तीसरा कौन - थ्रिलर
मैं काली अम्बेसडर की पिछले सीट की निचले हिस्से में था। मेरी हाथ पैरों को बाँध दिया गया था। मेरे ऊपर एक बदबूदार कम्बल डाला गया था जिसमे बहुत दुर्गन्ध आ रही थी। मैं अपनी शायद अपनी मौत या जिंदगी की तरफ बढ़ रहा था इसका पता उस मंजिल तक पहुँचने पर ही पता चलता। गाड़ी की अगली सीट पर दो दादा किस्म के मवाली बैठे थे। वही दोनों गाड़ी चला रहे थे और पता नहीं कहा ले जा रहे थे। मैं अपनी बीते दिनों की किस्मत को कोष रहा था और सोच रहा था की यह सब कैसे हुआ:-
मैं शुरू से ही निकम्मा था और मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता था। तब मेरी मां ने मुझे मेरे मामा के पास भेजा जो की कंपनी के सिपहसलार थे जिसका ऑफिस सी व्यू होटल था । कंपनी एक ऐसे संगठन का नाम है जो कई अनैतिक काम करती है जैसे ड्रग की सप्लाई करना, हथियार सप्लाई करना और किडनैपिंग, हफ्ता वसूली और भी बहुत कुछ। मेरे मामा ने ट्रांजिट कैंप के इस बार की देखभाल के मुझे सौंप दिया। बहुत कम लोग जानते थे की मैं यहाँ नौकरी करता हूँ। और यह बार कंपनी की संपत्ति में आता है। मैं अपने बार में जो की धारावी के ट्रांजिट कैंप में है, खाली बैठा था, की तभी २ मवाली किस्म के लोग मेरे सामने आ खड़े हो गए। उन्होंने मुझे भांजा कह के संबोधित किया तो मैंने समझ गया ये कंपनी के आदमी हैं। अचानक ही उन्होंने मुझ पर रिवाल्वर तान दी। उन्होंने मुझे बताया की वो मुझे टपकाने आये हैं। तभी हवालदार पांडुरंग ने बार में कदम रखा और वो दोनों मवाली खिसक गए। मैंने कुछ देर बाद पांडुरंग को रुखसत करके बार बंद किया और ऊपर बने फ्लैट में गया। मैंने फ्लैट की खिड़की से देखा तो पाया की दोनों मवाली अभी भी बार के सामने वाले खम्बे के साथ खड़े हैं। मैं चिंतित हुआ और वह से भागने की जुगत करी। कुछ देर के बाद मैं वह से भागने में सफल हो गया।
मैं वहां से भाग कर अपने मामा के घर के दरवाजे पद पहुंचा ही था की दोनों मवाली वही आ गए। मैं वही रखी एक आलमारी में छुप गया। दोनों मवालियों ने मामा का दरवाजा खुलवाया तो पता चला की मामा भी उन दोनों से मिले हुए थे। मामा के अनुसार मुझे मारने का आदेश कंपनी के ऊपर से आया था। मेरे मामा ने किसी नगायच साहब का नाम लिया । तभी वो दोनों मुझे तलाश करते हुए अलमारी के सामने आये और मैंने अलमारी के दरवाजे जोड़ लगा के खोल दिया और वह से भागा। वो दोनों भी मेरे पीछे आ रहे थे। मैं बड़ी मुश्किल से एक पार्क की झड़ी में जाकर छुप गया। जब मैंने आसपास कोई गतिविधि नहीं सुनी तो मैं वहां से निकला, अब मेरे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था और मैं इतने रात मुंबई के सडको पर घूम नहीं सकता था। तब मुझे अपने के दोस्त का ध्यान आया "गोमू"।
गोमू स्कूल टाइम से मेरा दोस्त था और वो इस मुसीबत में सहायता कर सकता था। गोमू के काम के बारे में कहा जाता था की वो एक ड्रग पुशेर था। मैं गोमू के यहाँ पहुंचा तो वहां पार्टी चल रही थी। मैं उससे मिला तो पाया उसको पूरा नशा हो रखा था। मैंने उससे सोने को जगह मांगी और उसके बेडरूम में फर्श पर जा के सो गया क्यूंकि पलंग पर कोई और सोया था। सुबह उठा तो पता चला उस मोहतरमा का नाम जूही था। जूही गोमू की पोस्ट बेड गर्ल थी। मैंने गोमू से से किसी नगायच साहब का नाम के बारे में पूछा तो उसने नगायच का एड्रेस बताया। मैं वह से नगायच साहब के घर पहुंचा। मैं घर के करीब ही था की मैंने उन दोनों मवाली को नगायच साहब के घर में घुसते देखा। कोई आधे घंटे बाद वो दोनों बहार निकले। फिर मैं नगायच साहब के घर में पीछे से घुसा। मैं उनके रूम में गया तो उनको मारा पाया। उनके पीठ में किसी ने खंजर मारा था। तभी नगायच के बॉडीगार्ड ने मुझे पकड़ लिया और नीचे से ड्राईवर को भी बुला लिया। इतना शोर सुनने के बाद नगायच की बवार्चियाँ और उसकी बेटी भी आ गयी। बॉडीगार्ड कहने लगा की नगायच साहब का खून मैंने किया है। मैंने इनकार किया कैर बार पर वो ना माने। उन्होंने मेरी तलाशी ली और मेरा रिवाल्वर अपने कब्जे में ले लिया। बॉडीगार्ड ने ड्राईवर को कहा की गजरे साहब को नगायच साहब के क़त्ल के बारे में बताये। बॉडीगार्ड मुझे एक गोदाम में ले गया, और मुझे वहां बंद करके चला गया। कुछ देर बाद नगायच की बेटी आई उसके हाथ में रिवाल्वर थी मैं अपनी मौत को सामने देख रहा था। वो अपने बाप का कातिल मुझे समझ रही थी। मैंने उसको बताया की मैं उसके बाप का क़त्ल नहीं किया लेकिन वो नहीं मानी और उसने गोलियां मेरी तरफ चला दी। फिर दूसरी भी चला दी। मैंने सोचा मैं तो गया लेकिन शायद उसका निशाना चूक गया था । मैंने उसको चकमा दिया और रिवाल्वर छीन लिया। मैंने उसको कवर किया और बाहर की तरफ जाने को कहा तब तक वहां नगायच का बॉडीगार्ड और ड्राईवर भी आ गए थे। नगायच के ड्राईवर ने मेरे दोस्त गोमू को कवर किया हुआ था| मैंने नगायच की बेटी को मारने की धमकी दी तो उन्होंने गोमू को छोड़ दिया। फिर मैंने ड्राईवर और बॉडीगार्ड को गोदाम में बंद कर दिया और नगायच की बेटी को अपनी सुरक्षा की दृष्टि से अपने साथ ले जाने को सोची।
मैं, गोमू और नगायच की बेटी, नगायच के घर के बहार लगी गोमू की कार में बैठे और वहां से निकले। रास्ते में कई बार नगायच की बेटी ने कार से निकलने की कोशिश भी किया। मैंने गोमू को गाड़ी अपने मामा के पास ले जाने को कहा क्यूंकि अब मेरे पास रिवोल्वर था। मैं अपने मामा के यहाँ पहुंचा और रिवोल्वर के डर से मेरे मामा ने साडी बातें मुझे बता दी। उन्होंने मुझे गजरे साहब के घर का पता बता दिया। अब नगायच के ऊपर की कड़ी गजरे साहब थे जो कंपनी के ऊँचे के सिपहसलार थे। शायद उन्होंने ही मुझे मारने का आदेश जारी किया था। मामा ने मुझे बताया की मेरे पीछे दो मवाली लगे हैं वो कंपनी के हैं और उनका नाम इन्दोरी और भौमित है। मैं अपने मामा को धमका के गया की वो मेरे बारे में गजरे को न बताये। गाड़ी एक लाल बत्ती पर रुकी थी जब नगायच की बेटी ने अचानक गेट खोल के बहार को छलांग लगायी और सड़क पर दौड़ गयी उसके पीछे गोमू भी दौड़ पड़ा। हमने उनको बहुत खोजने की कोशिश की पर वो नहीं मिले। अब बस मैं और जूही बचे थे।
फिर मैं और जूही गजरे के घर गए। वह मैं चारदीवारी कूद कर अन्दर एक कमरे में दाखिल हुआ तो गजरे के प्यादों ने मुझे पकड़ लिया और गजरे के सामने पेश किया । मैंने गजरे के सामने अपनी बेगुनाही के बारे में कहा । मैंने कहा की मैंने कंपनी से कोई गद्दारी नहीं की है तो उसने मुझे बताया की मैंने पुलिस को कंपनी के माल के इधर से उधर होने की खबर दी थी। तो मैंने कहा की कोई गलती हुई है तो उसने बोला की ये खबर एक पुलिस वाले ने दी थी। मैंने कहा की पुलिस वाले गलती हुई है तो उसने बोला की गुनियानी से कोई गलती नहीं हो सकता। अब मेरे पास पुलिस वाले का नाम था जिसने कंपनी को मेरा नाम दिया था। गजरे ने मुझे नगायच का कातिल भी बताया। और कहा की मैं उसे भी नगायच की तरह मारने आया हूँ। गजरे ने मेरी कोई बात नहीं सुनी। गजरे ने मुझे मारने के आदेश दे दिया की तभी जूही ने पीछे से आकर गजरे पर बन्दुक तान दी। मैं बड़ी मुश्किल से वहां से जान बचा के भागा। मैं अब कंपनी का भी दुश्मन था और पुलिस का भी जो मुझे नगायच का कातिल समझ रही थी।
मैं अब ट्रांजिट कैंप गया वह मैंने पांडुरंग से उस पुलिसवाले गुनियानी के बारे में पता लगाने को बोला। पांडुरंग ने मुझे आधे घंटे के बाद गुनियानी की सभी डिटेल दे दी। मैं गुनियानी के ऑफिस में पहुंचा तो पाया की इन्दोरी और भौमिक वही मेरा इंतज़ार कर रहे थे। वो ले जाने लगे तो मैंने गुनियानी से मिन्नत की की मुझे बोलने का एक मौका तो दिया जाये। मैंने गुनियानी से पूछा की उसको कैसे पता चला की मैं ही पुलिस का मुखबिर हूँ तो उसने मुझे बताया की उसके ही महकमे एक इंस्पेक्टर विशाल निगम ने बताया की पुलिस को खबर एक बार चलने वाली से मिलती है। मैंने गुनियानी से रिक्वेस्ट किया की वो विशाल निगम को बुलाये और मेरी शिनाख्त करवाए की मैं वही हूँ। गुनियानी ने विशाल निगम को बुलाया। विशाल निगम कमरे में आया और मेरे ऊपर नज़र पड़ते ही बोला -" और जवाहर कैसे हो। आजकल कुछ काम की खबर नहीं दे रहे हो। तो डायरेक्ट मुख्यालय में ही खबर देने आ गए।"
बस इतना बोलकर वो चला गया और मेरे ऊपर बिजली गिर गयी।
इन्दोरी और भौमिक ने मुझे पकड़ा और अपनी कार तक ले गए। मैं तो इस बात को सुनकर चल ही नहीं पा रहा था की विशाल निगम ने मेरी शिनाख्त एक मुखबिर के रूप में की है। इन्दोरी और भौमिक ने मुझे कार में डाला और मेरे हाथ और पैर बांध के कार के पिछले सीट के फर्श पर दाल दिया और मेरे ऊपर एक बदबूदार कम्बल दाल दिया। अब वो मुझे गजरे के पास ले जा रहे थे जहाँ मुझे मार दिया जाना था।
मैं जवाहर वाटकर अपनी आखिरी सफ़र की ओर बढ़ रहा था।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़े पल्प फिक्शन के ग्रैंड मास्टर, मास्टर ब्लास्टर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का सनसनीखेज थ्रिलर उपन्यास "तीसरा कौन"
क्या कंपनी ने जवाहर वाटकर को मौत की सजा दे दी?
क्या जवाहर वाटकर ही पुलिस का मुखबिर था?
क्या जवाहर वाटकर ही नगायच का कातिल था?
अगर जवाहर वाटकर कातिल नहीं था तो असली कातिल और असली मुखबिर कौन था?
गोमू और नगायच की बेटी कहा गायब हो गए थे?
विश्लेषण:-
दोस्तों लाइब्रेरी की सहायता से मुझे इस प्राचीन एवं अनुपलब्ध उपन्यास की प्राप्ति हुई। उपन्यास की शुरुआत बहुत ही तेज़ रफ़्तार से हुई और अंत तक वो तेज़ रफ़्तार में ही रही। उपन्यास के मुख्या किरदार जवाहर वाटकर को बहुत ही निचले स्तर से ऊँचे स्तर तक परत दर परत बड़ी ही ख़ूबसूरती से बढ़ते हुए दिखाया गया है। एक बार वाला जो कंपनी के खिलाफ चू तक नहीं करता था अचानक वो कंपनी के सिपहसलार से मुकाबला करने लगा। मुझे लगा था की कहानी, जवाहर वाटकर के लिए जो कंपनी में ग़लतफ़हमी पैदा हो गयी थी उसके ख़तम होते ही ख़तम हो जायेगी। लेकिन बीच में मर्डर हो जाना। फिर एक बार वाले के लिए जो की कंपनी के लिए काम करता था जिस पर क़त्ल करने का यकीन किया जा रहा था वही अपने आपको दोनों गुनाहों से निकलने की कोशिश करेगा । शुरुआत में जवाहर वाटकर के चरित्र को बहुत ही हल्का बनाया गया था। लेकिन अंत के पन्नो में उसे हीरो बनाकर उभार दिया गया। जवाहर वाटकर के दोस्त गोमू का चरित्र बहुत ही मजाकिया रखा गया है जो कही कही हमारे चेहरों पर एक मुस्कान ला देता है। वही जूही का किरदार तब बहुत सुन्दर लगता है जब वो अपने जीवन के पन्नो को खोलती है। नारी पर हुए अत्याचार और शोषण को भी खूब दिखाया गया है। जूही और जवाहर की बीच का वार्तालाप मुझे बहुत पसंद आया। इन्दोरी और भौमिक के किरदार को बार बार ले के आना और उनके दो जगह जवाहर के साथ जिरह, शानदार था। और अंत के बारे में तो मजा ही आ गया जब उपन्यास का क्लाइमेक्स सामने आया।
श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब से सम्बंधित और अधिक जानकारी के लिए
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सुंदर समीक्षा राजीव जी । 'तीसरा कौन' मेरा पसंदीदा उपन्यास है । इसे मैंने सदा अपने दिल के बहुत करीब पाया है ।
ReplyDeleteमाथुर सर आपके प्रशंसात्मक शब्दों को सुन कर अच्छा लगा...दिल खुश हो गया....
ReplyDeleteमुझे ऐसा लगता है की "तीसरा कौन" पाठक साहब द्वारा थ्रिलर श्रेणी में लिखी गयी ऐसी पुस्तक है जिसने हमेशा पाठक के दिलों को छुआ है।
एक साधारण सा व्यक्ति कैसे अपने नियति से लड़ता है, यह देखकर बड़ा संतोष होता है।