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A Psychological study of Book Reading

A Psychological study of Book Reading




क्या आपने किसी पुस्तक को समाप्त किया है? मेरा मतलब है, दिल से समाप्त किया है? फ्रंट कवर से शुरू करते हुए बेक कवर तक। मेरे हिसाब से तो सभी एसएमपियन पाठक साहब की पुस्तकों को दिल से ही पढ़ते हैं। आप गहरी सांस लेते हैं, बहुत ही गहरी जो सीधे आपके फेफड़ों की गहराई से आपकी नलिका तक पहुँचती है और आप अपने दोनों हाथों में किताब को लेकर, नावेल के फ्रंट कवर पर गर्दन झुकाए बैठ जाते हैं। पहले तो आप फ्रंट कवर को बहुत ही ललचाई हुई दृष्टि से देखते हैं जैसे की जलेबी खाने वाला जलेबी को मुहं में लेने से पहले ही स्वाद का अहसास पा लेता है। फ्रंट कवर पर मौजूद चित्र के बाद आपका ध्यान उसके शीर्षक पर जाता है जो आपको कहानी का २०% हिस्सा का संक्षेप में ही सुना जाता है। फिर आप लेखकीय में डूबते हैं और डूब डूब कर उसे पढ़ते हैं। फिर बारी आती है कहानी की, जो की किसी पुस्तक की मुख्य आत्मा है। फिर अंत में आप बेक कवर पर पहुँच कर पाठक साहब की शानदार तस्वीर का दीदार करते हैं और पुस्तक बंद कर देते हैं। लेकिन आपके हाथ से पुस्तक छुटता नहीं है। आप किन्हीं विचारों में गुम हो जाते हैं। आप कई प्रकार की भावनाओं से सराबोर हो उठते हैं। आप महसूस करते हैं आपने बहुत कुछ पा लिया हो और फिर खो दिया हो। आप ऐसे अनुभव को पाते हैं जो किसी गहराई से उठ कर आपके सामने आई हो। आप अपने आपको एक अदृश्य दुनिया में, किसी कल्पनाओं के संसार में खुद को गोता लगाते हुए महसूस करते हैं।

पाठक साहब की नयी पुस्तक पढने का अहसास कुछ ऐसे प्यार की तरह है जो आप किसी अजनबी से कर बैठते हैं जिसको आप कभी दुबारा नहीं देख पायेंगे। आपको दुःख का अहसास होता है की आप उससे कभी मिल नहीं पायेंगे, उसे कभी देख नहीं पायेंगे। आप समझते हैं की आपका रिश्ता उसके साथ खत्म हो गया लेकिन उसी वक़्त आप अपने आप को संतुष्ट पाते हैं। आपको ऐसा लगता है की आपने बहुत ही शानदार अनुभव को ग्रहण किया है, आपका दिल जो कई वर्षों से भूखा था आज उसने अपनी भूख को मिटा लिया है। आप महसूस करते हैं की आपने भूख तो मिटा ली है लेकिन सिर्फ कुछ देर के लिए।

कुछ पाठक प्रशंसकों के साथ जब मेरी पिछले दिनों मुलाक़ात हुई तो उन्होंने मुझे एक ऐसी बात बताई जिसके बारे में अनिभिज्ञ था। वैसे मैं अभी भी अनिभिज्ञ हूँ लेकिन जो उनसे सुना, उसी में से कुछ आपसे साझा कर रहा हूँ। कुछ एसएमपियन ने मुझे बताया की पहले कभी पैन-फ्रेंड का ट्रेंड हुआ करता था। पेन-फ्रेंड कुछ ऐसे मित्र होते थे जो एक दुसरे से कभी मुलाक़ात नहीं करते थे लेकिन पत्रों द्वारा वो एक दुसरे के संपर्क में रहते थे। वे एक दुसरे से कभी अपनी व्यक्तिगत सुचानाएं नहीं बांटते थे लेकिन उनके पत्राचार में मानवीय भावनाओं का बहुत ही समावेश होता था। ऐसे ही एक एसएमपियन ने मुझे बताया की एक दौर में तो उनके पास कई पेन फ्रेंड हो गए थे। इनमे कई महिलाए थी जिनसे पेन-फ्रेंड का बहुत ही जोर-शोर से रिश्ता चलता था। यह एक प्रकार से दो पढने लिखने वालों के बीच का रिश्ता था। अगर आपने टॉम हैंक्स अभिनीत होलीवूड  फिल्म ‘यू हेव गोट मेल” देखा हो तो आपको एहसास हो कि कुछ ऐसा ही पत्रों के माध्यम से होता था। लेकिन अब इस प्रकार की प्रजातियों का खात्मा हो चूका है। क्यूंकि अब तकनीक ने इन सभी बातों पर अपना अधिकार जमा कर इन्हें पिछड़ा श्रेणी में डाल दिया है। अब जो लोग पैन-फ्रेंड के फेन थे वो अब टेबलेट, मोबाइल और लैपटॉप के जरिये इन्टरनेट के द्वारा फेसबुक जैसी अभाशी दुनिया में वही काम अंजाम दे रहे हैं। लेकिन यह सूचनाओं का आदान-प्रदान अब एक से एक तक नहीं बल्कि बहुल से बहुल तक हो गया है।

एक अच्छा पाठक या एक अच्छा रीडर एक साधारण मनुष्य से कहीं अधिक तेज़, चालाक, बुद्धिमान, सवेंदनशील और कौशलपूर्ण होता है। एक शोध के अनुसार जो रीडर फिक्शन पढ़ते हैं वे दुनिया में मौजूद हर प्रकार की भावनाओं को काबू में करने और उन्हें समझने में सक्षम होते हैं। ऐसे रीडर “मस्तिष्क के सिद्धांत” में सिद्धहस्त होते हैं अर्थात उनके पास ख्यालों, विचारों, धारणा, विश्वास, ईमान, श्रद्धा पर अडिग रहने की क्षमता होती है, वहीँ वे अपने हित के बजाय दूसरों के हित के बारे में अधिक सोचते हैं। ऐसे रीडर दुसरे के विचारों को खारिज किये गए बगैर सुनते हैं लेकिन अपने विचार से भी नहीं हिलते हैं।

अभी हाल ही में मैं अपने कुछ मित्रों से बात कर रहा था की मुझे किस प्रकार की लड़की को हमसफ़र चुनना चाहिए। इस बात पर मेरे कई मित्रों ने बताया की ऐसी लड़की को अपना हमसफ़र बनाओ जो आपके पढने के शौक का सम्मान करती हो। सही भी है क्यूंकि मैं कई बार कई पाठकों के मुहं से सुना है कि उनके घर में अपनी पत्नी के साथ इस बात को लेकर बहस हो जाती है कि आप सोने से पहले उनको वक़्त देने के बजाय पुस्तक में घुस जाते हैं। वैसे तो आम भारतीय घरों ऐसे नज़ारे आम होते हैं लेकिन मेरे पिताजी ने मुझे एक बात सिखाया है कि एक कुआं खोदने के लिए पहले थोड़ी-थोड़ी मिट्टी ही निकाली जाती है और बाद में धीरे-धीरे मिट्टी निकालने की मात्रा बढ़ जाती है जिससे कुआं पूरा खुद जाता है। आम मानव जीवन में ये छोटे-छोटे झगडे एक बड़े झगड़े तक पहुँचने की जड़ साबित होते हैं। आम भारतीय घरों में विवाह का प्रस्ताव लाया जाता है तो लड़का-लड़की एक दुसरे यह कभी नहीं पूछते की क्या उनको पढने का शौक है क्यूंकि उनके अनुसार यह तो मामूली बात है लेकिन एक पाठक प्रशंसक के लिए यह बहुत बड़ी बात है। मेरे कई मित्र बताते हैं की उन्हें घर पर पुस्तक पढने के लिए रजाई में घुस कर मोबाइल के टोर्च की लाइट का इस्तेमाल करना पड़ता था। एक मित्र बताते हैं की जब उनकी पत्नी सो जाया करती थी तब वह हलकी रौशनी में उपन्यास पढ़ा करते थे। अगर आप पुस्तकें पढ़ते हैं और आपने अपनी प्रेमिका, होने वाली पत्नी या पति को कभी भी पुस्तक लेकर पढ़ते हुए नहीं देखा है या कभी भी पुस्तकों के बारे में बात करते नहीं देखा है तो यकीनन आपको या तो खुद बदल जाना चाहिए अन्यथा कोई ऐसी जुगत करिए जिससे की वह बदल जाए। ऐसे बात के ऊपर मैं यह कहना चाहूँगा की आप अपने शौक से मिलते जुलते हमसफ़र को ही चुनिए जो आपके शौक का सम्मान करती हो।

यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है की एक पाठक एक बेहतर इंसान होता है। वह अपनी आँखों से दूसरों की जिन्दगी को अनुभव करता है। वह अपने शरीर को इस भौतिक संसार में छोड़ देता है और दुनिया को एक अलग ही नज़रिए से देखता है। ऐसे पाठकों ने सैंकड़ों आत्माओं और किरदारों को पढ़ा एवं जाना होता है। ऐसे पाठकों के पास इन सैंकड़ों किरदारों की बुद्धिमता का संकलन होता है। उन्होंने ऐसी चीजों को देखा होता है जिन्हें कोई दूसरा व्यक्ति आसानी से नहीं समझ सकता। ऐसे पाठकों ने ऐसी मौतें देखी होती हैं जिन्हें लोग कभी जान नहीं पाए और न ही जान पायेंगे। वे जानते हैं, उन्होंने सीखा है की एक औरत किस प्रकार की हो सकती हैं और एक पुरुष किस प्रकार का हो सकता है। वैसे ही वे जानते हैं की कैसे किसी पीडित किरदार को देखा जाए। वे जानते हैं की कैसे किसी किरदार की ख़ुशी में शामिल हुआ जाए। वे अपने उम्र से कहीं अधिक बुद्धिमान और संवेदनशील होते हैं।

एक शोध के अनुसार अगर कोई बच्चा अधिक से अधिक कहानियां पढता है तो उसका मानसिक विकास तेजी से होता है। तो अगर कोई सोचता है की उसका बच्चा सबसे तेज़ है तो इसमें उस बच्चे को महत्व ज्यादा मिलता है जो किताबें पढता है। ऐसे बच्चे ज्यादा बुद्धिमान, दयालु, जल्दी सीखने वाले और समझदार होते हैं। पंचतंत्र पुस्तक की रचना के पीछे का उद्दयेश ही बच्चों को कहानियों के माध्यम से हर प्रकार की शिक्षा देना था। आज भी पंचतंत्र भारत की सर्वाधिक पसंद की जाली वाली पुस्तकों में से एक है। मेरा मानना है कि अगर आप पाने बच्चों को एक पाठक की श्रेणी में लाना चाहते हैं तो उसे उस उम्र तक कहानिया पढ़ कर सुनाइये जब तक वह स्वयं पढने लायक नहीं हो जाता। इस उम्र के बच्चों को कहानियां सुनाने के लिए आपके पास ‘चम्पक’, ‘नंदन’, ‘पंचतंत्र’ और ‘द जंगल बुक’ होनी चाहिए और ये पुस्तकें आसानी से मिल जाती हैं। इन पुस्तकों की खास बात यह है की यह हर वर्ग को पसंद आती हैं और इन पुस्तकों की शिक्षाप्रद कहानियां सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि वयस्कों के लिए भी लाभदायक सिद्ध होती हैं। वहीँ जब बच्चा पढने लायक हो जाता है तो उसे कॉमिक्स और अलग फिक्शन पढने के लिए लाकर दीजिये, इन पुस्तकों से उनके अन्दर की कल्पना शीलता का विकास होता है जो उन्हें आगे एक अच्छा नागरिक बनने में सहायक सिद्ध होता है। एक शोध के अनुसार अधिकतर बच्चे अपने शब्दकोष में वृद्धि पढ़-पढ़ कर ही करते हैं न की विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा इस पर काम करती है। हम में से कई पाठक जो उर्दू के शब्दों के बारे में कुछ नहीं जानते थे आज पाठक साहब के उपन्यासों को पढ़कर हमने कई उर्दू और पंजाबी शब्दों को जान लिया है। क्या हमने कहीं इसकी शिक्षा ली, नहीं, हमने यह सब पाठक साहब के उपन्यासों से सीखा है।

आपको या आपके बच्चों को पुस्तकें इसलिए भी पढनी चाहिए क्यूंकि यह आपके किरदार को लचीला बनाता है। कहानी के केंद्रीय किरदार या नायक के प्रत्येक सबक, जीत और निर्णायक क्षण आपका हो जाता है। बच्चे नायक को अपना समझने लगते हैं और उसी के आदर्शों के अनुसार चलना शुरू करते हैं जैसे की हम सुनील, सुधीर और विमल के किरदार को अपने करीब समझते हैं। नायक के हर दर्द, दुःख और झूठ के जाल को आप अपना बना कर सहन करते हैं। आप एक जिन्दगी जीते हुए भी कई जिंदगियों को जीते हैं और प्रत्येक से कुछ न कुछ सीखते हैं। एक रीडर या एक पाठक कितना कुछ अपने आप में समेटता है इसकी कल्पना करना भी दूभर है।

पाठकों के बारे में एक खास बात जो गौर करने लायक है, वह है इनका एक अलग ही प्रकार का व्यवहार। देखिये अमूमन पाठक न तो प्रश्नों का जवाब देते हैं न ही कोई वक्तव्य लेकिन उनकी गहरी सोच और शानदार अलग ही तरह का तर्क सभी को चित कर जाता है। वे आपको अपने शब्दों, विचारों, स्मार्ट-टॉक और अंदाजे-बयाँ से प्रफुल्लित कर देते हैं। रीडर ज्यादा बुद्धिमान होते हैं क्यूंकि उनका शब्दकोष और स्मृति कौशल दुसरे व्यक्तियों के मुकाबले अधिक होता है। उनके पास, उन लोगों से अधिक क्षमता और ज्ञान होता है जो पाठक नहीं होते और वो आसानी से, चतुराई से, गहराई से किसी से भी संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

अगर आप एक पाठक हैं और तनहा हैं तो पुस्तकों के अलावा आपको अपनी प्रजाति के लोग कॉफ़ी शॉप में, पार्क में, मेट्रो में और बसों में मिलते पाए जायेंगे जिनसे मिलने के बाद आप स्वयं को पूर्ण समझेंगे। आप उन्हें देखेंगे की उनके बैग पुस्तकों से भरे हैं जिन्हें वह अपनी यात्राओं के दौरान बिलकुल आपकी तरह ही इस्तेमाल करते हैं। हर एसएमपियन में आपको यह गुण आसानी से नज़र आ जायेंगे।

मैं आपको कहना चाहूँगा की अगर आप किसी ऐसे इंसान से रिश्ता जोड़ते हैं जो एक पाठक हो तो मैं कहूँगा की आप एक इंसान से रिश्ता नहीं बल्कि सैंकड़ों आत्माओं से रिश्ता जोड़ते हैं।

नोट - दोस्तों यह मेरे द्वारा किया गया एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन है जिसमे हो सकता है की आपके और मेरे विचार न मिले। लेकिन यह मेरी कोशिश है की मैं बुक रीडिंग को प्रमोट करूँ और इसको बढ़ावा दूँ। हालांकि मुझे पता नहीं है कि मैं कितना सफल हो पाया हूँ इस लेख को आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत करने में और अपनी बात समझा पाने में लेकिन आशा है की सभी नहीं तो कुछ बातों पर तो आप मुझसे सहमत होंगे ही।

आभार

राजीव रोशन 

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