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अहिरवाल केस (समीक्षा)




अहिरवाल केस - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक 





२३ दिसम्बर १९९७
राजनगर 


राजनगर के पश्चिम में बसी एक कॉलोनी - हरिज़न बस्ती

गजोधर सुबह सुबह उठ के, नहा-धो कर घर से बाहर निकला। लगभग ३ महीने से उसकी यही दिनचर्या थी। ३ महीने पहले वो बिहार से अपने मौसा के यहाँ रहने आया था। उसके मौसा राजनगर में एक फैक्ट्री में काम करते हैं। काम की तलाश में गजोधर को राजनगर आना पड़ा। लेकिन ३ महीने हो गए थे और उसे अभी तक कोई काम नहीं मिला। वो रोज सुबह फ्रेश हो कर करीब के एक चौक पर जा कर चाय पीता था और अखबार पढता था। जिस दुकान पर गजोधर चाय पीता था उसका मालिक था चम्पकलाल और वो भी बिहार का रहने वाला था।
घर से निकलते ही तंग गलियों से होते हुए गजोधर पहुँच गया चौक पर। चम्पकलाल के दुकान में आज बहुत ग्राहक बैठे थे। कुछ चाय पी रहे थे, कुछ गप्पे लड़ा रहे थे, कुछ देश की राजनीति के बारे में चर्चा कर रहे थे, कुछ हिंदुस्तान - पाकिस्तान पर गपिया रहे थे, ३-४ नौजवान लड़के जिनको देश और देश की राजनीति से कोई मतलब नहीं था वो अखबार में खेल-कूद पन्ने में या फ़िल्मी पन्नो में घुसे थे। अचानक उनमे से एक लड़का बोल पड़ा
"का चम्पक चाह, ई अखबार तो बेकार है, इ में फ़िल्मी खबरिया नाही आवत है" 
चम्पकलाल बोले " अरे बचुआ, तुम सब फ़िल्मी दुनिया के ख़बरें पढ़ते हो, और अखबार है "ब्लास्ट", ई में सच्ची खबर ही छपत है, और फिल्म वाली खबरिया में सच्चाई हॉवे नहीं करत तो ब्लास्ट का छापिहा"

तभी सब की नज़र गजोधर पर पड़ी, बीच की कुर्सी खली कर दी गयी। सन्नाटा सा फ़ैल गया था चम्पकलाल की दुकान पर। गजोधर कुर्सी पर जा कर बैठ गया। पूरा "ब्लास्ट" अखबार उसे पकड़ा दिया गया। और उसने पढना सुरु कर दिया। पूरा आधे घंटे की सन्नाटे के बाद उसने अपना मुह खोला। 
" अरे का हो गया आज पता है पता है आप लोगन को, वो जो नोर्थ्शोर में कोठी जली थी न अहिरवाल की कल सुनील ने पुलिस की मदद से केस हल कर दिया है"
सबको इस समाचार की खबर थी पर फिर भी सब बोले "अच्छा, ऐसा"
गजोधर बोला" हाँ, हम सही कह रहे हैं, सुनील ने पूरा केस अखबार में छपा है। ई तो आज की फ्रंट पेज न्यूज़ है"
तो कुछ बूढ़े बोले " तो गजोधर बेटा हमें भी तो सुनाओ सुनील भाई मुल्तानी की सनसनीखेज रिपोर्टिंग"

गजोधर बोला " जी चाचा, अभी लीजिये। शुरू करते हैं।"
गजोधर बोला" पहले तो शीर्षक सुनिए इस समाचार का "अहिरवाल केस हुआ हल, सुनील और पुलिस ने बंद हुए केस को हल किया" । अब रिपोर्टिंग पर आते हैं। 

गत दिनों पहले नोर्थ्शोर स्थित अहिरवाल कोठी में आग लगने के कारण मशहूर उद्योगपति पदमवत अहिरवाल जी जल के मर गए थे। पुलिस के अनुसार यह हादसा बिजली के शोर्ट सर्किट के कारण हुआ था। 
लेकिन इस केस से सम्बंधित एक पत्र ब्लास्ट के एडिटर के पास आया जिसमे यह लिखा था की अहिरवाल साहब की हत्या हुई थी। ब्लास्ट के एडिटर ने यह काम मुझे सौपा की यह पता लगाया जाए की इस बात में कितनी सच्चाई है और यह पत्र किसने भेजा है। "

तभी वहां बैठे एक बुजुर्ग ने टोक लगा दी " अरे बेटा, ये भी कोनो बात हुआ, एक बिना नाम की चिट्ठी भेज डाली अखबार में और देखो अखबार वाले भी कितने अहमक हैं की खोज रहे हैं की चिट्ठी कितनी सच्ची है और किसने भेजी। अगर हम भी भेज दें आज एक चिट्ठी ई लिख के की हमारी जोडू हमका रोज लातियाती है तो का सुनील बाबू कुछ करेंगे"

गजोधर बोला " ऐ चचा , अब रोज गांजा पी के घर जायेंगे तो चाची तो लातियायेंगी ही ना" 

सब ये सुन के हसने लगे। बुजुर्ग ने अपना मुह फेर लिया दूसरी तरफ।

गजोधर फिर शुरू हो गया 
"एडिटर से प्राथमिक जानकारी जो मिली वो हादसे से सम्बंधित थी। हमारे एडिटर साहब ने अर्जुन को पहले से इस केस से सम्बंधित जानकारियां जुटाने के लिए लगा दिया था। अर्जुन से मिली जानकारी के अनुसार प्रमुख बात यह थी की अहिरवाल साहब के अपनी कोई संतान नहीं थी वो अपने भांजी और भांजे के साथ ही नोर्थ्शोर वाले हवेली में रहते थे। भांजी मानसी और भांजे विनोद और साहिल। और उनके नोर्थ्शोर के हवेली में एक ड्राईवर अवधूत, एक खाना पकाने वाली और एक नर्स वंदना मेहता रहते थे। अर्जुन ने बताया जिस दिन आग लगी उस दिन सभी नीचे थे सिर्फ अहिरवाल साहब ऊपर अपने कमरे में थे और अचानक बिजली के शोर्ट सर्किट से आग लग गयी और आग भी उसी छोर से लगी जिस छोर पर अहिरवाल साहब का कमरा था। और सदस्यों के अनुसार उन्होंने अहिरवाल साहब को आवाज लगाई थी पर कोई जवाब ही नहीं मिला। अर्जुन ने मुझे यह भी बताया की अहिरवाल साहब ने अपने मौत से दो दिन पहले ही अपनी वसीयत बदली थी जिसके अनुसार उन्होंने अपना विरसा दोनों भानजो के नाम कर दिया था। अर्जुन ने यह भी बताया की अहिरवाल साहब का एक खासुलखास नौकर या केयरटेकर भैरो सिंह राजनगर में अहिरवाल कोठी की देखभाल करता है और २ साल पहले उसका अहिरवाल साहब के साथ ही एक्सीडेंट हो गया था जिसके कारण वो एक पैर से अपाहिज हो गया है । अर्जुन के अनुसार अहिरवाल की भांजी मानसी उसी दिन घर छोड़ कर चली गयी थी जिस दिन वसीयत के बारे में पता चला था। और अब किसी को पता नहीं था की वो कहा है। अर्जुन ने बताया की वंदना मेहता और विनोद में कुछ चक्कर चल रहा था।"

तभी एक व्यक्ति बोल पड़ा " अरे भैया ई तो रोज का हो हो गया है, सब का कोनो न कोनो चक्कर जरुर चलता है। और बड़ा आदमी का तो जरुर चलत है। साहब का नौकरानी से। नौकर का मैडम से। ड्राईवर का मैडम से। छि: छि: कैसी दुनिया हो गयी है।"

गजोधर बोला" अरे भैया चुप रहो तनिक, पूरा पढ़ लेवन दो। ई विषय पर साँझा में चर्चा करिहं। अभी तो सुनील भाई मुल्तानी को सुनो।"

"मैंने इन सभी तथ्यों को इकठ्ठा किया और तफ्तीश के लिए निकल पड़ा। मेरी तफ्तीश सबसे पहले शुरू हुई केयरटेकर भवर सिंह के साथ लेकिन उससे मुझे कोई काम की जानकारी प्राप्त नहीं हुई और उसने ये भी नकार दिया की पत्र लिखने वाला वो ही था। भंवर सिंह से मुझे यह भी पता लगा की अहिरवाल साहब ने अपने जीवन काल में ही अपनी सभी सम्पति बेच दी थी जिनकी मूल्य कम से कम १ करोड़ की होगी। और वो पैसा कहा छुपा के गए ये किसी को पता नहीं जब पैसा मिलेगा तभी तो बंटवारा होगा। फिर मेरी मुलाक़ात हुई अहिरवाल साहब के बड़े भांजे साहिल के साथ। साहिल ने तो मुझ पर यह इलज़ाम लगाया की यह पत्र अखबार वालों ने ही लिखा है और वो पब्लिसिटी बटोरना चाहते हैं । उसके बाद विनोद से मिला उससे भी मुझे कोई काम की जानकारी नहीं मिली। अर्जुन को पता चला की मानसी राजनगर में ही है और वो एक कास्मेटिक की दूकान चला रही है। मैं और अर्जुन उससे मिलने पहुंचे और बहुत सी मुद्दों पर बातें की। मानसी ने बताया की उसे अपने अंकल से कोई गिला नहीं है और वो हिस्से में कुछ चाहती भी नहीं है। मैं वहां मानसी के प्रेमी शैलेन्द्र से भी मिला । बातों बातों में शेलेन्द्र के मुह से किसी पुर्तगाली हीरे के बारे में पता चलता है लेकिन शैलेन्द्र और मानसी उस हीरे के बारे में बात करने से इनकार कर देते हैं।"

एक बुजुर्ग बोल पड़े" वाह यहाँ तो प्रेम भी पहुँच गया, पहले हादसा, फिर हत्या का संदेह, फिर जायदाद का बंटवारा, फिर अफेयर और अब एक और लो प्रेम। ये प्रेम भी बड़ी गजब चीज है भाई हँसते खेलते घर को बर्बाद कर देती है"

तभी एक नवयुवक बोला " हाँ काका, तोरा तो ऐसा ही लगेगा ना, आपको प्रेम करने का मौका जो न लगा। आज भी देखो आँखे टहरती नहीं है। मौका लगे तो इस उम्र में भी प्रेम कर लें। "

सभी खिलखिला के हंस पड़े।

गजोधर फिर शुरू हो गये -
" मेरे एक विश्वस्त सूत्र से वंदना मेहता जो की अहिरवाल साहब की नर्स थी उसका पता मिल गया। मैं वंदना मेहता से मिलने गया तो उसने मुझे एक सनसनीखेज बात बताई। उसने बताया की उसने शायद साहिल को कोठी के गेराज में कार में देखा था। कार के धुआं देने वाले पाइप के साथ एक पाइप कमरों को गरम रखने वाली पाइप में लगा रखा था। और कार स्टार्ट थी। मैंने तुरंत इस बात के बारे में पुलिस को बताया। पुलिस को साथ लेकर मैं अहिरवाल कोठी पहुँचा तो वह कोई नहीं दिखा। हम जब कोठी के पिछले हिस्से में गए तो वहां हमें विनोद गड्ढा खोदता नज़र आया। अचानक हमारे आ जाने से वो घबरा के गिर गया। पुलिस ने इतनी रात हो रही खुदाई के बारे में पूछा तो उसने एक पत्र दिखाया जिसमे यह बताया गया था की उस जगह पर पैसा गड़ा है और भवर सिंह की बैसाखी में १.५ करोड़ के हीरे हैं। फिलहाल उस जगह से कुछ नहीं मिला।"

चम्पकलाल बोल पड़े " लो भाई ये दूसरा गुमनाम ख़त, सुनील तो अबकी बड़ा मेहनत किया है केस हल करने में, भाई दो दो गुमनाम ख़त के बारे में पता लगाना कोनो आसान काम है। लड़का बहुत मेहनती है सुनील। कभी यहाँ आएगा तो फ्री की चाय पिलायेंगे। 

गजोधर ने फिर से शुरू किया 
" पुलिस ने विनोद से साहिल के बारे में पूछा तो विनोद ने कहा उसे कुछ नहीं मालूम। तभी साहिल बुरे हाल वह पहुंचा उसके अनुसार उसके कार का एक्सीडेंट हो गया था। पुलिस ने वंदना के बयान के अनुसार साहिल से पूछताछ की और उसकी कार भी देखी। पुलिस को साहिल की कार से पाइप और सभी यन्त्र मिल गए। साहिल ने पुलिस को कहा की ये उसको फ़साने की साजिश है । पुलिस फिर भंवर सिंह की तलाश में उसके कमरे में पहुंची जहा उसे मृत पाया पर उसके हाथ में एक लॉकेट भी था। मैं उस लॉकेट को पहचान गया लेकिन यह बात मैंने पुलिस को नहीं बताई की वो लॉकेट शैलेन्द्र की थी। भैरो सिंह की बैसाखी गायब थी। मैंने मानसी से इस बारे में बात की तो उसने बताया की शैलेन्द्र किसी मुसीबात में है और उसने फ़ोन करके बताया है की वो कुछ दिनों के लिए कही बाहर जा रहा है। मैंने जब उससे लॉकेट के बारे में पूछा तो उसने बताया की शैलेन्द्र वैसा ही लॉकेट एक ज्वेलेर के पास रिपेयर करने के लिए दिया है। लेकिन मैंने उसकी बात का विश्वास नहीं किया पर लेकिन वहां से शैलेन्द्र के घर का पता लिया और चला गया। मुझे पुलिस के सूत्रों से पता चला की वंदना मेहता की हत्या हो गयी है और उसके करीब ही एक लकड़ी का डंडा मिला जिससे क़त्ल हुआ था। पुलिस को एक अनजान व्यक्ति के बारे में पता चलता है जो उसी वक़्त वंदना मेहता के फ्लैट के आस पास मडराता पाया गया था। पुलिस ने यह भी पता लगा लिया था की भैरो सिंह के हाथों में लॉकेट किसका था। वो लॉकेट शैलेन्द्र का था इसकी खबर उन्हें विनोद ने बताई। उन्होंने शैलेन्द्र के घर की तलाशी ली तो उन्हें वहां खून से सहने शैलेन्द्र के कपडे पाए । पुलिस ने शैलेन्द्र के खिलाफ वारंट जारी कर दिया। पुरे शहर में उसकी तलाश शुरू हो गई।"

गजोधर रुका और बोला " चचा, एक गिलास पानी दीजिये, बड़ी प्यास लगी है।"

गजोधर को एक गिलास पानी दिया गया, उसने पिया और फिर शुरू हो गयी उसकी बुलंद आवाज -

" मैंने मानसी से कहा की शैलेन्द्र से मेरी बात करवाए या शैलेन्द्र को पुलिस के सामने सरेंडर करने को कहे। मेरे विश्वस्त सूत्रों से पता लगा की जिस रात वंदना मेहता का क़त्ल हुआ था उस रात विनोद और वंदना ने शादी की थी और एक मंदिर का पुजारी इसका गवाह था। लेकिन विनोद शादी के तुरंत बाद वह से चला गया था। मेरे विश्वस्त सूत्रों से पता लगा की भवर सिंह ने अपनी बैसाखी में बदलाव करवाए थे और जब उस कारीगर से मेरे सूत्रों ने पूछताछ की तो उसने बताया की भंवर सिंह ने बैसाखी की लकड़ी को अन्दर से खोखला करवाया था। साथ ही उसने ये भी बताया की ड्राईवर अवधूत ने भी उससे इसके बारे में पूछा था। मैंने ड्राईवर अवधूत से इसके बारे में बात की तो उसने बताया की उसके ऐसा करने के लिए विनोद ने बोला था। मुझे अपने सूत्रों से ये भी पता लगा था की भंवर सिंह ने एक प्राइवेट लाकर किराये पर लिया था जिसके दो पार्टनर थे एक भंवर सिंह दूसरा हुजुर सिंह हाडा । जब प्राइवेट लाकर कंपनी में मेरे सूत्रों द्वारा पड़ताल की गयी तो पता चला की भंवर सिंह ही उस लाकर को प्रयोग में ला रहा था । हुजुर सिंह हाडा तो एक दिन भी वह नहीं आया। अब मैंने सूत्रों को इस हुजुर सिंह हाडा के पीछे.......

अगला भाग ५ न. पन्ने पर पढ़े............................................


गजोधर पन्ने पलटने लगा लेकिन उसने देखा की ५ न. का पन्ना ही गायब था। गजोधर परेशां हो गया। कभी इधर देखे कभी उधर। 

चम्पकलाल ने पूछा " अरे आगे तो पढ़, रुक कहे गया"
गजोधर बोला " चाचा ई से आगे की कहानी पांचवा पन्ना पर है, और ऊ पन्ना तो मिलिए नहीं रहा है"
चम्पकलाल बोला "अरे बाप रे बाप, बहुत बड़ा मिस्टेक हो गया हमसे, उ पेपर पर तो हम रामनिवास के बिटवा को समोसा दे दिए। अरे अरे इतना बड़ा मिस्टेक कैसे हो गया"
गजोधर बोला " अरे चाचा, कर दिया न सत्यानाश, आज तो कही भी नहीं मिलेगा ब्लास्ट। इतनी सनसनीखेज खबर छपी है उसमे भी सुनील की जुबानी केस का वर्णन भी है। आज तो जो भी नहीं पढता होगा ब्लास्ट वो भी पढ़ेगा ब्लास्ट।"
चम्पकलाल बोला" अरे कोई नहीं हम रामनिवास के यहाँ से मंगवाते हैं, तब तक आप लोग नाहा धो के आइये, दुपहर को यही मण्डली जमाइए और खबर सुनने के बाद चर्चा करेंगे और फिर ताश यही खेला जाएगा। ई गलती की माफ़ी के लिए हम सब को दोपहर की चाय फ्री पिलायेंगे, अब खुश हो न सब।"

सब धीरे धीरे वहां से निकलने लगे। अब सबको दुपहर का इंतज़ार था। अब सबके दिल में कई सवाल थे-

"क्या पदमवत अहिरवाल के साथ जो हुआ एक हादसा था या एक सोची समझी क़त्ल करने की साजिश?"
"भैरो सिंह और वंदना मेहता की हत्या किसने की थी?"
"क्या भैरो सिंह को शैलेन्द्र ने मारा था?"
"क्या वंदना मेहता को भी शैलेन्द्र ने मारा था?"
"ये हुजुर सिंह हाडा कौन था?"
"पदमवत अहिरवाल ने पैसा कहा छुपाया था?"

अब तो बस कैसे भी दोपहर आ जाये और गजोधर फिर से अपनी सुन्दर सी आवाज में उनको केस का पूरा किस्सा सुना दे। 

*****तो क्या आप लोगो को भी गजोधर के किस्से का इंतज़ार है। अगर नहीं तो फिर अपने अपने खजाने में से "अहिरवाल केस" की प्रति निकालिए और एक बार और इन प्रश्नों के जवाब के लिए पढ़ डालिए। जी हाँ "अहिरवाल केस"। सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब का एक और शाहकार और क्लासिक उपन्यास। या जिनके पास नहीं है यह उपन्यास वो एसएमपी लाइब्रेरी से इस उपन्यास की प्रति मंगवा सकते हैं। या जिन्होंने यह लाइब्रेरी अभी तक किसी कारणवश नहीं ज्वाइन की है वो जल्दी ज्वाइन करे और एसएमपी संसार के अनमोल खजाने का आनंद उठायें।




विश्लेषण :-

कहते हैं की "लालच इंसान को अँधा बना देता है"।
और यह बात शत प्रतिशत सही भी है। हमने सब ने अपने जीवन कई बार इस कहावत को घटित होते देखा होगा। पाठक साहब हमारे सामने कई बार ऐसी सामाजिक समस्याएं ले के आते हैं जिनसे जुर्म का जन्म होता है। प्रस्तुत "अहिरवाल केस" में भी कुछ ऐसा ही होता है। कहानी की शुरुआत बहुत ही क्लासिक तरीके से होता है जो की बहुत साधारण भी है। आज के समय में भी लोग अपनी समस्याएं अखबार और मीडिया को भेजते हैं कुछ अपने नाम से भेजते हैं कुछ गुमनाम भेजते हैं। लेकिन आज उन ख़बरों में से सही खबर चुनना आसान नहीं होता कुछ लोग तो फेक खबर भी भेजते हैं। 

जैसा की हम सभी जानते हैं की पाठक साहब के उपन्यास की एक ख़ास खूबी होती है "स्मार्ट टॉक" । जी हाँ, इस उपन्यास में आपको शायद कमी बिलकुल नहीं खलेगी। हर १०-१५ पन्नो के बाद सुनील और दुसरे किरदारों के बीच "स्मार्ट टॉक" नज़र आएगी। पहले सुनील और ब्लास्ट के एडिटर घोष के बीच का स्मार्ट टॉक और घोष द्वारा सुनील को "दो सिंगा" कहा जाना आपने बरबस ही हसने पर मजबूर कर देगा। फिर सुनील और रेनू के बीच के करीब ३ पन्नो तक चली टेलीफोन पर बातचीत। मजा आ जाता है। रेनू द्वारा मातृत्व के बारे में पूछे जाने पर जो सुनील जवाब देता है उसके बारे में क्या कहने। फिर अर्जुन और सुनील के बीच का संवाद। आपको इस उपन्यास में पाठक साहब की एक कोशिश नज़र आएगी की वो अर्जुन को सुनील से आगे रखने की कोशिश करते हैं सिर्फ स्मार्ट टॉक में लेकिन सफल नहीं हो पाते। जी हाँ पाठक साहब सुनील को पीछे और अर्जुन को आगे रखने में सफां नहीं पाते। मैं पाठक सर से मिलूँगा तो इसके बाबत जरूर पूछूँगा। जहाँ अर्जुन सुनील से एक कदम आगे बढ़ता है सुनील उससे भी एक कदम आगे बढ़ जाता है । सुनील के द्वारा अर्जुन को उलजलूल नामों से पुकारना सहज ही हास्यास्पद है । उपन्यास में मुझे सुनील और रमाकांत के बीच के स्मार्ट टॉक तो खलेगी पर इस कमी को अर्जुन, रेनू ने बहुत ही बखूबी पूरा किया। पाठक सर ने रमाकांत का टच तो दिया पर पूरा इस्तेमाल नहीं किया। 

एक कमी मुझे इस उपन्यास में नज़र आई की जब वंदना मेहता ने सुनील को बताया की गेराज में कार द्वारा पाइप से एग्जॉस्ट में छेड़खानी की गयी थी तो सुनील उस बात पर सहज विश्वास कर लिया और ये बात पुलिस को भी बतायी और पुलिस के साथ अहिरवाल की कोठी पहुंचकर साहिल अहिरवाल की धज्जियाँ भी उड़ाई। मैं पाठक के रूप में कहना चाहता हूँ की सुनील को वंदना मेहता की बात पर इतना तीव्र एक्शन नहीं लेना चाहिए था। वैसे तो सुनील हर बात को पहले ठोक बजा कर परखता है फिर उसे पुलिस के सामने परोसता है। 

इस उपन्यास में बहुत कम समय दिया गया सुनील को केस हल करने के लिए लेकिन उपन्यास "स्लो" था। जिस तरीके से पाठक साहब ने हुजुर सिंह हाडा का किरदार पेश किया वो बहुत काबिलेतारीफ था। वही पाठक साहब ने एक बहुत ही सुन्दर तरीका प्रयोग किया कातिल को पकड़ने का। 

पाठक साहब ने यह उपन्यास तो "सुनील" सीरीज में लिखा जो की मेरा फेवरेट है लेकिन इस उपन्यास को टीम वर्क कहा जाएगा। यह उपन्यास one man show नहीं था इसमें टीम वर्क नज़र आता है। सुनील, रेनू, अर्जुन, रमाकांत, जौहरी और पुलिस इन सभी ने मिलकर इस उपन्यास को अमर बनाया है। 

वैसे तो पाठक साहब के किसी भी उपन्यास का विश्लेषण करना आसान काम नहीं है फिर भी एक कोशिश की है। और ये कोशिश मुझे आगे भी करते जाना है। 

मैं हमेशा आशा करता हूँ की मुझे पॉजिटिव कमेंट मिले। लेकिन यह आशा भी रहती है की जो गलतियाँ है वो भी उजागर हो ताकि आगामी लेखों में मैं उनको सुधर सकूं। तो सभी से निवेंदन है की पॉजिटिव के साथ साथ नेगेटिव कमेंट भी दें।

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