काला कारनामा - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक
विक्रम और बेताल
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अमावस्या की काली रात। चाँद न जाने किसके डर से आज छुप गया था। जंगले सुनसान सा पड़ा था। कहीं से किसी भी बड़े या छोटे जीव-जंतु की आवाज़ नहीं आ रही थी। ऐसा लगता था की अँधेरे और सन्नाटे ने पुरे जंगले को निगल सा लिया था। ऊँचे ऊँचे पेड़ ऐसे खड़े थे जैसे की भूत हों। उन पेड़ो की शाखाएं ऐसे हिल रही थी जैसे कोई भूत अपने हाथ हिला रहा हो। जंगले बीच के पगडण्डी पर एक व्यक्ति अपने कंधे पर किसी को उठा कर चले जा रहा था। व्यक्ति के रख रखाव और वेश-भूषा को देख कर लगता था की कहीं का राजकुमार हो। उसके मुख पर तेज़ का ऐसा प्रकाश था की सामने की पगडण्डी प्रकाशमान हो रही थी। उसने अपने कंधे पर एक व्यक्ति को लादे हुए था। ऐसा लगता था की वह व्यक्ति मृत है । व्यक्ति ने साधारण से कपडे पहने हुए थे। अचानक एक आवाज़ आई-
"तो अगली कहानी क्या है बेताल"।
राजा से लग रहे व्यक्ति ने किससे बात की दिखाई नहीं दे रहा था। चूंकि व्यक्ति ने बेताल कहा। इसका अर्थ कोई प्रेतात्मा उसके साथ था।
फिर आवाज आई : -
"राजन, मैंने अब तक आपको २५ कहानियां सुनाई और आपने सभी कहानियों को बड़े ही शांत ढंग से सुना। आपने सभी कहानी के अंत में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भी बहुत ही सूझबूझ से दिए। हे राजा विक्रमादित्य, अब जो कहानी में आपको सुनाने जा रहा हूँ, वह कहानी आपके दिमाग को मात दे देगा, इस कहानी में फँसी घुंडी आप आसानी से नहीं खोल पायेंगे।"
"हे बेताल, आप कहानी सुनाइए। मैं कोशिश करूँगा की इस कहानी को समझ सकूँ और आपके प्रश्नों के उत्तर दे सकूँ।"
"हे राजन, भूत बनने से पहले, मैं एक सिद्धयोगी था। मैंने अपने सिद्धि करके भगवान् को प्रसन्न किया और उनसे कहा की मैं भविष्य की दो दिन की यात्रा करना चाहता हूँ। ईश्वर ने मेरी बात मान ली और मुझे भविष्य में भेज दिया। जिस दिन मैं भविष्य में पहुंचा उस दिन की ही यह घटना है।"
बेताल ने राजा विक्रमादित्य की तरफ देखा लेकिन रजा ने अपने होठों से एक शब्द नहीं कहा। बेताल राजा के बोलने का इंतज़ार कर रहा था। राजा एक शब्द बोलता और बेताल मुर्दा समेत उसी पेड़ पर लटक जाता जहाँ से राजा लेकर आया था। पिछले पच्चीस कहानियों से यही होता आया था।
"यह कहानी है राजनगर शहर की जहाँ बैंक स्ट्रीट की दोमंजिला इमारत में ओम मेहता जिनकी उम्र ४०-४५ वर्ष की होगी अपनी पत्नी विजय मेहता और चाचा रोशनलाल के साथ रहते थे। विजय मेहता की उम्र २४-२५ वर्ष होगी। २ साल पहले ही ओम मेहता ने विजय से विवाह किया था। ओम मेहता के चाचा, रोशनलाल कुछ वर्ष पहले एक मेहमान के रूप में आये थे लेकिन अब बिलकुल उसी घर के बन के रह गए थे। रोशनलाल जाने का नाम नहीं ले रहे थे। ऊपर से वह कोई न कोई बहाना बना कर ओम मेहता से पैसे ले लेता था। एक दिन विजय मेहता को उसके घर के सोफे के करीब एक जानना रुमाल मिला जिस पर "सोनिया" नाम लिखा हुआ था। ओम मेहता भी रात को सपने में "सोनिया" "सोनिया" नाम लिया करते थे। विजय मेहता ने शंकावश अपने पति के कार्यालय और उसके करीब के इलाके में सोनिया के बारे में पता लगाया तो पता चला की वह लड़की बहुत दिनों से गायब है और ऑफिस भी नहीं जा रही है। उसी दौरान एक दिन विजय ने रोशनलाल को घर से निकल जाने को कहा तो रोशनलाल ने बताया की उसके पति ओम मेहता ने एक लड़की "सोनिया" का क़त्ल यही इस सोफे पर कर दिया था।
विजय सकते में आ जाती है। चूंकि अब रोशनलाल के पास इतनी बड़ी ख़ुफ़िया जानकारी है जिससे उसके पति को जेल हो सकती है। रोशनलाल उसे यह भी बताता है की उसे पता है की विजय मेहता की आशनाई संजय सबरबाल नाम के लड़के के साथ हैं। उसी दिन डिनर पर रोशनलाल एक मेहमान वैद्य राजदान को बुलाता है जो की एक सम्मोहन विद्या जानने वाला वैद्य है। सम्मोहन वह कला है जिसके द्वारा मनुष्य उस अर्धचेतनावस्था में लाया जा सकता है जो समाधि, या स्वप्नावस्था, से मिलती-जुलती होती है, किंतु सम्मोहित अवस्था में मनुष्य की कुछ या सब इंद्रियाँ उसके वश में रहती हैं। वह बोल, चल और लिख सकता है; हिसाब लगा सकता है तथा जाग्रतावस्था में उसके लिए जो कुछ संभव है, वह सब कुछ कर सकता है, किंतु यह सब कार्य वह सम्मोहनकर्ता के सुझाव पर करता है।
अगले दिन संजय सबरबाल की मुलाक़ात सुनील से होती है। संजय सबरबाल एक युवा और जहीन लड़का है जो की एक अखबार क्रोनिकल में पत्रकार का काम करता है। वहीँ सुनील ब्लास्ट नामक अखबार का मुख्य पत्रकार है। संजय सबरबाल सुनील को बताता है की वह उसके पड़ोस में रहने वाली विजय मेहता से प्रेम करता है। सुनील उसे समझाता है की किसी विवाहित स्त्री से प्रेम करना खतरनाक है। लेकिन संजय सबरबाल सभी बातों को नकार देता है। संजय सबरबाल बताता है की आज की रात ओम मेहता की कोठी पर सम्मोहन विद्या का प्रदर्शन किया जाएगा। वैद्य राजदान सम्मोहन विद्या का प्रयोग किसी एक व्यक्ति पर करेंगे और सम्मोहन विद्या का प्रदर्शन करेंगे। सुनील उससे आग्रह करता है की वह भी उसे इस प्रदर्शन में ले जाए। लेकिन संजय सबरबाल ऐसा कर पाने में सम्भव नहीं हो पाता।
उसी रात्रि को ओम मेहता की कोठी में कुछ लोग बैठे थे जिनमे खुद ओम मेहता, विजय मेहता - उनकी पत्नी, रोशन लाल - ओम मेहता का चाचा, संजय सबरबाल - विजय का दोस्त, रूपा - संजय सबरबाल की दोस्त और वैद्य राजदान - सम्मोहन विद्या का प्रदर्शन करने वाले।
घडी में नौ बजते हैं और प्रदर्शन शुरू हो जाता है। वैद्य राजदान सभी पूछते हैं की इस विद्या का किस पर इस्तेमाल किया जाए। इस पर सभी ना कर देते हैं लेकिन अंत में विजय मेहता मान जाती हैं। वैद्य राजदान कुछ समय के लिए विजय मेहता को बाहर भेज देता है। वैद्य राजदान अपने प्रदर्शन के बारे में सब को बताते हैं। वैद्य राजदान कहते हैं की वो विजय मेहता द्वारा ओम मेहता पर कातिलाना हमला करवाएंगे। कातिलाना हमला करवाने के लिए वे दो प्रकार के हथियारों का प्रयोग करेंगे।जिनमे पहले होगा एक रबर का खंजर और दूसरा होगा एक बन्दूक जिसमे नकली गोलियां होंगी। सभी को बारी बारी से नकली हथियार को जांचने के लिए दिया जाता है। जांच के पश्चात दोनों हथियारों को एक तिपाये पर रख दिया जाता है। विजय मेहता को अन्दर बुलाया जाता है। वैद्य राजदान विजय मेहता पर सम्मोहन विद्या का प्रयोग करते हैं और उसे अपने वश में कर लेते हैं। वे विजय मेहता को बन्दूक का प्रयोग करते हुए अपने पति का खून करने को कहते हैं लेकिन वह बन्दुक नहीं चला पातीं और बन्दूक उनके हाथ से छुट जाता है। उसी दौरान घर का नौकर काशीनाथ आता है और बताता है की रोशनलाल जी से मिलने कोई व्यक्ति आया है। रोशनलाल जी उनसे मिलने के लिए बाहर चले जाते हैं। सम्मोहन विद्या का प्रदर्शन इस रुकावट के बाद भी चल रहा होता है। फिर वैद्य राजदान विजय मेहता को खंजर उठा कर ओम मेहता पर हमला करने को कहते हैं । विजय मेहता खंजर उठती हैं और उसे ओम मेहता के छाती में पूरा उतार देती हैं। तभी रोशनलाल कमरे में कदम रखते हैं तो देखते हैं की ओम मेहता के बाएं हिस्से जहाँ दिल होता है वहां से खून की धाराएँ निकल रही हैं। सभी आश्चर्य चकित हो जाते हैं। वैद्य राजदान ओम मेहता की नब्ज़ जांचता है और सब को बताता है की ओम मेहता अब इस दुनिया में नहीं रहे।
अब सब इस बात से परेशान हैं की रबर का खंजर अचानक बदल कैसे गया। जबकि पुरे समय खंजर ओम मेहता के पास और सबके सामने तिपाये पर रखा था। सभी एक दुसरे के सामने मौजूद थे, फिर यह क़त्ल किसने कर दिया। घरवालों द्वारा पुलिस को फ़ोन कर दिया जाता है , वहीँ संजय भी सुनील को फ़ोन कर देता है। मैं तुम्हे सुनील के बारे में एक बता दूँ जो मैंने वहां सुनी थी, कहा जाता है की सुनील क़त्ल के रहस्यों को चुटकी में हल कर देने में मशहूर था। सुनील ओम मेहता की कोठी पर पहुँचता है। संजय और सुनील मिलकर विजय मेहता को जो की अभी भी अचेतन अवस्था में थी उसे अपने शयन कक्ष में पहुंचा देते हैं । पुलिस की गाडी ओम मेहता की कोठी में पहुँचती है। सुनील विजय मेहता के कमरे में ही छुप जाता है और संजय को नीचे भेज देता है। कुछ देर बाद विजय के कमरे में रूपा आती है लेकिन कुछ ही पलों के बाद वैद्य राजदान भी वहां पहुँच जाता है। वैद्य राजदान विजय के हाथ में एक आलपिन चुभोकर रूपा की तस्सली करवाते हैं की विजय मेहता सच में सम्मोहन विद्या में जकड़ी हुई थी। रूपा वहां से चली जाती है। फिर वैद्य राजदान विजय से कुछ से सवाल करते हैं - जिसमे विजय उन्हें सोनिया के क़त्ल और संजय सबरबाल से अपने सम्बन्ध के बारे में बताती है।
पुलिस वैद्य राजदान को विजय मेहता का सम्मोहन ख़तम करने को कहती है। ओम मेहता की लाश का पोस्टमॉर्टेम के लिए भेज दिया जाता है। पुलिस सबसे जवाब तलबी करती है। सभी एक दुसरे के सामने होने की गवाही देते हैं। पुलिस को पता चलता है की बाहर से उस कमरे में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं आया। खिड़की के करीब से उस तिपाये की दूरी लगभग १२ फीट थी । तो बिना कमरे में घुसे तिपाये पर रखे खंजर नहीं बदला जा सकता था। खिड़की के नीचे कही भी ऐसे निशान नहीं पाए गए जिससे ये साबित हो की खिड़की से अन्दर कोई आया हो। या खंजर बदलने के लिए खिड़की का इस्तेमाल किया गया है। पुरे कमरे की तलाशी ली गयी लेकिन रबर वाला खंजर नहीं मिला। पुलिस, रूपा, संजय, रोशनलाल, वैद्य राजदान, सुनील सभी इस रहस्य को समझ नहीं पाते हैं की खंजर कैसे बदल गया। "
"राजन मैंने तुम्हे आधी कहानी सुनाई है, और अगर तुम्हे कहानी समझ में नहीं आई तो तुम मुझे बताओ मैं अपनी सिद्धि का प्रयोग करके तुम्हे एक पुस्तक दूंगा जिसमे यह पूरी कथा लिखी हुई है। इस पुस्तक का नाम "काला कारनामा" है जिसके लेखक श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी हैं। भविष्य में उनकी लेखन कला और उनकी पुस्तकें बहुत प्रसिद्द हैं। उन्होंने अपनी लेखन से आसमान की बुलंदियों को छू लिया है। वो अभी भी लिखते हैं और बड़ी शानदार कृतियाँ लिखते हैं। बोलो तुम्हे कहानी समझ में आई।"
"हे बेताल, आप मुझे वह पुस्तक दीजिये ताकि मैं उसे पढ़कर कहानी को सही से समझ सकूँ "
बेताल ने अपनी सिद्धि का प्रयोग किया और विक्रम के हाथ में वह किताब आ गयी।
"राजन आपको पुस्तक उसी बिंदु तक पढना है जहाँ तक मैंने आपको कहानी सुनाई। मैं जानता हूँ की आप इमानदार हैं। इसलिए मैंने यह पुस्तक सम्पूर्ण कहानी के साथ आपको दिया है।"
विक्रमादित्य बहुत ही तेजस्वी और ज्ञानी राजा थे। उन्होंने पन्ने पलटने शुरू कर दिए कहानी को शीघ्र-अतिशीघ्र पढ़ते और समझते गए।
कुछ समय पश्चात उन्होंने वह पुस्तक बेताल को दी।
विक्रमादित्य बोले " हे बेताल, मैं पूरी कहानी पढ़ चूका हूँ। अब पूछिये आपका क्या प्रश्न है।"
बेताल बोल" हे राजन। मेरा एक प्रश्न नहीं है। आप निम्न प्रश्नों के उत्तर मुझे दें: -
१) ओम मेहता की हत्या कैसे हुई?
२) रबर का खंजर अचानक एक असली खंजर में कैसे तब्दील हो गया?
३) जब सभी एक दुसरे के सामने मौजूद थे और बहार से कोई व्यक्ति आया नहीं तो ओम मेहता का क़त्ल किसने किया?
४) क्या ओम मेहता ने खुद ही खंजर तो नहीं बदला?
५) क्या विजय मेहता सचमुच सम्मोहन विद्या में जकड़ी हुई थी?"
विक्रम सोच में पड़ गया। कंधे पर मुर्दे को डाले वह पगडंडियों पर चला जा रहा था। लेकिन उसके दिमाग में एक तूफ़ान से उठ चूका था। उसके माथे की मांसपेशियां एवं त्वचा सिकुड़ रही थी और फ़ैल रही थी। तान्त्रिक के पास वह जल्दी ही पहुँचने वाला था। लेकिन वह बेताल के प्रश्नों का उत्तर भी देना चाहता था।
विनीत
राजीव रोशन
नोट : - दोस्तों आप सभी ने बेताल-पच्चीसी नामक पुस्तक जरूर पढ़ा होगा। वैसे तो इस पुस्तक में जीवन के नैतिक मूल्यों से सम्बंधित कहानियां हैं। मैंने इस पुस्तक के दो मुख्य किरदार का प्रयोग करके "काला कारनामा" उपन्यास का सारांश आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत किया है। मैं बेताल-पच्चीसी जो की तकरीबन २५०० वर्ष पूर्व लिखी गयी थी उस पर कोई कटाक्ष या अपमान नहीं करना चाहता। मैंने सभी २५ कहानियां पढ़ी हैं। और सभी कहानियों में जीवन के नैतिक मूल्यों के अर्थ को सही प्रकार समझाया गया है। मैं इस पुस्तक का आदर करता हूँ। अगर लेख में किसी प्रकार की त्रुटी हो तो मुझे क्षमा करें।
विश्लेषण - काला कारनामा
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मैं अब तक बहुत से ऐसे उपन्यास पढ़ चूका हूँ जो की मर्डर-मिस्ट्री के श्रेणी में आते हैं। इस विधा को पढने की सच्ची प्रेरणा मुझे मिली मेरे पूज्यनीय श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक के सुनील सीरीज के उपन्यास "काला कारनामा" से। अगर मैं उपन्यास के विश्लेषण की ओर जाऊं तो पाता हूँ की, सुनील सीरीज के कुछ ही ऐसे उपन्यास हैं जिसमे सुनील की एंट्री उपन्यास के पहले पन्ने से नहीं होती। इस उपन्यास में सुनील की एंट्री दुसरे दृश्य में होती है। जैसा की सुनील सीरीज के उपन्यासों में मुख्यतः होता है की सुनील पुलिस से पहले केस को हल कर लेता है लेकिन इसमें पुलिस सुनील से २ कदम आगे रहती है।
उपन्यास की गतिविधियाँ सिर्फ दो दिनों में सिमित कर ख़त्म कर दिया गया इससे पता चलता है की उपन्यास को तीव्र स्तर पर लिखा गया है। जहाँ एक क़त्ल की गुत्थी सुलझती नज़र नहीं आती वहीँ दो बार और क़त्ल की कोशिश की जाती है। २ दिन में तीन बार क़त्ल की कोशिश, एक कोशिश सफल और दो असफल। कहीं नहीं लगता की कहानी में स्थिरता आ रही है, घटनाओं में निरंतरता की कोई कमी नहीं है।
सुनील और रमाकांत की जोड़ी इस उपन्यास में भी रंग लगाती है। दोनों के वार्तालाप में वही मजा आता है जो शुरुआती उपन्यासों में था और वर्तमान के उपन्यासों में है। पाठक साहब ने सुनील के साथ रमाकांत के किरदार को गढ़ कर इन दो चरित्रों को इतिहास की उस श्रेणी में खड़ा कर दिया है जिसमे आना किसी और के बस की बात नहीं है। रूपा का पहली बार इसी उपन्यास में पदार्पण हुआ था। सुनील को जवाब देती प्रभुदयाल के बाद दूसरा किरदार देख कर हैरानी के साथ साथ खुसी भी हुई क्यूंकि जहाँ दो बुद्धिमान आपस में टकराते हैं वहां बहुत सा ज्ञान बंटता है। रूपा और सुनील के बीच के वार्तालाप/लिफाफेबाज़ी के बारे में जितना बोल जाए उतना कम है। सुनील द्वारा बार बार रूपा को "ललिता" कह कर पुकारना और उसी समय आपके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाना।
कहानी में जहाँ "संजय" को एक सच्चा प्रेमी का किरदार दिया गया है वहीँ विजय मेहता के किरदार में बड़ा संसय प्राप्त होता है। एक तरफ तो विजय मेहता इस बात से खिन्न है की उसके पति का किसी लड़की के साथ अनैतिक सम्बन्ध है वहीँ वह खुद संजय के साथ एक अनैतिक सम्बन्ध बना चुकी है। इस उपन्यास में दो स्त्रियों के किरदार को मौका मिला । पाठक साहब ने "रूपा" के किरदार को ऊँचा उठा कर बनाया वहीँ "विजय मेहता" के किरदार को निम्न स्तर का बनाया।
अंत में इस कहानी का मुख्य आकर्षण शुरुआत से अंत तक तो यही रहता है की इतने लोगों के बीच ओम मेहता का क़त्ल कैसे संभव हुआ। इस विषय पर में अधिक तो मैं कहना नहीं चाहूँगा। आप सभी पढ़ें, तो पता चले, आपको इसके बारे में।
"काला कारनामा" शीर्षक कौन से कारनामे से सम्बंधित है वह तो आपको पढ़ कर और अपनी समझ से पता चलेगा क्यूंकि इस उपन्यास में इस शीर्षक के लिए कई कारण उपलब्ध हैं। फिर भी मैं इस शीर्षक के लिए वही कारण देना चाहूँगा जो शुरुआत के २-३ पर दिखाया गया है। विजय मेहता को यह पता चलना की ओम मेहता ने एक लड़की का खून किया है।
दोस्तों इस उपन्यास पर बहुत सी चर्चाएँ हो चुकी है जिसके कारण मैंने अपने विश्लेषण का दायरा नहीं बढ़ाया है। आशा है सारांश के साथ साथ आपको विश्लेषण भी पसंद आएगा।
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विनीत
राजीव रोशन
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