The Champawat Man -Eater
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सारांश------
चम्पावत का नरभक्षी बाघिन नेपाल से पूरी तरह से नरभक्षी बन के आई थी जब उसने नेपाल में लगभग २०० लोगो को अपना शिकार बना चुकी थी तब उसे नेपाल के सैनिकों द्वारा कुमाऊ की तरफ धकेल दिया गया था। बीते चार सालों में उसने कुमाऊ क्षेत्र में लगभग ३४ शिकारों की और बढ़ोतरी कर आंकड़े को २३४ तक पहुंचा दिया था। इस बाघिन को मारने के लिए कई शिकारियों और गोरखा समूहों का सरकार ने इस्तेमाल किया पर सफलता हासिल नहीं हुई।
जिम साहब चम्पावत पहुचे लेकिन उन्होंने सरकार से अनुरोध किया की "बाघिन" को मारने पर रखे गए इनाम को ख़तम कर दिया जाए और सभी स्पेशल शिकारियों को रोक दिया जाए। क्यूंकि जिम साहब नहीं चाहते थे की उन्हें एक इनामी शिकारी के रूप में जाना जाए और दुसरे शिकारियों के द्वारा गलती से गोली खा जाये।
जब जिम साहब पाली पहुँचते हैं जहा से बाघिन द्वारा किये गए ताज़ा शिकार की खबर थी तो पाते हैं की उस क्षेत्र के सभी घर अन्दर से बंद हैं, सडको पर सन्नाटा है, ऐसा लगता था की आतंक का अन्धकार छाया हुआ हो क्यूंकि सूरज पुरे अपने सबाब पर था लेकिन सभी घर बंद थे। जब जिम साहब ने वहां आग जलाई ताकि चाय पी सके तब सभी घर के दरवाजे खुले और धीरे धीरे भयभीत लोगो ने कदम रखा। लोगो ने बताया की ४-५ दिनों से वो लोग घर से बाहर नहीं निकले है अब भोजन की कमी पड़ती जा रही है।
लोगो से जिम साहब को पता चला की जब एक दिन कोई बीस महिलाये और लड़कियों का समूह जंगल गया था तो तीन महिलाएं पेड़ो पर चढ़ गयी लकड़ियाँ इकठ्ठा करने के लिए। एक लड़की जब लकड़ियाँ तोड़ कर निचे उतर रही थी की पीछे से "बाघिन" ने हमला कर दिया और अपने जबड़ो से उसके पैरो को पकड़ लिया और खीचते हुए झाडी में ले गयी और फिर उसकी गर्दन पर अपना जबड़ा कास दिया। यह सब उन दो लड़कियों की मौजूदगी में हुआ जो उस लड़की कुछ फुट ऊपर लकड़ियाँ तोड़ रहे थे। इस दौरान जिम साहब ने गाँव वालों की मदद की ताकि वो फसल काट सके।
जिम साहब ने पहले गाँव वालो के दिल से दर निकलने सोची। जिम साहब ने गाँव के मुखिया को कहा की वो अपने साथियों के लिए "जंगली बकरी "(जिसे कुमाऊ की स्थानीय भाषा में "घूरल" कहा जाता है) का शिकार करना चाहते हैं। वे कुछ गाँव वालों के साथ जंगल में जाते हैं और ३ घूरल का सफल शिकार करते हैं। गाँव वाले जब जिम साहब का निशाना देखते हैं तो उन पर विश्वास करना शुरू कर देते हैं। अब गाँव के मुखिया के द्वारा जिम साहब को सहायता का आश्वाशन दिया जाता है। गाँव के कुछ लोगों को लेकर जिम साहब उस स्थान पर पहुँचते हैं जहा उस लड़की पर बाघिन द्वारा हमला किया गया था। उस स्थान पर पहुँच कर जिम साहब लड़की के कपड़ो और चबाये हुए हड्डियों के हिस्सों को देखते हैं।
[कहा जाता है की नरभक्षी बाघ अपने शिकार के खून से सने कपडे तक नहीं छोड़ता है लेकिन यहाँ जिम साहब उस कहावत से हमारा पीछा छुडाते हैं। यहाँ आपको जिम साहब के उस चरित्र से रूबरू होते हैं जो एक अंग्रेज होते हुए भी गाँव वालों की मदद करता है। उनमे बाघिन द्वारा पनपाये गए खौफ को दूर भागते हैं। हम यहाँ बाघिन के उस खौफ से भी मिलते हैं जिसके कारन पुरे गाँव में से किसी ने भी ४-५ दिनों से अपने घर का दरवाजा नहीं खोल है। जब हम इस वाकये को अपने दिमाग में, अपने मन में दुबारा से फिल्म की तरह घुमाते हैं तो वो डर हमें भी अपने अन्दर नज़र आता है हम भी उस डर को महसूस कर लेते हैं।]
इस स्थान से हटकर जब जिम साहब एक पहाड़ी पर स्थित झोपडी पर जाते हैं जहा उनको यह सुनने को मिलता है की उस झोपडी के मालिक की दो बेटियां जिनकी उम्र लगभग ४ और ६ वर्ष थी। जब ये दो बच्चियां घास काटने पहाड़ी के ऊपर गयी तो बाघिन ने बड़ी बहन पर हमला कर दिया और अपने जबड़ो से पकड़ कर जाने लगी। उसकी छोटी बहन ने बहुत दूर तक उसका पीछा किया। छोटी बहन उसके पीछे चिल्लाते हुए जा रही थी वो बाघिन को अपनी बहन को छोड़ देने को कह रही थी और अपने आप को ले जाने को कह रही थी। बाघिन ने बड़ी बहन को जबड़ो में पकड़ कर थोड़ी दूर ले गयी फिर उसे नीचे रख दिया और उसके पीछे आ रही छोटी बहन के पीछे लग गयी। छोटी बहन किसी तरह से अपने आपको बचते बचाते गाँव पहुची और गाँव वालों को अपनी बड़ी बहन के बारे में बताया। गाँव वालों ने एक समूह बना कर उस बाघिन का सामना करने पहुंचे तब तक उस लड़की की सांस जा चुकी थी। जब जिम साहब उस झोपडी पर पहुंचे तो उस मृत लड़की की माँ बाहर आती है । जब जिम साहब उसे बताते हैं की वो उस बाघिन का शिकार करने आये हैं तो वो स्त्री जिम साहब के पैरों में गिर जाती है।
[क्या चाहते हैं आप इससे ज्यादा। क्या आपने कभी इससे बड़ी बहादुरी की कहानी सुनी होगी। एक छोटी बहन अपनी बड़ी बहन को बचाने के लिए उस नरभक्षी बाघिन के पीछे दौर पड़ी और फिर उससे सुरक्षित अपने आप को बचाया भी। एक चार साल की लड़की के द्वारा इस प्रकार की बहादुरी का प्रदर्शन को सुनना आसान है पर मानना मुश्किल है। आप सोच सकते हैं उस स्त्री के बारे में जिसने जिम साहब को भगवान् मन लिया क्यूंकि वो उस बाघिन को मारने आये थे। ]
जिम साहब उस बाघिन का शिकार करने के लिए एक साड़ी बांधकर खुद जंगलो में लकड़ी बीनने गए और पेड़ो पर चढ़ लकडिया तोड़ी लेकिन उस बाघिन का कुछ पता नहीं चला। जिम साहब "पाली" से पंद्रह मील दूर "चम्पगत" गाँव के लिए निकल पड़े। रस्ते में उनके साथ और भी लोग जुड़ पड़े। उन लोगो ने बहुत ही भयानक किस्सा बताया -
" कुछ महीने पहले जब २० लोगो का समूह चम्पावत गाँव से बाजार की तरफ जा रहा था तो उन्हें किसी महिला की करुण पुकार सुनाई दी। वे सभी रुक गए। धीरे धीरे आवाज करीब आती गयी। उन्होंने देखा की सड़क से लगभग ५० यार्ड्स की दूरी पर एक बाघ एक नग्न महिला को अपने मुह में दबाये हुए जा रहा था। उस महिला के बाल एक तरफ की ज़मीन को छू रहे थे और दूसरी तरफ उसकी टांग ज़मीन को छू रहा था। बाघ उस महिला को अपने मुह में दबाये आगे बढ़ा जा रहा था और वह महिला बार बार इश्वर से अपने आपको बचने की प्रार्थना कर रही थी।"
जिम साहब ने पूछा की उन्होंने उसे बचने की कोई कोशिश नहीं की तो उन्होंने जवाब दिया की वो लोग इतना डर गए थे अपने स्थान से हिल तक नहीं पाए थे।
[ इतना खौफ की २० आदमी उस बाघ से उस लड़की को बचा न सके जबकि वो महिला बार बार अपने आपको बचने की गुहार लगा रही थी। ऐसा लगता था की इश्वर ने भी उस बाघ की निर्दयता और दुर्दान्त्ता के आगे घुटने टेक दिए थे। उस भयानक दृश्य को देख कर उन २० व्यक्तियों में से किसी का भी दिल नहीं पिघला की उस स्त्री की सुरक्षा के लिए आगे बढ़ सके। जिम साहब ने तो अकेले उन बाघों का शिकार तक हो जाने की कोशिश की ताकि बस एक बार उस बाघिन से सामना हो जाए। बहादुरी, निडरता, चालाकी, दया का सम्पुर्ण मिश्रण था जिम साहब में]
चम्पावत के तहसीलदार ने जिम साहब को अपने डाक बंगले पर रहने के लिए आमंत्रित किया। जिम साहब सुबह सुबह तहसीलदार के साथ चाय ही पी रहे थे की उन्हें यह खबर मिली की दस मील दूर एक गाँव में एक बाघ ने एक बछड़े को अपना शिकार बनाया है। जिम साहब वहां पहुंचे और जगह का मुआयना किया । जिम साहब उस स्थान तक गए जहा कहा जाता था की बाघिन पानी पीने आती थी। अगले दिन जिम साहब के पास एक व्यक्ति खबर ले के आता है की उसके गाँव में बाघ ने एक लड़की का शिकार किया है। जिम साहब उस व्यक्ति साथ भागते भागते उस स्थान पर पहुँचते हैं । जिस जगह पर बाघिन ने उस लड़की पर हमला किया था वह खून का छोटा सा तालाब बन गया था करीब ही मोतियों की टूटी हुआ माला थी जो शायद उस लड़की की ही थी। जिम साहब उस लड़की के रक्त के निशानों का पीछा करते हुए आगे बढ़ते हैं । ५००-६०० यार्ड्स आगे बढ़ने पर उन्हें एक झाड़ियों के पीछे स्थान दीखता है जहा ऐसा लगता था वह बाघिन अपना मांस खा रही थी लेकिन जिम साहब द्वारा की आवाज से वो आगे बढ़ गयी थी। वही जिम साहब को लड़की का कटा हुआ पैर दिखाई देता है जिसके बारे में जिम साहब कहते है की इससे ज्यादा करुणामयी दृश्य शायद उन्होंने देखा हो। उस पैर को देखने के बाद जिम साहब उस बाघिन के बारे में भूल जाते हैं। तभी अचानक उन्हें अहसास होता है वो धीरे धीरे अपनी राइफल की ट्रिगर पर अपनी अंगुलियाँ रखना शुरू कर देते हैं। वो धीरे धीर आगे बढ़ते हैं तो पाते हैं की बाघिन आपने शिकार को एक बहुत ही घने जंगले में ले के घुस जाती है। जिम साहब कहते हैं की उस दिन उन्होंने उस बाघिन के आराम करने के स्थान को कई बार खोज निकला था चूँकि जिम साहब को एक ढलान - ऊंचाई वाली स्थानों से दो चार होना पड़ रहा था तो वह बाघिन इसका फायदा उठा रही थी और अपने शिकार का भरपूर मजा ले रही थी। यह लड़की उस बाघिन का ३६४ वां शिकार थी और ऐसा पहली बार हो रहा था की कोई उसको शिकार खाने में बार बार डिस्टर्ब कर रहा था और उसके पीछे लगा पड़ा था।
जिम साहब कहते हैं की इस कहानी को पढना आसान है लेकिन जब आपको बार बार बाघ के गुर्राने की आवाज सुनाई दे तो एक समय डर लगता है की कही मैं तो उसका अगला शिकार नहीं हूँ तो एक समय आशा नज़र आती है की मैं शायद उसका शिकार कर लूं। अगर बाघिन अपना गुस्सा खो दे मुझ पर हमला कर दे तो मुझे वह अवसर प्राप्त हो जाएगा जिसके लिए मैं आया था लेकिन जो दर्द और घाव मुझे वो देगी वह भी प्राप्त होगा।
[उपरोक्त वाक्यों से और ऊपर बयाँ की गयी बाघिन का शिकार करने की शुरुआत, इतने शानदार है की मुह से बस "हे भगवान्" निकलता है। वह बाघिन अब तक ३६४ शिकार कर चुकी थी और जिम साहब को बार बार ऐसा लगता है की अगला शिकार वो होंगे। जिम साहब ने सही कहा की कहानी पढना आसान है लेकिन जब आपके सामने वही परिस्थिति आ जाती है तो बस एक समय डर लगता है की मैं उसका शिकार न हो जाऊ या आशा नज़र आती है उससे बच जाने की। ऐसा ही होना चाहिए। डर और आशा दो पहलु हैं किसी भी परिस्थिति के लिए। आपको दोनों को स्वीकार करना पड़ता है। जिस प्रकार से जिम साहब ने उस बाघिन का लगातार पीछा किया और बार बार परेशान किया वो भी अकेले वो शानदार था।
जिम साहब ने उस दिन की यात्रा वही समाप्त कर वापिस आये उस लड़की के पैर को जमीन में दबा दिया ताकि आगे उसका अंतिम संस्कार हो सके। गाँव वापिस लौटकर उन्होंने तहसीलदार को अगले दिन कुछ आदमी इकट्ठे करने को कहा। अगले दिन दोपहर तक लगभग ३०० लोग इस कार्य के लिए इकट्ठे हो चुके थे। जिम साहब ने तहसीलदार के द्वारा कुछ लोगों को बंदूकें दी ताकि निश्चित इशारे पर वो फायर करें और उसके बाद कुछ लोगो को नगाड़े पीटने के लिए लगाया । जिम साहब कुछ दूर तक तहसीलदार के साथ गए फिर एक स्थान पर उन्होंने तहसीलदार को छोड़ ढलान से निचे उतर रहे थे तो अचानक गोलियां चल पड़ी और नगाडो की आवाज आणि शुरू हो गयी। लगता था वो सोच रहे थे की जिम साहब इशारा करना भूल गए थे। जिम साहब अभी भी तय स्थान से दूर थे । जिम साहब तय स्थान पर पहुँच कर झाड़ियों अपने आप को स्थापित कर लिया ताकि सही से निशाना लगा सके। तभी दाई तरफ से बाघिन आती दिखाई दी ऊपर खड़े तहसीलदार ने उस पर दो बार फायर कर दिया। बन्दूक की आवाज से घबरा कर वह पीछे हटने लगी और झाड़ियों में गायब हो गयी। जिम साहब ने एक और निशाना लगाया। तीन गोलियों की आवाज सुनने के बाद नगाडो के आवाज आने बंद हो गए। तभी बाघिन बायीं तरफ से मेरी तरफ को निकली। जिम साहब ने उसका निशाना तो सही लगाया था पर अभी भी वो जीवित थी । अब जिम साहब ने बाघिन के कंधो का निशाना साधा और फायर कर दिया। लेकिन वो अब भी आगे बढ़ी जा रही थी। जिम साहब के पास बस तीन गोलियां ही थी। उन्होंने सोचा था की २ गोलियों से ही बाघिन का काम तमाम हो जाएगा और तीसरी गोली इमरजेंसी के लिए थी।
जिम साहब के शब्दों में -
लेकिन बाघिन ने सामने आने के बजाय एक दुसरे झाडी की तरफ जाना शुरू किया । मैंने ऊपर जा कर तहसीलदार से बन्दूक ली और उस झाडी की तरफ बढ़ना शुरू किया जिस तरफ बाघिन गयी थी। बाघिन मुझे देखते ही झाडी से बाहर आ गयी और मेरे तरफ बढ़ी अब मेरे और बाघिन के बीच बस २० फुट की दूरी थी मैंने निशाना लगाया और फायर कर दिया लेकिन शायद बन्दूक में कुछ तकनिकी समस्या थी जिस कारन मेरे निशाना बाघिन का सर होने के बजाय उसका पंजा बना। उसके बाद वो धीमी पड़ गयी और शायद वो उसकी आखिरी सांस थी। मुझे डर लग रहा था की मैं कैसे चेक करूँ की वह मर चुकी है।
सभी नगाड़े बजने वाले निचे आ गए थे उन्होंने एक बांस की लकड़ी पर बाघिन के चारो पंजो को बाँधा और अपने गाँव ले गए ताकि गाँव की महिलाओं और बच्चो को दिखा कर उनके दिल का डर दूर किया जा सके।
[ यह जो आखिरी के ६ पन्ने थे वो इतने ग्रिप्पिंग थे , इन पन्नो पर लिखित शब्दों ने मुझको बाँध दिया था । ऐसा लग रहा था की मैं उस घटना का साक्षात् प्रत्यक्षदर्शी हूँ। जिम साहब ने जिस तरह इन घटनाओ के छोटे छोटे से हिस्से का बयां किया वो काबिलेतारीफ है । बाघिन के द्वारा शिकार हुए उस लड़की के पैर का इतना विस्तृत और सजीव वर्णन आसानी से देखने को नहीं मिलता। जब दो गोली खाने के बाद भी बाघिन जिम साहब की ओर बढ़ रही थी तो मेरी साँसे रुक सी गयी थी। लेकिन जैसे ही उसने अपनी राह बदली और झाडी में छुप गयी मैंने रहत की सांस ली। उस झाडी का , रास्तों का, पहाड़ो का, वृक्षों का बहुत ही सजीव वर्णन किया गया है। कहानी के आखिरी पन्नो में बाघिन के मृत शारीर से खाल निकलने के बारे में बहुत ही शानदार वर्णन किया है जिम साहब ने। वही जिम साहब द्वारा अपने पैरों के आवाज को दबाने के लिए नगाडो और बंदूकों की आवाज का प्रयोग करना या बाघिन को अपने छुपने वाले स्थान से निकलने इस ट्रिक का प्रयोग करना बहुत ही सुन्दर था। आशा है आगे की कहानियों में मुझे इससे ज्यादा थ्रिल, डर, और मजा का अनुभव होगा। तब तक " हैप्पी रीडिंग"]
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विनीत
राजीव रोशन
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