दीवाली की रात - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक
दीवाली की रात - १३ नवम्बर २०१२
मैं बोला - "यार आज दिवाली है, आज वो सब नहीं करने वाले हम"।
मैं अपने तीन दोस्तों के साथ घर में बैठा था और दीवाली की रात है । मैं पूजा कर के हटा ही था की टपक पड़े तीनो राहू, केतु और शनि। मेरे दोस्त बड़े ही मंसूबे बना के आये हिं, कहते हैं आज की कुछ धमाल करें। मैं आजकल घर पर अकेला था, मेरे माता-पिता-भाई-बहन सब गाँव गए थे।
मैं बोला - "यार मेरे पास कोई जुगाड़ नहीं है"।
मेरा बस इतना बोलना था की राहू ने अपनी बड़ी सी जेब में से रॉयल स्टैग का फुल निकला।
मैं बोला - "अबे ये सब क्या है, अभी कितने मेहमान आने हैं यहाँ और हम यहाँ ड्रिंक करेंगे। तुम लोग पागल हो गए हो"।
शनि -"यार तू तो दिल तोड़ रहा है। हमने सोचा तू घर पे अकेला होगा। चल दीवाली की मुबारकबाद के साथ तुझे कंपनी भी दे देंगे"।
केतु - "यार तू अब गद्दारी कर रहा है, पिछली दिवाली हमने सूखे सूखे गुजर दी थी। अबकी बार ऐसा बिलकुल नहीं होगा।"
मैंने अपने दोस्तों से हार मान ली।
मैं बोला -"चल ठीक है"।
मैंने चार गिलास लगा दिए टेबल पर, खाने के लिए नमकीन वगेरह लाया, पानी की चार बोतल भी रख दिया और बैठ गया महफ़िल में।
जब जाम का एक दौर ख़तम हो गया तो शनि बोला - "यार पत्ते खेलते हैं"
मैं बोला - "नहीं, पत्ते तो बिलकुल नहीं खेलना, आज के दिन तो बिलकुल भी नहीं"।
शनि बोला -"यार फिर टाइम कैसे पास होगा"।
मैं सोचने लगा...कुछ देर सोचने के बाद मैं बोला "चलो तुम लोगो को मैं एक बड़ी ही सनसनीखेज कहानी सुनाता हूँ, इस कहानी के सुनने के बाद तुम सब से में कुछ प्रश्न पुचुन्गा"
राहू बोला " यार तू कोई बोर कहानी तो नहीं सुनाएगा"।
मैं बोला- "नहीं यार, मैं तुम लोगो को ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ जिसको सुनने के बाद तुम लोगो की तबियत हरी हो जाएगी"।
तीनो फिर एक सुर में बोले "चल फिर ठीक है, सुना"।
मैंने बोलना शुरू किया
"देखो यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और इसके किरदार, स्थान और वाकये सब काल्पनिक है"
मैंने देखा की उनमे से कोई कुछ बोलना नहीं चाहता है. तीनो ने लकी स्ट्राइक सिगरते जला राखी है और अपना कलेजा फूंके जा रहे हैं। मैंने शनि से सिगरते ली और दो काश लगा के वापिस कर दिया।
मैंने फिर बोलना शुरू किया-
"यह कहानी एक शहर की जिसका नाम है राजनगर। राजनगर से एक अखबार निकलता है "ब्लास्ट" और इसी अखबार में सुनील चक्रवर्ती नाम का क्राइम रिपोर्टर काम करता था। ये कहानी उसी से सम्बंधित है। "
मैंने फिर तीनो पर ध्यान दिया ये देख कर मुझे बहुत गुस्सा आया की वो लोग मेरी कहानी पर कम लकी स्ट्राइक पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे। मेरी सिगरते को गाजर - मुली की तरह खाने की जगह पी रहे थे।
मैं बोला - "अबे तुम लोगो का ध्यान कहा है, कहानी नहीं सुननी तो बंद करू"।
राहू बोला " यार तू सुनील आगे कुछ बोलेगा"।
मतलब सुन रहे थे। शुकून मिला दिल को।
मैंने बोलना फिर शुरू किया -
"दिवाली की रात थी, सुनील अपने घर जो की बैंक स्ट्रीट में है उस तरफ बढ़ रहा थी की अचानक उसे एक अँधेरी गली से किसी जानना की कराह सुनाई देती है। वो अँधेरी गली की तरफ बढ़ता है तो देखता है की एक लड़की खड़ी होने की कोशिश कर रही है। उस लड़की के कपडे पूरी तरह से तार तार हुए पड़े हैं। सुनील उसके करीब जा कर अपना परिचय उसके दोस्त-खेरख्वाह के रूप में देता है और उसको संभाले संभाले अपनी फ्लैट की तरफ बढ़ता है। रास्ते में उसे जोजफ दीखता है जो उसका पडोसी है। वो सुनील को एक लड़की के साथ देख कर कुछ कमेंट्स मारता है तो सुनील उसे धमका के अपना पीछा छुड़ाता है। सुनील लड़की को ले कर अपने अपार्टमेंट में दाखिल होता है, उसे बिस्तर पर लीटाता है और उसे कुछ ब्रांडी पीने के लिए देता है ....
इतने मैं शनि टोकता है - "हूँ..... पहले लड़की को अपने कमरे में ले जाता है, फिर बिस्तर पर लीटाता है फिर ब्रांडी पिलाता है, क्या इरादा है भाई, कहानी कहा पहुंचा रहे हो"
मैं बोला " अबे गंदे सोचने वालों, आगे तो सुनो, फिर बोलना कुछ"।
मैंने फिर शुरू किया
"सुनील लड़की से नाम पूछता है, वो ऐसे हालत में कैसे आई पूछता है पर लड़की कुछ बताने को तैयार नहीं होती। सुनील उसे पुलिस में शिकायत करने के लिए कहता है पर लड़की मन कर देती है और सुनील को कहती है की वो सिर्फ सुबह तक आराम करना चाहती है वो सुबह तक ठीक हो जाएगी और वहां से चली जायेगी। सुनील को फ़ोन की घंटी सुनाई देती है वो फ़ोन उठता है। फ़ोन के दूसरी तरफ नताशा होती है जो सुनील से मिलने को कहती पर सुनील ये बहाना लगता है की वो अभी रमेश खुराना को खोजने के लिए निकल रहा है जिससे उसने ५००० रूपये लेने है। सुनील सोचता है की आज दीवाली है तो किसी बार में बैठा दारु पी रहा होगा। सुनील फिर अपने अपार्टमेंट से निकल जाता है।"
राहू बोला" अरे यार कहानी की तो लगा दी इसने, मैंने तो कुछ और ही सोचा था"
मैं बोला " कमीनों, चुप चाप कहानी सुनो। जब दिमाग के घोड़े दौराने को कहूँगा तो दौराना। "
मैं बोला- "सुनील उस अँधेरी गली के आस पास होता है की उसे गली में कुछ आहट सुनाई देती है । वो करीब जा कर देखता है तो दो गुंडे वह कुछ तलाश रहे होते हैं। सुनील उनसे थोड़ी सी चुटकी लेता है फिर चला जाता है। सुनील को लगता है की वो दोनों गुंडे हो न हो लड़की को ही तलाश कर रहे थे। सुनील घर से सीधे निकल के हरमन बार में पहुँचता है। वह उसे अपने ही लाइन के तीन और रिपोर्टर बार काउंटर पर दिखाई देते हैं। रूपा क्रॉनिकल की रिपोर्टर। निरंजन भगत और दर्शन बजाज भारत टाइम्स के रिपोर्टर। सुनील उनके पास पहुँचता है तो सुनील और रूपा के बीच बड़ी ही सुन्दर झक झक होती है।"
शनि फिर बीच में टोक के बोलता है "अबे यार क्या झक झक हुई ये तो तफसील में बता"
मैं बोला "अबे यार अगर वो बताऊंगा तो कहानी कल सुबह तक नहीं ख़तम होगी, इसलिए जो जरुरी हैं उन्ही बातो को सुना रहा हूँ"
मैं फिर शुरू हो गया
" फिर सुनील उन सबसे रमेश खुराना के बारे में पूछता है पर सभी कहते है की उन्होंने उसको नहीं देखा। रमेश खुराना, जगदेव खुराना का लड़का था जो नताशा सूरी के बाप के केमिकल कंपनी सूरी केमिकल एंड फर्टीलईजर्स में काम करता है, जगदेव खुराना एक ऐसे केमिकल का अविष्कार कर रहा था जिससे पेट्रोल की क्षमता बाद जाती। सुनील वहां से कुछ देर बाद निकल जाता है। सुनील राजनगर के सभी बार में जहा रमेश खुराना के होने की सम्भावना हो सकती है जाता है पर कही से कुछ पता ही नहीं चलता है। सुनील मिडनाइट क्लब पहुंचता है और रमेश खुराना के बारे में पूछताछ करता है पर वह भी उसे निराशा ही मिलती है। वही उसे जोजफ दीखता है, जोजफ सुनील के पास पहुँच वही लड़की वाली बात दोहराता है लेकिन सुनील के जवाब देने से पहले ही जोजफ बार के दरवाजे के तरफ देखते ही भाग खड़ा होता है। सुनील को दरवाजे पर मंजुला रैना हरनाम सिंह के साथ दिखाई देती है। सुनील निराश होकर अपने फ्लैट में वापिस आता है। तो वह सुनील को रमेश खुराना की लाश मिलती है जिसके पेट में खंजर घुप होता है। उसे करीब के टेबल पर एक चमचमाता हुई घडी दीखाई देती है वो उसे उठता है तो नीचे टैग में नताशा के नाम का प्रथम अक्षर लिखा मिलता है। वो सोचता है की क्या रमेश खुराना का खून नताशा ने किया है या रमेश खुराना के क़त्ल के वक़्त वो यहाँ मौजूद थी और उसने कातिल को देखता था। सुनील घडी पहन लेता है और टैग को अपने जेब में डालता है की तभी दरवाजे की घंटी बजती है । और उसका दोस्त निरंजन भगत आ जाता है। सुनील को लड़की का ध्यान आता है पर वो पुरे फ्लैट में कही नहीं मिलती। भगत सुनील पर इलज़ाम लगाता है की ५००० रूपये के लिए उसने रमेश खुराना का क़त्ल कर दिया। सुनील उसे नकार देता है। भगत उससे हाथ में पहनी महंगी घडी के बारे में पूछता है तो सुनील उसको किसी आंटी का दिया गिफ्ट बता कर टाल देता है।भगत सुनील को बोलता है की अब हमें चुपके से यहाँ से चलना चाहिए ताकि पुलिस के चक्कर से बच सकें। सुनील कहता है की हाँ हम बहार जाकर उस लड़की को तलाशेंगे। और वो दोनों बहार निकल जाते हैं पुरे फ्लैट को उसी स्थिति में छोड़ कर। "
मैं रुक गया। मैंने अपने दोस्तों के चेहरे देखे। सबकी आँखें मेरी और टिकी हुई थी। तीनो शांति से मुझे देख रहे थे। मैंने जाम का दूसरा दौर तैयार किया। और फिर हमने जाम का दूसरा दौर ख़तम किया। हमने बीच बीच में थोड़े नमकीन के मजे लिए।
राहू बोला " यार बड़ा सस्पेंस क्रिएट कर दिया तूने तो। मेरी तो साँस ही अटक गयी थी।"
शनि बोला- "यार सुनील ने पुलिस को फ़ोन क्यूँ नहीं किया और भगत क्यूँ उसका साथ दे रहा था"।
मैं बोला - "यार रिपोर्टर और पुलिस वालो की कभी बनती है, सुनील की पुलिस वालो से नहीं बनती। दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। और भगत उसका दोस्त था और उसको सुनील की बात पर ऐतबार था की उसने रमेश खुराना क़त्ल नहीं किया इसलिए उसने साथ दिया सुनील का। और राहू अभी तो आगे देख कैसे तेरी सांस की घंटी भी अटकती है "
तीनो एक सुर में बोले " ओके" ।
मैं बोला " फिर सुनील वहां से उस गली में पहुँचा जहाँ वो लड़की उसे मिली थी। उन्हें वहां एक काला साया नज़र आया जो उनके पीछे लगा था। सुनील ने काले साए को दबोच लिया और उसका थोडा सा चेहरा देखा। लेकिन उसने सुनील को चकमा दे कर भाग गया। अच्छी तरह से तलाशी के बाद भी उसे कुछ नहीं मिला तो वो दोनों ने सोचा की हो न हो ये लड़की आई तो यही आस पास से थी। फिर वो उस गली की पीछे जो की मुख्या सड़क थी वह गए। वह कुछ फैक्ट्री और एक चाईनीज बार था। वो दोनों बार में घुसे तो उन्हें वह दर्शन बजाज और रूपा दिखाई दिए। वह रूपा ने सुनील से घडी के बाबत पूछा तो सुनील वही जवाब दिया जो भगत को दिया। सुनील का अचानक ध्यान भगत के पैरो की तरफ जाता है, उसके बाएं पैर पर पंजो के निशान थे। सुनील इसके बारे में उससे पूछने के बारे में सोचता है पर नहीं पूछता। तभी जोजेफ वह टपक पड़ता है। वो लड़की के बाबत सुनील से पूछता है तो सुनील उसे धमकाने वाला ही होता है की वो खुद तेजी से भाग जाता है जैसे की उसने भूत देख लिया हो, तभी सुनील को अपने पीछे मंजीत रैना दिखाई दिया । मंजीत रैना बार के बीच से निकल कर सीधा बार के पिछले हिस्से में बने एक दरवाजे में घुस जाता है। मंजीत रैना रमेश खुराना का पूर्व साला और मंजीत रैना की बहन मंजुला रैना का पूर्व पति था। कहा जाता है की मंजीत रैना उग्रवादियों को शरण देता था। सुनील को दरवाजे के पीछे से उन दो गुंडों में से एक गुंडे की शक्ल दिखाई दे जाती है। सुनील को जोजेफ पर शक होता है की क्यूँ जोजफ मंजीत को देख कर भाग गया। तभी वह एक इंस्पेक्टर आ धमकता है और सबको चौकाने वाली खबर देता है की सुनील के फ्लैट में रमेश खुराना की लाश पायी गयी है। वो सुनील को खोज रहा है। सुनील खुद उसके साथ फ्लैट पर पहुँचता है तो पाता है की वह इंस्पेक्टर प्रभुदयाल पहले ही सारा काम संभाल चूका है। वह प्रभुदयाल सुनील पर क़त्ल का इलज़ाम लगाता है तो भगत बताता है की वो हर समय उसके साथ था। रूपा भी उसका थोडा बहुत साथ देती है। वहां दर्शन बजाज सुनील के कहे कुछ शब्द जो उसने खुराना के लिए कहे थे कह डाले। जिससे सुनील बजाज से खफा हो जाता है। सुनील लड़की के बारे में भी पुलिस को बता देता है। पुलिस इसकी तस्दीक जोजफ और गेट के चौकीदार से कर लेती है। सुब इंस्पेक्टर बंसल जब गर की तलासी ले रहा होता है तो पड़ोस की एक बिल्ली जिसने उसके किचेन पर लगभग कब्ज़ा सा किया होता है उसे पंजे मार देती है। पुलिस के तफतीस के दौरान नताशा का फ़ोन आता है जहा सुनील उससे कमला कह कर बात करता है। पुलिस सुनील को छोड़ देती है। सभी चले जाते हैं। अगली सुबह रूपा सुनील के घर आती है और घडी के उस टैग को दिखाती है जो नताशा की दी हुई घडी के साथ लगा था, रूपा सुनील को ये बात पुलिस को बताने की धमकी देती है की कल रात नताशा सुनील के फ्लैट पर आई थी। रूपा सुनील को इस केस पर पार्टनर की तरह काम करने के लिए कहती है। सुनील इस बात को बाद के लिए टाल देता है ।"
शनि बोला "यार आज की डेट में तो क़त्ल के वारदात के जगह ही गलती से मिल जाओ, फिर देखो पुलिस कितनी तुम्हारी शामत करती है। यहाँ तो सुनील को छोर दिया उस पुलिसवाले ने।"
राहू भी बोला" हाँ यार ये कैसा पुलिस वाला था, उसने तो उसे छोड़ ही दिया"
मैंने पहले तीसरे दौर का पेग बनाया और सबने लिया। सबने एक एक सिगरेट जला लिया। हम चारो ने कश लिया।
फिर मैंने कहा " यार पहली बात तो सुनील एक प्रतिष्ठित अखबार का चीफ रिपोर्टर था। और इससे पहले भी पुलिस और सुनील में कई बार तकरार हुई थी। पर सुनील ने कई बार कातिलों को पकद्वाया भी था। इसलिए उस पुलिसिये ने उसको छोड़ दिया। अब आगे सुनो"
"सुनील नताशा की रिक्वेस्ट पर अगले दिन रेस कोर्स पहुँचता है। वह उसे नताशा, नताशा का भाई अनिरुद्ध सूरी, दर्शन बजाज, निरंजन भगत, नताशा का दोस्त मनोज भंडारी मिलते हैं।
सुनील को रेस में फिर से वही कल रात वाला कला साया नज़र आता है। वो काला साया को खोजने के लिए पुरे रेस कोर्स का चक्कर लगता है। पर वो कला साया दुबारा नहीं दिखाई दिया सुनील को । अचानक सुनील को भगत दीखता है वो भगत से बात करने लगता है। भगत बताता है की कल पूरी रात वो घर नहीं गया ऑफिस में ही खुराना मर्डर केस पर काम करता रहा। भगत उसे एक पेपर कटाई देता है जिसमे जगदेव खुराना के अविष्कार के बारे में आर्टिकल था। भगत सुनील को बताता है की शायद रमेश खुराना का क़त्ल इस अविष्कार के कारण हुआ। सुनील और भगत वहां से रेस देखने चले जाते हैं। सुनील भगत से उन पंजे के निशान के बारे में पूछ नहीं पता। वो नताशा से कल रात के अपने घर पर आगमन के बारे में बात करता है। रूपा सुनील को नताशा से बात करते देखता है तो उसके करीब पहुँचती है। सुनील नताशा को वह से रुखसत करता है और रूपा के साथ बार में चला जाता है। वहां बार में सुनील को मनोज भंडारी उनकी तांक झाँक करता दिखाई देता है। सुनील उससे इसके बारे में पूछता है पर वो इनकार कर देता है। अब सुनील भगत से दोबारा बात करना चाहता है वो उन पंजे के निशानों के बारे में उससे पूछना चाहता है। सुनील पुरे रेस कोर्स का चक्कर लगता है पर भगत उसे दिखाई नहीं देता। फिर सुनील बाथरूम की तरफ बढ़ता है पर वही उसे बाथरूम के बाहर तेज़ी से निकलता जोजफ दिखाई देता है। सुनील उसकी पीछे जाता है। सुनील उससे कल रात के क़त्ल के बारे में पूछताछ करता है, सुनील को उससे पता चलता है की जो लड़की कल उसके साथ थी वो उसको जानता था। उसने उसे रजत महल में कई बार रमेश खुराना के साथ देखा था। जोजफ उसे बताता है की सुनील के अपार्टमेंट में उस लड़की की मौजूदगी के बारे में उसने ही रमेश खुराना को बताया था। अब सुनील को पता चल चूका था की रमेश खुराना उसके घर में क्यूँ पहुंचा था।"
"सुनील उससे बात ख़तम कर के बाथरूम की तरफ बढ़ता है, बाथरूम के अन्दर उसे हरनाम सिंह दिखाई देता है। वो हरनाम सिंह से अपने घर में हुए क़त्ल के केस के बारे में बात करता है। हरनाम उसे ऑफिस में आने के लिए कहता है। सुनील हरनाम सिंह को रुखसत कर भगत को बाथरूम के सभी रूम्स में देखता है। उसे एक रूम में भगत मफलर के साथ दरवाजे में लटका नज़र आता है। वो उसे नीचे उतारकर उसकी नब्ज़ देखता है तो उसे मृत पता है। तभी उस बाथरूम का चौकीदार खून - खून का शोर मचा देता है। "
राहू बोला"अबे एक और खून हो गया, यार अभी तक यही पता नहीं चला की रमेश खुराना का खून क्यूँ हुआ था और उसका कातिल भी पकड़ा नहीं गया और एक खून और हो गया। यार अब तो और मजा आने लगा है"।
मैं बोला" आगे तो सुन, अभी तो बहुत कुछ मजेदार बांकी है।"
"सुनील बाथरूम के दरवाजे के पास कई चेहरों को देखता है जिसमे उसे वो काला साया भी दिखाई देता है। सुनील उसके पीछे भागता है, तो उसे पीछे से पकड़ो पकड़ो की आवाज सुनाई देती है। सुनील उस साये का पीछा एक टेक्सी में करता है जिसका ड्राईवर अपने आपको देवानंद कहता है। वो सुनील को कई शायरियां सुनाता है। सुनील पीछा करने के दौरान उस काले साये की टैक्सी को खो देता है। सुनील रजत महल पहुँचता है वहां से वो बड़े ही सुन्दर तरीके से रिसेप्शन क्लर्क से उस लड़की के बारे में पता करता है जो उसे पिछली रात मिली थी। क्लर्क से सुनील को उस लड़की के घर का पता चलता है। सुनील उस लड़की के हॉस्टल पहुँचता है। वो टैक्सी ड्राईवर से उसकी वर्दी और टोपी उधर लेता है और अपना कोट वही टैक्सी में छोड़कर हॉस्टल में घुसता है डाकिया बन कर। सुनील उस लड़की के कमरे में पहुँचता है पर उसे कुछ नज़र नहीं आता। तभी कल रात वाले गुंडों में से एक वह पहुँचता है और एक सुनील के पीछे से आता है। वो दोनों गुंडे धोके से सुनील को बेहोस करके एक अनजान जगह ले गए जहा सुनील की उन्होंने बहुत कुटाई की। वो सुनील से उस लड़की के बारे में पूछ रहे थे। सुनील को कुछ पता था नहीं तो उन्हें बताता क्या। फिर उन दोनों के बॉस मंजीत रैना ने उन दोनों को सुनील को ठिकाने लगाने को कहा। सुनील को जब वो लोग कार में बिठाकर ले जा रहे थे की तभी सुनील ने उन पर हमला कर दिया। लेकिन एक के हाथ में गन देख कर वो शांत हुआ। तभी पीछे से रूपा ने उस पर गन रख दी। फिर सुनील उन दोनों को बेहोश कर दिया। इतना मार खाने के बाद सुनील भी बेहोश हो गया। रूपा सुनील को अपने घर ले गयी। सुनील की पट्टी वगरह भी रूपा ने की। सुनील को जब होश आया तो उसने रूपा को अपना पार्टनर बना लिया लेकिन सिर्फ इसी केस तक।"
शनि बीच में बोला"बेचारा सुनील वैसे तो बड़ा फु-फा कर रहा था, अब पिटाई भी हो गयी और जान भी उसने बचाई जिसके साथ वो झक-झक करता रहता है।"
राहू बोला" यार ये सुनील बड़ा लकी लग रहा था मुझे लेकिन ये तो बहुत अनलकी बाँदा निकला, बेचारा अब तो २ क़त्ल के केश में फंसा है ऊपर से गुंडों से मार भी खाया"
मैंने गुस्से में कहा "यार आगे भी सुनो"
मैंने फिर बोलना शुरू किया-
" सुनील उसे लेकर हरनाम सिंह के यहाँ गया। जहा उसने हरनाम सिंह को गवाही देने के लिए कहा की जब भगत का खून हुआ था तो वह हरनाम सिंह ने उसे देखा था। पर हरनाम सिंह ने उसका वकील बनना तो मंजूर किया पर उसने गवाही को टाल दिया। वही रूपा पीछे से आकर उनकी बात सुन रही थी की पीछे से मंजुला रैना ने उस पर हमला कर दिया। बड़ी मुश्किल से हरनाम सिंह ने उन दोनों को समझाया। सुनील वह से भगत के घर गया। वह सुनील को भगत की बीवी से एक पुराणी न्यूज़ के बारे में पता चला। सुनील वह से हरमन के बार में पहुंचा जहा उसे पता चला की उसकी पुलिस को बहुत तलाश है। दर्शन बजाज वह पहुँचता है वो सुनील को कोई ऐसी बात बोलता जिसके कारण सुनील उसको एक घुसा जड़ देता है । वो वही होता है की तभी पुलिस आ जाती है और उसे थाने ले जा कर प्रभु दयाल के सामने प्रस्तुत करती है। सुनील प्रभुदयाल को कुछ बातें बताता है की तभी प्रभुदयाल को खबर मिलती है की जगदेव खुराना का भी खून हो गया है उसके घर में। सुनील को पता चलता है की एक आदमी जगदेव खुराना से मिलने आया, जगदेव खुराना उसे अपनी लैब में ले गया और वही जगदेव खुराना का खून हो गया। हरनाम सिंह सुनील की वकालत के लिए वह आ जाता है। रूपा भी वह सुनील के बचाव के लिए आ जाती है । रूपा की स्टेटमेंट और हरनाम सिंह के आने के कारण प्रभु दयाल सुनील को छोड़ देता है।"
केतु बोला"अबे एक और खून। अब क्या तू हमें महाभारत सुना रहा है, और कितने खून होंगे तेरी इस कहानी में। साला दिमाग की वाट लग गयी है।"
मैं बोला" बस अब थोडा सा ही बचा है"
मैं फिर शुरू हो गया -
" सुनील भारत टाइम्स के मोर्ग (जहा पुराने अखबार रखे जाते हैं) में जाता है और उस तारीख की खबर देखता है जहा उसे पता चलता है की कोई बीस साल पहले जगदीश ग्रोवर जो की एक कॉस्मेटिक कंपनी चलता था, उस कंपनी ने एक ऐसे आइलिनेर बने थी जिसे लगाने पर आँखों की रोशिनी चली जाती है। उसी कंपनी एक मुलाजिम की पत्नी ने जब इसका इस्तेमाल किया था तो उसकी आंखे चली गयी थी। वो मुलाजिम जब जगदीश ग्रोवर को मारने गया तो, जगदीश ग्रोवर ने अपने बचाव में उस मुलाजिम को मार दिया था। तभी वह दर्शन बजाज आ जाता है। तो सुनील वहां से ब्लास्ट के मोर्ग में जाता है जहा उसे उस मुलाजिम के परिवार की फोटो मिल जाती है। उस मुलाजिम का एक बीटा भी था जिसकी तस्वीर उसमे मौजूद थी। सुनील उस तस्वीर को पहचानने की कोशिश करता है। अब सुनील के सामने सारे तथ्य उजागर हो गए थे। "
मैं अब चुप हो गया था। मैंने एक और पेग बनाया सब के लिए। सब ने पेग उठाया और एक बार में ही सूत गए। बोतल में बस एक और पेग के लायक व्हिस्की बचा था।
तभी शनि बोला"अब आगे तो सुना"
मैं बोला"अब आगे नहीं सुना सकता"
वो बोला "क्यूँ"
मैं बोला "क्यूँ क्या, अब तीन क़त्ल हो गए हैं, तुम लोगो को कहानी सुना दी, अब तुम लोग बताओ कातिल कौन था"
राहू बोला"अरे बिना पुरे तथ्यों को जाने हम कैसे कह दे कातिल कौन था। हमें तो तूने बड़ी छोटी कहानी सुनाई। इसमें हमें कुछ पता नहीं चल रहा है।"
केतु बोला " हाँ लेकिन तू कहानी तो पूरी कर"
मैं बोला "कहानी बस यही तक सुनाऊंगा"
शनि बोला " अबे तो हमें कातिल के बारे में कैसे पता चलेगा, साले जब तक कातिल का पता नहीं चलेगा तब तक कैसे हमें नींद आएगी"
मैं बोला" तुम लोगो ने मेरी भी तो नींद ख़राब कर दी है, देखो १२ बजने वाले हैं।"
केतु बोला" भाई हमें तो पता नहीं चल रहा की कातिल कौन है, तू हमें उस किताब के बारे में बता दे तो हम पढ़ लें, कम से कम हम अपनी क्यूरोसिटी तो खतम कर लेंगे"
मैं बोला" यार, ये कहानी पल्प फिक्शन के महान लेखक श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का जिस उपन्यास का नाम है "दीवाली की रात"। और यह उपन्यास तुम लोगो को आसानी से नहीं मिलने वाला ये तो बहुत पुराना है। मुझे ही बड़ी मुश्किल से लाइब्रेरी से मिली है"
शनि हंसा" अबे तू लाइब्रेरी कब से जाने लगा। और ये कौन सी लाइब्रेरी है हमें भी बता"
मैं बोला"यार, हमारा एक ग्रुप है जो पाठक साहब को पढ़ते हैं उनका और हमें पाठक साहब के नोवेल्स आसानी से नहीं मिल पाते तो हमारे कुछ साथियों ने मिलकर यह लाइब्रेरी खोली है और इसमें पाठक साहब की पुरानी से पुरानी नावेल मौजूद हैं।"
राहू बोला" अच्छा, तो बता न हम यह लाइब्रेरी कैसे ज्वाइन कर सकते हैं"
मैं बोला" यार तुम लोग तो पाठक साहब को पढ़ते नहीं हो, बल्कि उपन्याश ही नहीं पढ़ते हो तो तुम लाइब्रेरी किसलिए ज्वाइन करोगे"
केतु बोला" यार तूने तो कहानी ही ऐसी सुना दी की अब तो पाठक साहब के सभी नावेल पढने का दिल कर रहा है"
मैं बोला" लाइब्रेरी ज्वाइन करने के लिए छोटा से मेम्बरशिप फीश लगता है, उसे दे दो और लाइब्रेरी के मजे लो"
केतु बोला " बस इतना सा ही"
मैं बोला" हाँ भाई इतना सा ही"
मैंने सबके लिए आखिरी पेग बनाया। सबने वो पेग बड़े शांति से पिया। जैसे की कल सुबह होने का इंतज़ार कर रहे हो और कल ही जा के लाइब्रेरी ज्वाइन कर लेंगे। मैंने ३ नोवेल्स ना पढने वालों को पढने के लिए जागरूक कर दिया था। मुझे अपने आप पर गर्व होने लगा।
शनि बोला" हम लोग कल ही वह चलेंगे, ओके"
मैं बोला "ओके"
और सबने मुझसे हाथ मिलाया एक बार और दिवाली की मुबारकबाद दी तभी घडी ने १२ बजे की घंटी बजाई। नया तारिख , नया दिन शुरू हो गया था और उन तीनो की भी नयी शुरुआत हो गयी थी। वो लोग मुझे विदा हुए।
दीवाली की रात - विशलेषण:-
दोस्तों बहुत दिनों बाद मैंने सुनील सीरीज का इतना शानदार उपन्याश पढ़ा। इसमें कोई दो राय नहीं के उपन्यास बहुत ही शानदार होते हैं पर ये उपन्यास सच में एक क्लासिक , एंटीक वर्क है पाठक सर का। पहले तो टाइटल ही इतना सुन्दर है की क्या कहूँ, अगर कोई यह नाम पहली बार सुन ले तो सोच ही नहीं सकता की यह एक मर्डर मिस्ट्री है। ऐसा लगता है की एक सामाजिक उपन्याश है। दोस्तों कहानी की इतना ससनिखेज शुरुआत कमाल है। पाठक साहब ने जिस तरह से कहानी को शुरू किया वैसा ही कलेवर वो नावेल के अंत तक बिखेरते रहे। कहानी के उस हिस्से में जहा सुनील के फ्लैट पर क़त्ल हो जाता है और अचानक बिल्ली का आना शानदार आ गया। उस बिल्ली के आने से ऐसा लगा ही नहीं की मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ ऐसा लगा की मैं उपन्यास को जी रहा हूँ। साधारणतया इतने छोटे बिंदु को नहीं उठाया जाता लेकिन इस बिल्ली ने तो सुनील के दिमाग को ही घुमा दिया था। बार में सुनील और रूपा के बीच का वार्तालाप , वाह... आप आनंदित हो उठेंगे। उपन्यास में कई बार कई जगह सुनील और रूपा के बीच कई सुन्दर वार्तालाप हुए हैं। यहाँ दर्शन बजाज के साथ तू तू मैं मैं भी जबरदस्त लगती है। जहाँ जहाँ सुनील और बजाज के वार्तालाप हुए हैं वह तो मजा ही आ गया। हरमन के बार में सुनील का स्टाइल जब वो अपने हाथ का गिलास बजाज को पकड़ाता है और घूँसा जमता है। वाह शानदार। मेरी तो हंसी ही नहीं रुक रही थी। वही रूपा और बजाज के बीच की बातें भी कम नहीं थी। कहानी में नताशा और मनोज भंडारी के किरदार का भी खूब इस्तेमाल किया गया है। नताशा का हाथ धो कर सुनील के पीछे पड़ जाना और उनके बीच के उस वार्तालाप के बारे में क्या कहूँ जब वो सुनील के फ्लैट में आती है और एक दिन के लिए सुनील के घर में टिकना चाहती है फिर सुनील का शानदार भाषण। नताशा के घर पर नताशा सूरी के पिता द्वारा सुनील को शादी का प्रस्ताव देना और सुनील द्वारा उसे नकारना , बहुत शानदार था। निरंजन भगत के क़त्ल के बाद उस काले साए के पीछे उस टैक्सी ड्राईवर देवानंद के साथ वाले पल तो क्या कहने। वो देवानंद की कमाल की शायरी, वो सुनील का ट्रैफिक पुलिस को चलन भादना। यहाँ देवानंद ने ही सुनील के दोस्त रमाकांत की कमी को पूरा किया है। प्रभु दयाल के साथ सुनील का वही पुराना अंदाज़ तू ढ़ाक-ढ़ाक मैं पात पात, दोनों बातों में भी और तफ्तीश में भी।
पाठक साहब ने इस उपन्यास की कहानी को इतने सुन्दर तरीके से लिखा है की कोई भी अगर इस उपन्यास को पढने के लिए बैठ जाए तो उसे पढ़े बगैर उठ नहीं सकता। पाठक साहब ने इस कहानी में उन सभी मसालों या कहूँ उन सभी जरुरी चीजो का प्रयोग किया है जिससे यह उपन्यास इतना सुन्दर बना है। नताशा का सुनील के लिए प्रेम प्रसंग , सुनील और भगत की दोस्ती, सुनील के रूपा के साथ मजाकिया वार्तालाप, कातिल के होने का सस्पेंस, क़त्ल क्यूँ इसकी मिस्ट्री। मतलब इस उपन्यास में आपको वो हर जयका मिल जायेगा। पाठक साहब ने जो सुनील को कातिल का पर्दा फाश करने का एक तकिया कलम दिया था वो इसमें नहीं चला क्यूंकि इसमें कातिल का नाम रूपा सुझाती है। वैसे तो किसी उपन्यास में सुनील का होना ही उस उपन्यास के शानदार होने की बात होना है पर अगर सुनील के साथ रूपा हो या सुनील के साथ रमाकांत हो तो क्या कहने।
वैसे इस विश्लेषण में विश्लेषण लायक तो कुछ भी नहीं है क्यूंकि सुनील सीरीज के उपन्यास का विश्लेषण करना मुझ जैसे नौसिखिये के लिए टेढ़ी खीर है। लेकिन फिर भी कोशिश की है , आशा करता हूँ की आप लोगो की आशा पर खड़ा उतरूंगा।
आभार एवं विनीत
राजीव रोशन
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