समीक्षा - "खुनी हवेली"
महिपालपुर की यह हवेली बहुत ही मशहूर
है। इसे खुनी हवेली इसलिए कहा जाता है क्यूंकि इसी हवेली से लगे हुए समुद्र में
ठाकुर विक्रम सिंह की पूर्व पत्नी रूपा एक दुर्घटना में मारी गयी थी लेकिन उसकी
लाश नहीं मिली थी । इसी हवेली की एक मीनार से रूपा की मुह बोली बेटी किरण
दुर्घटनावश गिर के मर गयी थी। यह कोई एक वर्ष पहले की बात है। अब ठाकुर विक्रम
सिंह अपनी पत्नी नीलम के साथ इस हवेली में रहते हैं। रूपा जब जीवित थी तो नीलम
उसकी सहेली थी। रूपा को विश्वसुन्दरी न कहा जाए तो यह उसके सौंदर्य के साथ नाइंसाफी
होगी। नीलम, ठाकुर विक्रम सिंह की जिंदगी में उस समय आई जब रूपा जीवित थी।
उस समय ठाकुर साहब नीलम को बहुत प्रेम करते थे। पर अब नीलम और ठाकुर विक्रम सिंह
में पति-पत्नी होते हुए भी पति-पत्नी जैसा सम्बन्ध बस बोलने को रह गया था। ठाकुर
विक्रम सिंह शराब के बहुत बुरे शौक़ीन हैं। ठाकुर विक्रम सिंह के दुश्मन हैं दामोदर
राणा जो अपनी बहन मुक्त के साथ हवेली के करीब ही राणा फार्म हाउस में रहते हैं। जब
किरण जीवित थी तो उस समय दामोदर राणा, किरण से बेइंतहा मोहब्बत करते थे। दामोदर
राणा का मानना है की किरण की मृत्यु दुर्घटना में नहीं हुई है बल्कि उसका क़त्ल हुआ
है।
ठाकुर विक्रम सिंह ने अपने पिता की
लाइब्रेरी के लिए शहर से अपने मित्र डॉ. परांजपे के अनुरोध पर एक व्यक्ति तरुण को
बुलवाया था जो उस लाइब्रेरी की देखभाल करता। महिपालपुर रेलवे स्टेशन से हवेली तक
का रास्ता तय करने के लिए दो रस्ते हैं। एक तो सड़क के द्वारा और एक जंगले से होकर।
जंगले से होकर जाने में हवेली तक का रास्ता १.५ मिल कम पड़ जाता है। तरुण कुमार जब
रेलवे स्टेशन उतरा तो उसकी आखिरी बस छुट गयी थी। उसे पैदल ही जंगले के रास्ते
हवेली तक का रास्ता तय करना था। पहले उसे दामोदर राणा के फार्म हाउस पर जाना था।
तरुण कुमार जब आधे रास्ते में था तो उसने एक औरत के चीखने की आवाज सुनी। उसने मजार
के करीब एक न. मिला, उसे उसने उठा के अपनी जेब में रख लिया और आगे बढ़ गया। वातावरण
में अँधेरा छा रहा था और बारिश भी हो रही थी। जंगल में अजीब अजीब प्रकार की आवाजें
गूँज रही थी। तरुण कुमार को अचानक सिर में तेज़ दर होने लगा। थोड़ी देर के पश्चात
सिर में दर्द के कारण वह बेहोश हो गया। फिर होश में आने के बाद वो किसी तरह दामोदर
राणा के फार्म हाउस पर पहुंचा और बेहोश हो गया।
उसी शाम पुलिस को पता चलता है की एक
महिला की लाश मजार के करीब मिली है,
जिसका नाम
सुभद्रा मनके हो सकता है । पुलिस अपनी छानबीन शुरू करती है। तरुण कुमार स्वस्थ हो कर पुलिस को बयान देते
हैं की उन्होंने क़त्ल के समय के आसपास जंगल का वह रास्ता तय किया था और एक औरत की
चीख भी सुनी थी। पत्रकार रविकुमार पुलिस को एक कागज़ का टुकड़ा दिखाता है और बताता
है की क़त्ल के समय के आस पास उसने ठाकुर विक्रम सिंह को जंगल वाले रस्ते पर देखा
था। पुलिस को अपने आगामी तहकीकात में पता चलता है की सुभद्रा मनके के पर्स में एक
लॉकेट था। पुलिस जब लॉकेट पर तहकीकात करती है पता चलता है की वह लॉकेट ठाकुर
विक्रम सिंह की पूर्व पत्नी रूपा की थी। लेकिन जब रूपा की लाश नहीं मिली थी तो
उसका लॉकेट सुभद्रा मनके के पास कैसे आ गया। पुलिस इसी बिंदु पर ठाकुर विक्रम सिंह
से बात करता है। लेकिन ठाकुर साहब से पुलिस को कुछ जानकारी नहीं मिलता। पुलिस
सुभद्रा मनके के पति से भी बात करती है जो की एक चोरी की सजा में जेल में कैद
है।
इस बिंदु से होती है सुभद्रा मनके के
क़त्ल के रहस्य को खोलने वाली तहकीकात। यह तहकीकात बहुत ही रोमांचकारी होता जाता है
जब उपन्यास का अंत आना शुरू होता है।
यह उपन्यास आदि से अंत तक रोचक
तथ्यों से भरा हुआ है। उपन्यास की शुरुआत बहुत ही सनसनीखेज होती है। जंगल के
वातावरण को पाठक साहब ने खूब सुन्दर तरीके से बयान किया है। कहानी की रफ़्तार बहुत
ही तेज़ है। प्लाट की बात करूँ तो पहले मुझे छोटा लगा फिर कहानी में और नए किरदार आ
जाने से प्लाट बड़ा होता गया। किरदारों की अगर बात करूँ तो ठाकुर विक्रम सिंह का
किरदार और नीलम का किरदार बहुत ही शशक्त तरीके से पेश किया गया है। वही तरुण कुमार
के किरदार ने भी उपन्यास के साथ अच्छा न्याय किया है। एक हीरो में तरुण कुमार का
उभर आने के बारे मैंने सोचा नहीं था। दामोदर राणा और मुक्ता का किरदार सीमित है। CID इंस्पेक्टर
का किरदार बीच बीच में आकर केस की दिशा को मजबूत करता नज़र आता है। बल्कि मुख्यतः
उसे साइलेंट ही रखा गया है। रवि कुमार का छोटा सा गेस्ट अपीयरेंस केस को आगे बढ़ने
में सहायता करता है। अंत बहुत ही सुखद है इस उपन्यास का । वही क्लाइमेक्स तो इसका
सबसे जबरदस्त है। टर्निंग पॉइंट्स के तौर पर एक और मौत होना रोमांचकारी बना देता
है इस उपन्यास को। निःसंदेह यह उपन्यास एक बार में पठनीय उपन्यास है। हर पन्ने
पन्ने पर सस्पेंस है और हर पन्ने पर नया रहस्य बनता है या खुलता है। इसे जरूर पढ़ें
दोस्तों।
विनीत
राजीव रोशन
Note:- सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों से सम्बंधित और कई ख़बरों, गॉसिप के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें
http://www.facebook.com/groups/smpathak/?bookmark_t=group
मुझे आपके मूल्यांकन से पूरा-पूरा इत्तेफाक़ है राजीव जी । 'खूनी हवेली' पाठक साहब का वो यादगार उपन्यास है जिसे उसकी मुनासिब सराहना नहीं मिली । इसी उपन्यास ने पच्चीस साल पहले मुझे पाठक साहब का स्थाई पाठक और प्रशंसक बना दिया था ।
ReplyDeleteआपके प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया माथुर सर !
ReplyDeleteमाथुर सर स्वाद स्वाद की बात है किसी को अच्छा लगा और किसी को नहीं।
शायद उस दौर में पाठक इतने परिपक्व नहीं थे जो इतनी सुन्दर रहस्यों से भरी कहानी को समझ पाते या उन्होंने अन्धविश्वास को तोड़ने वाली इस कहानी को अपने स्तर से उंच समझा होगा।