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बन्दर की कारामात (समीक्षा)





बन्दर की कारामात - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक 


श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने कई ऐसे किरदारों को गढ़ा है जो आज के समय में अमर हो गए हैं। आज पाठक सर के किरदारों ने अजब ही धूम मचा राखी है। पाठक साहब ने शुरुआत किया था "सुनील" से, फिर विमल फिर सुधीर फिर और भी कई किरदार आते गए। पाठक सर ने कई सह-किरदार भी गढ़े हैं जिनमे सुनील सीरीज के किरदारों को कौन भूल सकता है, उसी प्रकार से विमल सीरीज के भी कई शानदार किरदार हैं, और सुधीर सीरीज में भी कई सह किरदार हैं। सह किरदारों में पाठक साहब ने एक किरदार को मुख्य रूप से लेकर भी उपन्यास भी लिखे हैं। इस किरदार का नाम है "बन्दर" उर्फ़ जुगल किशोर। ऐसे ही एक उपन्यास की आज मैं बात करने जा रहा हूँ। वैसे तो उपन्यास का नाम "बन्दर की कारामात" है लेकिन इसमें मुख्य कलाकार के रूप में सुनील भी मौजूद है। वही सह किरदार में रमाकांत, जोहरी, दिनकर, प्रभुदयाल और रेनू भी मौजूद है। मतलब बन्दर के नाम से प्रकाशित इस उपन्यास में सुनील के साथ सुनील सीरीज के सभी किरदार मौजूद हैं। 

अब मैं बात कर लेता हूँ "बन्दर" के बारे में क्यूंकि बाकी सभी से तो आप सुनील के कारनामों में मिलते ही रहते हैं। "बन्दर" उर्फ़ जुगल किशोर एक मेडिकल के विद्यार्थी हैं। लेकिन अपनी उम्र के अनुसार तो उन्हें अब तक डॉ. हो जाना चाहिए था। परन्तु वह कभी "पास" ही नहीं होता और इसके पीछे कारण यह है की वह अभी भी कॉलेज की जिन्दगी जीना चाहता है। उसके माता पिता लाचार हैं उसके इस प्रदर्शन और विचार से। कभी कभी तो उसके पिता उसे घर से बाहर भी निकाल देते हैं। अब बात इस पार आती है की जुगल किशोर को बन्दर क्यूँ कहा जाता है। मुझे ज्यादा तो नहीं मालूम पर शायद जुगल किशोर जिस प्रकार का चश्मा पहनता है बड़े बड़े शीशे वाला उस रू में तो लगता है की जुगल किशोर को चश्मे के कारण ही बन्दर कहा जाता है और बन्दर को अपना नाम "जुगल किशोर" सुनना भी पसंद नहीं है उसे बन्दर कहलाना ही अच्छा लगता है। बन्दर की एक कमजोरी है, सुन्दर और बेमिशाल लड़कियां। और अगर वो लड़कियां बन्दर के चेहरे को देख यह कह दे की तुम चश्मे के बगैर बड़े सुन्दर लगते तो वह अपना चश्मा उतार देता था। जबकि अपना चश्मा उतारने के पश्चात तो उसे कुछ सही से दिखाई भी नहीं देता है। पाठक साहब ने "बन्दर" को सुनील का दोस्त बताया है। पाठक साहब ने इस किरदार की रचना किसको आधार में लेकर किया था लेकिन इस किरदार का अनोखापन ही इसे लोकप्रिय बनता है। 

अब मैं उपन्यास की समीक्षा या सारांश पर आ जाऊं तो सही रहेगा। क्यूंकि आजकल मैं पकाता बहुत हूँ। यहाँ तक की लेख पेश करने से पहले अगर किसी को बता दूँ की लेख पोस्ट कर रहा हूँ तो कहा जाता है की जरूर लम्बी होगी। देखता हूँ यह पोस्ट कितनी लम्बी होती है। :)

इस उपन्यास की कहानी शुरू होती है "बन्दर" और "सुनील" की मजेदार मुलाक़ात से जहाँ दोनों में बहुत ही चटकारे वाला वार्तालाप होता है। कहानी के शुरूआती पन्नो में ही चेहरे पर मुस्कराहट आ जाए तो कहानी पूरी पढने पर तो पेट की हालत ही खराब हो जायेगी। "बन्दर" सुनील को बताता है किसी शानदार और सुन्दर लड़की ने उसे एक काम सौंपा है जिसके बदले उसे ५०० रुपये मिलेंगे । सुनील काम के बारे में पूछने पर बन्दर बताता है की विजय लॉज के एक फ्लैट, जिसका मालिक कमल मेहरा है, से रिवाल्वर चुरानी है। सुनील इस काम को गैरकानूनी बता कर उसे ऐसा करने से मना करता है। लेकिन बन्दर उस लड़की के लिए काम करना चाहता है और इसमें सुनील को भी साथ देना होगा। सुनील के बहुत ना-नुकर और समझाने बुझाने के बाद भी बन्दर अपने निश्चय से नहीं हिलता। मजबूरन सुनील को बन्दर का साथ देना पड़ता है।

सुनील और बन्दर विजय लॉज पहुँचते हैं और बन्दर कमल मेहरा के फ्लैट को चाबी लगा कर खोलता है, यह चाबी उसे उसी लड़की ने दिया होता है जिसने यह काम करने को कहा था। उस लड़की ने यह भी बताया था की उस समय कमल मेहरा अपने फ्लैट पर नहीं होगा। बन्दर अन्दर घुसता , जबकि सुनील बाहर ही खड़ा रहता है। बन्दर अन्दर एक आदमी से बात करता है जो अपने आप को कमल मेहरा कह कर संबोधित करता है। कुछ देर बाद बन्दर पिटता हुआ बाहर आता है। फिर भी बन्दर निराश नहीं होता और दुबारा उस व्यक्ति को ललकारता है और उसकी पिटाई करता है पर कमल मेहरा इस बार एक बन्दूक निकाल लेता है। यह देखते ही सुनील भी कमल मेहरा से भीड़ जाता है। इसी उठा-पटक में बन्दूक से गोली चल जाती है और फर्श को तोड़ देती है। सुनील उस व्यक्ति को बेहोश कर देता है और दोनों भाग निकलते हैं। बन्दर उस कमरे उस बन्दूक को ले आता है। तभी उस फ्लोर पर के से सभी कमरे खुलने लगते हैं। 

सुनील और बन्दर दोनों उस जगह पहुँचते हैं जहाँ उस लड़की को बन्दुक लेने आना था। लेकिन वह लड़की वहां नहीं पहुँचती। नतीजतन सुनील उस बन्दुक को एक दूकान पर गिरवी रख देता है। अगले दिन बन्दर सुनील के घर पहुँचता है और उसे यह खबर दिखता है की विजय लॉज में कमल मेहरा के फ्लैट में कमल मेहरा की लाश मिली है। वहां रहने वाली एक पड़ोसन ने पुलिस को बयान दिया जिसमे बन्दर और सुनील की सभी गतिविधियों को बयान किया। बन्दर सुनील के घर में एक पत्रिका देखता है जिसमे उसे वह लड़की नज़र आ जाती है जिसने उसे कमल मेहरा के फ्लैट में बन्दूक चोरी करने को कहा था। सुनील रमाकांत को कमल मेहरा के बारे में जानकारी निकालने को कहता है, और उसे कमल मेहरा के पड़ोसन महिला के बारे में भी जानकारी निकालने को कहता है। सुनील रमाकांत को पात्रिका में छपे चित्र वाली लड़की के बारे में भी जानकारी निकलने को कहा। सुनील उस दूकान से बन्दूक को गिरवी से छुड़ा लाता है।

सुनील कमल मेहरा के पड़ोसन से मिलने जाता है और उससे सवाल जवाब करता है। सुनील वहां से निकलता है तो उसे लगता है की उसका पीछा किया जा रहा है। सुनील सीधा "यूथ क्लब" रमाकांत के पास पहुँचता है । वह बन्दूक की गोलियां निकालता है। ५ गोलियों में से उसे एक गोली हलकी लगती है। सुनील उस गोली की खोल को खोलता है तो अन्दर उसे एक १००० के नोट का टुकड़ा मिलता है। नोट के टुकड़े को लेंस से देखने पर उस पर लिखे कुछ शब्द दिखाई देते हैं। लेकिन सुनील उसका मतलब नहीं समझ पाता। 

दोस्तों इस बिंदु के बाद कहानी दिलचस्प मोड़ लेती है। कहानी एक चोरी की साधारण वारदात से होते हुए क़त्ल तक पहुँचती है और आगे एक शानदार रहस्य खुलता है। जैसा की पाठक साहब के उपन्यासों में सुनील सीरीज के उपन्यासों में होता है, इस उपन्यास में भी कई तीखे मोड़ हैं। हम सभी तो जानते हैं ही की पाठक साहब के उपन्यासों में कई ऐसे वार्तालाप होते हैं जो बड़े मजेदार होते हैं। सुनील और बन्दर के बीच कई ऐसे वार्तालाप हैं जो बरबस ही आपके चेहरे पर मुस्कराहट की लकीरें खींच देते हैं। कहानी जिस रफ़्तार से शुरू होती है उसी रफ़्तार से आगे बढती जाती है। कहानी को बड़े ही तेज़ रफ़्तार से लिखा गया है जैसा की अमूमन सुनील सीरीज के उपन्यासों में होता है। बन्दर का जंगी चश्मा और बन्दर का किरदार इस उपन्यास के मुख्या हस्याबिंदु हैं। रमाकांत के साथ सुनील की नोक झोंक तो जग प्रसिद्ध है। पाठक साहब द्वारा कहानी को प्रदर्शित करने का अंदाज अपने आप में अनोखा है। जहाँ इस उपन्यास में और अधिक कहानी होने की कमी खली वही बन्दर और सुनील ने इस कमी को पूरा कर दिखाया। दोस्तों मुझे तो यह उपन्यास पढ़ कर बहुत मजा आया और चटकारे ले ले कर इसको मैंने पढ़ा है। जहाँ तक सामाजिक बिंदु की बात करूँ तो मुझे इसमें कुछ ऐसा नज़र नहीं आया। लेकिन सुनील का एक चोरी जैसी गैरकानूनी घटना में बन्दर का साथ देना सही नहीं लगा। पर बाद में सुनील ने जिस प्रकार से रहस्य को हल किया और कातिल को गिरफ्तार कराया वह भी काबिलेतारीफ था। 

आशा करता हूँ की जब आप इस कहानी को पढेंगे तो आप को भी मजा आएगा।

विनीत 
राजीव रोशन

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