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एक ही अंजाम - A fast paced thriller from Sir Surender Mohan Pathak

एक ही अंजाम

(Spoiler Alert)


एक कॉर्पोरेट कंपनी के निजाम में कुर्सी के लिए दो समूहों का युद्ध ऐसे स्तर पर पहुँच जाता है की खून-खराबे तक नौबत आ जाती है। जब इस खून-खराबे में एक शख्स नाजायज ही फंस जाता है तो खुद को बचाने की उसकी कोशिश एक ऐसे सफ़र को जन्म देती है जो कदम-कदम पर खतरों से भरा रहता है।

अब दुसरे कोण से इसे देखते हैं, एक टीवी स्टूडियो में काम करने वाला शख्स जब अपनी शराब पीने की बुरी आदतों के कारण अपने परिवार को खो बैठता है। वह अपनी पत्नी से तलाक ले लेता है और अपनी छोटी सी प्यारी बच्ची को जिसे वह अपने दिल-ओ-जान से प्यार करता था उसे खो बैठता है। लेकिन कोई जुगत करके वह अपनी बेटी से फिर मिलता है और उसे मुंबई घुमाने के बहाने गोवा अपने दोस्त के कोठी पर ले जाता है जहाँ ऐसा हंगामाखेज सनसनीपूर्ण हादसा घटित होता है जिसमे वह इतनी बुरी तरह फंस जाता है की अपनी कई कोशिशों के बावजूद भी नहीं निकल पाता है। 



दोस्तों यह कहानी है सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित थ्रिलर उपन्यास “एक ही अंजाम” की। एक ही अंजाम की सबसे बड़ी खासियत है कॉर्पोरेट संसार में कुर्सी के लिए दो समूहों का एक दुसरे के खिलाफ हर हद से गुज़र जाना लेकिन इससे बड़ी खासियत जो सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने इस उपन्यास में दिखाई है वह है सरकार का कॉर्पोरेट राजनीती में हिस्सा लेता हुआ दिखाई देना। यह मुझे काल्पनिक लगता है लेकिन जिस समय की इस उपन्यास की रचना है उस समय मैं अपने दूध के दांत गिन भी नहीं पाता था इसलिए इस पर इस बात कि टिपण्णी करना की यह कल्पना है, कुछ अधिक नहीं बहुत बड़ी अतिश्योक्ति होगी।

जो शख्स इस हादसे में बिना मतलब के फंस जाता है और जो अपने परिवार को खो कर गोवा में अपने दोस्त की कोठी पर सनसनीखेज खून-खराबे का गवाह बनता है, उसका नाम अनिरुद्ध है। जब वह गोवा से वापिस आता है तो उसे एक क़त्ल के इलज़ाम में फ़साने की कोशिश की जाती है लेकिन जब वह इससे अपने आप को किनारा कर लेता है तो उसे खबर लगती है की उसके पास ऐसा कुछ है जो उसके पास नहीं होना चाहिए था। ऐसे में वह उस चीज़ को अपने साथ रखता है जिसके पीछे दोनों ही समूह सरकारी ताम झाम के साथ हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं।

दोस्तों मेरा मानना है की अति हर चीज की बुरी होती है। अनिरुद्ध ने जिस तरह से अपने परिवार से ज्यादा अपनी शराब को महत्व दिया, उसने उसके घर को उजाड़ कर रख दिया। यहाँ पाठक साहब यह सन्देश दे रहे हैं की इंसान को इतना भी व्यसन नहीं करना चाहिए की उसकी जिन्दगी उसका परिवार ही खराब हो जाए। हम देखते हैं की आये दिन कई ऐसी एक्सीडेंट की घटनाएं घटती हैं जिसमे चालाक या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति इस व्यसन में डूबा हुआ होता है। क्यूँ हमारी युवा पीढ़ी इस व्यसन की ओर धीरे-धीरे बढ़ रही है? यह बहुत बड़ा सवाल है लेकिन इसके जवाब को आसानी पा लेना बहुत मुश्किल काम है।

“एक ही अंजाम” एक शुद्ध थ्रिलर उपन्यास है जिसे पाठक साहब एडवेंचर से भी जोड़ देते हैं। अनिरुद्ध के पीछे एक पूरी फौज लग जाती है उससे उस चीज़ को हासिल करने के लिए जिसका उसके पास होना ही खतरनाक है। कहानी को कई हिस्सों में बांटा गया है। पहला हिस्सा कॉर्पोरेट जगत की राजनीती और एस्पिओनाज को दिखाता है तो दूसरा हिस्सा उस खून खराबे को दिखाता है जिसका ऊपर जिक्र है। वहीं बीच के हिस्से में अनिरुद्ध की कहानी है। तीसरे हिस्से में अनिरुद्ध को कॉर्पोरेट जगत की राजनीती से लड़ते हुए दिखाया गया है जिनके बीच वह घुन की तरह पिसा जा रहा है। चौथा हिस्सा मुंबई से नेपाल तक की अनिरुद्ध की रोमांचक यात्रा को प्रदर्शित करता है जिसमे उसकी बेटी और एक महिला साथी होती है जो दुसरे हिस्से के खून खराबे में बच जाती है।

इस कहानी में एक पिता का अपनी पुत्री के लिए अपार प्रेम सहज ही झलकता है और पाठक साहब ने इसे बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है। वहीँ एक तलाकशुदा पति का अपनी तलाकशुदा पत्नी के प्रति क्षोभ और घृणा की भावना शादीशुदा जीवन के कई कडवे अनुभवों को दर्शाती है।

इस उपन्यास में एक ख़ास बात और मैंने नोट किया वह था इस कहानी का आकर्षण “कावासाकी ग्रेफाईट रूलर रैकेट”। यही वह रैकेट था जो की अनिरुद्ध के अधिकार में था और जिसके लिए कॉर्पोरेट जगत के दोनों ही धुरंधर समूह बारी बारी से अनिरुद्ध के पीछे पड़े हुए थे। सन १९८५ में पहली बार इस रैकेट को बाज़ार में कावासाकी कंपनी द्वारा उतारा गया था। अब इस रैकेट का महत्व एक विंटेज कलेक्शन के रूप में आता है।

अब बात करते हैं कहानी के किरदारों की – अनिरुद्ध, उसकी प्यारी सी बेटी और सोनिया वाल्सन, ये तीन किरदार पुरे उपन्यास के केंद्र में हैं। वहीँ बारी-बारी से उन दो समूहों और एस्पिओनाज को भी बार-बार दिखाया जाता है जो शिवालिक ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज जैसी कॉर्पोरेट कंपनी पर अपना कब्ज़ा करना चाहती हैं। किरदार वास्तविकता के करीब नज़र आते हैं लेकिन कंपनी के निजाम पर कब्ज़ा पाने एक लिए एस्पिओनाज सेवाओं को इस्तेमाल में लाना थोडा अजीब लगता है।

मुझे लगता है की यह कहानी एक बार तो पठनीय है क्यूंकि इसमें रोमांच और थ्रिल का जो तड़का पाठक साहब ने भावनाओं के साथ पेश किया है वह बेहतरीन है।

आप इस पुस्तक को अपने मोबाइल पर डेली-हंट एप्लीकेशन डाउनलोड करके भी पढ़ सकते हैं। पुस्तक का लिंक नीचे दिया गया है-



आभार

राजीव रोशन 

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