द कलर्स ऑफ़ मर्डर
भाग-2
फॉरेंसिक साइंस ने आज जो तरक्की की है, आज जिस
मुकाम पर फॉरेंसिक साइंस पहुँच चूका है उस तक पहुँचने के लिए 3-४ शताब्दियों का
सहारा लिया है। आधुनिक युग के फॉरेंसिक साइंस हमारे लिए बहुत उपयोगी तो है लेकिन
इसके पीछे लगी कितने ही वैज्ञानिक, डॉक्टर्स, पेथालोजिस्ट और केमिस्ट की मेहनत को
हम लगभग भुला ही चुके हैं। इस ४०० वर्षों के वृहद् इतिहास में कई ऐसे तकनीक थे
जिन्होंने फॉरेंसिक साइंस को उसके मौजूदा आधुनिक जामा पहनाया है। विकिपीडिया से
हासिल एक कमाल की जानकारी के अनुसार सन १२४८ में पहली बार एक कहानी संग्रह में
मेडिसिन और कीटविज्ञान का प्रयोग किसी केस को हल करने में किये जाने का जिक्र है।
यह कहानी संग्रह चाइना के लेखक Song Ci द्वारा लिखा गया था जिसका नाम Xi
Yuan Lu (अनुवादित नाम - Collected
Cases of Injustice Rectified या Washing Away of Wrongs) था। इस संग्रह की एक कहानी में एक
व्यक्ति की ह्त्या दरांती से होती है जिसके बाद केस का इन्वेस्टिगेटर सभी को अपनी
अपनी दरांती लाने को कहता है। इन्वेस्टिगेटर सभी दरांती से एक पशु के शव पर घाव
बनाता है और मकतूल के घाव से इन घावों की तुलना करता है।
फॉरेंसिक
साइंस के इस वृहद् विधा के एक ऐसे हिस्से के बारे में हम “द कलर्स ऑफ़ मर्डर” सीरीज
में बात कर रहे हैं जिसे सीरोलॉजी कहा जाता है। पिछले भाग में आपने जाना की कैसे
किसी धब्बे को कई प्रकार के टेस्ट्स करके यह जाना जा सकता है कि वह खून का ही
धब्बा है। इस भाग में हम इस फॉरेंसिक साइंस के अगले स्तर पर जायेंगे और यह जानेगे
की जो खून का धब्बा मौकायेवारदात से उठाया गया वह इंसानी है या किसी पशु का। हम
जानेंगे की फॉरेंसिक साइंस के इतिहास में कितने प्रकार के टेस्ट इस प्रकार के अंतर
को जानने के लिए प्रयोग किया गया और कितने प्रकार के टेस्ट अभी आधुनिक समय में
किया जाता है।
लेकिन
मुझे लगता है कि इन विधियों पर चर्चा करने से पहले हम खून के बारे में जान लें। ऐसा
इसलिए है क्यूंकि आगे आने वाली विधियां एवं अगले लेवल पर हमें खून की प्रकृति,
उसकी विशेषताओं और उसके संघटक से दो-चार होना पड़ेगा।
खून हमारे
शरीर का महत्वपूर्ण घटक है। हम इसके बगैर अपनी कल्पना भी नहीं कर सकते। खून एक
वृताकार उत्तकों का समूह है जिसमे तीन प्रकार की कोशिका पायी जाती हैं – लाल रक्त
कोशिका ( Red Blood cell या Erythrocytes), सफ़ेद रक्त कोशिका (white blood
cell या Leukocytes) और Platelets (Thrombocytes)। ये सभी कोशिका प्लाज्मा नाम के
द्रव में मौजूद रहते हैं। प्लाज्मा खून का द्रव्य भाग होता है जिसमे 90% जल और १०%
नमक के साथ प्रोटीन, ग्लूकोज, एमिनो एसिड, एन्ज्याम, होरमोंस, मिनरल आदि भी मौजूद
होते हैं। प्रत्येक रक्त कोशिका का अपना अलग अलग काम है। “लाल रक्त
कोशिका” ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी मुख्य गैसों को एक स्थान से दुसरे
स्थान तक ले जाने का काम करती है। “सफ़ेद रक्त कोशिका” हमारे शरीर में एक
प्रतिरक्षक की तरह काम करती हैं और बीमारियों से लड़ने में सहायक सिद्ध होती हैं।
वहीँ platelets हमारे शरीर के क्षतिग्रस्त रक्त कोशिकाओं की मरम्मत करती हैं।
मैंने “द
कलर्स ऑफ़ मर्डर” के पहले भाग में कई presumtive टेस्ट के बारे में आपको बताया है
लेकिन शताब्दियों पहले क्राइम सीन पर यह जानने की सुविधा नहीं थी की जो presumtive
टेस्ट इन्वेस्टिगेटर द्वारा किया गया, वह सही है। अर्थात इन्वेस्टिगेटर को
presumtive टेस्ट के दौरान यह तो पता लग जाएगा की जो धब्बा नज़र आ रहा है वह खून का
है लेकिन इस धब्बे के सैंपल को फॉरेंसिक लैब में ले जाकर एक बार और टेस्ट किया
जाता था ताकि इसमें कोई शक न रहे की जो सैंपल है वह खून का ही है। १८ वीं शताब्दी
में इस काम के लिए कई टेस्टों का ईजाद हुआ लेकिन जो टेस्ट्स सबसे ज्यादा चले और आज
तक चल रहे हैं वह मुख्य रूप से दो ही हैं। ये टेस्ट मूल रूम से
माइक्रो-क्रिस्टेलाइन टेस्ट या क्रिस्टल टेस्ट कहलाते हैं।
Teichmann
Test या Hematin Test – Ludwig Karl Teichmann नामक एक डॉक्टर ने इस टेस्ट का आविष्कार सन १८५३ में किया था। इस
टेस्ट में सूखे खून को गर्म किया जाता है जिसमे ग्लेसिअल एसिड और सोडियम क्लोराइड
से अभिक्रिया कराई जाती है। ये रासायनिक पदार्थ मूल रूप से लाल रक्त कोशिका के
हीमोग्लोबिन में मौजूद हेमे समूह से अभिक्रिया करते हैं। इस अभिक्रिया के दौरान
क्रिस्टल बनता है जिसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। मुख्यतः ऐसे
क्रिस्टल का रंग भूरा और आकार सम-चतुर्भुजाकार होता है। इस क्रिस्टल का रासायनिक
नाम “Hematin” है इसलिए इस टेस्ट को Hematin भी कहा जाता है। कुछ प्रयोगों के
दौरान यह भी पता लगा है अगर खून को अधिक गर्म किया जाए तो वह क्रिस्टल नहीं बनाते
हैं चाहे सच में प्रयोग खून पर ही क्यूँ न किया जा रहा हो। इस टेस्ट एक खासियत यह
है कि अगर धब्बा १२-२० साल पुराना भी हो तब भी यह टेस्ट सफलतापूर्वक सही परिणाम
देने में सक्षम होता है। वहीँ अगर धब्बे चमड़े के ऊपर से बरामद हों तो यह टेस्ट सही
परिणाम नहीं दे सकता। इस टेस्ट एक ख़ास कमी यह भी है कि इसमें खून की मात्रा हमेशा
अधिक होनी चाहिए।
Takayama
Test या Hemochromogen
test – जापान के अपराध
विज्ञानी (क्रिमिनोलॉजिस्ट) Masaeo Takayama ने इस टेस्ट का आविष्कार सन १९१२ में किया था। इस
टेस्ट में सूखे खून को pyridine नमक रसायन के साथ अभिक्रिया कराई जाती है जिसके
दौरान एक क्रिस्टल का निर्माण होता है जिसे Hemochromogen कहते हैं। इस क्रिस्टल
को सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। इस क्रिस्टल का रंग गहरा गुलाबी का
होता है। देखा गया है कि अगर कोई खून का सैंपल Teichmann Test या Hematin Test के परिक्षण में सफल नहीं होता
है तो वह Takayama टेस्ट में सफल हो जाता है। इस टेस्ट में भी खून के धब्बों के
लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। Hematin टेस्ट की तरह इस टेस्ट में हमेशा खून
की मात्रा अधिक चाहिए होती है।
दोस्तों
presumtive टेस्ट के बाद जब जान लिया जाता है की जो सैंपल उठाये गए हैं वह खून ही
है तो फॉरेंसिक डॉक्टर्स ऐसे अनजान धब्बे से यह जानने का प्रयोग करते हैं की धब्बा
इंसानी खून का है या किसी और ही प्रजाति का। इस प्रयोग को करने की कई विधियाँ
विकसित की जा चुकी हैं जिनकों हम सिलसिलेवार तरीके से जानने वाले हैं।
Precipitin टेस्ट – इस टेस्ट का इजाद सन १९०१ में एक German
bacteriologist और immunologist Paul Theodor Uhlenhuth ने किया ता। उनके द्वारा की गयी इस खोज ने अपराधिक न्यायिक
व्यवस्था एक क्रांति का काम किया था। इस टेस्ट को करने के लिए एक एंटी-सीरम की
आवश्यकता होती जिसको जानवरों के शरीर से निकाला जाता है। होता ये है की मनुष्य के
खून को खरगोश या किसी जानवर के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है जिससे की एंटीबाडीज
का निर्माण होता है। फिर खरगोश एक शरीर से खून निकाला जाता है जो एंटी-सीरम कहलाता
है। इस एंटी-सीरम को जब प्राप्त खून के सैंपल पर डाला जाता है तो एंटी-सीरम में
मौजूद प्रोटीन खून में मजूद प्रोटीन से क्रिया करके एक गाढे परत का निर्माण करता
है जो घोल के तले में जमा हो जाता है, अगर ऐसा होता है तो यह समझा जाता है कि
सैंपल ब्लड मनुष्य का है। जानवरों का प्रोटीन
जानवरों के प्रोटीन से जुड़ जाता है उसी तरह से मनुष्य का प्रोटीन मनुष्य के
प्रोटीन से ही जुड़ता है।
Electrophoretic Method - इस प्रयोग में भी एक Agar
Gel प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इसमें प्लेट पर छिद्र का प्रकार Ouchterlony
Double Diffusion Technique से जुदा होता है। इस
तकनीक में प्लेट पर दो पक्तिओं में छिद्रों को बनाया जाता है। ऊपर वाली पंक्ति में
एंटी-सीरम डाला जाता है वहीँ नीचे वाले में सैंपल डाला जाता है। इसके बाद इस प्लेट
में विद्युत् का संचार किया जाता है जिसके कारण दो द्रव्य पदार्थ एक दुसरे की तरफ
बढ़ना शुरू करते हैं। अगर सफ़ेद रंग की रेखा एंटी-सीरम और सैंपल की बच बनती है तो
इसका यह अर्थ होता है की सैंपल में मौजूद खून के बूंदे मनुष्य की हैं।
Ouchterlony Double Diffusion
Technique - इस विधि में एक Agar Gel की प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है जो कि
प्लास्टिक का होता है। इस प्लेट में छेद किये जाते हैं जिसमे एक केंद्र के छिद्र
के इर्द-गिर्द और भी छिद्र होते हैं। केंद्र वाले छिद्र में एंटी-सीरम डाला जाता
है और जिन सैंपल के लिए यह गतिविधि करना है उन्हें उसके चारों तरफ मौजूद छिद्रों
में डाला जाता है। प्रत्येक छिद्र के अन्दर मौजूद पदार्थ धीरे-धीरे बाहर की तरफ एक
दिशा सा बनाता नज़र आता है इससे यह नज़र आता है कि केंद्र में मौजूद एंटी-सीरम के
चारों ओर मौजूद विलयन धीरे-धीरे एंटी-सीरम से और दुसरे सैंपल से संपर्क स्थापित कर
रहे हैं। अगर कोई सैंपल सफ़ेद रेखा बना कर संपर्क को प्रदर्शित करता है तो इसका यह
अर्थ होगा कि वह सैंपल मनुष्य के खून का है। और जो कोई संपर्क स्थापित करने जैसा
इशारा नहीं करता वह मनुष्य का खून नहीं है।
HemaTrace - ABAcard HemaTrace आज के ज़माने की तकनीक को नज़र में रखकर
बनाया गया है। वर्तमान में इसी प्रकार के तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है क्यूंकि
यह टेस्ट १० मिनट के अन्दर सही और अचूक परिणाम देता है। इसमें एक प्लास्टिक कार्ड
दो खाली स्थान होते हैं, एक पर तो उस सैंपल को डालना होता है जिसका टेस्ट किया
जाना है और दुसरे खाली स्थान पर प्रक्रिया के परिणाम को देखा जाता है। इस
प्लास्टिक कार्ड पर पहले से ही एंटी-जेन और एंटी-बॉडीज की परत मौजूद होती है जिसके
कारण सैंपल प्रक्रिया करके एक ही प्रकार के रंग को दो स्थानों पर प्रदर्शित करती
है जो यह दिखाता है कि वह मनुष्य का खून है लेकिन अगर यह एक ही स्थान पर प्रदर्शित
करे तो वह मनुष्य का खून नहीं है। लेकिन अगर किसी भी प्रकार का रंग नहीं दिखाई
देता है तो इसका अर्थ है कि आपको यह टेस्ट फिर दुबारा करना होगा। इस प्रक्रिया को
शब्दों में समझाना मुश्किल है लेकिन आप इन्टरनेट पर इस प्रक्रिया के बारे में
आसानी से पढ़ एवं वीडियो देख सकते हैं।
दोस्तों, ‘द कलर्स ऑफ़ मर्डर’ के इस भाग में बस इतना
ही क्यूंकि अगले भाग में हम यह पता लगायेंगे की कैसे किसी खून से यह पता लगाया जाए
की वह किस समूह से समबन्धित है। हम पता लगायेंगे की कैसे पता चले की अमुक खून जिस
मनुष्य का है उसका ब्लड ग्रुप क्या है। साथ ही डीएनए तकनीक के बारे में भी जानेंगे
की कैसे खून पर किये गए भिन्न भिन्न प्रयोगों के बाद एक ऐसी तकनीक हमारे सामने आई
जिसने सभी रहस्यों पर से पर्दा उठा दिया। आप सभी इस भाग को पढ़ कर एन्जॉय कीजिये
मैं चलता हूँ अगले भाग की तैयारी के लिए।
नोट- उपरोक्त लेख पूर्णतया इन्टरनेट पर उपलब्ध कई
जानकारियों को इकठ्ठा करके बनाया गया है। हालांकि लेख में बताये गए बिन्दुओं पर
सत्यता में तो कोई शक नहीं लेकिन अगर कुछ जानकारी मैंने गलत पेश कर दी हो तो मुझे
जरूर बताएं ताकि मैं उसमे सुधार कर सकूँ। उपरोक्त लेख को तैयार करने के लिए मैंने
इन्टरनेट पर उपलब्ध कई जर्नल, रिसर्च वर्क, किताबें, ब्लॉग और वेबसाइट का इस्तेमाल
किया है। लेख में कुछ रासायानिक पदार्थों के नाम बहुत जटिल हैं इसके लिए माफ़ी
चाहूँगा लेकिन यह जरूरी है की रासायनिक नामों को उसी नाम से पुकारा जाए।
आभार
राजीव रोशन
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