Skip to main content

Nothing Last Forever - No Secret can Stay Buried by Vish Dhamija



Nothing Last Forever - No Secret can Stay Buried


लेखक - विष धमीजा

प्रकाशक - सृष्टि प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष - २०११

समीक्षा
----------
मैंने कुछ दिनों पहले "Nothing Last Forever " पढ़ी। मैं साधारणतः भारतीय लेखको को पढना पसंद करता हूँ । मैं आसानी से उनके द्वारा लिखी गयी घटनाओ के साथ आपने आप को जोड़ पता हूँ क्यूंकि वो भारतीय पृष्ठभूमि पर लिखे गए होते है। और भाषा शैली भी बहुत पसंद आता है और समझ में भी आता है। जब मैंने इस किताब को ख़रीदा था तो सिर्फ बुक का टाइटल देख कर, मैंने सोचा खाली समय में पढ़ लिया जायेगा। लेकिन जल्दी ही कहानी और कहानी के प्लाट ने मुझे आकर्षित किया। मैं अपने आपको इस पुस्तक से दूर नहीं रख पाया । मुझे हमेशा यह जानने के इच्छा होती की अब आगे क्या होगा। मैंने बहुत से mystry नावेल और movies देखी जिसमे मैं आगे की कहानी सोचता और वैसा ही पाता। पर इस उपन्यास में, मैं मेरी सोच हर जगह धोखा दे रही थी। मैं प्लाट को आसानी से पकड़ नहीं पा रहा था। लेकिन जहा साजिश का खुलासा होता वही मेरे होठो पर हंसी आ गयी और मैंने आपने कंधे को थपथपाया की मैंने सही किताब खरीदी है। किसी mystry नावेल में जब आप कहानी का अंत आपने हिसाब से सोचते हैं और अंत में कुछ और ही mystry बहार निकल के आती है जिसकी आप आपने स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते। 
किसी भी mystry नावेल में शुरुआत में एक क़त्ल होता है एक जासूस उस हत्या की तहकीकात करता है। लेकिन इस किताब में ऐसा नहीं है, एक सराहनीय साजिश और एक शानदार तरीके से गढ़ी हुई कहानी है, जिसका अंत बहुत ही शानदार तरीके से होता है। पत्रों, घटनाओ एवं स्थानों का जिक्र और उसको बहुत खूबसूरत तरीके प्रस्तुत किया गया है। कहानी को भारत तक ही स्थिर नहीं रखा गया है इसे विदेश के कुछ स्थानों तक ले जाया गया है। 
--------------------------------------------------------------------------------------
कहानी तब शुरू होती है जब सेरेना जो की एक बैंक की कर्मचारी है वो सिंगापुर बैंक के काम से गयी है और उसको सुबह सुबह एक फ़ोन कॉल आता है जिसमे उसे पता चलता है की उसके पति राज की मिर्त्यु हो गयी एक अग्नि दुर्घटना में , जो की उसके घर में घटित हुई है। वो तुरंत मुंबई वापिस आती है। अपने घर पहुँचने पर वो पुलिस इंस्पेक्टर माइकल और उसकी अच्छी सहेली किम मिलती है। पुलिस उसे लाश की शिनाख्त के लिए बुलाती है वो लाश को पहचान पाती है लेकिन बड़ी मुश्किल से, क्यूंकि लाश जल चुकी है। सेरेना पुलिस को बताती है की राज को ciggratte पीने की आदत थी और बहुत लापरवाह भी थे। शायद इसी वजह से यह दुर्घटना हुई और आग लगी। पुलिस अपनी तहकीकात को आगे बढाती है। पुलिस राज का फ़ोन रिकॉर्ड चेक करती है और पाती है की राज ने किम को उस दिन फ़ोन किया था जिस दिन वो सेरेना को छोड़ने एअरपोर्ट गया था। पुलिस किम से इसके बारे में पूछती है तो वो बताती है की राज ने मुझसे बड़े ही आपत्तिजनक बाते की थी जो की उसे नहीं करनी चाहिए थी कल तक उसने ऐसा किया भी नहीं था। पुलिस का शक किम की तरफ जाता है। पुलिस किम से बहुत ही कड़े तरीके से पूछताछ करती है। किम एक उभरती ही फैशन मॉडल है। किम अपने किसी करीबी के द्वारा माइकल पर दबाव डलवाती है की उसे तंग न किया जाये। माइकल को दबाव डाला जाता है की वो इस केस को दुर्घटना का केस मानकर बंद कर दे। इतने अन्तराल में सेरेना और किम और अच्छे दोस्त बन जाते हैं। केस बंद होने के बाद सेरेना अपनी पोस्टिंग देश से बाहर करवाती है। 

राज, कबीर और सेरेना तीनो कॉलेज टाइम से दोस्त थे। तीनो ने एक ही कॉलेज से MBA किया था। कबीर सेरेना को प्यार करता था पर सेरेना राज को प्यार करती थी। कबीर ने MBA करने के बाद PCS ज्वाइन कर लिया और पुलिस सर्विस में चला गया। वही राज ने मुंबई में २-३ साल काम करने के बाद आपनी एक इन्वेस्टमेंट कंसलटेंट कंपनी खोल ली और सेरेना से शादी कर लिया। अब सेरेना और राज एक पारिवारिक जीवन बिता रहे थे। 

कुछ समय के बाद माइकल एक नए ACP के नीचे काम करता है जिसका नाम है कबीर। कबीर को एक घोटाले की तहकीकात करने के लिए दिल्ली बुलाया जाता है। घोटाला है स्टॉक एक्सचेंज में नकली दस्तावेजो का प्रयोग कर ग्राहकों एवं कंपनियों को धोखा देने का। कबीर को इस काम का जिम्मा सौपा जाता है की वो इस घोटाले का पर्दा फाश करे। कबीर को अपना एक सहायक नियुक्त करने के लिए कहा जाता है। जहा कबीर आपने सहायक के रूप में माइकल को चुनता है। तहकीकात के दौरान माइकल को बड़ी सनसनीखेज बात पता चलती है। माइकल को यह पता लगता है की जितने भी नकली दस्तावेज प्रयोग किये गए हैं सभी का सम्बन्ध किसी न किसी तरह राज से है। वह यह खबर ACP कबीर को सुनाता है। कबीर को भी पता लग जाता है की यह राज उसका ही कॉलेज वाला दोस्त है। कबीर उसके बाद एक सनसनीखेज रहस्य का खुलासा करता है। 

हम इस उपन्यास को तीनो भागों में गोता लगा सकते हैं। इस उपन्यास में कई ऊँचे और नीचे की ओर के पल हैं। पहला भाग सेरेना और किम की दोस्ती को दर्शाता है। पहला भाग सेरेने के रूप में श्रेष्ठ बैंक के कर्मचारी को दिखता है। पहला भाग आपको इंस्पेक्टर माइकल को इमानदार रूप दिखाता है और यह भी दिखाता है की कैसे दबाव पड़ने पर इमानदार पुलिस अधिकारीयों को केस बंद करना पड़ जाता है।  दूसरा भाग में आप कबीर, सेरेना और राज के कॉलेज जीवन को देखते हैं। उनके बीच पनप रहे प्रेम को देखते हैं। तीसरे भाग में आप इंस्पेक्टर माइकल और कबीर के द्वारा की जा रही तहकीकात को देखेंगे जो मरे हुए केस को जिन्दा कर देता है और सच बाहर निकल कर आता है। 

सेरेना का किरदार सबसे मजबूत है। एक पत्नी, एक विधवा पत्नी, एक सहेली, एक बैंक की कर्मचारी के रूप में लेखक ने सेरेना को कहानी का बेहतरीन हिस्सा दिया है। किम का किरदार छोटा है पर कहानी का मजा बनाये रक्खने के लिए आवश्यक भी है। इंस्पेक्टर माइकल और कबीर का किरदार भी सशक्त है और कहानी तीसरे भाग में जबरदस्त कार्य किया गया है। बीच बीच में एक इतालवी व्यक्ति का किरदार भी आता है। और अभी कई किरदार हैं लेकिन उनकी व्याख्या की जरूरत नहीं है। 

कहानी धीमा है लेकिन सही प्रकार से लिखा गया है। कहानी का प्लाट बड़ा है और कई किरदार हैं। लेकिन सिर्फ ५-६ किरदार ही इस कहानी में मुख्य रूप से दिखाई देते हैं। लेखक ने रहस्य, नाटक, तहकीकात और संभावनाओं के जाल को बेहतर रूप से बुन कर कहानी हमारे सामने प्रस्तुत किया है। आप कहानी में भारतीय बैंक और विदेशी बैंक में हो रहे क्रियाकलाप और प्रतिदिन के गतिविधियों को देख सकते हैं। जहाँ तक मैं सोचता हूँ लेखक ने बहुत अच्छा रिसर्च करके इस पुस्तक की रचना की है। उपन्यास एक काल्पनिक कथा श्रेणी में है लेकिन कुछ घटनाएं वास्तविकता की ओर इशारा करती हैं।

मैंने इस उपन्यास को पढ़ा है और बहुत मजा भी लिया है। आप भी इसे पढ़ सकते हैं। एक अलग ही प्लाट है, एक अलग ही विचार है, एक अलग ही सोच है। यह उपन्यास कई मायनों में अलग है। आप इस उपन्यास को मिस नहीं कर सकते।


विनीत
राजीव रोशन

Comments

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया गया थ

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया और बैंक की

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को कहा। और व