हाँ! मैं बूकहोलिक हूँ!
पुस्तकें पढ़ना मेरा हमेशा
से शौक रहा है और लगता भी नहीं की इस शौक़ को कभी विराम लगेगा। मेरा मानना है कि
मेरे इस क्रिया पर विराम लगना भी नहीं चाहिए। इस शौक़ का परिणाम यह हुआ की मेरे
मित्रता सूचि में और मेरे आस-पास के लोगों में, पढ़ाकू लोगों की भरमार हो गयी है।
वे मेरे द्वारा किताब पढ़े जाने एवं उसकी समीक्षा किये जाने पर, तारीफ भी करते हैं
लेकिन तारीफ़, प्रशंसा आदि वो मायावी चीजें हैं जिनकी मुझे कभी इच्छा नहीं रही। जब
भी मैं बताता हूँ की मैं फलां पुस्तक पढ़ रहा हूँ तो कई मित्रों का जवाब आता है की
अच्छी किताब है पढ़ डालो। कुछ नए पाठक और पुराने पाठक, कभी-कभी मुझसे पूछते भी हैं कि
उनको कैसी और कौन सी किताब पढनी चाहिए। यह गतिविधि मुझे बहुत पसंद है, क्यूंकि मैं
स्वयं अधिक से अधिक किताबें पढने का शौक़ीन हूँ। इसलिए जितना ज्यादा मेरे पास रिकमेन्डेशन
आता है, उतना ही, मेरे लाइब्रेरी में या TBR (टू बी रीड) केटेगरी में किताबों की
संख्या बढती जाती है। कई बार तो मुझे अपने मित्र को कहना पड़ता है – “यार, मेरे पास
तो वैसे ही कई किताबें हैं, जिनको अभी मैंने पढना है और तुमने/आपने ये नया
रिकमेन्डेशन लिस्ट पकड़ा दिया है।”
कभी-कभी मेरे मित्र मुझे
कहते हैं की – ‘यार तू बहुत किताबें पढता है। कैसे पढ़ लेता है? कैसे टाइम निकाल
पाता है?’ मैं उसे यही कहता हूँ की पुस्तकें पढना मेरा शौक़ है और ‘शौक़ बड़ी चीज़ है’।
हालांकि मुझे कभी नहीं लगा की मैं बहुत किताबें पढता हूँ क्यूंकि अगर ऐसा होता तो
मेरे लाइब्रेरी में कई किताबें “अनरीड” अवस्था में या गुडरीड्स पर कई किताबें ‘TBR’
केटेगरी में न होती। मैं सोचता हूँ की मुझसे भी बड़े ‘बुकवर्म” इस धरा पर मौजूद
हैं, वो किस तरह से अपने लाइफस्टाइल को हैंडल करते होंगे। उनकी किताबें बेड पर, तकिये
के नीचे, बेडसाइड टेबल पर, स्टडी टेबल पर, शेल्फ में, सेण्टर टेबल पर, बैग में,
ऑफिस के दराज में, बाथरूम में, बाथरूम की परछत्ती में (जो छुपा के पढ़ते होंगे) , पानी
की टंकी के नीचे (जो छुपा के पढ़ते होंगे), कार के बेक सीट पर, कार के डैश बोर्ड
में, कोट की जेब में आदि, न जाने कितने जगहों पर अपनी किताबों को रखते होंगे ताकि
जब भी मौका मिले पढ़ डालें। हाह...अगर आपको ऐसा कुछ किसी के घर में नज़र आये, जहाँ
उसकी किताबें इधर-उधर हो और उनमे बुकमार्क भी लगा हो तो समझ लीजिये वो बहुत बड़े
बूकवोर्म हैं, समझ लीजिये की वह बूकहोलिक है।
अगर आप किसी किताब को पढना
शुरू कर देते हैं और उसे खत्म किये बगैर ही किसी दुसरे काम में जुट गए हैं और आपका
मन उस काम में नहीं लग रहा है तो समझ लिए आप बहुत बड़े बूकहोलिक हैं। जब आप किताब
पढ़ते हैं और उसे पढने में मग्न हो जाते हैं, बीवी/माँ/पिताजी खाने के लिए पुकार-पुकार
कर थक गयी हैं, नहाने के लिए बोल-बोल कर थक गयी हैं तो भैया समझ लीजिये की आप
बूकहोलिक हैं क्यूंकि आप किताब खत्म किये बिना हिल नहीं सकते और उस किताब को छोड़
नहीं सकते। ४-५ वर्ष पहले, जब मैंने जॉब करना शुरू नहीं किया था तो मेरा भी यही
हाल था और उससे ज्यादा बुरा तो मेरे माता-पिता का हाल था।
मैं आपको बताऊँ तो आज के
समय में, मैं औसतन सात से आठ किताबें महीने में पढ़ लेता हूँ लेकिन मेरे पास उन
किताबों की संख्या १०० से अधिक है, जिनको अभी पढ़ा जाना बाकी है। जबकि मैं हर महीने
३-४ किताबें खरीद ही लेता हूँ और ये संख्या तब और बढ़ जाती है जब दिल्ली में कोई
पुस्तक मेला लग जाता है। तब कम से कम एक दिन तो पुस्तक मेले का चक्कर लगता ही है
और पुस्तकों की संख्या उस दिन ३० से ऊपर पहुँच जाती है। कभी-कभी तो इतनी किताबें
घर ले जाते हुए भी डर लगता है की कहीं घर वाले ये न कह दें की पिछली बार जो
किताबें लाया था उसको रखने की जगह तो है नहीं, उनको अभी तक पढ़ तो पाया नहीं है और
ये किताबें और ले आया है।
पता नहीं आप लोगों के साथ
ऐसा होता है की नहीं लेकिन मेरे साथ तो जरूर होता है। मुझे कई बार रात को ऐसे सपने
आते हैं जिनमे उन किताबों के किरदार और घटनाएं घटित हो रही होती हैं, जिन्हें मैं
पढ़ चूका हूँ। कुछ ख्वाब ऐसे भी आये हैं जिनमे कुछ नयी घटनाएं घटती हैं, जो सुबह उठने
पर धुंधली-धुंधली सी यादों में फंसी होती हैं। मैं सोचता हूँ कहीं ये ख्वाब आगे
जाकर किसी कहानी का हिस्सा न बन जाए। कई बार मेरे साथ ऐसा भी हुआ है की मैं किसी
जीते-जागते इंसान को किसी काल्पनिक किरदार से तुलना करने लग जाता हूँ। एक रिसर्च
के अनुसार, ऐसा होता है और यह उन्हीं के साथ होता है, जो बहुत किताबें पढ़ते हैं। वो
किसी सजीव इंसान को, वास्तविक इंसान को काल्पनिक दुनिया का किरदार समझने लगते हैं।
मेरे एक मित्र से जब कभी
बात होती है तो वो पूछते हैं की ‘और बता जिन्दगी में क्या नया-ताज़ा चल रहा है।’
ऐसे में मेरे मुहं से हमेशा जवाब निकलता है की – ‘मैं तो फलां बुक पढ़ रहा हूँ,
फलां बुक खत्म किया है और फलां आगे पढने वाला हूँ।’ इवन मैंने अपने फेसबुक स्टेटस
का अधिकतर इस्तेमाल इसी बात को कहने के लिए किया है कि –‘आजकल मैं क्या पढ़ रहा हूँ।’
आह... ये बूकवोर्म या बूकहोलिक लोगों की दुनिया भी न अजीब है।
कुछ सालों पहले, मैं एक
ठेले वाले से सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की किताब खरीदता था और पढता था। कुछ समय
बाद ऐसा हुआ की मैं उसके ठेले पर पहुँचता था तो वह मेरे सामने सर के उपन्यास निकाल
कर रख देता था। यहाँ तक यह भी हुआ की कई बार मैं उसके दूकान पर नहीं रुका तो वह
टोक देता था की आज एक अलग टाइटल की किताब है उसके पास। मेरे ख्याल से, यह अनुभव
सिर्फ मेरे साथ नहीं हुआ है। जितने भी पुस्तकें पढने वाले मेरे मित्र हैं, या
संसार में जितने भी पाठक हैं, उसके साथ ऐसा होता ही होगा। आप लाइब्रेरी या बुक
स्टोर पहुंचे तो किताब वाला सीधा आपके सामने, आपके पसंदीदा लेखक की किताब को रख
देता होगा या बता देता होगा की वहां रखी है या किताब उपलब्ध न हो तो आपके सवाल
पूछने से पहले ही बता देता होगा। एक पाठक के रूप में, एक बूकहोलिक पाठक के रूप में
आप अपने मित्रों के बीच ही नहीं, बुकस्टोर और लाइब्रेरी तक भी प्रसिद्ध हो जाते
हैं।
आपने कभी देखा होगा की जो
नयी किताब होती है, उसके पन्ने बड़े धारदार होते हैं जिससे कभी-कभी हाथों को चोट भी
पहुँचता है। इसलिए कहा जाता है नयी किताब को हमेशा सही तरीके से हैंडल करना चाहिए।
पता नहीं, आप में से कितने लोगों के साथ ऐसी खुनी घटना घटी है, पर मेरे साथ तो यह
२-३ बार हो चूका है। मैं सोच रहा था की जो बहुत वड्डा वाला पाठक होगा, जिसने बहुत
किताबें पढ़ी होंगी, जो कई सालों से किताबें पढता आ रहा होगा, हाय, उस पाठक के हाथ
में ऐसे पेपर-कट कितने होंगे। ऐसे ही ये वड्डे वाले पाठकों की एक आदत यह भी होती
है की एक ही बार में किताब को पढ़ कर खत्म कर देना है। वहीँ जब उसे सुनाई देता है
की एक किताब खत्म करने में फलां को इतना टाइम लग गया तो वह सोचने लगता है की यार
मुझे तो पढने में बहुत मजा आया था और मैंने एक ही बैठक में किताब को खत्म कर दिया
था, फिर भला इस भलेमानस को इतना टाइम कैसे लग गया।
वैसे एक बात और भी है, जिससे
मुझ जैसे कई बूकहोलिक और बूकवोर्म को बहुत परेशानी है, बहुत समस्या है, वो है पढने
के लिए वक़्त कम होना। हम कितनी भी किताबें पढ़ लें, लेकिन फिर भी ऐसा लगता है, बहुत
कम समय मिला किताब पढने के लिए। मैं बस, ट्रेन, मेट्रो, ऑटो, ऑफिस, घर और तो और
कभी-कभार जब दिर्धशंका और किताब को लगातार पढने का दबाव एक साथ बन जाता है तो मैं
मोबाइल लेकर बाथरूम में ही घुस जाता हूँ और अपनी सामाजिक मर्यादा को भूल जाता हूँ।
मेरा कहने का अर्थ यह था की बूकहोलिक और बूकवोर्म टाइप के पाठकों को हमेशा समय की
कमी उसी तरह खलती है जैसे किसी बनिए या मरवाड़ी को धन की कमी, सामान्य से अधिक होने
पर भी खलती है।
वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुभव
कहता है की बूकहोलिक या बूकवोर्म प्रकार के पाठकों का ज्ञान हमेशा उच्च होता है,
उनके अन्दर स्थिरता होती है, उनका आचरण सभ्य होता है, उनके विचार में विविधता होती
है, उनके कर्मों में उनके ज्ञान की झलक दिखाई देती है, और पता नहीं क्या-क्या
खासियतें होती हैं, ऐसे पाठकों की।
आप भी खास हैं, क्यूंकि आप
यह लेख पढ़ रहे हैं। आप यह लेख पढ़ रहे हैं तो आप एक बूकवोर्म या बूकहोलिक को समझ
पायेंगे। सिर्फ इतना ही नहीं, मुझे विश्वास है की आप भी कभी न कभी आगे जाकर
बूकहोलिक जरूर बनेंगे। मैं जानता हूँ, आप कोशिश जरूर करेंगे।
आभार
राजीव रोशन
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