Skip to main content

निम्फोमानियाक (समीक्षा)




निम्फोमानियाक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक





नाटक
-------------
एक नाटक जिसे कभी खेल नहीं गया........
लेकिन....
भविष्य कहता है की आगे यही नाटक खेल जाने वाला है और बुलंदियों को छूने वाला है .....
दोस्तों मैं पेश करने जा रहा हूँ आज एक ड्रामा/नाटक........

-----------------------------------प्रथम दृश्य ------------------------------------------

पर्दा उठता है .....

[कमरे का दृश्य। कमरे में हलकी सी रोशीनी। रात का समय। घडी लगभग २:३० बजा रही है। सुधीर कोहली अपने बिस्तर पर लेटा लेटा विचारों में खोया हुआ था की घर के बाहर उसे एक गाड़ी रुकने की आवाज सुने दी, साथ ही साथ एक और गाड़ी की खरखराती हुई आवाज सुनाई दी। तभी फ़ोन की घंटी दुबारा बजी। ]

सुधीर - "हेल्लो, कौन? हाँ बोल रहा हूँ।"

[दरवाजे की घंटी बजती है। सुधीर उठ कर दरवाजा खोलता है तो वह अपनी भूतपूर्व पत्नी मंजुला को पाता है। मंजुला दरवाजे के सहारे झूल रही थी। ]

सुधीर "अब तुमने पीना भी शुरू कर दिया?"

[मंजुला बस लहराकर गिरने ही वाली थी की सुधीर ने उसे अपनी बाहों में संभल लिया। सुधीर अपने हाथ में कुछ तरल तरल सा महसूस करता है जब वो गौर से रौशनी में देखता है तो पता है खून। तब सुधीर को अहसास होता है की मंजुला की यह हालत कैसे हुई है। ]

सुधीर " ये सब कैसे हुआ मंजुला और किसने किया?"

मंजुला" सुधीर....(कराहते हुए)...मैं तुम्हारी गुनाहगार हूँ? मैंने तुम्हारे साथ बहुत ही बुरा किया। लेकिन मुझे ख़ुशी है की मैं तुम्हारे बाँहों में दम तोड़ रही हूँ। 

[मंजुला का शारीर ठंडा पड़ता जाता है। सुधीर उसके शरीर को बाँहों में अपनी गोदी में पकडे रहता है। सुधीर उठता है और कुर्सी पर बैठ जाता है। वो फ़ोन उठता है तो दूसरी तरफ से अभी भी वो लड़की बोल रही है।]

सुधीर " हाँ बोलो, मैं सुधीर ही बोल रहा हूँ"
" हाँ मैं सुधीर कोहली ही बोल रहा हूँ"
"अच्छा!"
"तुम कहा हो अभी"
"क्या तुमने उसको पहचाना"
"ठीक है तुम अपने दरवाजे को बंद करके रखना मैं आता हूँ"

[सुधीर ने दरवाजे से मजुला के शरीर को हटाया ताकि दरवाजे से बहार निकल सके। उसने बहार निकलने से पहले एक बार और मंजुला के मृत चेहरे की और देखा। ]

सुधीर (मन ही मन सोचते हुए) " कितनी सुन्दर है मंजुला, मरने के बाद भी इसके चेहरे का नूर कम नहीं हुआ है"

सुधीर नीचे आता है तो अपने फ्लैट के सामने एक अम्बेसडर खड़ी पाता और चाबी अभी भी गाड़ी में लगी है। सुधीर कार के अन्दर झांकता है तो उसे एक बैग मिलता है जिसमे कर सम्बंधित जानकारी है।

सुधीर फिर अपने फ्लैट में पहुँचता है। वो फ़ोन मिलाता है।

सुधीर " हेल्लो, मलकानी"
"हाँ यार जल्दी मेरे फ्लैट पर आओ"
"यहाँ किसी का खून हो गया है"
"मेरी पूर्व पत्नी मंजुला का"
"और यहाँ आने के बाद पुलिस को भी खबर कर देना। मैं मंजुला की सहेली से मिलने जा रहा हूँ क्यूंकि शायद वो भी मुसीबत में है अभी उसका फ़ोन आया था"
"उनको बोल देना की तुम्हे नहीं पाता"
"ओके"


सुधीर बहार निकला, दरवाजे को ताला लगाया और चाबी उसने लैटर बॉक्स में डाल दी। वो अम्बेसडर के पास आया, दरवाजा खोल और चाबी घुमा के शुरू कर दिया। अब गाड़ी सुनसान सड़कों पर रात के तीन बजे दौर रही थी। 

----------------------------------------द्वितीय दृश्य -------------------------------------------

सुधीर ने गाड़ी सोनाली के घर से थोडा आगे ले जा के गली में रोकी। सुधीर सोनाली के घर के दरवाजे के बाहर घंटी बजाता है लेकिन दरवाजा खुला हुआ है, सुधीर दरवाजा धकेल कर अन्दर घुसता है तो अपने सामने एक पिस्तौल लिए व्यक्ति को पाता है। सुधीर उस व्यक्ति को काबू करने के लिए उस पर छलांग लगा देता है। सुधीर उसे बहुत मारता है। 

सुधीर " वो लड़की कहा है?"

दूसरा व्यक्ति के कमरे की तरफ इशारा करता है । सुधीर को सोनाली बड़ी ही दयनीय हालत में नजर आती है। सुधीर उसे बन्धनों से मुक्त करता है और कपडे पहनने के लिए कहता हुआ बहार आ जाता है। सोनाली बाहर आती है।

सुधीर " क्या ये दोनों वही दोनों लोग है"

सोनाली " हाँ यही दोनों हैं, कुछ दिनों से मंजुला इन्ही दोनों के साथ थी| लेकिन इसका साथी यहाँ दिखा नहीं| इसका नाम राजीव है और इसके दुसरे साथी का नाम डेविड है| मंजुला २ दिन पहले यह बोल के निकली थी वो इन दोनों के साथ अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम करने जा रही है| उसने कहा था की वो कल सुबह तक वापिस आ जाएगी लेकिन आज दोपहर तक नहीं आई तो मुझे उसकी चिंता होने लगी| आज रात जब मैं दस बजे अपनी ड्यूटी से वापिस आई तो इसे अपने घर के आस पास घूमते देखा| मंजुला ने मुझे बताया था की अगर उस पर कोई मुसीबत आ जाये तो तुम्हे बताये "

सुधीर राजीव के सामने पिस्तौल रखता है और पूछता है 

सुधीर " तेरा दूसरा साथी कहा है और मंजुला तुम लोगों के साथ कौन सा ऐसा काम करने वाली थी?"

राजीव पिस्तौल सामने देखते ही अपना मुह खोला " मैंने और और डेविड ने पानीपत की एक फैक्ट्री के पेरोल का पैसा लूटने का प्लान बनाया था| डेविड मंजुला का दीवाना था तो उसने मंजुला को प्लान के बारे में बता दिया तो मंजुला भी साथ देने का जिद करने लगी इसलिए मजबूरन उसे साथ लेना पड़ा| हमने कल उस फैक्ट्री में डाका डाला| लेकिन डेविड और मंजुला मुझे फैक्ट्री में छोड़ के चले आये| उसके बाद से मैं उनकी तलाश में डेविड के होटल रूम में पहुंचा पर पता चला की वहां से वो लोग निकल चुके है और इसलिए उसके घर की निगरानी कर रहा था| बाद में मैंने इससे पूछने की कोशिश के कारन ही यहाँ आया था| और मैं सिर्फ इसे डरना चाहता था|

सुधीर " साले देख तूने इसे डराया है?"

सुधीर ने एक लात उसे रसीद की और उसका हाथ पैर बांध दिया|

सुधीर " सोनाली, तुम अभी यहाँ नहीं रह सकती| इसका दूसरा साथी अभी पकड़ा नहीं गया है| तब तक तुम किसी सहेली के यहाँ रह लो|"

सोनाली "ठीक है"
सोनाली " सुधीर, मंजुला तुम्हे बहुत चाहती थी, उसको बिमारी ही ऐसी थी लेकिन वो तुम्हे बहुत चाहती थी। क्या ऐसा नहीं हो सकता की फिर से तुम दोनों एक हो सको"
सुधीर" नहीं अब तो ऐसा हो ही नहीं सकता। क्यूंकि मंजुला मर चुकी है"

सोनाली का मुह देखने लायक था। उसके चेहरे पर बड़े ही आश्चर्य के भाव थे। और उसने रोना शुरू कर दिया। सुधीर ने उसे ढाढस बंधाया और सारी कहानी बयां कर दी।
सुधीर अपने फ्लैट पर फ़ोन करता है और मलकानी से बात करता है|

सुधीर " मलकानी, जब पुलिस आ जाए तो उन्हें बोलना की यहाँ से पानीपत में पड़े डाके के एक मुजरिम को ले जाए और पुलिस को जल्दी भेजना यह बुरी हालत में है|"

सोनाली ने अपने कुछ कपडे एक छोटे से सूटकेस में रखे और सुधीर के साथ बहार निकली| सुधीर ने राजीव को फ्लैट के दरवाजे के बाहर दाल दिया| सुधीर उसी अम्बेसडर में बैठा और सोनाली को अपनी सहेली के घर छोड़ के आया| 

-----------------------------------तृतीय दृश्य :------------------------------------------

सुधीर मंजुला के घर और अपने पूर्व ससुराल पहुंचा| वहाँ मंजुला की बहन मृदुला और उसकी बीमार माँ रहती थी| सुधीर ने दरवाजे को घंटी बजायी तो दरवाजा मृदुला ने खोला लेकिन उसके बगल में डेविड मृदुला के कमर से पिस्तौल लगाये खड़ा था। उसने मुझे भीतर आने को रास्ता दिया, मैं अन्दर पहुंचा। मृदुला सोफे पर बैठ गयी और उसने मुझे दीवार की तरफ लगने को कहा। मैं दीवार से चिपक गया जा कर। 
सुधीर " अभी तेरे एक जात भाई की बुरी गत करके आ रहा हूँ। बेचारा जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। विश्वास न हो तो मेरी कोट का जेब देख इसमें उसके पिस्तौल के कुछ टुकड़े भी होंगे"

डेविड ने मेरी तरफ बढ़कर मेरी कोट के जेब में हाथ डाला और पिस्तौल के टुकड़े निकाले।

डेविड " मंजुला कहा हैं?"
सुधीर "मंजुला तो तुम्हारे साथ होनी चाहिए थी, वो तो तुम्हारे साथ थी"।
डेविड " मैं तो २ मिनट के लिए होटल के कमरे से बहार गया था, वो तो सारा पैसा ले के रफूचक्कर हो गयी"

अब डेविड के चेहरे पर बड़े खूंखार भाव थे तभी मृदुला चीख पड़ी और उसी समय सुधीर ने मौका देखते हुए उसपर छलांग लगा दी और सुधीर और डेविड दोनों टकराने के बाद गिर पड़े। सुधीर को बहुत देर बाद होश आया। उसने उठ कर देखा तो मृदुला को बंधा पाया। डेविड जा चूका था। वो सुधीर का पर्स और पिस्तौल दोनों ले जा चूका था। सुधीर किचन से चाकू ले आया और मृदुला की रस्सी काट दी । 

सुधीर " तुम ठीक हो"
मृदुला "हाँ....मैं ठीक हूँ"
सुधीर " तुम्हारी माँ कहा है"
मृदुला" वो हॉस्पिटल में भर्ती है, उनको दिल का दौर पड़ा था। लेकिन सुधीर ये सब क्या हो रहा है।"
सुधीर उसे पानीपत के डाके वाली कहानी सुना देता है। 
मृदुला" मंजुला कहा है सुधीर"
सुधीर " मृदुला, मंजुला अब नहीं रही"
सुधीर उसे पूरी कहानी सुनाता है । मृदुला फफक-फफक कर रोना शुरु कर देती है। मृदुला सुधीर के कंधे पर अपना सर के रख के रोटी है। सुधीर उसे सांत्वना देता है । सुधीर टेलीफोन की तरफ जाता है और अपने फ्लैट पर फ़ोन करता है। लेकिन उसे आवाज इंस्पेक्टर यादव की सुने देती है। 
सुधीर" हेल्लो, सुधीर बोल रहा हूँ"
यादव" मिल गया टाइम तुम्हे फ़ोन करने का। कहाँ थे अब तक।"
सुधीर उसे सारी कहानी बताता है। वो यादव को डैकैती की कहानी भी बताता है। 
यादव" हाँ , हमें रकम भी मिल गयी है"।
सुधीर" कहाँ?"
यादव "तुम्हारे पलंग के निचे एक बैग में डकैती की पूरी रकम मिल गयी है। अब तुम जल्दी यहाँ पहुँचो"
सुधीर "ठीक है मैं आता हूँ"


---------------------------------------चतुर्थ दृश्य -----------------------------------------

सुधीर उसी अम्बेसडर में अपने फ्लैट पर पहुँचता है। यादव को पूरी बात बताता है की कैसी सोनाली के घर राजीव से और मृदुला के घर डेविड से उसकी भिडंत हुई। कैसी मंजुला ने उसके बाहों में दम तोडा था। 

यादव" तुम्हरे घर से डकैती के पैसे मिले हैं और तुम्हारी पूर्व पत्नी की लाश मिली है तुम्हे कुछ कहना नहीं है।"
सुधीर" यार मैंने कोई क़त्ल नहीं किया, और मैं तुमको बता चूका हूँ की मेरी पूर्व पत्नी कैसी थी। मैं उसके कबका तलाक दे चूका था। पता नहीं वो आज क्यूँ मेरे पास आई थी। और ये डकैती के पैसे मेरे जाने के बाद कातिल ने वापिस आ कर रखे होंगे"
यादव" ठीक है मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ, अब मंजुला के कौन कौन से करीबी दोस्त थे उसके बारे में पता कैसे लगाया जाए"
सुधीर"सोनाली को पता हो सकता है" 

सुधीर फ़ोन की तरफ बढ़ा और जब वापिस लौटा तो उसने यादव को बताया

सुधीर " मंजुला के डेविड और राजीव के अलावा तीन पक्के दोस्त थे एक फोटोग्राफर, एक म्यूजिशियन और लेखक है"
यादव " ओके, हम इनको बाद में टटोलेंगे पहले सोनाली/मंजुला के घर चलते हैं शायद वहां से कोई सुराग मिल जाए"

-------------------------------------पंचम दृश्य :----------------------------------------------

मंजुला के घर के बहार का दृश्य। यादव ने अपनी पुलिस वैन मंजुला के घर के आगे रोकी। उसने जो कांस्टेबल तैनात किया था वो पिछली अम्बेसडर से बाहर आया। 

"सर, यहाँ बहुत देर से एक दो रंगी फ़िएट चक्कर मार रही है, मेरे ख्याल से वही है"
"अच्छा ठीक है अब आएगी तो देखेंगे"
तभी फ़िएट धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ी आ रही थी। यादव ने अपनी जीप को बीच में तिरछा ला खड़ा कर दिया ताकि अम्बेसडर को रास्ता न मिल सके। लेकिन जैसे ही अम्बेसडर के चालक ने पुलिस की गाड़ी देखि तो स्पीड बढ़ा दी और जीप के पिछले हिस्से में टक्कर मारती हुई आगे बढ़ गयी। यादव ने आपनी जीप और कांस्टेबल ने अपनी कार उस फ़िएट के पीछे लगा दी। कुछ देर की चूहे बिल्ली के खेल के बाद फ़िएट वाले से कार नहीं संभली और उसने अपनी कार एक शोरूम में घुस दी। यादव और सुधीर ने फ़िएट के चालाक की पहचान की वो डेविड ही था। उसे तुरंत हॉस्पिटल भेज गया। 

यादव" यार वो तेरी पूर्व पत्नी थी की क्या थी, मरने से पहले उसने इतना हंगामा मचाया हुआ और मरने के बाद चौबीस घंटों के अन्दर इतना हंगामा हो चूका है"
सुधीर चुप था !!!!!!!!

यादव " चलो अब मंजुला के उन तीनो दोस्तों के पास चलते हैं, हो न मंजुला डेविड के पास से होटल से निकलने के बाद और तुम्हरे पास पहुँचने से पहले उन तीनो में से किसी के पास जरूर गयी थी " 


--------------------पहला भाग समाप्त -----------------------------------------------------------



दोस्तों नाटक का पहला भाग संपन्न हुआ। आशा करता हूँ की आप सभी को नाटक बहुत पसंद आया होगा । अभी आप सभी के मन में कई प्रश्न होंगे जिनके जवाब कल मिलेंगे। कल इसी नाटक का अंतिम भाग पेश किया जाएगा। 

* सुधीर कोहली की बीवी क्या थी ?
** उसने मरने से पहले क्या किया था?
***सुधीर कोहली से उसका तलाक क्यूँ हुआ था?
****मंजुला सुधीर कोहली के घर क्यूँ आई थी?
*****मंजुला का कातिल कौन था?
******क्या उसके तीनो दोस्तों में से कोई मंजुला का कातिल था?

दोस्तों आप लोगों को बताते हुए मुझे आपार हर्ष होता है की यह ड्रामा महान उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक जिन्होंने अपने लेखन जीवन में २८० के करीब उपन्यास लिखे है और जिनका जासूसी/थ्रिल्लर उपन्यासों को लिखने में नाम विख्यात है उनकी बहुत ही शानदार कृति "निम्फोमानियक" से लिया गया है। "निम्फोमानियक" एक ऐसा उपन्यास है जिसे अति-विशिष्ट श्रेणी में रखा जाए तो दो-राय नहीं होगा। अगर आप में से किसी ने यह कृति ना पढ़ी हो तो जल्द से जल्द अपनी सेल्फ से निकालें और पढ़ डालें। और अगर किसी ने लम्बे समय से ना पढ़ी हो तो उनके लिए भी यही राय है। 
जिनके पास यह उपन्यास नहीं है उनके लिए तो खासतौर से कहना चाहूँगा की शानदार उपन्यास को पढने का एक शानदार मौका है आप लोगो के पास लाइब्रेरी के रूप में। जी हाँ जिनके पास यह उपन्यास नहीं है वो इस उपन्यास को लाइब्रेरी के सदस्य के रूप में हासिल कर सकते हैं। यह लाइब्रेरी दिल्ली में कार्यरत है । जरूरी नहीं की आप दिल्ली आकर इस लाइब्रेरी की सेवाएं उठायें। आप जहा हैं वही से इस लाइब्रेरी की सेवाएँ उठा सकते हैं। आशा करता हूँ की जल्द ही आपको वो उपन्यास पढने को मिलेंगे जिन्हें आपने कभी पढ़ा नहीं होगा। 

महत्वपूर्ण सूचना :- सभी दोस्तों, भाइयों और सम्मानित सदस्यों को मैं बताना चाहूँगा की यह "ड्रामा" "निम्फोमानियक" उपन्यास में से लिया गया। हो सकता है की कही मैंने किरदार के नाम बदल दिए हों। क्यूंकि एक दिन के बाद में उपन्यास की कहानी भूलना शुरू कर देता हूँ। कही मैंने संवादों को छोटा बनाने की कोशिश की है जिससे कुछ अति महत्वपूर्ण संवाद छुट गए हो। इन सभी त्रुटी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। 


----
विनीत
राजीव रोशन

वाह...
बहुत दिनों के बाद सुधीर सीरीज का उपन्यास पढ़ा है। मैं शुरू से ही सुधीर सीरीज का दीवाना रहा हूँ। एक दिल्ली का है ऊपर से सभी मिजाज दिल्ली वाले लगते हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है की शायद आगे जो व्यक्ति गया वो सुधीर कोहली ही है। जब कभी नेहरु प्लेस जाना होता है तो बरबस ही यूनिवर्सल इन्वेस्टीगेशन की बिल्डिंग का बोर्ड देखने के लिए मेरी नज़रें ऊपर की ओर उठ जाती है। 

जब एक सुधीर के उपन्यास में ये पढ़ा था की सुधीर द्वारा अपनी पत्नी के कल के छानबीन से सम्बंधित उपन्यास है तो मैंने सोच लिया था जरूर पढूंगा। जब दुसरो के सुधीर इतना कुछ कर जाता है तो जब अपनी पर बन आएगी तो क्या क्या करेगा। लेकिन उपन्यास आसानी से ढूंढे नहीं मिला। दरअसल मुझे तो मिला ही नहीं। लेकिन जब लाइब्रेरी ज्वाइन की तो तब भी इस उपन्यास को न लिया क्यूंकि नाम ही इतना बड़ा था इसका "निम्फोमानियक" । लेकिन इस बार जब लाइब्रेरी विजिट किया तो बस ले ही लिया और २४ घंटे के अन्दर ख़तम भी कर दिया। 

उपन्यास का प्रारंभ कितना शानदार है इसके बारे में मैं शब्दों में बयां कर पान मुश्किल समझता हूँ। अपनी बेवफा पत्नी के लिए सुधीर के प्रेम भरे शब्द। क्या कहूँ दोस्तों जब मंजुला सुधीर से अपने कुकृत्यों के लिए माफ़ी मांगती है तो मेरे हालात भी वैसे ही हो जाते हैं जैसे सुधीर के थे। तब मेरे समझ में नहीं आया था की क्यूँ यह माफ़ी मांगती है। लेकिन जैसे ही सुधीर अपनी कहानी को बैकग्राउंड में ले जाता है। सभी परते खुलनी शुरू हो जाती है। बस इसी बैकग्राउंड हिस्से में आपको कुछ मुस्कराहटों के पल भी नज़र आयेंगे। वहीँ सुधीर के फ्लैट के आगे २ कारों का आकर रुकना और एक कार का जायदा आवाज करना यह फैक्टर बहुत ही शानदार डाला था पाठक साहब ने। इंस्पेक्टर यादव के साथ सुधीर की टाइम फैक्टर पर बातचीत ऐसी लगी की अगर उस वक्फे में मुझे कोई डिस्टर्ब करता तो रख के सुनाता उसको। 

यादव और सुधीर द्वारा फोटोग्राफर और लेखक के से की गयी बातचीत शायद एक अमर वार्तालाप कहलायेगा क्यूंकि यही से लिए गए कुछ वाक्यों को सुधीर अपनी अगली कई उपन्यासों में प्रयोग करता आया है। 

कहानी में मुझे एक अनावश्यक हिस्सा वो लगा जब यादव और सुधीर द्वारा डेविड का पीछा किया जा रहा था। मुझे लगा की वो हिस्सा बेकार में ही लम्बा बढाया गया है। 

कातिल द्वारा एक भी सबूत न छोड़ना बड़ा आश्चर्य की बात है। कातिल ने बैग के हैंडल पर हाथों के प्रिंट जरूर छोड़े होंगे। 

सबसे खौफनाक हिस्सा इस कहानी का वो हिस्सा है जिसमे मंजुला बचपन और मृदुला के भूतकाल को दर्शाया गया है। बहुत ही घृणा, दया, करुणामई मंजर लगता है मुझे। 

दोस्तों यही कहूँगा की सुधीर को समझने में इस उपन्यास ने मुझे "मील का पत्थर" साबित किया है। मैंने इस उपन्यास को बहुत ही एन्जॉय किया क्यूंकि एन्जॉय करने वाली सभी मसाले इसमें मजूद है। मसालों के साथ साथ यहाँ हमें पाठक साहब द्वारा सामाजिक सन्देश भी मिलता है। 
अब अगर सामाजिक सन्देश के बारे में लिखूंगा तो सभी mystry खुल जायेंगी। 

आप सभी के अनुभवी शब्दों की प्रतीक्षा रहेगी। 

-----
विनीत
राजीव रोशन



Comments

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया गया थ

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया और बैंक की

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को कहा। और व