Skip to main content

Plotter Vs Pantser - Which are you?

Plotter Vs Pantser

दोस्तों, कुछ दिनों पहले इन्टरनेट की दुनिया को जब मैं छान रहा था (पुरानी आदत है) तो एक ऐसी जानकारी मेरे हाथ लगी जिसके लिए मुझे लगा की आप सभी से शेयर करूँ। आपने कई बार ऐसी पुस्तकें देखी होंगी जिनके अंत में लेखक ने अपने उस पुस्तक के लिए किये गए रिसर्च वर्क के लिए दूसरी पुस्तकों और संस्थाओं को क्रेडिट दिया होता है। वहीँ कुछ लेखक ऐसे भी होते हैं कि दिमाग में आईडिया आया और लिखने बैठ गए। लेखकों को उनके लिखने के तरीके से दो भागों में बांटा जाता है – Plotters और Pantsers। आइये इन दोनों बिन्दुओं पर बारी-बारी से बात करते हैं।



Plotters – इस श्रेणी के लेखक वो होते हैं जो पहले नावेल को प्लान करते हैं फिर लिखते हैं। ऐसे लेखक समय से आगे जाकर उपन्यास को लिखने की योजनायें बनाते हैं, वो परत-दर-परत घटनाओं की योजना बनाते हैं कि आगे क्या होगा। ऐसे लेखक पहले ही अपने दिमाग में या पेपर पर घटनाओं को श्रेणीबद्ध कर लेते हैं फिर उसके बाद कहानी को लिखना शुरू करते हैं। जिस प्रकार से पुतली का खेल दिखाने वाला कहानी को कदम-दर-कदम प्रस्तुत करता है उसी तरह से ये लेखक भी करते हैं और यह तरीका इनके लिए सुविधाजनक साबित होता है। वो कहानी का अध्याय-दर-अध्याय और दृश्य-दर-दृश्य का खाका खींचते हैं जिससे इन्हें कहानी को लिखने में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे लेखक अपनी कहानी लिखने के दौरान कभी अटकते नहीं हैं क्यूंकि उनको पता होता है कि आगे क्या होना है। इस तरह से योजना बना कर लिखने से लेखन की रफ़्तार अमूमन तेज़ हो जाती है।  लेकिन इस प्रकार के लेखकों यह समस्या भी होती है की अगर उन्होंने किसी घटना में बदलाव किया तो उन्हें आगे की योजना में भी बदलाव करना पड़ता है। जब लेखक कहानी के अन्दर घुसता है और उसकी डिटेल में जाता है तो कभी-कभार फंस जाता है और तब तक नहीं निकल पाता जब तक वह इसका हल न निकाल ले।

Pantsers – इस श्रेणी के लेखकों के दिमाग में जब कोई कहानी का आईडिया आता है तो वह अपने कमीज़ की बाजुओं को समेटते हैं और बैठ जाते हैं सीधा लिखने के लिए। उनके दिमाग में जो कुछ भी इस कहानी से सम्बंधित होता है वो उसे लिखते चले जाते हैं। वो लिखे गए कहानी के पिछली घटनाओं को याद रखते हैं और कहानी के अगले हिस्से को गढ़ते जाते हैं। ऐसी श्रेणी के लेखक भले ही जानते हों की कहानी कैसे लिखी जाती और किरदारों को किस तरह गढ़ा जाता है लेकिन वे इस बंधन से बंधे नहीं होते। वो अपने दिल और दिमाग की सुनते हैं और उसी तरह से कहानी को आगे बढाते जाते हैं जैसा उनके दिमाग में छपता जाता है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता की कहानी का अंत क्या होगा वे तो बस लिखते जाते हैं और आगे जाकर किसी बिंदु पर कहानी को अंत देते हैं। मतलब ऐसे लेखक, हमारी दादी-नानी की तरह होते हैं जिनको कहानी याद रहती थी और उसे सुना कर सुला दिया करती थी। ऐसे लेखकों को कहानी को किसी भी दिशा में ले जाने की आज़ादी होती है। उन्हें किरदारों से कोई फर्क नहीं पड़ता है, वे क्षण में ही किसी किरदार को मार सकते हैं और क्षण में ही किसी नये किरदार को कहानी में उतार लेते हैं। अगर उन्हें लगता है कि कहानी सही दिशा में नहीं जा रही है तो वह उसे बदल सकते हैं। वैसे इस श्रेणी के लेखक थोडा बहुत plotters भी होते हैं। अगर गौर से हम दुनिया को देखें तो सभी इन्सान Pantsers ही होते हैं ये बात और है कि कुछ संघर्ष, मेहनत और लगन से plotters की दुनिया में कदम रख लेते हैं। लेकिन इस श्रेणी के लेखकों की भी समस्याएं हैं जैसे कि अगर आपके पास प्लान नहीं है या थोडा बहुत प्लान है तो आप कहीं रुक सकते हैं। रुकने से मतलब है की आपकी कहानी आगे बढ़ नहीं पाती है। अधिकतर लेखक, ज्यादातर नए उदयमान लेखक, ऐसे कंडीशन पर पहुँचने के बाद इस कहानी को लिखना छोड़ कर नयी कहानी पर काम करना शुरू कर देते हैं।

दोस्तों, विदेशों में लेखकों को इन दो श्रेणियों में भी बांटा जाता है। पब्लिशिंग कंपनियां और एजेंट्स इन बातों का भी ध्यान रखते हैं की लेखक किस श्रेणी से हैं क्यूंकि Pantsers श्रेणी के लेखकों द्वारा लिखी किताब में कई लूपहोल होते हैं वहीँ plotters श्रेणी के लेखकों की कहानियां के हर हिस्से को अच्छी तरह से एक दुसरे के साथ तालमेल बिठा कर लिखा गया होता है।

वैसे मुझे लगता है कि सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी Plotters और Pantsers श्रेणी के मिश्रित लेखक हैं। क्यूंकि अगर आप विमल सीरीज को गौर से देखें तो पता चलता उन्हें विमल की अगली कहानी लिखने के लिए पीछे की सभी कहानी को याद रखना पड़ता है और घटनाओं को इस तरह से योजनाबद्ध रूप से आगे बढ़ाना होता है ताकि कहीं पिछली घटानाओं से मेल न खा जाएँ और कोई लूप-होल न बन जाए। वहीँ वे अपने अधिकतर उपन्यासों के लिए कहते हैं की वो कहानी का अंत पहले ही सोच लेते हैं फिर कहानी को शुरू करते हैं।

मैंने कभी ओम प्रकाश शर्मा जी के बारे में सुना था की अगर उन्हें उपन्यास का शीर्षक दे दिया जाता था तो वो उसी शीर्षक पर एक-दो दिन में कहानी तैयार करके प्रकाशक के हाथ में थमा देते थे। वैसे मुझे शर्मा जी के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है इसलिए इससे अधिक जानकारी देना संभव नहीं है।

वहीँ आप भारत के फिक्शन लेखक आश्विन शांघी को लीजिये जिन्होंने – ‘द रोजबिल लाइन’, ‘कृष्णा की’ और ‘‘चाणक्य चैंट’ जैसी हिस्टोरिकल-फिक्शन पुस्तकों की रचना की है। आप सहज और आसानी से पा सकते हैं की उन्होंने इस पुस्तक को रिसर्च और पूरी तरह से योजना-बद्ध तरीके से लिखा है।

मेरा मानना है की पाठकों को इस लेख और इन दो श्रेणियों से कोई फायदा नहीं होगा लेकिन अगर कोई पाठक अपना हाथ लेखन के क्षेत्र में डालता है तो उसके लिए यह जरूर ही लाभदायक सिद्ध होगा। मेरा यह भी मानना है कि कोई लेखक सबसे पहले पाठक ही होता है, आगे चलकर ही वह एक लेखक बनता है।


तब तक लिए अपने इस खादिम को दीजिये इज़ाजत ताकि कुछ नया और कुछ अनोखा आप सभी के सामने फिर से प्रस्तुत कर सकूँ।

आभार

राजीव रोशन 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया गया थ

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया और बैंक की

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को कहा। और व