Skip to main content

30 SMP Novels Presents – Social Issues – Paths to Crime

30 SMP Novels Presents – Social Issues – The Paths to Crime

A Sociological Study



लोग कहते हैं की क्राइम-फिक्शन उपन्यासों में आखिर होता क्या है – सिवाय खून-खराबा, सेक्स और अपराध के अलग-अलग रूपों के। मेरा कहना है की पता नहीं आप किस लेखक द्वारा लिखे क्राइम फिक्शन उपन्यासों को पढ़ते हैं, मैं तो सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखे क्राइम-फिक्शन उपन्यासों को पढता हूँ। सबसे पहले तो यह समझिये की क्राइम या अपराध हमारे समाज का अभिन्न अंग हैं। हम वर्षों से इस समस्या से जूझते हुए आ रहे हैं लेकिन कभी इस समस्या का समूल नाश नहीं कर सके। इसका सबसे कारण हम स्वयं हैं। हाँ, हम इंसान ही अपराध के उन्मोलक हैं यही कारण है की हम इसको समाप्त नहीं कर पाते हैं। अपराध हमारे समाज की वह सामाजिक समस्या है जिसे हम समाज से ऊपर राष्ट्रीय दृष्टि से देखते हैं। क्राइम-फिक्शन उपन्यासों में अपराध का होना और फिर उस अपराध के अपराधी को सजा मिलना ही क्राइम-फिक्शन उपन्यासों का मुख्य मकसद है। “क्राइम डज नॉट पे!” – यह वाक्य ही सभी क्राइम-फिक्शन उपन्यासों का मूल मंत्र है जिसे सभी लेखक अपने साथ लेकर चलते हैं। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी अपने उपन्यासों में इस मूल-मंत्र को हमेशा ध्यान रखते हैं। समाज में इंसान की मजबूरी उसे अपराध करने पर मजबूर करती है – ऐसा हम ही कहते हैं। जबकि मेरा मानना है की हम गलत कहते हैं। हमारे मन में छिपा शैतान जो अलग-अलग रूपों और कृत्यों द्वारा हमें और हमारे द्वारा शोषित इंसान को अपराध करने पर मजबूर करता है। किसी भी अपराध के पीछे इंसान का स्वार्थ ही छुपा होता है।

सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी जैसे लेखक अपने उपन्यासों में अपराध को रंग तो जरूर देते हैं क्यूंकि यह क्राइम-फिक्शन उपन्यासों का मूल-बिंदु होता है, लेकिन इसके साथ-साथ उनके उपन्यासों में सामाजिक बुराइयों का भी जिक्र होता है। पाठक साहब के उपन्यास एक आईने की तरह है जिसमे हर प्रकार की सामाजिक बुराइयों का जिक्र है जिससे अपराध का जन्म होता है।

आज हम बात करने वाले हैं सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखे ३० ऐसे उपन्यासों की जिसमें मुख्य रूप से सामाजिक समस्याओं को हाईलाइट किया गया है। ये ऐसे उपन्यास है जो आते तो अपराध कथा की श्रेणी में हैं लेकिन इनमे उद्धृत सामाजिक समस्याएं हमें समाज की बुराइयों को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखने का नजरिया प्रदान करती है। ये उपन्यास हमेशा इस दृष्टि से पढ़े गए क्यूंकि इनकी कहानियां मनोरंजक होती है जो पाठक हमेशा रोमांच महसूस कराती हैं लेकिन इनमे मौजूद सामाजिक समस्याएं हमें सहज ही समझ आ जाती हैं क्यूंकि इन सामाजिक समस्याओं का अंतिम पड़ाव ‘अपराध’ इसको एक अलग ही रंग देता है जिससे पाठकों के दिल-ओ-दिमाग पर एक छाप छोड़ जाती हैं।

1) खून से रंग चाक़ू –


पाठक सर ने - खून से रंगा चाकू - नाम के उपन्यास में लेपर कॉलोनी (leper colony) का बड़ा मार्मिक ज़िक्र किया है। उस कहानी में एक पात्र, इस तरह की जगह में रहने के खौफ में, कई अपराध करता जाता है।

पाठक साहब ने यहाँ इस कॉलोनी का दर्दनाक विवरण देते हुए लिखा है कि किस तरह यहाँ रह रहे लोगों के साथ निम्न व्यवहार किया जाता था और हालत यहाँ तक खराब थे कि इनमें देश की सामान्य करेंसी नहीं बल्कि यहाँ की अपनी करेंसी, ख़ास किस्म के सिक्के या टोकन, का इस्तेमाल किया जाता था।

यह लेपर कॉलोनी दरअसल leprosarium, या lazar house भी कहलाती है जिनमे leprosy (कुष्ठरोग) नामक बिमारी के पीड़ित लोगों को रखा जाता था।

इस तरह की जगह काल्पनिक नहीं बल्कि वास्तविकता है और इन कॉलोनियों का अस्तित्व असल जीवन में रहा है।

Republic of Trinidad and Tobago नाम के देश में तो Chacachacare नाम का एक पूरा टापू इस किस्म की लेपर कॉलोनी था और जिसे बाद में abandon कर दिया गया।

मेरी जानकारी में, भारत की राजधानी दिल्ली में भी ताहिरपुर नाम की जगह में लेपर कॉलोनी है।

पाठक साहब के - जासूसी उपन्यासों में भी - ऐसे सामाजिक मुद्दों को बड़ी खूबसूरती से उकेरा जाता रहा है।

2) लम्बे हाथ –

टूटते हुए परिवार की दास्ताँ है जिसमे पति का द्वन्द , उसकी हर्राफ़ा बीवी और इन दोनों के बीच पिसते उनके बच्चे का ज़िक्र है। यह कहानी पारिवारिक रिश्तों के उथल-पुथल के बुनियाद पर लिखी गयी है जिसमे अपराध का हस्तक्षेप स्वयं ही हो जाता है जब धोखे और अविश्वास का आगाज़ होता है।

3) गैंगवार -

एक नायक दौलतमंद बाप की बिगड़ी हुयी औलाद है जो पैसे के दम पर डॉक्टरी जैसी पेशेवर डिग्री हासिल करता है और फिर पैसे के ही दम पर किसी दुसरे से अपना रिसर्च पेपर लिखवा कर विदेश में होने वाले एक सेमिनार में अपनी हाजिरी लगाता है।
यह शिक्षा क्षेत्र में आई गिरावट को अंगित करती मर्डर मिस्ट्री है जिसमे कहानी एक पोस्टमॉर्टम को बेस बना कर लिखी गयी है।

4) बीवी का हत्यारा -

पति पत्नी के आपसी संबंधों और विश्वास में आई दरार को बेहद खूबसूरती से दिखाता है। कहानी एक ऐसे पुलिसकर्मी की है जो मुहब्बत के जुनून में एक लगभग अनजान लड़की से शादी कर लेता है और आगे उसी के अतीत को खंगालते हुए शक करता है। पति-पत्नी के बीच के संबंधों को लेकर समाज में कई प्रकार के अपराध होते हैं जो अमूमन अविश्वास की भावना से प्रेरित होते हैं।

5) अनोखी रात -

‘बीवी का हत्यारा’ से बिल्कुल उलट 'अनोखी रात' पति पत्नी के आपसी संबंधों और विश्वास को बेहद खूबसूरती से दिखाता है।

कहानी एक ऐसे प्रोफेसर की है जो जो मुहब्बत के जुनून में एक लगभग अनजान लड़की से शादी कर लेता है और आगे उसी के अतीत को खंगालते हुए यह जानकार भौचक्क रह जाता है कि उसकी बीवी कभी डकैती में पकड़े गए गिरोह का हिस्सा थी।

इसके बावजूद वह इसे अपनी बीवी के चरित्र पर लगाया गया एक गलत इलज़ाम मानता है और एक निष्ठावान पति की तरह आगे अपनी गतिविधि जारी रखता है।

6) मेरी जान के दुश्मन -

इस में कहानी का नायक अपने एक मक़सद को पूरा करने के लिए अर्सा पहले छोड़ दिए अपने शहर लौटता है और एक ऐसी ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर की नौकरी कर लेता है जिसका मालिक मर चूका है और उसके बाद उस कंपनी को उसकी जवान लड़की संभाल रही है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे एक जवान लड़की अपनी तमाम काबिलियत बावजूद इस समाज में जेंडर डिस्क्रिमिनेशन का सामना करती है और कैसे अक्सर उस पर छींटा-कशी होती है।

कहानी एक महिला की, उसके पिता की कंपनी को उनके मरे पीछे सँभालने की, ज़िद्द को भी बताती है।

7) Dial – 100 -

पुलिस वालों की ज़िन्दगी के उस हिस्से को दिखाती है जिसमें वो अपने फ़र्ज़ पर अपनी जान तक कुर्बान कर देते हैं। कहानी एक ईमानदार पुलिसकर्मी के एक बूढ़े की गूंगी-बहरी लड़की से मुहब्बत को भी दर्शाती है।

8) खाली मकान -

धर्म के नाम पर उसके ठेकेदारों द्वारा किये जा रहे निकृष्ट कार्यों और उसके अंजाम की दास्ताँ है। यह वह उपन्यास है जो समाज का एक वह आइना दिखाता है जिसमे हम आस्था का आँचल थामे एक ऐसी गली में निकल जाते हैं जहाँ से वापिस आना बहुत मुश्किल हो जाता है। आज के समाज का सबसे बड़ी समस्या ऐसे ही धर्म के ठेकेदारों की है जो हमें बहला-फुसला कर एक ऐसे स्तर तक लेकर जाते हैं जहाँ से हम उन्हें खुली आँखों से देखना बंद कर देते हैं।

9) धोखाधड़ी -

आज की उस नौजवान पीढ़ी के उस फलसफे को दिखता है जिसमे यह नौजवान किसी मजबूरी या किसी अभाव की वजह से नहीं बल्कि आदतन गैर कानूनी काम करते हैं और उन्हें इस पर कोई शर्मिंदगी तक भी नहीं होती। उनकी निगाह में उल्टा ये धोखाधड़ी के कारनामे दरअसल उनकी 'काबिलियत' का पुख्ता प्रमाण है। यह नौजवान पीढ़ी के गिरते हुए नैतिक स्तर की ओर इशारा करता है। हमारे समाज के युवा उन कामों को करने में बहुत फख्र महसूस करते हैं जिसको न करने के लिए उन्हें बार-बार कहा जाता है।

10) बीस लाख का बकरा -

एक पतिव्रता पत्नी को अनदेखा कर जब एक बुढ़ाते साहब अपनी दौलत के जेरेसाया एक नौजवान रखैल के साथ अपने शगल को पूरा करने निकलते हैं। अपने पत्नी से धोखा और झूठ का महाजाल बुनने वाला शख्स स्वयं ही जाल में फंस जाता है। कहानी का आधार समाज के उस अमीर तबके के लोग हैं जिन्हे अपनी दौलत से हर शै हासिल है। इसी दौलत के जेरेसाया जब वे ब्लैकमेल के महाजाल में फंसते हैं तो उनकी पत्नी ही उन्हें बचाती है। जिस भारतीय नारी की हम कल्पना करते हैं वह इस कहानी में मौजूद पतिव्रता पत्नी अपने पति का हर मुश्किल में साथ देने के लिए तैयार होती है।

11) सीक्रेट एजेंट -

इस कहानी में दिखाया गया है कि कैसे - नेता, पुलिस और जुर्म - की जुगलबंदी पूरे सिस्टम को सड़ा देती है जिसमे कानून न सिर्फ लाचार बल्कि अपाहिज हो जाता है।

12) आस्तीन के सांप -

दौलत के लालच में पड़े उन रिश्तेदारों की कहानी है जिसमे वो परिवार के मुखिया को ही पागल मानसिक बीमार बता देते हैं। कहानी बताती है कि कैसे पैसा आज की दुनिया में लोगों की मति भ्रष्ट करता है जिसमे दौलत खून से भी बढ़कर हो जाती है।

13) रेड सर्किल सोसाइटी -


समाज में फैलते बेहद ऊंचे दर्जे के Organized Crime की दास्ताँ है जिसमे समाज के आधार स्तम्भ माने जाते लोग ही सारे अपराध की जड़ में होते हैं।

14) विषकन्या -


एक परिवार अपने खानदान की एक बेहद दकियानूसी परंपरा का पालन करते हुए परिवार की लड़की की शादी नहीं करता। कुछ सालों बाद जब यह अनब्याही लड़की अपनी जिन्सी ज़रूरतों को पूरा करने निकलती है तो वो वजह बन जाती है एक बड़े अपराध की। समाज की कुरीतियों को आधार बना लिखा गया एक शानदार शाहकार।

15) दहशतगर्दी –

दहशतगर्दी किसी भी देश में आतंकवादियों द्वारा फैलाए कुचक्र और उसको से निबटने के तरीकों दर्शाती कहानी है जिसमे अहम रोल बांग्लादेश से हो रही घुसपेठ निभाती है।

16) क़त्ल की वारदात

बुढ़ापे में शादी और धनदिवानी बीवियों के जूनून पर आधारित ये उपन्यास उस दर्जे के सामाजिक समस्या को दर्शाते हैं जिनका अंजाम अंत में बेहद खतरनाक अपराध पर आकर टिकता है।

17) आगे भी मौत –पीछे भी मौत -  

ऊँचे पद पर पहुँचाने की लालसा और राजनीती के गिरते मूल्यों पर आधारित यह उपन्यास कॉर्पोरेट संसार और राजनितिक संसार का पोल खोलती नज़र आती है।

18) कागज़ की नाव –

मुंबई के झुग्गी-झोपड़ियों में पनपने वाले अपराध का मुख्य कारण भूख या अत्यधिक महत्वाकांक्षा होता है। कुछ इसी बिंदु पर आधारित यह उपन्यास दर्शाता है मुंबई के झुग्गी-झोपड़ियों के जीवन और इसमें पनपने वाले अपराध और उस अपराध को काबू में करने को मौजूद कर्त्व्यनिष्ट एक इंस्पेक्टर को क्यूंकि अपराध कागज की नाव की तरह होता है जिसे एक दिन कागज की कश्ती की तरह नष्ट होना होता है।

19) गोली और ज़हर

सौतेले भाई-बहन की कहानी है जिसमे बहन पहले तो यकायक गायब हो जाती है और कोई पंद्रह सालों बाद जब दोबारा नमूदार होती है तो घटनाक्रम तेज़ी से बदलता है। कहानी आज के समाज में 'दौलत के लिए कुछ भी करेंगे' की सोच को दिखती है। हमारे समाज का एक नियम बन चूका है – न बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया। इस कहावत को सत्यार्थ करती यह कहानी खून के रिश्तों में फैली गंदगी को दर्शाता है।

20) निम्फोमैनियाक –

निम्फोमैनियाक नाम की दुर्लभ चिकित्सकीय बीमारी से उपजे दाम्पत्य जीवन में विष पर आधारित यह उपन्यास समाज में फैले उन शैतानों को बेनकाब करता है जो रिश्तों की आड़ में महिलाओं एवं नाबालिग लड़कियों का शोषण करने से नहीं चुकते।

21) गुनाह का कर्ज -  

नकली नोटों की समस्या और इस अपराध में लिप्त अपराधी की मनोदशा दर्शाती हुई यह कहानी बताती है कि एक अपराध को छुपाने के लिए इंसान कितने अपराध करता जाता है।

22) मैं बेगुनाह हूँ –

आज की राजनीति और पत्रकारिता में निरन्तर धूमिल पड़ते सिद्धांतों की कहानी है कि कैसे भ्रष्ठ राजनेता अपने जलाल से पत्रकार और पत्रकारिता दोनों को बिकाऊ बना देते हैं

23) खोटा सिक्का -

अगर पुलिस और राजनेता एक साथ भ्रष्टाचार के राह पर चलने लगे तो इस देश का क्या हाल होगा यह किसी से छुपा नहीं है। कुछ ऐसे ही बिन्दुओं को आधार में लेकर इस कहानी को लिखा गया है। हमारे देश में हो रहे कई हाई प्रोफाइल केसेस में जहाँ राजनेताओं का हाथ सामने आता है वहीँ इन हाथों से अपनी रोटियां सेकते कई पुलिस अधिकारी भी नज़र आते हैं जबकि इनका काम ही जनता की सेवा करना है लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो ईट का जवाब पत्थर से ही देना पड़ता है।

24) चार अपराधी –

जब एक जेल की सजा काट कर निकला अपराधी अपने आप को सुधार कर और सुधरने की राह पकड़ने के लिए रोजगार मांगता है तो उसे यह कह कर प्रताड़ित किया जाता है कि वह जेल-बर्ड है। ऐसे में बेरोजगारी से उत्पन्न अपराध की लोमहर्षक दास्तान सुनाती है यह कहानी। जहाँ हमारा समाज प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार देने की बात करता है वहीँ अगर कोई अपराधी अपनी सजा काट कर अपने आपको आम जन-जीवन में व्यवस्थित करना चाहता है तो उसे जमाने की ठोकरों के सिवा कुछ और नहीं प्राप्त होता। इस प्रकार की सामाजिक समस्याओं से निपटने के कोई समाधान आज तक हम खोज नहीं पायें हैं क्यूंकि हमारे मन में एक चोर है जो कहता है की ऐसे जेल-बर्ड कभी सुधरेंगे नहीं।

25) विश्वास की हत्या -  

पति पत्नी के बीच उत्पन्न क्लेश से उपजी बेवफाई ,दोस्तों के बीच गलतफहमी के कारण हुए विश्वासघात और छोटे अपराधो का बड़ा रूप लेने की कहानी “विश्वास की हत्या” यह दर्शाती है की समाज कहीं भी अपराध से अछूता नहीं रहा है। हमारा समाज कितना भी आदर्श, सभ्य और सुसंयत होने का दिखावा करे लेकिन इसके ढोल में पोल तब नज़र आती है जब वह इस प्रकार की सामाजिक समस्याओं से रूबरू होता है।

26) अँधेरी रात –


यह उपन्यास समाज में व्यवस्थित भू-माफियाओं की उन गतिविधियों को दर्शाता है जिसमे वे बड़े-बड़े राजनेताओं और पुलिस के साथ मिल कर बड़े-बड़े भूमि को अपने नाम करा लेते हैं और उस भूमि पर बसे गरीबों को क्रूरता से हटाने या उस भूमि के अलसी मालिकों को कौड़ी के भाव दाम देना भी पसंद नहीं करते।

27) घर का भेदी –


यह उपन्यास उस समाज की उस समस्या को दर्शाता है जब हमारा समाज का एक व्यक्ति ड्रग की लत के कारण बड़े से बड़े अपराध करने से भी नहीं हिचकिचाता।

28) वन वे स्ट्रीट –

यह उपन्यास भारत में पनप रहे या पनप चुके ड्रग्स के उस गैरकानूनी व्यवसाय का खुलासा करता है जो हमारे समाज की नौजवान नस्लों को बर्बाद करने पर तुली है। लेकिन हमारी नौजवान नस्ल, अधिकतर वे जो साधन संपन्न हैं वो इस ड्रग्स लेने की क्रिया को स्टेटस सिंबल के रूप में मानती है।

29) साजिश –

यह उपन्यास हमारे समाज में उस महत्वाकांक्षा की कहानी को कहता है जिसमे कई युवा फिल्म स्टार्स बनने की चाहत में अपने घर को छोड़ मुंबई नगरी की ओर प्रस्थान करते हैं  जहाँ उनका अलग-अलग प्रकार से शोषण होता है।

30) गर्म लाश –


उपन्यास नौकरी करने वाले उन युवाओं की कहानी को दर्शाता है जिसमे वे तरक्की पाने की चाह में घात-आघात-प्रतिघात और राजनीति का भी इस्तेमाल करने से नहीं चूकते हैं। वहीँ युवा लड़कियों द्वारा बिना कोई जानकारी हासिल किये मोहब्बत में पड़ जाना और उससे विवाह करने की जिद करना, उस समस्या को दर्शाता है जिससे हमारे देश का पूरा समाज ग्रसित है।

दोस्तों यह कुछ उपन्यासों के नाम हैं जिनमे सामाजिक समस्याओं को सर सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा दर्शाया गया है। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों की जहाँ खासियत उसमे बसे रोमांच, रहस्य और अंदाजे-बयाँ से हैं वहीँ उनके उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं का दखल भी बराबर होता है। हम जिन समस्याओं को आसानी से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और टेलीविज़न मीडिया से नहीं समझ पाते उन्हें सर सुरेन्द्र मोहन पाठक साधारण शब्दों में अपनी कहानी द्वारा समझा जाते हैं।

यह लेख सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी प्रशंसकों द्वारा चलाये जा रहे समूह – “Surender Mohan Pathak” में आये एक पोस्ट पर डाले गए “डॉ. कँवल शर्मा”, “डॉ. राजेश पराशर”, “श्री जीतेन्द्र माथुर” और “श्री हसन अलमास” के कमेंटों के आधार पर लिखा गया है। मैं इन सभी चारों महानुभावों का हार्दिक धन्यवाद् करता हूँ कि उन्होंने इस लेख को लिखने में अपने कमेंटों द्वारा मेरी मदद की।

मैं आशा करता हूँ, मुझे और भी उपन्यासों और उसमे मौजूद सामाजिक समस्याओं की जानकारी, मुझ जैसे ही कई हज़ारों पाठकों से मिलेगी ताकि हम एसएमपियन दुनिया को बता सकें की सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी क्राइम-फिक्शन उपन्यास सिर्फ और सिर्फ अपराध पर आधारित या केन्द्रित नहीं बल्कि सामाजिक समस्याओं को एक अलग ही तरह से समझाने की कला भी है।

मैं आशा करता हूँ यह लेख उन सुबुद्ध पाठकों के आँखों को खोलने में सहायक होगा जो सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के किताबों को बिना पढ़े उसका यह कहकर मूल्यांकन करते हैं की ये पुस्तकें हिंदी की सबसे निचले स्तर की किताबों में से एक होती हैं। आज के युवा जो शहरी जीवन जीते हैं उनके लिए अंग्रेजी की किताबों को पढना स्टेटस सिंबल सा बन गया है। वे हिंदी में छपी पुस्तकों को निम्नकोटि की दृष्टि से देखते हैं वहीँ उसी पुस्तक के अंग्रेजी में अनुवाद को अपने हाथों में लेकर घूमने से नहीं चुकते। कुछ पल्प-फिक्शन लेखकों के घृणात्मक स्तर की पुस्तकों ने पल्प फिक्शन के तालाब को गन्दा कर दिया है जिसके कारण लोग सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी पुस्तकों को भी उसी स्तर का समझने लगे हैं। मुझे ऐसे लोगों पर तरस आता है की इन्होने आज तक क्या मिस किया है। उपरोक्त लेख अपने आप यह प्रदर्शित करता है कि सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने कितने जमीनी स्तर से अपनी कहानी को उठाया और उसे अपराध से जोड़ कर अपनी अपराध कथा को पूर्ण किया। लोग विदेशी लेखकों को पढ़ते हैं जिनकी पृष्ठभूमि भारत नहीं बल्कि विदेशी धरती ही होती है। यह कहना बड़ा मुश्किल है कि हम अपने समाज में होने वाले अपराध की तुलना विदेशी धरती पर होने वाले अपराध से करते हैं। इस कल्पना से वे खुद को बचाने की कोशिश भी नहीं करते क्यूंकि उनको अपना स्टेटस सिंबल भी तो बचाना होता है। यह लेख उन प्रबुद्ध स्वयंभू साहित्यकारों के लिए प्रसाद की तरह है जो अपनी किताब को महान रचना कहते फिरते हैं जिसमे जमीनी हकीक़त से ज्यादा एक काल्पनिक संसार की कल्पना होती है। यह लेख उन पाठकों को समर्पित है जिन्हें कई बार यह कहा जाता है कि कितने निचले स्तर की किताबें पढ़ते हो। यह लेख उन ताना कसने वालों व्यक्तियों को करारा जवाब है कि आइये देखिये और बताइये क्या कमी है इन कहानियों में।

मैं फिर प्रस्तुत होऊंगा आप सभी पाठकों के समक्ष कुछ नयी, कुछ चटपटा, कुछ अलग ही गतिविधि के साथ। तब के लिए इज़ाज़त दीजिये।

नोट- आप उपरोक्त सभी उपन्यास इबुक में डेली-हंट मोबाइल एप्लीकेशन पर पढ़ सकते हैं|
http://ebooks.newshunt.com/Ebooks/default/bestosmp/l-hindi-col-bestosmp

आपके बहुमूल्य विचारों की प्रतीक्षा में,

राजीव रोशन 

Comments

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया गया थ

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया और बैंक की

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को कहा। और व