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काली हवेली - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक






10 दिसम्बर २०१२,

मैं राहु के घर पहुंचा। उसने फ़ोन करके बुलाया था। बोल रहा था की कोई महत्वपूर्ण काम है। मैंने उसके घर के दरवाजे की घंटी बजाई। अन्दर कहीं  घंटी बजने की आवाज सुनाई दी। अन्दर से महिला के पैरों की आहट मेरी ओर बढ़ रही थी। कुण्डी खोलने की आवाज आई और दरवाजा एक तरफ को खुलता गया। मैंने देखा आंटी खड़ी थी। उन्होंने नयी साड़ी पहनी हुई थी।
मैंने आंटी को देखा और बोल पड़ा " नमस्ते आंटी"।
आंटी भी बोली " नमस्ते बेटा, आओ, अन्दर आओ। सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। सभी राहु के कमरे में हैं।"
मैंने उन्हें कहा "ओके, आंटी। वैसे आप कहाँ जा रही है आंटी ? आपने तो बिलकुल नए कपडे पहने हुए हैं । क्या अंकल के साथ डिनर का प्लान है क्या ?"
आंटी बोली " अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, तुम जाओ।"
मैंने मन ही मन में सोचा, यार ये सब एक साथ कैसे हैं। जरूर कोई बात है। जब भी राहु, केतु और शनि इकट्ठे होते हैं तो कुछ न कुछ हंगामा जरूर करते हैं। पीछे "दिवाली की रात" तो बड़ी मुश्किल से बचा था मैं इनसे। अब क्या गुल खिलाया है इन्होने। मैंने धीरे से राहु के कमरे के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा और घुमाना शुरू किया। हलके हलके खुलते दरवाजे से ऐसा लगता था की अन्दर अँधेरा है। मैंने जब पूरा दरवाजा खोल दिया। तीनो को आवाज़ देता हुआ मैं अन्दर घुसा। अचानक ही कमरे की लाइट जल गयी और एक गुब्बारा फुट गया और उसके अन्दर से निकलते रंग-बिरंगे सितारे मेरे ऊपर गिरने लगे। और आवाज आने लगी " हैप्पी बर्थडे टू यू", " हैप्पी बर्थडे टू यू", " हैप्पी बर्थडे टू यू"। मैंने देखा आंटी, अंकल, राहु, केतु, शनि पांचो वहां मौजूद थे। उनके आगे एक "केक" रखा था जिसपर एक मोमबत्ती लगा हुआ था। यह एक अलग ही प्रकार की मोमबत्ती थी। मोमबत्ती को अक्षर का आकार दिया हुआ था और लिखा था २४। मैं सभी को देख कर मुस्कराया और मुझे आश्चर्य भी हुआ की इन तीनो कमीनों को मेरा जन्मदिन याद था। लंगोटिया यारों के होने का यही तो फायदा होता है। आंटी ने मोमबत्ती जलाई, मैंने फूंक मारा। सभी ने तालियाँ बजा कर जन्मदिन की बधाई दी। मैंने छोटा सा केक काटा और उसमे से थोडा थोडा सब को खिलाया। फिर हमारा उत्सव शुरू हो गया। आंटी और अंकल किचन में चले गए। उन्होंने खाना बनाया। हमने बाते की, फिर डांस किया । हम लोग बहुत नाचे।
आंटी ने आकर बताया " हम दोनों ने खाना खा लिया है, तुम लोगों को जब भूख लगे तो खा लेना। अब म्यूजिक इतना तेज़ मत बजाना, हम दोनों सोने जा रहे हैं।"
हम सभी ने एक ही स्वर में बोल " ओके"।

आंटी चली गयी तो शनि ने बैग उठाया और उसमे से एक "ब्लेनडर्स प्राइड" की बोतल निकली।

मेरा मुह खुला का खुला रह गया। मैं चिल्ला उठा " अबे शनि ये सब क्या है"।

तीनो ने कहा "श्ह्ह्ह्ह, धीरे बोल"।

शनि ने चार गिलास रखे और हम चारों ने बातें करनी शुरू कर दी। 

राहु ने मेरे से पूछा"अबे यार, टू क्या पढ़ रहा है आजकल।"
मैंने कहा " मैं तो "रेड ब्लड साड़ी " पढ़ रहा हूँ, अशोक बंकर जी की"
केतु बोला" यार मैं तो सुनील सीरीज में "स्टॉप प्रेस" पढना शुरू किया है।"
राहु बोला " मैं तो "एक ही रास्ता" थ्रिलर पढ़ रहा हूँ।"
मैं बीच में बोल पड़ा " यार तुम लोग न पाठक साहब के उपन्यास पढ़ रहे हो और मैं ही हूँ जो उनको नहीं पढ़ रहा हूँ। यार, शनि तु क्या पढ़ रहा है?"
शनि बोला " मैंने  "काली हवेली" आज ख़त्म की है।"

मैंने बोला" यार वही सुनील वाली "काली हवेली" न जिसमे पाठक साहब ने यह इंस्ट्रक्शन भी दिया है की इसे रात को न पढ़े।"

शनि बोला " हाँ, वही वाली, मजा आ गया यार पढ़ के। पाठक साहब ने क्या लिखा है यार। ऐसा उपन्यास सिर्फ पाठक साहब ही लिख सकते हैं।"

राहु बोल पड़ा "अच्छा, तो थोडा सा बता न इस नोवेल के बारे में।"
केतु भी बोल पड़ा " हाँ, यार थोडा सा बताना।"
मुझे भी मजबूरन उनका साथ देना पड़ा " थोडा सा सारांश ही बता दे यार इस नोवेल का"

शनि ने कहा " ओके। यार, मैं बताता हूँ।"

शनि ने बोलना शुरू किया " यह कहानी है देवगाम गाँव की, जो राजनगर से ३० मील दूर स्थित समुद्र के किनारे बसा एक मछुआरों का गाँव है। मुख्या रूप से यहाँ के बासिन्दे मछली पालन करके ही अपनी आजीविका कमाते हैं। गाँव के तट से कुछ दुरी पर एक टापू सा बना हुआ जिस पर एक हवेली खड़ी है। लगभग ४०० वर्ष पुरानी यह हवेली, यहाँ मौसम की मार झेलते हुए इसके पत्थर काले हो गए हैं। इसलिए इस हवेली को अब काली हवेली कहा जाने लगा है।
चटर्जी एंड चटर्जी फर्म के मालिक, चटर्जी के अनुरोध पर सुनील को देवगाम जाना हुआ। देवगाम जाकर उसे काली हवेली में ठाकुर साहब से मिलना था।  सुनील जिस दिन देवगाम की तरफ निकलता है उस दिन रास्ते में उसे भारी बारिश का सामना करना पड़ा। उसे शाम ५ बजे तक पहुंचना था पर वह ९ बजे के करीब बड़ी मुश्किल से देवगाम पहुंचा। देवगाम के हिन्दुस्तान होटल में उसने कमरा लेकर रात गुजारने की कोशिश की तो वहां के मालिक ने उसे कमरा मुहैया नहीं कराया। बल्कि उसे बाकायदा देवगाम से जाने के रास्ता दिखने की कोशिश की, और सुनील को ऐसा लगा की वे लोग नहीं चाहते हैं की वह देवगाम में रुके। लेकिन सुनील भी जिद पकड़ लेता है और समुद्र के किनारे की तरफ निकलता है। देवगाम के मछली फैक्ट्री के मालिक माईकल उसकी सहायता करता है। माईकल सुनील को एक नाव देता है जिसका प्रयोग करते हुए वह हवेली की तरफ बढ़ता है। लेकिन पानी में छुपे नुकीले पत्थरों को वह देख नहीं पाता और उसकी नाव के साथ दुर्घटना हो जाती है। सुनील के सिर में चोट लगता है और वह मूर्छित हो जाता है। जब सुनील की मूर्छा खुलती है तो वह खुद को टापू की रेत पर पाता है।

मैं बोला "मतलब यार तू ये कहना चाहता है की सुनील के चेतना खोई लेकिन उसे पता ही नहीं चला की समुद्र में पत्थर से टकराने के बाद टापू पर कैसे पहुंचा, कहीं कोई भूत तो नहीं आ गया था।"

शनि बोल" देख भाई मैं अभी इसके बारे में कुछ नहीं बता सकता। खुद पढना फिर पता चल जाएगा।"

शनि ने फिर से "काली हवेली" की कहानी को आगे बढाया  
वह हवेली के विशाल दरवाजे पर जा कर घंटी बजाता है, जिसकी सूरत में एक नौजवान और एक नौकर लालटेन लेकर बाहर आते हैं। सुनील उसे अपना परिचय देता है। सुनील को जो परिचय दोनों से प्राप्त है उसके अनुसार, नौजावान का नाम जैपाल है जो कि ठाकुर साहब का भतीजा है और नौकर का नाम भूपत है। सुनील ठाकुर साहब से मिलता है और उस काम के बारे में पूछता है जिसके लिए उसे बुलाया गया है।"

शनि चुप हो जाता है.....

"अबे आगे तो बोल...., मुह बंद करके बैठ गया, गाँधी जी का बन्दर।" राहु बोला ।

शनि बोला " यार थोडा सांस तो लेने दे, हमेशा जान खाता रहता है।"

शनि ने फिर बोलना शुरू किया " ठाकुर साहब ने बताया की कुछ दिनों पहले उसकी हवेली में विक्रम सिंह आये थे जो पेशे से चित्रकार थे। लेकिन जिस दिन आये थे, उसके अगले दिन से पता नहीं कहाँ लापता हो गए थे। यही चिंता ठाकुर साहब की थी की वो लड़का विक्रम सिंह गया तो गया कहाँ। ठाकुर साहब चाहते थे की सुनील विक्रम सिंह की तलाश करे।
        विक्रम सिंह ठाकुर साहब के दूर के मित्र के पुत्र थे। ठाकुर साहब को अच्छे अच्छे और प्रसिद्द चित्र इकट्ठे करने का बहुत शौक था। उन्होंने अपने गैलरी में १०० से अधिक चित्रों का संग्रहण किया था। जिनमे मशहूर चित्रकारों की कलाकृतियाँ थी। विक्रम सिंह उन्ही कलाकृतियों को देखने आये थे। पर विक्रम सिंह के आने के आगले दिन से विक्रम सिंह गायब थे। विक्रम सिंह हवेली की एक कार ले कर गए थे, वह कार राजनगर में निर्जन स्थान पर  पायी गयी थी। इसी दिशा में सुनील जैपाल से और भूपत से पूछताछ करता है जिसमे दोनों सुनील को बताते हैं की रात को इस हवेली में भूतों का बसेरा होता है। वे बताते हैं की रात में यहाँ अजीबोगरीब प्राणी जैसे की एक बार जैपाल ने एक लंगूर को देखा जो झट एक लंगूर में बदल गया और फिर उसकी आँखे तो अंगारे जैसी थी। जैपाल बताता है एक बार  उसने तस्वीर से निकलते हुए जीवित चित्र को देखा था। जैपाल ने यह भी बताया की उसने मीनार में एक रौशनी चमकती हुई देखि है।  सुनील भी जब उस रात को रुकता है तो उसे इस बात का अहसास होता है। सुनील के साथ उसी रात ऐसी दुर्घटना हो जाती है जिसमे वह मरते मरते बचता है जिसमे उसको उस लंगूर के दर्शन भी हो जाते हैं। अगले दिन सुनील ठाकुर साहब की गैलरी देखता है। जिसमे उसे १०४ कलाकृतियाँ नज़र आती हैं। उसके बाद सुनील राजनगर वापिस जाता है जहाँ वह रमाकांत को इस मुद्दे में सहायता करने के लिए कहता है। सुनील रमाकांत को कई काम बताता है जिसमे दिनकर को काली हवेली में नौकर बनाकर भेजता है और जौहरी को हिंदुस्तान होटल में जाकर रहने के लिए कहता है......"

मैं बोल पड़ा " बस, भाई बस, इतना काफी है। अब हम खुद पढेंगे। तु मजा मत खराब कर। तूने पढ़ लिया है न तो मुझे दे दियो, मैं पढूंगा उसे।"

राहु बोला" लेकिन भाई, तुझे यह मिली कहाँ से। लाइब्रेरी से?"
शनि बोला " नहीं भाई, एक दोस्त के पास थी। उससे मंगवाई थी। लाइब्रेरी की कॉपी तो किसी और के पास बुक थी।"
मैं बोला " यार, आज तो मजा आ गया। मैं अब किसी भी तरीके से इस नोवेल को खरीदूंगा। पढ़ तो लूँगा मैं कल ही लेकिन यह कलेक्शन में रखने की चीज़ है"।

शनि बोला " हाँ भाई, कलेक्शन में रखने की चीज़ तो है ही, क्यूंकि इसमें यह इंस्ट्रक्शन भी है की "इसे रात में ना पढ़ें"। वैसे तो मैंने इसे रात में ही पढ़ा है। डरावना तो बहुत है पर पढ़ लिया भाई । पूछ मत मेरी क्या दुर्दशा हो रही थी जब मैं रात के एक बजे तक लगा पड़ा था इससे।"

केतु बोला " अच्छा! तब तो इसे जरूर पढना पड़ेगा।"

मैं बोला " देखा। पाठक साहब के किताब के बारे में सुनने के चक्कर में हमने, गिलास में हाथ भी नहीं लगाया। शनि यार बस यही पैक रहने दे बाकी कभी और पियेंगे। "

सब ने स्वीकृति प्रदान की । हमने वो गिलास उठाया, चियर्स बोला और गटक गए। पता नहीं सब को नींद आई की नहीं पर मुझे नींद नहीं आई। सपने में काली हवेली ही दिखाई दे रहे थे और उसके भूत। जिन भूतों ने सुनील को भी चक्कर में डाल दिया था।

विश्लेषण:-

"काली हवेली"

काली हवेली पाठक साहब का द्वारा लिखित सुनील सीरीज के उत्कृष्ट उपन्यासों में से एक है। अमूमन तो पाठक साहब द्वारा लिखित सुनील सीरीज के सभी उपन्यास अतिउत्तम है। पाठक साहब ने इस उपन्यास में एक ऐसे अन्धविश्वास की घटना का सृजन किया है जो मुख्यतः हम सभी में कभी न कभी होता ही है। "भूत"अगर आप इस अन्धविश्वास को अभी उतना महत्व नहीं देते तो इसका मतलब यह मत समझिएगा की आपने इससे पहले कभी दिया नहीं होगा। जरूर दिया होगा। बचपन में सबके माता-पिता इस हथियार का इस्तेमाल डराने के लिए करते हैं। मैं भी भूत को नहीं मानता लेकिन इस उपन्यास को जब पढ़ा तो बीच में ऐसा लगा की कहीं सच में पाठक साहब ने कुछ अलौकिक सृजन तो नहीं कर दिया। उपन्यास का प्रारंभ तो इतना शानदार है की क्या कहूँ। मुसलाधार बारिश और सुनील बीच रास्ते में फंसा हुआ हो। ऐसा बहुत कम होता है। जैपाल द्वारा सुनील को डराना और फिर रात को लंगूर का आतंक और छत से पत्थर का गिरना। ये कथन ऐसे थे की आपकी साँसे रुक सी जाए।

उपन्यास का प्लाट बहुत ही सीमित है, तो वही अंत जानदार-शानदार और अविश्वसनीय है। जैपाल और भूपत का किरदार शशक्त है। इस उपन्यास में सुनील को पूर्ण रूप से रमाकांत पर निर्भर रहना पड़ा। पाठक साहब ने सुनील को आरम्भ में दिखा कर बीच में गायब कर दिया और आगे कर दिया दिनकर और जौहरी को। इस उपन्यास में इन दो किरदारों का बहुत ही अधिक महत्व है। इन दो किरदारों का सही इस्तेमाल किया है पाठक साहब ने। पूरी कहानी एक ऐसे व्यक्ति को खोजने में दिखा दी जाती है, जिसके लिए यह संशय होता है की वह खुद गायब हो गया है या किसी ने गायब कर दिया है। बिना किसी तथ्य के सहारे सुनील सिर्फ अपनी दिल की मान कर इस दिशा में कार्य शुरू करता है। वैसे तो सुनील के लिए यह फेमस है की वह "तुक्केबाजी" से आगे की केस की तहकीकात करता है। यहाँ तक की जौहरी और दिनकर से भी उसे कोई कारामद जानकारी प्राप्त नहीं होती। प्लाट छोटा होने के कारण सुनील की कमी महसूस भी नहीं होती ।

लेकिन वो पाठक जिन्होंने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है उनके लिए कुछ ऐसे बिंदु है जिनके जिक्र से उनके अन्दर बैठा पढ़ाकू इंसान इसे जरूर पढना चाहेगा....

१) विक्रम सिंह अचानक कहाँ गायब हो गया था?
२) सुनील को समुद्र में से किसने बचाया था?
३) सुनील को इतना बड़ा लंगूर कैसे दिखाई दिया था हवेली में, क्या वह बन्दर सच था या भूत?
४) सुनील के ऊपर जानलेवा हमला क्यूँकर हुआ और कैसे?
५) रात में मीनार में जो चीज चमचमाती है वह सच्चाई है या अलौकिक चीज?
६) क्या जौहरी और दिनकर की सहायता से सुनील विक्रम सिंह को खोज पायेगा?
७) क्या सुनील भूत के रहस्य का खुलाशा कर पायेगा। 

पाठक साहब ने "भूत" जैसे अन्धविश्वास का प्रयोग करके इस शानदार नोवेल को लिखा है और हम पाठकों पर कृपादृष्टि दिखाई है। समाज में इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए कार्य होते रहने चाहिए। पाठक साहब समाज के कुछ रुढ़िवादी नीतियों और अंधविश्वासों को तोड़ने में सजग रहते हैं। उन्होंने अपने उपन्यासों में समाज के नैतिक और अनैतिक पहलुओं को कई बार दिखाया है।

हम आशा करते हैं की पाठक साहब ऐसे ही लिखते रहें और हम उन्हें पढ़ते रहें......

विनीत 
राजीव रोशन 



Note:- सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों से सम्बंधित और कई ख़बरों, गॉसिप  के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें  

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Comments

  1. बेहतरीन समीक्षा लिखी है राजीव जी आपने । बहुत सुंदर । प्रशंसनीय । 'काली हवेली' पाठक साहब का कदरन कम मशहूर उपन्यास है । लेकिन इसे पढ़ना एक अलग ही अनुभव है । यह उपन्यास पाठक को रहस्य-रोमांच की एक अद्भुत दुनिया में ले जाता है जिससे वह तभी बाहर आता है जब उपन्यास पूरा हो जाता है ।

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  2. शुक्रिया माथुर सर....

    "काली हवेली" पढने का अपना ही मजा है और उसका विश्लेषण कोई भी पाठक कर सकता है।
    इतने शानदार तथ्य प्रस्तुत किया है पाठक साहब ने इसमें जिनका खुलाशा अंत में ही होता है।

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