हर अंत के बाद एक शानदार शुरुआत होती है।
हर रात के बाद के सुन्दर सा सूरज निकलता है।
हर जंग के बाद विजय का जश्न मनाया जाता है।
हर हार के बाद जीतने की आशा और बलवती होती जाती है।
मेरे जीवन इन आशावादी वाक्यों का बड़ा ही महत्व है। वैसे तो मैं एक आशावादी व्यक्ति हूँ पर कभी कभी निराशा से भी दो-चार होना पड़ता है। ऐसे समय में एक पुस्तक उठा लेता हूँ "सफलता के बढ़ते कदम" स्वेट मोर्डेन द्वारा लिखित। यह किताब मुझे हमेशा निराशा से दूर और आशाओं के करीब ले जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है की इस दार्शनिक पुस्तक ने ही मेरे जीवन पर प्रभाव डाला है। मुझे "शरलाक होम्स" के चरित्र ने भी बार बार जीवन को प्रेरणा दी है।
कल मेरे कुछ प्रिय मित्र ने सुझाव दिया की मैं जिम कॉर्बेट साहब को पढूं। जब उन्होंने जिम कॉर्बेट साहब को पढ़ा था तो बड़े ही सुन्दर तरीके से उन वाक्यात को बयां किया जिससे लगता था की मुझे यह पुस्तक पढना चाहिए। और एक पुस्तक उन्ही दोस्तों के माध्यम से मेरे हाथ लग चुकी थी रविवार को लेकिन मैंने उसे शुरू नहीं किया था। लेकिन कल जब उन्होंने उस पुस्तक पाए कुछ और अनुभवों को मेरे साथ साझा किया तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और मैंने कल रात्रि से ही इस पुस्तक को पढना शुरू किया। जिम कॉर्बेट साहब द्वारा लिखित इस पुस्तक का नाम था "The Maneaters of Kumaoun " ।
कल रात्रि मैंने इस पुस्तक का सिर्फ लेखकीय पढ़ा। मैं लेखकीय में से कुछ अनुभव आपके साथ बांटना चाहूँगा। कॉर्बेट साहब ने अपने लेखकीय में कहा की "बाघ" कभी आदमखोर नहीं होते वे हमेशा अपने परिवेश में रहने वाले दुसरे जीव-जन्तुओ पर निर्भर करते हैं और उन्ही का शिकार करते हैं। मुख्यतः "बाघ" द्वारा शिकार करना उसकी रफ़्तार और उसके दांतों और उसके पंजो पर निर्भर करता है लेकिन अगर कोई बाघ घायल है, या उसका कोई दांत नहीं हो तो मनुष्यों की तरफ आकर्षित होता है। या अपने परिवेश में अगर जानवर ख़तम हो जाए जिस पर वो निर्भर करता हो तो वो अपने परिवेश से बाहर निकल कर शिकार करता है। जिम साहब हमारे साथ एक अनुभव और साझा करते हैं की एक घायल बाघिन के बारे में बताते हैं की एक स्थान पर वह आराम कर रही थी जब एक महिला जो अपने पशु के लिए घास कट रही थी उस स्थान पर पहुंची जहा वह बाघिन लेटी हुई थी। पहले तो बाघिन ने उसको नज़र अंदाज़ कर दिया लेकिन जब महिला ने उस स्थान का घास काटना की कोशिश की जहा वह बाघिन लेटी हुई थी तो बाघिन ने उस पर हमला कर दिया और एक ही हमले में महिला ने अपनी जान गँवा दी। "बाघिन" ने उस स्थान को छोड़ दिया और उस स्थान से एक मिल दूर एक गिरे हुए पेड़ के खोखले जगह में पनाह ली लेकिन जब एक लकड़हाड़ा उस पेड़ को काटने आया तो उस बाघिन ने उसका भी काम तमाम कर दिया। इस तरह हम देखते हैं की जब भी मनुष्यों ने बाघों के परिवेश में दखल डालने की कोशिश की तब तब बाघों ने अपने आप को "आदमखोर" बनाया। मुख्यतः ऐसा होता है की जब भी कोई बाघ, बाघिन, या गर्भवती बाघिन, या अपने बच्चो वाली बाघिन को कोई कोई मनुष्य परेशान करता है या उन्हें लगता है की मनुष्य उन्हें परेशां कर रहे हैं तो ये जंतु खूंखार हो उठते हैं। अब मनुष्यों की सोचने की क्षमता और जानवरों के सोचने की क्षमता में फर्क तो होता ही है तभी तो हम मनुष्य है और वो जानवर। कभी कभी जो हमें सही लगता है या हमारे हिसाब से सही होता है वो "बाघों" को गलत लगता है। इसी कारण वो हम पर बस इसी बात पर हमला कर देते हैं की वो लकड़हाड़ा या महिला तो अपने हिसाब से सही काम कर रहे थे लेकिन बाघिन को लगा की ये मनुष्य उसे परेशां कर रहे हैं।
जिम साहब कहते हैं की मैं किसी भी बाघ को तब तक "आदमखोर" नहीं मानता जब तक वो इस दुर्दांत क्रिया की सीमा न लाँघ दे। ऐसा नहीं है की मनुष्यों पर हमला सिर्फ और सिर्फ "बाघ" द्वारा किया जाता है , बाघ के अलावा चीते, सियार और भेड़िये भी इस प्रकार के हमलो के लिए उत्तरदायी होते हैं।
जिम साहब के अनुसार आदमखोर बाघों के बच्चे भी आदमखोर बन सकते हैं क्यूंकि वे उन्ही भोजन पर निर्भर करते हैं जो उसको अपनी माँ से प्राप्त होता है।
जिम साहब एक मजेदार बात बताते हैं की बाघ मनुष्यों से डरते हैं लेकिन जब बाघ आदमखोर बन जाते हैं तो उनका दर मनुष्यों के प्रति ख़तम हो जाता है। वही बाघ मुख्यतः दिन में मनुष्यों का शिकार करते हैं। जबकि चीता मनुष्यों का शिकार रात्रि के समय करता है लेकिन मनुष्यों के प्रति उसका दर तब भी बना होता जबकि उसके सैकड़ो मनुष्यों का शिकार किया हो।
एक आदमखोर बाघ द्वारा शिकार करने की दर इन तीन मुख्या बातों पर निर्भर करती है ---
१) जिस परिवेश में वह "आदमखोर बाघ" रहता है वह उसके प्राकृतिक भोजन की आपूर्ति।
२) "आदमखोर बाघ" बनने के लिए उत्तरदायी घाव, चोट या विकलांगता।
३) "आदमखोर बाघ" एक नर है या मादा या वो शावक के साथ है।
बहुत सी ऐसी बातें हैं जो इस लेखकीय से बाघों के बारे में सीखा जा सकता था। बाघ पर किये गए इतने विस्तृत शोध से पता चलता है की जिम साहब एक आदमखोर बाघों शिकारी के अलावा एक बहुत ही सुलझे हुए इंसान भी थे । जिन्होंने उस पहलु को भी उजागर किया जिस कारण ये बाघ "आदमखोर" बने । आज भी लोग बाघों की उस कहावत का प्रयोग करते हैं जिसके अनुसार "बाघ जितना क्रूर और खूंखार" जैसे वाक्यों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन जिम साहब के अनुसार "बाघ" क्रूर या खूंखार नहीं होते । जब बहुत सी महिलाए, बच्चे जंगले में लकड़ियाँ काटने जाते हैं, या घास काटने जाते हैं और शाम को सुरक्षित वापिस आ जाते हैं तो हम इस पशु को "क्रूर" या "खूंखार" जैसे शब्दों से कैसे तुलना कर सकते हैं।
कल इस लेखकीय को पढना और उस पर विचार करना उन विचारों को शब्दों में आप तक पहुचना आसान कार्य नहीं लगा मुझे। क्यूंकि आजतक मैं भी बाघ को क्रूर और खूंखार की दृष्टि से देखता था। लेकिन इस लेखकीय को पढने के बाद मेरी मानसिकता बदल गयी है। अगर मैंने इस लेख को नहीं पढ़ा होता और मुझे "बाघ" पर कुछ लिखने के लिए कहा जाता तो मैं मेरे हाथ उसके बारे में कुछ अच्छा नहीं लिख पाते जो की "बाघों" के साथ अन्याय होता। लेकिन इस लेख ने मेरी दिशा ही बदल दी , बाघों को समझने की नज़रें ही बदल दी।
जिस प्रकार से मुझे "स्वेट मोर्डेन" "शरलोक होम्स" "विमल" ने मेरे जीवन पर प्रभाव डाला है आज तक उसी प्रकार से आज इस नए व्यक्तित्व से मिल कर एक नयापन सा आया है जिन्दगी में। मैं अभी आगे की और कहानियां पढ़ रहा हूँ, हो सकता है मुझे और बहुत कुछ सीखने को मिले "जिम कॉर्बेट" साहब से।
मैं दिल से "शरद जी" को धन्यवाद् करता हूँ की उन्होंने इतनी सुन्दर पुस्तक मुझे पढने को दी। मैं उन सभी मित्रो का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने मुझे इस पुस्तक को पढने की प्रेरणा दी।
सच में --- वास्तविकता और कल्पना में "ज़मीं और आसमान" का फर्क है।
आगे की कुछ और नयी कहानियों और जिम साहब के अनुभवों के साथ हाज़िर होऊंगा।
----
विनीत
राजीव रोशन
२७/१२/२०१२
it's very impressive story. Thanks for sharing with us
ReplyDeleteJim Corbett Resorts Packages | Jim Corbett Safari