाने को कहती है वो तिलोत्तमा को एक अन्घुती देती है जिसे उस्मान ने विमला को दिया था की किले के दरवाजे पर एक आदमी उसी तरह की अंगूठी लिए उसका इंतजार करेगा और वो जहा जाना चाहेगी वह पंहुचा देगा। तिलोत्तमा अंगूठी को लेकर किले के द्वार पर जाती है पर वो किले से बहार जाने के बजाय वह ले जाने को कहती है जहा जगत सिंह को कारावास में रखा गया है। वह आदमी उसे कारावास में ले जाता है जहा वह जगत सिंह को देखती है पर जगत सिंह उसे अपने और उसके प्रेम को भूलने के लिए कहती है। इसे सुनते ही तिलोत्तमा बेहोस हो कर गिर जाती है। जगत सिंह उस आदमी को आयशा को बुलाकर लाने को कहता है। आयशा आकर उसका उपचार करती है की तभी उस्मान वह आ जाता है और आयशा को उलाहना देता है जिसे सुन कर आयशा भड़क कर आपने दिल की बात उस्मान और जगत सिंह के सामने ही कह देती है की जगत सिंह ही उसके प्राणपति है। यह सुनकर जगत सिंह को धक्का सा लगता है। आयशा एक दासी के साथ तिलोत्तमा को भेज देती है। आयशा जगत सिंह को भी कैद से भाग जाने को कहती है पर जगत सिंह उसे मन कर देता है। उसी समय जहाँ कतलू खां का जनम दिवस मनाया जाता है वह विमला पहुँचती है और कतलू खां को एकांत में सूरा पान कराती है । कुछ क्षण पश्चात विमला कतलू खां के सिने में खंजर उतर देती है। पुरे नगर में शोर मचा देती है की किसी मुग़ल ने कतलू खां का क़त्ल कर दिया। पुरे नगर में कोलाहल हो जाता है हलचल मच जाता है। उसी हलचल में विमला नगर से भाग जाती है और गुरु अभिराम से मिलती है। आयशा उसी रात को एक दासी के साथ तिलोत्तमा और आसमानी को गुरु अभिराम के पास भेज देती है। गुरु अभीराम सभी को लेकर वह से तुरंत दूर कही निकल जाते हिं। कतलू खां के मिर्त्यु के पश्चात जगत सिंह को छोर दिया जाता है । आयशा उसे अपने प्रेम को भूलने को कहती है। उधर उस्मान जगत सिंह को युद्ध के लिए ललकारता है यह कहकर की आयशा तब तक उसकी नहीं हो सकती जब तक जगत सिंह जिन्दा है। और आपने जीते जी वो आयशा को जगत सिंह का होने नहीं देगा। युद्ध में उस्मान मारा जाता है। जगत सिंह आपने पिता के खेमे में पहुच पठानों का सन्देश अकबर तक पहुचता है और अकबर मान जाता है की बंगाल पर अधिकार मुगलों का रहेगा और उड़ीसा पर पठानों का। जगत सिंह उसके बाद गुरु अभिराम, विमला और तिलोत्तमा की खोज करता है ताकि गढ़ मंदारण का शासन उन्हें दे सके पर वे कही नहीं मिलते । कुछ दिनों बाद जगत सिंह एक पत्र प्राप्त होता है जिसमे उसे कही आने के लिए लिखा गया है। जगत सिंह तय स्थान पर पहुचता है तो गुरु अभिराम को पता है। गुरु अभिराम उसे बताता है की तिलोत्तमा रोगग्रस्त है और बस कुछ दिन ही जीवीत रहेगी। वो दिन रात तिलोत्तमा की सेवा करता है। कुछ माह पश्चात तिलोत्तमा ठीक हो जाती है। जगत सिंह सभी को लेकर गढ़ मंदारण जाता है और वह विधिवत तिलोत्तमा से विवाह करता है।
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विनीत 
राजीव रोशन

Comments

  1. बहुत सुंदर कहनी है।
    ह्रिदय को छू लेनी वाली है।

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