ट्रिपल क्रॉस - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक
श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक पल्प फिक्शन साहित्य का वह नाम है
जिसे पल्प फिक्शन साहित्य का राजा कहा जाता है। श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी रहस्य, थ्रिल, सस्पेंस, मर्डर
मिस्ट्री वगैराह विषय पर लिखने वाले एक मात्र लेखक हैं जिन्होंने बुलंदी का सितारा
छुआ है। पाठक साहब लगभग ५० वर्षों से लेखन विधा में अपने पैर जमाये हुए हैं। पाठक
साहब ने अपने लेखन की शुरुआत एक ऐसे किरदार को लेकर की जिसकी उस समय सफल होने की
कम संभावनाएं थी। पाठक साहब ने सुनील कुमार चक्रवर्ती नामक एक खोजी पत्रकार से
अपने उपन्यास लेखन की शुरुआत की। आज सुनील सीरीज में १२० आ चुके हैं। यह संख्या
विश्व रिकॉर्ड में सम्मिलित किया जा सकता है क्यूंकि किसी भी लेखक ने एक स्थायी
किरदार को लेकर इतने उपन्यास नहीं लिखे हैं।
मैं आज भी पाठक साहब की सुनील सीरीज की एक कृति की समीक्षा
लेकर आप सभी के बीच आया हूँ। "ट्रिपल क्रॉस" सुनील सीरीज का ५४वा
उपन्यास था जो अप्रैल १९७५ में छपा था। वहीँ पाठक साहब के कुल उपन्यासों की संख्या
में यह ७७वा उपन्यास था। पाठक साहब ने सुनील सीरीज के कई उपन्यासों में सुनील को
उपन्यास के आरम्भ से ही दिखाया है और कई उपन्यासों में सुनील का प्रवेश बाद में
होता है। इस कहानी में भी सुनील की उपस्थिति उपन्यास के मध्यांतर में हुई है।
प्रतिरक्षा विभाग के उप मंत्री कामेश्वर नाथ ओझा अपनी रखेल
देविका के इस व्यवहार से त्रश्त हैं की देविका ने मंत्री जी को एक टेप के द्वारा
ब्लैकमेल करने की कोशिश की है और १० लाख रूपये की मांग रखी है। धमकी के रूप में
देविका मंत्री जी को यह भी बताती है की उसका एक और साथी है और उसके पास भी टेप है।
मंत्री जी जगतराम नाम के दलाल के द्वारा देविका के साथी को
खोज निकलवाते हैं और देविका को मार देने के लिए कहते हैं। लेकिन देविका को अपने
होने वाले अंजाम का पता चल जात है और वह भाग जाती है।
अम्बिका जो की एक हालात की मारी हुई लड़की है वह राजनगर वाली
सड़क पर से देविका से राजनगर के लिए लिफ्ट मांगती है। देविका और अम्बिका देखते हैं
की उनका चेहरा हुबहू मिलता है। रास्ते में दोनों के साथ एक दुर्घटना हो जाती है
जिसमे देविका मर जाती है पर अम्बिका बच जाती है और साथ ही में वह देविका का सूटकेस
और हैंडबैग निकाल लेती है। अम्बिका के दिमाग में देविका बनने का विचार कौंधता है।
इसलिए वह वहां से चुपचाप खिसक जाती है। अम्बिका देविका बनकर राजनगर में रहने लग
जाती है और एक बार में काम करना शुरू कर देती है।
कुछ दिनों के बाद आनंद प्रकाश नाम का व्यक्ति उससे संपर्क
करता है और बताता है की वह देविका नहीं अम्बिका है और अगर उसने टेप नहीं दिया तो
वह पुलिस में जाकर बता देगा की देविका दुर्घटना में नहीं मरी थी उसे अम्बिका ने
मारा था। अम्बिका किसी तरह से आनंदप्रकाश को अपने घर से भगाती है। अगले दिन
आनंदप्रकाश कुछ गुंडों को लेकर रात में सड़क पर अम्बिका को मारने और डराने की धमकी
देता है जब वह अपने बार से घर वापिस जा रही थी। लेकिन उसी समय सुनील आकर उसे बचा
लेता है। सुनील उसे घर तक छोड़ता है जो बैंक स्ट्रीट में है।
अगले रात अम्बिका सुनील के पास आती है और बताती है की उसने एक
आदमी को सुआ घोप दिया है। अम्बिका सुनील को आनंद प्रकाश के बारे में बताती है।
अम्बिका सुनील को यह भी बताती है की एक ओझा नामक बड़े व्यक्ति का भी फ़ोन आया था।
आनंद प्रकाश और ओझा दोनों ही अम्बिका से एक टेप चाहते थे। अम्बिका सुनील को देविका
वाला किस्सा भी सुना देती है। सुनील अम्बिका के फ्लैट पर जाता है और टेप उससे ले
लेता है। अम्बिका के पास आनंदप्रकाश का फ़ोन आता है की सुआ उसे लगा है और अगर उसने
टेप नहीं दिया तो वह पुलिस में शिकायत कर देगा। सुनील अम्बिका को फ्लैट पर रुकने
की हिदायत देते हुए खुद आनंद प्रकाश द्वारा बताये गए फ्लैट पर जाता है। आनंद
प्रकाश अपने दोस्त परमानन्द के घर में रहता था। सुनील वहां पहुँचता है और आनंद
प्रकाश से बात करता है। लेकिन टेप देने से पहले वह आनंद प्रकाश के घाव को एक बार
डाक्टरी जाँच के लिए सलाह देता है। बहुत न नुकर के बाद आनंद प्रकाश मान जाता है।
सुनील डॉ. स्वामी को रोड पर लगे टेलीफोन बूथ से फ़ोन करता है और उसे बुलाता है।
सुनील डॉ. स्वामी को आनंद प्रकाश को देखने के लिए भेजकर खुद बाहर इंतज़ार करता है।
कुछ ५ मिनट बाद पुलिस की गाडी उसी फ्लैट के सामने रूकती है।
प्रभुदयाल सुनील को देखता है तो उस स्थान पर पहले से मौजूद होना उसके दिमाग में
खटकता है। वह सुनील से बहस करता है। तभी डॉ. स्वामी आकर सुनील को बताते हैं की
आनंद प्रकाश नहीं रहा । प्रभुदयाल बताता है की उसके दोस्त परमानंद ने एक लड़की
पर उसकी सुए से हत्या का इलज़ाम लगाया है।
पुलिस अम्बिका को क़त्ल के इलज़ाम में गिरफ्तार कर लेती है। अब
सुनील अम्बिका, जो की डेम्सेल इन डिस्ट्रेस, को बचने के लिए अपनी तहकीकात शुरू करता है।
क्या सुनील असली अपराधी को पकड़ पायेगा?
क्या अम्बिका ही असली कातिल है?
कुल ५ मिनट के वक़्त में ही आनंद प्रकाश कैसे मार गया?
क्या आनंद प्रकाश को सच ही में सुआ लगा था या उसने बस एक
एक्टिंग की थी?
पाठक साहब के कई उपन्यासों के विपरीत इस उपन्यास का कलेवर और
स्वाद थोडा कम है और थोडा अलग भी है। पाठक साहब सदा ही नए नए प्रयोग करते नज़र आये
हैं। इस उपन्यास में भी कुछ ऐसा ही किया है। कहानी का २/३ हिस्सा ख़तम होने के बाद
सुनील का प्रवेश बिलकुल भारतीय फ़िल्मी हीरो की तरह किया गया है। जब नायिका मुसीबत
में आती है तो नायक मोटरसाइकिल लेकर उनके बीच कूद पड़ता है और नायिका बचा कर
सुरक्षित घर पहुंचता है। अम्बिका घर में आने का निमंत्रण भी देती है लेकिन अपनी
वाक्पटुता और स्मार्ट टॉक से उसकी बात को टाल भी देता है।
कहानी में देविका, अम्बिका, कामेश्वर नाथ ओझा, आनंदप्रकाश
और परमानन्द, प्रत्येक किरदार को कहानी के अनुसार अच्छा स्लॉट मिला है। सभी किरदारों को समय दिया गया है और
उनसे अच्छा काम भी पाठक साहब ने लिया है। देविका उपन्यास के प्रथम हिस्से में भारी
पड़ती है, फिर अम्बिका का आगमन होता है और वह दुसरे हिस्से में भारी रहती है। पहले
हिस्से में मंत्री साहब का किरदार जबरदस्त है तो दुसरे हिस्से में आनंद प्रकाश का।
आनंद प्रकाश के मरते ही पाठक साहब परमानन्द और मंत्री साहब के किरदार को क्रियाशील
कर देते हैं। सुनील और अम्बिका के बीच के और सुनील और अर्जुन के बीच के संवाद
मनोरंजक हैं। प्रभुदयाल और सुनील के बीच की नोक-झोंक प्रभावित करती नज़र आती है।
कहानी का प्लाट बहुत ही सिमित है। हाँ, ये बात और
है की कहानी को दिल्ली से राजनगर को शिफ्ट जरूर किया गया। जो शायद सुनील के प्रवेश
के लिए ही आवश्यक था। सुनील का मंत्री जी को लेकर तर्कशक्ति का प्रयोग करना, सुनील की
तीक्ष्ण बुद्धि को दर्शाता है, जो की पाठक साहब का हमेशा से प्लस पॉइंट होता है। मुजरिम
कितनी भी कोशिश कर ले वह कोई न कोई सबूत अपने पीछे जरूर छोड़ देता है।
श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों की तुलना आप सिर्फ
उनके ही लिखित उपन्यासों से कर सकते हैं। सुनील सीरीज के उपन्यासों की तुलना उसी
सीरीज के उपन्यास से करना बड़ा कठिन कार्य है। १२० उपन्यास अगर आप पढ़ चुके होते हैं
तो कुछ उपन्यासों की कहानिया और किरदार ही भूल जाते हैं। इसलिए मैं तुलना नहीं
करना चाहता।
आशा करता हूँ की जिन सहपाठियों ने इसे पढ़ा होगा वे अपने विचार
रखेंगे। और जिन सहपाठी इस कृति को अभी तक नहीं पढ़ पाए होंगे वे इसे जल्दी पा
लेंगे।
विनीत
राजीव रोशन
Note:- सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों से सम्बंधित और कई ख़बरों, गॉसिप के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें
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Triple Cross is a long forgotten novel of Sunil Series which SMP Saheb had got republished when I had insistingly requested him for that. It contains a different flavour using the look-alike formula in the plot. Sunil's entry is fantastic. You have presented the review quite nicely.
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