विषकन्या
पुस्तक - विषकन्या
लेखक - श्री
सुरेन्द्र मोहन पाठक
सीरीज - सुनील कुमार
चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर)
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नेशनल बैंक में
पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की
एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक
की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया
गया था।
उस दिन शोपिंग मॉल
के उदघाटन का दिन था, मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल
का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था।
कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे।
चश्मदीद गवाहों का कहना था की जब यह
कार्निवाल अपने जोरों पर था, उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में
दो गार्ड रमेश
और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के
पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया और बैंक की तरफ बढ़ा। लेकिन बैंक की तरफ
जाने से पहले उमेश सक्सेना ने जूस काउंटर से जूस पिया। वह मॉल के मुख्य द्वार के
करीब पहुंचा भी नहीं था की उसके शरीर को झटका लगा और वह जमीन पर गिर पड़ा। बैंक की गाड़ी
के ड्राईवर मोहरसिंह ने यह देखा तो पहले उसने पैसों से भरे थैले उठाये और दौड़ता
हुआ गाड़ी के पिछले हिस्से में पहुंचा और रमेश सक्सेना को बताया की उसका भाई बेहोश
हो गया है। रमेश ने गाडी के पिछले हिस्से में ताला लगाया और अपने भाई के तरफ दौड़
पड़ा। तभी भीड़ में से स्थित एक व्यक्ति ने अपने आप को डॉ. आहूजा बताकर मोहर सिंह को
करीबी डॉ. लोहानी के क्लिनिक से स्टमक पंप लाने को कहा और उसने एक इंजेक्शन उमेश
सक्सेना को लगा दिया।
दूसरी तरफ बैंक के
गाडी का पीछे से ताला खुल चूका था,
और वहां कोई जोकर के कपडे पहने
हुए बैंक के पैसे लुटा रहा था जिससे भीड़ में अफरा तफरी मच गयी थी। फिर उसके बाद जब
जोकर भाग रहा था तो कार्निवाल के एक कर्मचारी ने उसे रोकने की कोशिश की जिसके
उत्तर में उसने गोलियां चला दी। जिससे वह कर्मचारी और एक महिला को गोली लग गयी। जब
तक पुलिस आती और स्थिति संभलती तब तक गाडी लूट चुकी थी।
पुलिस ने फ्रेडरिको
को बैंक लूटने, साजिश करने, हत्या करने के जुर्म
में गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उसकी पत्नी मारिया को भी गिरफ्तार कर लिया क्यूंकि
जूस काउंटर पर उमेश सक्सेना को जूस मारिया ने ही दिया था। पुलिस सूत्रों से यह पता चला है की उमेश
सक्सेना ने एक बार मारिया के साथ बदतमीजी की थी। लेकिन मारिया कहती है की उसने
उमेश को ज़हर नहीं दिया था जबकि पुलिस जांच से जहर की पुष्टि पेट में ही होती है जो
की जूस के साथ दी गयी थी। पुलिस ने फ्रेडरिको को इसलिए गिरफ्तार किया क्यूंकि उसने
भी जोकरों जैसे कपडे पहने हुए थे और उसे पैसों की बहुत जरूरत थी। दोनों पति और
पत्नी ने अपने बयान में उन पर लगाये गए जुर्मों की मुखालपत की थी।
पुलिस बहुत ही
सरगर्मी से तरुण नांगिया नाम के लड़के की तलाश कर रही थी जो कार्निवाल में काम करता
था और उस डॉ. आहूजा की भी तलाश की जा रही थी जिसने उमेश सक्सेना को इंजेक्शन दिया
था। पुलिस को शक था की यही दोनों फ्रेडरिको के साथी थे और पैसा लूट कर गायब हो गए
थे। अगले दिन पुलिस को कार्निवाल के घोड़ों वाले झूले के एक घोड़े में १ लाख रुपया
मिला जिसने फ्रेडरिको और मारिया के केस में आखिरी कील का काम किया।
मेरी तफ्तीस के
दौरान मुझे मॉल के सिक्यूरिटी इंचार्ज दिलीप दत्त से जयललिता नाम की लड़की की
जानकारी मिली जिसके अनुसार उसने उस डॉ. को एक सुन्दर महिला के साथ एक एम्बेसडर में
सवार जाते हुए देखा था। उस लड़की के अनुसार गोली चलने वाला और रुपया लुटाने वाला
शख्स फ्रेडरिको नहीं था। कारण के रूप में उसने बताया की फ्रेडरिको और डाके वाले
जोकर के चेहरों में भिन्नताएं थी। मेरी अगली तलाश तरुण
नांगिया की ओर गयी जिसके होने की आशंका झेरी में बताई गयी थी और उसके कब्जे में एक
मारुती भी बताई गयी थी । झेरी में पूछताछ के बाद पता चलता है की वह कार किसी
अतिसुन्दर महिला की है, जिसका नाम देवबाला है, जिसको अगर भगवान् भी देख ले तो भरमा जाए। मेरे वहां पहुँचने के उपरान्त
पता चला की उस महिला ने तरुण नांगिया की हत्या कर दी है और कॉटेज को आग लगा कर
फरार हो गयी। अब पुलिस ने डॉ. आहूजा और देवबाला की तलाश शुरू कर दी थी।
इसी दौरान पुलिस, बैंक के कैशिअर कृष्णा से बात करती है जो एक साध्वी है और सादा जीवन
गुजारती है । उससे मिली जानकारी के अनुसार उसे किसी देवबाला की जानकारी नहीं थी और
बैंक वैन की दूसरी चाबी बैंक के वॉल्ट में रहती है।
जयललिता से दूसरी
मुलाक़ात के बाद पता चलता है की कथित डॉ. आहूजा लंगड़ाता भी था। इस बिंदु पर डॉ. लोहानी से बात
करने पर डॉ. आहूजा का पता चल जाता है। कथित डॉ. आहूजा एक याट पर पाया जाता है। मैं
जब याट पर पहुंचा तो वहां मुझे डॉ. आहूजा की लाश मिली। लाश देखकर ऐसा लगा की इसे २
दिन पहले ही क़त्ल किया गया है।
इससे यह भी साबित
होता जाता है की डॉ. आहूजा और तरुण नांगिया ने उस लड़की देवबाला के साथ मिलकर इस
डैकैती की योजना बनाई थी|
दोस्तों क्षमा
मांगते हुए यह लिख रहा हूँ की यह मेरे दिमाग की कल्पना थी जिसके अनुसार मुझे एक
"ब्लास्ट" अखबार के द्वारा सुनील की बाई लाइन समीक्षा लिखनी थी। जिसकी
पूर्ति के लिए मैं कई महीनों से इस बिंदु पर काम कर रहा था। लेकिन इस योजना के लिए
बहुत से विषयों पर काम करना पड़ा मुझे। चलिए फिर से माफ़ कीजियेगा की मैंने आप लोगों
को थोडा सा, थोडा सा बहकावे में डाला। निम्नलिखित चित्र
सिर्फ मेरी कल्पना मात्र है इसका किसी भी व्यक्ति, वस्तु, अखबार, से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह कल्पना मात्र
मनोरंजन के लिए है।
अब मैं आता हूँ इस
बेहतरीन उपन्यास की समीक्षा पर......
विश्लेषण : -
"विषकन्या" श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित बहुत ही शानदार
उपन्यास है। कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जो क़त्ल, साजिश और डकैती के
मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है। परन्तु सुनील की तीक्ष्ण बुद्धि
कहती है की इसके साथ अन्याय हुआ है। सुनील अपनी आदतों से मजबूर हो कर "underdog " की सहायता के लिए मैदान में कूद पड़ता है। अपनी बेमिशाल
प्रतिभा, तीक्ष्ण बुद्धि, बेहतरीन तर्कशक्ति का
मालिक, प्रतिष्ठित खोजी पत्रकार सुनील कुमार चक्रवर्ती यह समझ
नहीं पाता की उमेश सक्सेना को ज़हर कैसे दिया गया? वह यह समझ नहीं पाता
की बैंक की गाडी से १५ लाख रूपये कैसे लूटेरे ले गए जबकि उनके हाथ में कुछ भी नहीं
था। वह नहीं जान पाता की वह रहस्यमयी देवबाला कौन थी। इस बार तर्कशक्ति से कम, अपनी तहकीकात से वह केस पर काम
करता है। फ्रेडरिको और मारिया का किरदार बहुत शशक्त है। पाठक साहब ने जितने सूत्र
इन दोनों के खिलाफ छोड़े उतने ही लूप होल भी छोड़े जिसे कोई भी पाठक आसानी से देख
सकता है। चूंकि पाठक साहब जमीनी स्तर पर अपनी कहानियों की रचना करते हैं जिससे हर
घटना सहज ही लगती है। कहानी में रहस्यमयी गुत्थियों को एक के बाद एक जोड़ा गया है। जिससे कहानी में चार चाँद लग जाता
है और सस्पेंस बढ़ता जाता है। "कृष्णा" के किरदार को बहुत कम दिखाया गया
है परन्तु सुन्दर दिखाया गया है। प्रभुदयाल और सुनील के सामने उमेश सक्सेना के लिए
उसके आँखों में आंसू आना अपने आप में इस बात का सबूत है की पाठक साहब किरदारों की
मजबूती पर कितना ध्यान देते हैं। वहीँ अपने जीवन को साध्वी की तरह बिताने के लिए
दिया गया कारण, जो की अंत में आता है, वह भी भारतीय समाज के एक दकियानूसी विचारों की बखिया उखेड़ता है। पाठक साहब
ने अपने कई उपन्यासों में समाज के इन विचारों पर निशाना साधा है। कभी कभी ये
दकियानूसी और अन्धविश्वाशी विचार अपराध को जन्म देते हैं। आज भी हमारे समाज में इन
विचारों के अंधड़ में कई अपराध घटित होते हैं। देवबाला का किरदार परत दर परत संदेहास्पद और
रहस्यमयी होता जाता है। पाठक साहब ने पहले तरुण नांगिया, फिर डॉ. आहूजा के क़त्ल के द्वारा समाज में पनपे हुए कामांध को दिखाया ही
है और वही दुसरे कोण से समाज के वहशीपन को भी दिखाया है। सुनील द्वारा बस एक छोटे
से सूत्र का प्रयोग करके रहस्य की तह तक पहुंचना, यह बात दिन ब दिन
सुनील के मस्तिष्क के और तीक्ष्ण होने का इशारा है। रमाकांत की नामौजूदगी बहुत
खलती है। वही अर्जुन की मजूदगी से कभी कभी मुस्कराहट भी आती है, लेकिन पाठक साहब ने अर्जुन की मौजूदगी को भी कम दर्शाया है। पुरे उपन्यास
पर या तो सुनील का असर है या देवबाला का। सुनील सूत्रों का पीछा करते हुए रहस्यों
को खोलता जाता है, वहीँ देवबाला मुख्या सूत्रों को मिटती हुई एक
नया रहस्य बनाती जाती है। पाठक साहब ने कहानी को बेमिशाल अंदाज़ में लिखा है। डकैती
का हजारों लोगों के बीच होना और भीड़ का पैसों के पीछे अपना संयम खो देना भी समाज
के मुह पर करारा तमाचा है।
मैं पाठक साहब का
मुरीद हूँ की उन्होंने हम पाठकों को एक ही
पिचकारी से कई रंगों में नहलाया है। मैं देखता हूँ की जितने भी सुनिलियन उपन्यास
हैं सब का रस अलग है।
मुझे तो यह उपन्यास
पढने में बहुत ही मजा आया। आपने कैसा आनंद उठाया जरूर बताएं। जो साथीगन
"विषकन्या" के साथ से अछूते हैं उनको सांत्वना देकर कहना चाहता हूँ की
कोशिश जारी रखिये, जल्दी ही आपकी कोशिश सफलता में बदलेगी।
विनीत
राजीव रोशन
Note:- सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों से सम्बंधित और कई ख़बरों, गॉसिप के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें
http://www.facebook.com/groups/smpathak/?bookmark_t=group
विषकन्या सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब का वह बेहतरीन उपन्यास है जिसे ख़ुद पाठक साहब बहुत पसंद करते हैं । मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत यह रहस्य-कथा पढ़ने वाले पर जादुई असर करती है । आपने अच्छी समीक्षा लिखी है । आभार ।
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया माथुर सर....
ReplyDeleteविषकन्या में कृष्णा और देवबाला का किरदार मेरा पसंदीदा बन गया है।
जिस प्रकार सुनील को देवबाला का किरदार छू गया था उसी प्रकार से यह किरदार भी मेरे दिल को छू गया।
जहाँ कुरीतियों, अंधविश्वासों की बात आती है तो मुझे लगता है आज का इंसान, आज में नहीं १८-१९ वीं शताब्दी में जी रहा हो।
देवबाला का बेबाक रूप से सुनील को अपना जीवन प्रसंग सुनना मेरा पसंदीदा संवाद है।
वहीँ प्रभुदयाल का कोट खोज कर उस पर बटन लगाना, मुझे पसंद नहीं आया। अपितु हो सकता हो की यह कहानी की जरूरत हो।