लाल पंजा
श्री दुर्गा प्रसाद खत्री
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रक्त मंडल सीरीज की दूसरी किताब है "लाल - पंजा" । इसी सीरीज का पहला उपन्यास "प्रतिशोध" की समीक्षा प्रस्तुत कर चूका हूँ । यह पुस्तक ऐसा नहीं है की जिसने प्रतिशोध नहीं पढ़ा वह इसे नहीं पढ़ सकता। इस उपन्यास की कहानी "प्रतिशोध" की कहानी से आगे नहीं बढती। और अगर बढती भी होगी तो उसका खुलासा इस सीरीज के तीसरे उपन्यास "रक्त-मंडल भाग-१" पता चलता होगा। मतलब कोई भी नया पाठक इसे हाथ में उठाकर पढ़ सकता है और इसके रोमांच में खो सकता है।
कहानी है एक ऐसे व्यक्ति या समूह की जो आगरा में बोल के चोरियां या डाके डालता है। वह डाका डालने से पहले उस व्यक्ति के पास एक पत्र भेजता है, जिसके यहाँ डाका डालना चाहता है और पत्र द्वारा यह समूह पहले ही बता देता ही की वह फलां चीज फलां समय चुराने वाला है । यह समूह या व्यक्ति उस पत्र के नीचे किसी प्रकार का नाम नहीं लिखता, बस एक लाल-पंजे का चिन्ह बना होता है। कमाल की और चौकाने वाली बात यह होती है की वो इसी प्रकार आगरा शहर में लगातार कई चोरियां करता जाता है और किसी को खबर भी नहीं लगता की यह चोरी कैसे हुई। इस प्रकार की चोरी से आगरा शहर में अंग्रेज अफसरों के छक्के छुट जाते हैं। अंग्रेज अफसर कई प्रकार के कड़े से कड़े इंतजामात करते हैं पर उन कड़े इंतजाम के बाद भी "लाल-पंजा" अपनी बात पर खड़ा उतरता है। लेकिन उपन्यास के मध्य भाग में पुलिस के हाथ लाल-पंजा का एक नोटबुक लग जाता है। लेकिन पुलिस उसका कोई मतलब नहीं समझ पाती क्यूंकि सभी पन्नो पर संख्याओं और रेखाओं से कुछ लिखा हुआ है। पुलिस इसके लिए एक प्रसिद्द वैज्ञानिक से मिलती है और उसे उस नोट-बुक का एक पन्ना दिखाती है। वह वैज्ञानिक इस पुर्जे में लिखित गुप्त सन्देश को समझ लेता है। इस पर पुलिस के अफसर खुश हो कर वैज्ञानिक को पूरा नोटबुक देने को कहते हैं। इसी बीच लाल-पंजा पुलिस अधीक्षक की बेटी को अगवा कर लेता है और बदले में अपनी नोट बुक की मांग करता है। पुलिस पुलिस-अधीक्षक की बेटी का पता लगाने में नाकाम रहती है। लेकिन पुलिस अधीक्षक इस मांग को खारिज कर नोटबुक वैज्ञानिक को देने का निश्चय करता है। मुक़र्रर समय और दिवस पर वैज्ञानिक पुलिस अधीक्षक के पास आते हैं और नोटबुक ले कर जाते हैं। पर बाद में पता चलता है की जो वैज्ञानिक आया था वह बहुरुपिया था । लेकिन पुलिस अधीक्षक ने कुछ पन्नो की छायाचित्र खिंच रखी थी । पुलिस अधीक्षक उन छाया चित्र को वैज्ञानिक को दे देता है। वैज्ञानिक कड़ी मेहनत के बाद उन पन्नो में छुपे गुप्त सन्देश का पता लगा लेता है। वैज्ञानिक के अनुसार लाल-पंजा तय दिवस पर एक बहुत ही भयानक कार्य को अंजाम देने वाला होता है। दोस्तों इससे आगे कहानी आप सभी खुद पढ़ें तो अत्यधिक मजा आएगा।
उपन्यास में ९-१० जगह पर चोरियां होती है और कैसे होती है इसके बारे में उपन्यास में कही उल्लेख नहीं है। लेकिन एक स्थान एक चोरी कैसे हुई उसका संक्षित उल्लेख है। मैं तो आदि से अंत तक इसे पढता रहा की पता चले की चोरियां कैसे हुई। "लाल-पंजा" को एक अविष्कारक के रूप में दिखाया गया है, जो नए नए आविष्कार करके इन चोरियों को अंजाम देता है। "लाल-पंजा" को सिर्फ बहुमूल्य रत्नों को चुराते हुए ही दिखाया गया है।
उपन्यास में "लाल-पंजा" के साथ कई व्यक्तियों को भी दिखाया गया है जो उसकी सहायता करते हैं। अतः इसे एक व्यक्ति नहीं वरन एक संस्था कहा जाए तो ठीक रहेगा।
उपन्यास का रोमांच आदि-अंत तक बना हुआ रहता है, यहाँ तक की अंत में भी लेखक ने अगले उपन्यास के लिए कुछ रोमांच छोड़ दिया है।
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विनीत
राजीव रोशन
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