कोहबर की शर्त
लेखक - केशव प्रसाद
मिश्र
वर्षों पहले जब “हम आपके
हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र
की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री
प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने
का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया।
जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि
में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी
उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की
इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की
कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप
उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते।
हाल ही में मुझे “कोहबर की
शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन
कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया गया था की मैं किताबें न
लेकर आऊँ। उन्हीं चार किताबों में एक था – “कोहबर की शर्त”। मैं दिल्ली से दूर २५
दिन रहा लेकिन मेरे हमसफ़र रहे इन चारों उपन्यासों को पढने का वक़्त मुझे नहीं मिला।
जब मैं बिहार से दिल्ली की वापिसी कर रहा था तो मैंने सबसे पहले “कोहबर की शर्त”
ही पढने का फैसला किया। उपन्यास मेरे लिए और अधिक ख़ास इसलिए हो गया क्यूंकि मैंने
स्वयं अपने विवाह में कोहबर के दर्शनं किये थे और साथ ही उसके नियमों का पालन भी। मैनें
अपने ससुराल में जितना वक़्त बिताया सब कोहबर में भी बिताया। इसलिए भी मुझे इस उपन्यास
को पढने की इच्छा अधिक थी।
उपन्यास की कहानी फिल्म से
ज्यादा जुदा नहीं है बल्कि बहुत ही जुदा है। “बलिहार” और “चौबेछपरा” के जनजीवन को आप
उपन्यास में ही साक्षात जी सकते हैं। जहाँ फिल्म सिर्फ “चन्दन” और “गुंजा” के
प्रेम और बलिदान पर आधारित थी वहीँ उपन्यास “चन्दन”, गुंजा और बलिहार के लोगों की
कहानी है। लेकिन कोई अगर उपन्यास पढ़े तो उसे पता चल जाएगा की उपन्यास का केंद्र
बिंदु सिर्फ – “गुंजा” और “बलिहार” है। उत्तरप्रदेश और बिहार से बीच स्थित जिले
बलिया के एक गाँव बलिहार और चौबेछपरा में तब एक सम्बन्ध कायम हो जाता है जब बलिहार
के अंजोर तिवारी जो पुरे गाँव के काका थे और चन्दन के माँ-बाप भी के बड़े भतीजे
ओंकार के लिए चौबेछपरा के वैद्द की लड़की रूपा का रिश्ता जुड़ा। चन्दन ओंकार का छोटा
भाई था तो गुंजा रूपा की छोटी बहन। विवाह की रात कोहबर की रस्म में गुंजा और चन्दन
की बीच चलने भी नोक-झोंक दोनों को एक ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर देती है जो जाकर
उस सागर में गिरता जिसे लोग प्रेम, मोहब्बत, इश्क और चाहत कहते हैं। रूपा जब पहली
बार गर्भवती हुई तो गुंजा चौबेछपरा से बलिहार आई जहाँ गुंजा और चन्दन के बीच के
प्रेम ने आग पकडनी शुरू कर दी
लेकिन जहाँ तक सुना गया है और सच भी है, सच्ची मोहब्बत को सबसे पहले नज़र लगती है। रूपा दुसरे बच्चे को जन्म देने से पहले ही चल बसी। वैद्द जी सलाह पर ओंकार ने गुंजा से विवाह कर लिया। इतना कुछ हो गया लेकिन चन्दन अपनी पसंद, अपने प्यार और अपनी मोहब्बत के बारे में ओंकार को नहीं बताया। क्यूंकि ओंकार ख़ुशी में ही उसने अपनी ख़ुशी को पाने की कोशिश की। क्यूंकि ओंकार उसका बड़ा भाई ही नहीं बल्कि माँ-बाप से भी बढ़कर था। गुंजा ने भी चन्दन के कुछ बोल न पाने के कारण अपनी चुप्पी साध ली और ओंकार के साथ सात फेरे लेकर बलिहार आ गयी। लेकिन इससे गुंजा के मन में चन्दन के लिए प्रेम कम न हुआ वहीँ चन्दन के मन में एक असुरक्षा की भावना भी आ गयी।
मुझे नहीं लगता की कोई भी
इंसान इस प्रकार से जीवन को जी पायेगा जैसा चन्दन इस कहानी में जीता है। लेकिन
सिर्फ चन्दन के ही जीवन को आप ऐसा नहीं कह सकते। गुंजा के जीवन को देखिये, जिस
इंसान से उसने इतना प्रेम किया और जिसके साथ हमसफ़र बन कर जिन्दगी जीने की तमन्ना
थी उसको उसने देवर के रूप में पाया। बहुत कठिन गुंजा के मनोस्थिति को समझना। जहाँ
गुंजा विवाह के बाद ओंकार के साथ-साथ चन्दन का ख्याल रखना चाहती थी वहीँ चन्दन
हमेशा उससे दुरी बनाकर रखना चाहता है। गुंजा चाहती है की चन्दन विवाह करके अपनी
गृहस्थी बसा ले वही चन्दन अपने अकेलेपन को, अपनी मोहब्बत को, किसी भी जंजीर से
बाँधने को तैयार नहीं है। मेरे हिसाब से प्रेम वह नहीं जिसे हम फिल्मों में देखते
हैं, प्रेम वह है जिसे हम अपनी वास्तविक जीवन में जिते हैं।
कहानी को चार भागों में हम
विभाजित कर सकते हैं – कुंवारी गुंजा, सुहागिन गुंजा, विधवा गुंजा और कफ़न ओढ़े
गुंजा। कुंवारी गुंजा जो चन्दन से अपार मोहब्बत करती थी। सुहागिन गुंजा जो चन्दन
से अपार मोहब्बत करती रही। विधवा गुंजा जो चन्दन से अपार मोहब्बत करती रही। कफ़न
ओढ़े गुंजा, जिसके प्रेम में चन्दन को खुद को बहा दिया। कहानी में चन्दन और गुंजा के
जीवन की खींचातानी के बीच कुछ ऐसे प्रसंग हैं जो गाँव में जिए जा रहे जीवन को
शब्द-ब-शब्द हमारे सामने चित्रित करना चाहते हैं। अंजोर तिवारी का गाँव के गरीबों
के लिए एक जमीन के लिए मर जाना एक मिसाल कायम करता है हमारे सामने। लेकिन यही लेखक
की कल्पनाशीलता मुझे यह सोचने पर मजबूर करती है की क्या ऐसा हो सकता है की कोई
जमींदार गाँव के गरीबों और असहायों के लिए अपनी जान दे दे। उपन्यास आपको बाढ़ और
महामारी जैसे राक्षसों से भी रूबरू करवाता जिसमे कई जीवन, असीम मात्रा में फसलें, अनगिनत
संख्या में माल का नुकसान हो जाता है।
लेखक ने जिस प्रकार से
बलिहार के जनजीवन का चित्रण इस कहानी में किया है वह मुझे बहुत कुछ अपने गाँव की
याद दिलाता है। लेखक ने जिस तरह से विवाह के रस्मों और रिवाजों को दर्शाने की
कोशिश की है वह मुझे मेरे विवाह की याद दिलाता अहि। लेखक जिस प्रकार से कोहबर का
चित्रण किया है कुछ ऐसा ही मुझे याद आता है मेरे विवाह के दौरान एक कोहबर की।
हालांकि कई नियम और रीतियाँ वैसी नहीं हैं जिनको हमारे यहाँ देखा जा सकता हो। कई
नियम और रस्म हमारे इधर अलग हैं। लेकिन लेखक “कोहबर की शर्त” के द्वारा हमारे
दिलों में वह जगह बना लेते हैं जहाँ जगह बनाने में कई लेखकों को वर्षों समय लग
जाता है।
आशा है आप इस उपन्यास को
पढेंगे और जैसा मैंने अनुभव किया है वैसा ही कुछ पायेंगे।
आभार
राजीव रोशन
बहुत अच्छी समीक्षा. समय मिलने पर यह किताब अवश्य पढ़ी जाएगी.
ReplyDeleteOne again master review Rajeev Bhai..
ReplyDeleteकोहबर की शर्त थी क्या ?ये पता नहीं लगा पूरी कहानी पड़ी फिर भी कोई तो बताओ सर।
Deleteकोहबर की शर्त नदिया के पार film dekhne pe samjh aa jayegi
DeleteUsme gunja chandan se na milne ko kahti hai yahi thi kohbar ki shart
बहुत अच्छी समीक्षा, अब पुस्तक को पढ़ना ही पड़ेगा। पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाने के लिये आभार
ReplyDeleteEspe or ek film banao
DeleteI loved the entire novel and writing style but I did not understand the actual 'shart' Gunja 'doosare se puch kar hari huyi shart puri ki gayi to uska mol kya' what does that mean? Kind of confused how its linked with conversation in the last when she says 'accha hi hua chandan, woh to aisi shart thi, jismein hum dono hi haar gaye' !!!!
ReplyDeleteI am also unable to derive the linkage between these two lines.if someone got that,please explain.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteGood Explained Really
ReplyDeleteGood Explained Really
ReplyDeleteअगर आपके पास लोकप्रिय/लुगदी/असाहित्यिक उपन्यासों से संबंधित कोई भी जानकारी है या आपका इस विषय पर मौलिक लेख हो तो हमसे संपर्क करें।
ReplyDeleteलुगदी उपन्यासों का विशाल संग्रह
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एक बात और कि उपन्यास की नायिका का नाम "गुंजा" केशव प्रसाद मिश्र जी ने अपनी बहन (गुंजा) के नाम पर रखा था।
ReplyDeleteमैंने उपन्यास पढ़ रखा है वास्तव में इस तरह के उपन्यास हिंदी साहित्य में बहुत ही कम है। एक जीवन जीने जैसा है इसको पढ़ना। आपको झझकोर देगा और प्रेम और त्याग का एक अलग दर्शन आपको मिलेगा।
Rajkamal patna, Allahabad
DeleteMay bhahut khusi mhsus kr RHA hu I'm happy
ReplyDeleteBhai sahab maine khojbin ki hai aur mujhe wo village mil gaya jaha nadia ke paar film bani thi ye villaga aap google map par jayiye aur search kijiye- kerakat, jaunpur,u.p jab ye map khul jayeg to aap use thoda zoom kijiyega tab kerakat ke pass aapko belahari naam ka ek gaon dikhega wahi tha chandan ka gaon aur phir wahi search kijiyega chaubepur jo gunja ka gaon tha dono ghagra river ke paas hi milenge aapko
ReplyDeleteNadiya ke paar film jaunpur ke kerakat tahseel ke vijaipur gaon me bani hai jo gomti nadi kinare hai jaunpur se 20km ki doori pe
ReplyDeleteAr jo upanyas likha gya hai wo up ar bihar ke border pe 2 gaon hai ganga nadi ke pas
Ye gaon vijaipur hai jo gomati nadi ke kinare hai patkhauli
ReplyDeleteMarket me is book ka prize kitna hai koi btayega
ReplyDeleteपिछले दिनों इसे पढ़ा और सच मानिये पढ़ने के बाद मुझे गूंजा का वो चंदन को पुकारना फ़िल्म में इस उपन्यास में समझ आया
ReplyDeleteबहुत ही भावुक कहानी मुझे रोना आ गया था गूंजा और चंदन के लिए
आज भी आपके इस रिव्यू को पढ़ के मन भारी सा हो गया
कोहबर के बारे में मुझे ज्यादा पता नही
लेकिन इस कोहबर की शर्त ने शर्तिया मुझे उदास कर देता है
Ye book Kaha milegi
ReplyDeleteNadiya ke par film ek aisi sachhi prem kahani h jisme banautipan ki jhalak nahi milti balki prem ka ek wastwik roop dikhai parta h.is film me vivah ke dauran jin riti riwaso ko darsaya gaya h usase utar bharat ke gaon jiwant ho jate h.is film me aslilta Bilkul nahi h tahta iske geet sangeet me gramin bharat ki sanskriti dharakti h.maine apne jeewan me abhi tak jitni achhi filme dekhi h unme nadiya ke paar ek mahatwapurn sthan rakhti h jo aaj bhi meri bhawnao aur sambednao ko gudgudati h.
ReplyDeleteबलिहार और चौबे का छपरा के बीच की 'नदिया के पार', *कोहबर की शर्त* पर आधारित है।
ReplyDeleteएक फ़टी पुरानी जर्जर पुस्तक के रूप में उपन्यास कोहबर की शर्त मुझे कहीं से प्राप्त हुई थी। उस उपन्यास को मैने पढा था।
उपन्यास का बहुत से हिस्सा नज़र अंदाज़ कर केवल प्रेम को ही उठाया किन्तु उसकी नियति ही बदल दी। उपन्यास क़ातिल है, फ़िल्म को सुखांत बना लिया गया। प्रेमचंद जीवन के साथ ऐसे खिलवाड़ से परेशान होकर काशी लौट आये थे। केशव प्रसाद मिश्र फ़िल्म बनते समय थे नहीं तो सब लोकप्रियता की बाढ़ में डूब गया।
राज्यश्री प्रोडक्शन की यह फ़िल्म बहुत लोकप्रिय हुई। ग्रामीण गुंजा के रूप में साधारण नाक नक्श की नायिका ने जीवंत कर दिया।
'नदिया के पार' की 'गुंजा' (अभिनेत्री) से मैं भोपाल में इस तरह मिला कि उसने बकरी नाटक के कलाकारों के साथ जिस छपरी में चाय पी थी, अपने नाट्यदल के साथ हमने भी वहीं चाय पी थी। मेरे अभिवादन का उसने जवाब नहीं दिया था। शायद मैं उसकी लोकप्रियता के बुर्ज से दिखाई नहीं दिया या सुनाई नहीं दिया। या फिर मुम्बई साधारण लोगो का अभिनय कर लोकप्रिय हुए अभिनेताओं को असाधारण बना देता है।
मैंने एक चीज़ सीखी कि जिसे सब बधाई दे रहे हों, उसे तुम बधाई देकर वही पा रहे हो जो बधाई न देकर पाते अर्थात *कुछ नहीं।*☺️
आपकी अंतिम पंक्तियाँ कटु सत्य हैं।
Deleteडॉ रामकुमार जी 'नदिया के पार' जब फिल्माया गया तब केशव प्रसाद मिश्र जी जीवित थे।1982 में यह फ़िल्म बनी थी और मिश्र जी का देहांत 1989 में हुई। फ़िल्म का क्रेडिट लेना और मिडिया से दूर रहना यानि कि यूँ कहें उन्हें प्रसिद्धि नहीं चाहिए थी। मैं उनकी रिश्तेदार हूँ।
DeleteMridula ji kya ye novel Satya ghatna par Bana hai
Deleteजी नहीं, लेकिन गांव का परिवेश और नाम बिल्कुल सत्य दर्शाया गया है।
DeleteI have seen this picture many times. This picture Nadia Ke Par, has become a popular legend. Even after 2000 years, people will remember Gunja. Gunja role played by Sadhnaji so simple and awesome. O my God , Sadhna did not do acting , rather did natural role of a pure village girl. So much talent. Sadhna ne Gunja ko amar kar diya.
ReplyDeleteMujhe kehsav prasad mishra ji ki full detail kaise mil skti h plzz help share link
ReplyDeleteमैने कोहबर की शर्त पूरी पड़ ली फिर भी ये पता नहीं चला कि कोहबर की शर्त थी क्या?कोई तो बताए। बहुत भावुक हूं इस उपन्यास को स्टडी करके गूंजा मर जाती है फिर भी चंदन कुछ नहीं कर पाता है। ये है रिश्तों का सामान जो उस समय था। इस कहानी में अगर चंदन अपनी बात बता देता अपनी भाभी या भाई को तो गूंजा उसकी पत्नी हो जाती। बहुत दु:ख होता है थोड़ा सा सहारा यह है कि मरते दम तक एक देवर के रूप में चंदन साथ में ही रहता है। कहानी बहुत अच्छी है पर शर्त क्या थी ये तो बताए कोई।
ReplyDelete11 March 2021 at 21:41
Deleteकोहबर की शर्त नदिया के पार film dekhne pe samjh aa jayegi
Usme gunja chandan se na milne ko kahti hai yahi thi kohbar ki shart
Lekin upanyas me shart ko open nahi kiya tha
Deletebahut hi khubsurat aur rulanewali upanyas hai :'(
ReplyDeleteयह किताब कहाँ मिलेगी ।
ReplyDeleteपीडीएफ मिल जायेगी आप गूगल पर कोहबर की शर्त pdf सर्च कीजिए
Deleteअमेजॉन पर उपलब्ध है कोहबर की शर्त
Deleteकिस गांव नोवल या नदिया के पर फिल्म से संबंधित कोई जानकारी चाइए तो मुझे संपर्क कीजिएगा क्यों की मेरे पास व्हाट्स ग्रुप गई जिसमे सभी लोग जुड़े है आप की सभी सनका दूर की जाएगी
ReplyDelete8004905043 समूह से जोड़ लीजिये
DeleteShart kya thi
ReplyDeleteJust finished... 1.07.2021 amazing experience .... kabhi lga hi nhi ki novel padh rha hun... lga ki isme khud ko dekh rha hun.. isko padhne ke baad ek ajib se bechaini hui...ki kash!! Jab chandan se puch gya ki onkar ke liye gunja kaisi rahegi.... usi samay , wo apne dil ki baat bol deta. Onkar uski baat ko samajhta bhi.... CHANDAN ke ek galti ke karna GUNJA ko mrityu tak kya kya sahna pada..
ReplyDeleteसच ही है लेखक जो लिखता है उसे फ़िल्म वाले अपने अनुसार बना कर कहानी को मार देते हैं। खैर .., अपने नए लिखे जा रहे उपन्यास में मेरा नायक केशव प्रसाद मिश्र के दूर का रिश्तेदार है, जिसमे कोहबर की शर्त । फ़िल्म नदिया के पार और लेखक केशव प्रसाद मिश्र का जिक्र बरबस है।
ReplyDeleteKohbar ki sart sath jine marne ki thi jo rupa r omkar ki sadi me hansi thitholi ke bhich me gunja r chandan ne man liya tha. Very nice novel maine 30 sal pahle read kiya tha
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर समीक्षा किया आपने l उपन्यास को पढ़ने की जिज्ञासा मेरे मन में अब प्रबल हो गई है मैं बहुत जल्द इस उपन्यास को पढ़ने की कोशिश करूंगा l
ReplyDelete'कोहबर की शर्त' केशव प्रसाद मिश्रा जी द्वारा लिखा गया उपन्यास एक छोटी सी कहानी थी। जिसे उन्होंने विस्तृत रूप देकर एक उपन्यास के रूप में रचना की। हालाँकि इसका अंत दुःखद था किन्तु जब 'नदिया के पार' फ़िल्म बनी तब यह उपन्यास काफ़ी प्रसिद्ध हो गया।
ReplyDeleteकोहबर की शर्त उपन्यास काल्पनिक है या सत्य घटना पर आधारित है ये जानने की तीव्र इच्छा है क्योंकि कहानी दिल में उतर कर बचपन की यादों में में ले गई है
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