लघु-कथा - "कटघरा"
"......जज साहब मैंने यह अपराध नहीं किया है! नहीं किया है। नहीं किया।" यही आवाज मेरे गले से बार बार निकल रही थी। मैं हर बार यही दोहराए जा रहा था। लेकिन ऐसा लग रहा था की जज साहब को मेरी बातों से ज्यादा उन सबूतों पर यकीन है जो मेरे खिलाफ दिए गए हैं।
जज साहब ने कहा " अगर तुम्हे किसी वकील की जरूरत है तो सरकार तुम्हे वकील मुहैया कराएगी"
मेरे चेहरे पर कठोरता के भाव आ गए। पता नहीं क्यूँ मेरा कानून और कानून की उस देवी पर से भरोसा उठ गया था। ऐसा लग रहा था की मेरे अन्दर नफरत की ज्वालामुखी सुलग रही है और कभी भी फुट सकती थी। लेकिन मैंने खुद को संभाला। कभी कभी भावनाओं के बहाव में इंसान अपना संयम खो देता है। मैं भी उसी बहाव में बहता जा रहा था। मैंने किसी तरह अपने आप को रोक। मेरे ऊपर इलज़ाम ही तो लगाया गया है। मैं अभी इस इलज़ाम को झुठला सकता हूँ। मैं अभी भी इस अपराध से मुक्त हो सकता हूँ।
मैंने जज साहब की ओर चेहरा किया और बोल,
"जज साहब, मुझे कोई वकील नहीं चाहिए। मैं अपनी पैरवी स्वयं करूँगा। मैं नहीं सोचता की मेरे पारिवारिक मामलों में कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश करे और फिर तोड़ मरोड़ कर मुझे इस अपराध से मुक्त करे"
जज साहब बोले" ठीक है, आप अपनी पैरवी खुद कर सकते हैं"
मैं कटघरे से बहार निकल कर जज साहब के सामने आया और बोल " जनाब, मेरे ऊपर जो इलज़ाम लगाया गया है वह सरासर बेबुनियाद और झूठा है। ये मेरे भाइयों की चाल है की वह मुझे इस स्वर्ग से घर और सुन्दर से परिवार से दूर करना चाहते हैं। क्या यह मेरी गलती मानी जायेगी की मैंने विवाह कर लिया और अपनी पत्नी के साथ दुसरे घर में रहने लगा। क्या यह मेरा अपराध है की मैं अलग से अपने परिवार की देखभाल करने लगा। क्या यह मेरा अपराध है की अपनी पत्नी के साथ रहते हुए भी मैंने इस भरे पुरे परिवार के हर क्रियाकलाप में भाग दिया। मैंने जितना समय इस परिवार को दिया (पत्नी की तरफ अंगुली उठाते हुए) उतना ही समय मैंने इस परिवार को दिया (कटघरे की ओर इशारा करते हुए)। मैं आज भी इस परिवार का उतना ही दुलारा और प्यार हूँ जितना पहले था। मैं सबसे छोटा हूँ तो क्या इस परिवार के प्रति मेरी ज़िम्मेदारी ख़तम हो जाती है। मुझे तो यह बात कहते हुए भी शर्म आती है की मेरे बड़े भाई यह कहते है की मैं इस परिवार के लिए जो प्यार दिखता हूँ वह दिखावे के लिए है। जज साहब मेरी कोई गलती नहीं है। आप मुझे वह सजा मत सुनाइए जिससे मैं इस परिवार से सदा के लिए दूर हो जाऊं। मैं अब भी इस परिवार को बहुत प्यार करता हूँ। आप सभी भाइयों और सदस्यों का बयान लीजिये की वह क्या कहते हैं मेरे बारे में। मैं इस से अधिक अपनी सफाई नहीं दे पाऊंगा। मुझे दोनों परिवारों को चलाना है। मेरा कर्त्तव्य दोनों ही परिवारों के लिए है। आप खुद को मेरे जगह रख कर देखिये तो आपको पता लगेगा का मैं सही कह रहा हूँ या गलत। यह सारा बखेड़ा, नहीं तुम मुझे बोलने से रोको मत (पत्नी की और इशारा करते हुए), यह सारा बखेड़ा सिर्फ इस बात से हुआ की मैंने बिना किसी बड़े से अनुमति लिए इस परिवार के लिए एक रंगीन टीवी खरीद लाया। बताइए ये कोई मेरी गलती है। या यह मेरा अपराध है। मेरे बड़े भाई कहते हैं की मैं अब बड़ा हो गया हूँ इसलिए उनसे बिना पूछे टीवी खरीद लाया । उनका कहना है की मैं इस घर का सर्वे सर्वा बनना चाहता हूँ। बाकि आप पर निर्भर है की आप कैसा न्याय करते हैं।"
जज साहब ने कहा " दुसरे पक्ष के वकील भी कुछ कहना चाहते हैं"
"जनाब हमने जो कहना था वह कह दिया है। अब परिवार के सभी सदस्यों का बयान हो जाए तभी फैसला होना चाहिए" दुसरे पक्ष के वकील ने कहा।
सभी सदस्यों का बयान हुआ। कौन मेरे पक्ष में थे कौन विपक्ष में थे । इसका जवाब मिलना मुश्किल हो रहा था। सभी के बयानों को रिकॉर्ड कर लिया गया। तभी घंटी बजी और जज साहब ने उस दिन के कार्य की घोषणा कर दी।
और मैं जवाब के प्रतीक्षा में कटघरे में खड़ा रह गया । मुझे अब कल तक का इंतज़ार नहीं होता। ये कटघरे में आना कितने शर्म की बात है। इश्वर कभी किसी को ऐसा दिन न दिखाए जब अपने ही उसके खिलाफ सामने के कटघरे से इलज़ाम लगाये। अब मुझे यह कटघरा काटने को दौड़ता है । जवाब के इंतज़ार में अब कल तक का इंतज़ार करना था।
"उठ जा , कब तक सोता रहेगा, रविवार है तो क्या दिन भर सोयेगा" मेरी मम्मी की आवाज़ थी।
ऐसा लगा की मैं किसी और ही दुनिया में आ गया था या यह कहूँ की किसी दूसरी दुनिया में चला गया था। शायद वो सपना था।
मैंने मम्मी से कहा "आधे घंटे और सोने दे"।
आधे घंटे का समय इसलिए लिया की मैं वही स्वप्न दुबारा देख सकूँ। लेकिन ऐसा कम ही संभव होता है । और मैं फिर वह स्वप्न दुबारा नहीं देख सका । और मैं जज का निर्णय भी नहीं सुन सका। मैं आज भी उसी कटघरे में खड़ा इंतज़ार कर रहा हूँ की मेरे केस का निर्णय किया जाए।
विनीत
राजीव रोशन
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