बीवी का हत्यारा “इर्ष्या ही इंसान की संहारक प्रवृति की जननी होती है।” “अविश्वास और अनास्था ही इंसानी रिश्तों को दीमक लगाती है।” दोस्तों उपरोक्त दोनों ही सूक्तियां पाठक साहब द्वारा लिखित उपन्यास “बीवी का हत्यारा” से लिया गया है। “बीवी का हत्यारा” सर सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखित एक बेहतरीन शाहकार है जो थ्रिलर की श्रेणी में गिना जाता है। लेकिन अभी २ हफ्ते पहले जब मैंने इस पुस्तक को पढना शुरू किया और अपने मित्रों को बताया की मैं “बीवी का हत्यारा” पढ़ रहा हूँ तो उनके कमेंट बहुत ही मजाकिया थे। वैसे ऐसा होना भी चाहिए क्यूंकि अभी बमुश्किल एक महीने ही मेरी शादी को हुए हैं और मैं शादी के बाद पहला उपन्यास पढना शुरू भी किया तो कौन सा – “बीवी का हत्यारा”। तो ऐसी स्थिति में मेरे मित्रों द्वारा मजाक किया जाना वाजिब है। मैं इस उपन्यास को इस बार से पहले भी, कई बार पढ़ चूका हूँ। लेकिन इस उपन्यास में एक कशिश है जो मुझे इसे बार-बार पढने को मजबूर कर देती है। इस उपन्यास का केंद्रीय किरदार एक पुलिस इंस्पेक्टर है जो अविश्वास और अनास्था की एक ऐसी राह पर पड़ता है जहाँ से वापिस लौटन
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