समीक्षा
चोगढ़ के नरभक्षी बाघ
लेखक - जिम कॉर्बेट
हर जंग में मौत होती है।
हर युद्ध में लाशें गिरती हैं।
दोनों तरफ जान-माल का नुकसान होता है ।
दोनों तरफ के सैनिकों में जोश होता है, उत्साह होता है, लेकिन डर भी होता है है। लेकिन दोनों तरफ इंसान होते हैं। इंसान अपनी फितरत से पूरी तरह से वाकिफ होता है । सैनिको को यही शिक्षा दी जाती है की कौन तुम्हारा दोस्त है कौन तुम्हारा दुश्मन।
लेकिन अगर दुश्मन एक हो और उसमे भी नरभक्षी बाघ, जिसे सिर्फ और सिर्फ अपने शिकार से मतलब है। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की शिकार मनुष्य है या जानवर। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की वह जिस मनुष्य का शिकार कर रहा है वह किसी का बाप, किसी का बेटा, किसी का पति, किसी की माँ, किसी की बेटी और किसी की पत्नी हो सकती है। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसके कारण किसी के घर में चूल्हा नहीं जलेगा, किसी के घर में शहनाई नहीं बजेगी, किसी के घर में त्यौहार नहीं मनाया जाएगा। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसके कारण लोग भय से अपने घरों से कई दिनों तक बाहर नहीं निकलते। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की जिस जानवर को उसने मारा है वो किसी की जीविका कमाने का साधन था। उसे तब मतलब है अपने शिकार से। उसे तो बस मतलब है अपनी भूख मिटाने से । उसे तो जो मिल जाए सामने बस उसका शिकार करता जाता है। उसे किसी से डर नहीं लगता। उसे खौफ नहीं है की कोई उसका शिकार करने को भी आतुर हो रहा है।
जी हाँ दोस्तों, यह जंग है मनुष्यों और नरभक्षी बाघों की।
कुमायूं की पहाड़ी क्षेत्रो में जहाँ प्रकृति ने अपनी झोली से सभी सुन्दर सुन्दर गहने पेड़ो, पहाड़ो, जंगलों, झाड़ियों, पशु और पक्षियों के रूप में हमें दिए हैं। अब जहाँ शान्ति और प्राकृतिक शौन्दर्य की छटा देखने से बनती हैं। यहाँ तक की यहाँ के निवासी भी शांतिपूर्वक यहाँ अपना जीवन बशर करते हैं। लेकिन यहाँ की शान्ति ख़राब करने के लिए बाघ- बाघिन ने अपने आप को नरभक्षी में तब्दील कर लिया है। सन १९२९ में कुमायूं में मुख्यतः तीन नरभक्षी बाघों का आतंक था जिसमे से "चोगढ़" के बाघों ने सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई थी।
मैं बात कर रहा हूँ कुमायूं के पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रों की जो "चोगढ़" के नाम से जाना जाता है। "चोगढ़" क्षेत्र में इस बाघिन ने लगभग ज्ञात ६४ मनुष्यों का शिकार किया और उन्हें अपना आहार बनाया। यह आकड़ा सन १९३० तक का है।
जिम कॉर्बेट साहब ने सन १९२९ में यह बीड़ा उठाया और निकल पड़े एक जोखिम अभियान पर जहाँ उन्हें उस बाघिन का शिकार करना था जिसने अब तक ज्ञात ६४ मनुष्यों को अपना शिकार बनाया था। सरकारी आकड़ों से पता चला की यह बाघिन मुख्यतः कालाअगर पहाड़ी क्षेत्र के उत्तरी और पूर्वी भाग में अत्यधिक सक्रिय है। कालाअगर में बाघिन ने एक व्यक्ति को शिकार बनाया जिसके पिता ने जिम साहब को अपने तीन भैंस देने का वादा किया ताकि वो भी अपने बेटे के मौत के बदले में योगदान कर सके। कालाअगर से जिम साहब दल्कनिया गाँव की तरफ बढ़ते हैं जहाँ बाघिन ने के पति-पत्नी को अपना शिकार बनाया था। जिम साहब को पता चलता है की दल्कनिया से १० मिल उत्तर में बाघिन ने एक महिलाओं के झूंड पर हमला कर दिया है।
वहां पहुंचकर जिम साहब पुरे क्षेत्र में खुद बाघ की तलाश या उसके पंजो के निशान खोजने शुरू कर दिए। अगले दिन उन्हें cooee तरीके से पता चलता है की बाघिन ने एक गाय को अपना शिकार बनाया है। जिम साहब उस स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ उस गाय का शिकार किया गया था और बाघिन उसे पहाड़ी से निचे की तरफ ले गयी थी। जिम साहब उस स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ बाघिन अपने शिकार के मांस का आनंद उठा रहे थे। उस स्थान से 3० यार्ड दूर हट गए और देखा की वह दो बाघ थे। जिम साहब ने एक पर निशाना लगाया और फायर कर दिया। फायर के अनुरूप एक बाघ मारा गया लेकिन जब जिम साहब ने उस बाघ का परिक्षण किया तो पाया की वह बाघिन नहीं थी बल्कि उसका शावक था। जिम साहब को बहुत दुःख हुआ यह जानकार की यह एक शावक था। अब जिम साहब को और मेहनत करनी पड़ती। अब और लोग उस बाघिन का शिकार बनते। और समय जिम साहब को लगना था उस बाघिन से चोवरागढ़ को छुटकारा दिलाने में।
cooee एक प्रकार का पहाड़ी तरीका था जिससे सन्देश एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुँचाया जाता था। एक व्यक्ति ऊँचे टीले पर खड़ा हो कर चिल्लाता था और वही सन्देश दुसरे टीले पर स्थित दुसरे व्यक्ति के पहुँचता था और फिर वही सन्देश निर्देशित स्थान तक तब तक पहुँचाया जाता था जब तक वह निर्देशित स्थान तक पहुँच ना जाए।
जिम साहब ने इस कहानी में बताया है की कैसे एक घने जंगले में रात बिताई जाए जहाँ पल पल आपको अपनी जान जाने का खौफ सताता हो। एक सही वृक्ष को चुनना जहाँ आप रात गुजार सके। क्यूंकि जमीन सोना ऐसा होता जैसे आपने खुद को मौत के मुह में छोड़ दिया हो। यह एक आत्महत्या करने जैसा होगा। ऐसे में जिम साहब ने अपनी कई रातें किस कठिनाई के साथ गुजारी होंगी, कितने भय के साथ गुजारी होगी सोचिये जरा। हर पल आप पर मंडराता खतरा।
बाघ जब नरभक्षी हो जाता है तो वह मनुष्य को जानवर ही समझता है। बाघ अपने शिकार की तलाश में हमेशा हवा के दिशा के साथ चलता है। मतलब अगर आप एक घने जंगले में नरभक्षी बाघ के तलाश में हवा के अनुरूप चल रहे हैं तो ऐसा हो सकता हो की वह बाघ आपके पीछे हो और आप पर हमला करने की जुगत लगा रहा हो। लेकिन अगर शिकारी हवा के साथ चले, अपना स्थान और दिशा बदले और दाए बाएं हो कर नरभक्षी बाघ की तलाश कर रहा हो तो भाग्य उसका साथ जरूर देगा।
आप इस कहानी में जिम साहब की उस दरियादिली से भी मिलेंगे जब किसी घायल महिला-व्यक्ति की वह सहायता करते हैं। जो औषधि उन्होंने अपने लिए रखी थी उसका इस्तेमाल वो घायलों के लिए कर लेते हैं।
अगर आप अपने बच्चो को भूत-प्रेतों की कहानिया सुनते हैं, बहादुर सैनिकों की कहानिया सुनते हैं, परियों की कहानिया सुनते हैं तो उसकी जगह आप जिम साहब की यह कहानी सुनाइए। जिम साहब ने जिस बहादुरी से घने जंगले में कई दिन और रातें बिता कर नरभक्षी बाघों का पीछा किया और उनका शिकार किया उसका मजा ही कुछ और है। जिम साहब ने जैसे कुमायूं के निवासियों की सहायता की है वह परियों की कहानी से कहीं ज्यादा विश्वसनीय लगता है। जिम साहब ने जिस प्रकार से बाघों के एक एक हलचल को जंगले में जीवित कर दिखाया है वह भूत प्रेत की कहानियों से कही बेहतर है। जब आप इस कहानी को पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है आप इस कहानी को पढ़ नहीं रहे बल्कि जी रहे हैं । जंगल का पूरा दृश्य आपके सामने जीवित हो उठता है। कुमायूं के जंगल और पहाड़ी का वर्णन इतने विस्तृत रूप में सिर्फ जिम साहब ही कर सकते हैं।
कुमायूं के लोगो के दिल के खौफ को इस तरह से बयान किया गया है की कभी कभी आपके दिल में डर समां सकता है। जो दर्द नरभक्षी बाघों द्वारा लोगो को मिला उसको जिम साहब ने ऐसा बयान किया है की आपकी आँखे भर आती है।
जिम साहब की कहानी सिर्फ एक नरभक्षी बाघ के शिकार तक ही शिमित नहीं रह जाती। नरभक्षी बाघ द्वारा मचाये गए उत्पात, उसके द्वारा फैलाया गया डर, उसके द्वारा दिया गया दर्द, नरभक्षी बाघ से बदला लेने के लिए गाँव वालों द्वारा की गयी कोशिश। मतलब हर प्रकार की थ्रिल और रहस्य के साथ साथ इसमें वो सभी भावनाए होती है जो एक कहानी में होनी चाहिए।
वैसे मैंने बहुत समय लिया है सिर्फ इस कहानी को पढने में लेकिन लगता है मैंने सही किया जो इतना समय लिया। यह एक कहानी नहीं अपितु अपने आप में यह एक लघु उपन्यास सा लगता है। हम इसे यात्रा वृतांत कह सकते हैं क्यूंकि जिम साहब ने इस नरभक्षी बाघिन का शिकार करने के लिए पुरे पूर्व कुमायूं क्षेत्र में यात्रा की और उसका वर्णन भी उतनी सुन्दरता से किया।
हम इसे एक रहस्य कथा कह सकते है क्यूंकि नरभक्षी बाघिन को खोजना सिर्फ इस कथन पर की फलां जगह उसने शिकार किया और फलां जगह उसके पंजे के निशान मिले, यह कितना विकट कार्य है।
मैं यह नहीं कहूँगा की आप इस किताब को पढ़ें।
क्यूंकि शायद ऊपर लिखी गयी यह समीक्षा या पहले आई अनेक समीक्षाओं ने आपको मजबूर कर दिया होगा यह सोचने पर की आपने अब तक यह किताब क्यूँ नहीं पढ़ी। आप यह सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की मैंने जिम कॉर्बेट का नाम तो सुना था पर कभी यह नहीं सोचा था की उन्होंने कोई पुस्तक भी लिखी है। आप यह सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की मुझे पुस्तक के बारे में पता तो था लेकिन मैं किसी कारणवस आज तक नहीं पढ़ पाया।
तो अब सोचिये मत कही से भी, कैसे भी अपनी इस इच्छा को पूरी कर लीजिये।
विनीत
राजीव रोशन
चोगढ़ के नरभक्षी बाघ
लेखक - जिम कॉर्बेट
हर जंग में मौत होती है।
हर युद्ध में लाशें गिरती हैं।
दोनों तरफ जान-माल का नुकसान होता है ।
दोनों तरफ के सैनिकों में जोश होता है, उत्साह होता है, लेकिन डर भी होता है है। लेकिन दोनों तरफ इंसान होते हैं। इंसान अपनी फितरत से पूरी तरह से वाकिफ होता है । सैनिको को यही शिक्षा दी जाती है की कौन तुम्हारा दोस्त है कौन तुम्हारा दुश्मन।
लेकिन अगर दुश्मन एक हो और उसमे भी नरभक्षी बाघ, जिसे सिर्फ और सिर्फ अपने शिकार से मतलब है। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की शिकार मनुष्य है या जानवर। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की वह जिस मनुष्य का शिकार कर रहा है वह किसी का बाप, किसी का बेटा, किसी का पति, किसी की माँ, किसी की बेटी और किसी की पत्नी हो सकती है। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसके कारण किसी के घर में चूल्हा नहीं जलेगा, किसी के घर में शहनाई नहीं बजेगी, किसी के घर में त्यौहार नहीं मनाया जाएगा। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की उसके कारण लोग भय से अपने घरों से कई दिनों तक बाहर नहीं निकलते। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की जिस जानवर को उसने मारा है वो किसी की जीविका कमाने का साधन था। उसे तब मतलब है अपने शिकार से। उसे तो बस मतलब है अपनी भूख मिटाने से । उसे तो जो मिल जाए सामने बस उसका शिकार करता जाता है। उसे किसी से डर नहीं लगता। उसे खौफ नहीं है की कोई उसका शिकार करने को भी आतुर हो रहा है।
जी हाँ दोस्तों, यह जंग है मनुष्यों और नरभक्षी बाघों की।
कुमायूं की पहाड़ी क्षेत्रो में जहाँ प्रकृति ने अपनी झोली से सभी सुन्दर सुन्दर गहने पेड़ो, पहाड़ो, जंगलों, झाड़ियों, पशु और पक्षियों के रूप में हमें दिए हैं। अब जहाँ शान्ति और प्राकृतिक शौन्दर्य की छटा देखने से बनती हैं। यहाँ तक की यहाँ के निवासी भी शांतिपूर्वक यहाँ अपना जीवन बशर करते हैं। लेकिन यहाँ की शान्ति ख़राब करने के लिए बाघ- बाघिन ने अपने आप को नरभक्षी में तब्दील कर लिया है। सन १९२९ में कुमायूं में मुख्यतः तीन नरभक्षी बाघों का आतंक था जिसमे से "चोगढ़" के बाघों ने सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई थी।
मैं बात कर रहा हूँ कुमायूं के पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रों की जो "चोगढ़" के नाम से जाना जाता है। "चोगढ़" क्षेत्र में इस बाघिन ने लगभग ज्ञात ६४ मनुष्यों का शिकार किया और उन्हें अपना आहार बनाया। यह आकड़ा सन १९३० तक का है।
जिम कॉर्बेट साहब ने सन १९२९ में यह बीड़ा उठाया और निकल पड़े एक जोखिम अभियान पर जहाँ उन्हें उस बाघिन का शिकार करना था जिसने अब तक ज्ञात ६४ मनुष्यों को अपना शिकार बनाया था। सरकारी आकड़ों से पता चला की यह बाघिन मुख्यतः कालाअगर पहाड़ी क्षेत्र के उत्तरी और पूर्वी भाग में अत्यधिक सक्रिय है। कालाअगर में बाघिन ने एक व्यक्ति को शिकार बनाया जिसके पिता ने जिम साहब को अपने तीन भैंस देने का वादा किया ताकि वो भी अपने बेटे के मौत के बदले में योगदान कर सके। कालाअगर से जिम साहब दल्कनिया गाँव की तरफ बढ़ते हैं जहाँ बाघिन ने के पति-पत्नी को अपना शिकार बनाया था। जिम साहब को पता चलता है की दल्कनिया से १० मिल उत्तर में बाघिन ने एक महिलाओं के झूंड पर हमला कर दिया है।
वहां पहुंचकर जिम साहब पुरे क्षेत्र में खुद बाघ की तलाश या उसके पंजो के निशान खोजने शुरू कर दिए। अगले दिन उन्हें cooee तरीके से पता चलता है की बाघिन ने एक गाय को अपना शिकार बनाया है। जिम साहब उस स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ उस गाय का शिकार किया गया था और बाघिन उसे पहाड़ी से निचे की तरफ ले गयी थी। जिम साहब उस स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ बाघिन अपने शिकार के मांस का आनंद उठा रहे थे। उस स्थान से 3० यार्ड दूर हट गए और देखा की वह दो बाघ थे। जिम साहब ने एक पर निशाना लगाया और फायर कर दिया। फायर के अनुरूप एक बाघ मारा गया लेकिन जब जिम साहब ने उस बाघ का परिक्षण किया तो पाया की वह बाघिन नहीं थी बल्कि उसका शावक था। जिम साहब को बहुत दुःख हुआ यह जानकार की यह एक शावक था। अब जिम साहब को और मेहनत करनी पड़ती। अब और लोग उस बाघिन का शिकार बनते। और समय जिम साहब को लगना था उस बाघिन से चोवरागढ़ को छुटकारा दिलाने में।
cooee एक प्रकार का पहाड़ी तरीका था जिससे सन्देश एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुँचाया जाता था। एक व्यक्ति ऊँचे टीले पर खड़ा हो कर चिल्लाता था और वही सन्देश दुसरे टीले पर स्थित दुसरे व्यक्ति के पहुँचता था और फिर वही सन्देश निर्देशित स्थान तक तब तक पहुँचाया जाता था जब तक वह निर्देशित स्थान तक पहुँच ना जाए।
जिम साहब ने इस कहानी में बताया है की कैसे एक घने जंगले में रात बिताई जाए जहाँ पल पल आपको अपनी जान जाने का खौफ सताता हो। एक सही वृक्ष को चुनना जहाँ आप रात गुजार सके। क्यूंकि जमीन सोना ऐसा होता जैसे आपने खुद को मौत के मुह में छोड़ दिया हो। यह एक आत्महत्या करने जैसा होगा। ऐसे में जिम साहब ने अपनी कई रातें किस कठिनाई के साथ गुजारी होंगी, कितने भय के साथ गुजारी होगी सोचिये जरा। हर पल आप पर मंडराता खतरा।
बाघ जब नरभक्षी हो जाता है तो वह मनुष्य को जानवर ही समझता है। बाघ अपने शिकार की तलाश में हमेशा हवा के दिशा के साथ चलता है। मतलब अगर आप एक घने जंगले में नरभक्षी बाघ के तलाश में हवा के अनुरूप चल रहे हैं तो ऐसा हो सकता हो की वह बाघ आपके पीछे हो और आप पर हमला करने की जुगत लगा रहा हो। लेकिन अगर शिकारी हवा के साथ चले, अपना स्थान और दिशा बदले और दाए बाएं हो कर नरभक्षी बाघ की तलाश कर रहा हो तो भाग्य उसका साथ जरूर देगा।
आप इस कहानी में जिम साहब की उस दरियादिली से भी मिलेंगे जब किसी घायल महिला-व्यक्ति की वह सहायता करते हैं। जो औषधि उन्होंने अपने लिए रखी थी उसका इस्तेमाल वो घायलों के लिए कर लेते हैं।
अगर आप अपने बच्चो को भूत-प्रेतों की कहानिया सुनते हैं, बहादुर सैनिकों की कहानिया सुनते हैं, परियों की कहानिया सुनते हैं तो उसकी जगह आप जिम साहब की यह कहानी सुनाइए। जिम साहब ने जिस बहादुरी से घने जंगले में कई दिन और रातें बिता कर नरभक्षी बाघों का पीछा किया और उनका शिकार किया उसका मजा ही कुछ और है। जिम साहब ने जैसे कुमायूं के निवासियों की सहायता की है वह परियों की कहानी से कहीं ज्यादा विश्वसनीय लगता है। जिम साहब ने जिस प्रकार से बाघों के एक एक हलचल को जंगले में जीवित कर दिखाया है वह भूत प्रेत की कहानियों से कही बेहतर है। जब आप इस कहानी को पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है आप इस कहानी को पढ़ नहीं रहे बल्कि जी रहे हैं । जंगल का पूरा दृश्य आपके सामने जीवित हो उठता है। कुमायूं के जंगल और पहाड़ी का वर्णन इतने विस्तृत रूप में सिर्फ जिम साहब ही कर सकते हैं।
कुमायूं के लोगो के दिल के खौफ को इस तरह से बयान किया गया है की कभी कभी आपके दिल में डर समां सकता है। जो दर्द नरभक्षी बाघों द्वारा लोगो को मिला उसको जिम साहब ने ऐसा बयान किया है की आपकी आँखे भर आती है।
जिम साहब की कहानी सिर्फ एक नरभक्षी बाघ के शिकार तक ही शिमित नहीं रह जाती। नरभक्षी बाघ द्वारा मचाये गए उत्पात, उसके द्वारा फैलाया गया डर, उसके द्वारा दिया गया दर्द, नरभक्षी बाघ से बदला लेने के लिए गाँव वालों द्वारा की गयी कोशिश। मतलब हर प्रकार की थ्रिल और रहस्य के साथ साथ इसमें वो सभी भावनाए होती है जो एक कहानी में होनी चाहिए।
वैसे मैंने बहुत समय लिया है सिर्फ इस कहानी को पढने में लेकिन लगता है मैंने सही किया जो इतना समय लिया। यह एक कहानी नहीं अपितु अपने आप में यह एक लघु उपन्यास सा लगता है। हम इसे यात्रा वृतांत कह सकते हैं क्यूंकि जिम साहब ने इस नरभक्षी बाघिन का शिकार करने के लिए पुरे पूर्व कुमायूं क्षेत्र में यात्रा की और उसका वर्णन भी उतनी सुन्दरता से किया।
हम इसे एक रहस्य कथा कह सकते है क्यूंकि नरभक्षी बाघिन को खोजना सिर्फ इस कथन पर की फलां जगह उसने शिकार किया और फलां जगह उसके पंजे के निशान मिले, यह कितना विकट कार्य है।
मैं यह नहीं कहूँगा की आप इस किताब को पढ़ें।
क्यूंकि शायद ऊपर लिखी गयी यह समीक्षा या पहले आई अनेक समीक्षाओं ने आपको मजबूर कर दिया होगा यह सोचने पर की आपने अब तक यह किताब क्यूँ नहीं पढ़ी। आप यह सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की मैंने जिम कॉर्बेट का नाम तो सुना था पर कभी यह नहीं सोचा था की उन्होंने कोई पुस्तक भी लिखी है। आप यह सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की मुझे पुस्तक के बारे में पता तो था लेकिन मैं किसी कारणवस आज तक नहीं पढ़ पाया।
तो अब सोचिये मत कही से भी, कैसे भी अपनी इस इच्छा को पूरी कर लीजिये।
विनीत
राजीव रोशन
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