आप, आपका लेखक मित्र और उसकी पुस्तक
मेरे जीवन में मुझे ऐसा कभी
मौका नहीं मिला की कोई मित्र लेखक बन जाए या वो पहले से लेखक हों। हालांकि मेरी
कोशिश जारी है की कुछ नए उभरते हुए सितारे भारतीय लेखन व्यवसाय को दूँ लेकिन फिर
भी यह कसक तो रहेगी ही कि मेरा कोई ऐसा दोस्त नहीं था जो लेखक हो और उसके
किताबों का प्रचार-प्रसार करने का थोड़ा मौका मुझे भी मिले। इस मामले में, मैं जितेन्द्र
माथुर जी का नाम लेना चाहूँगा, जब उन्होंने पोथी डॉट कॉम पर पहली बार अपनी पुस्तक
को प्रकाशित किया और उसके बाद उनकी पुस्तक डेलीहंट पर भी पब्लिश हुई लेकिन शायद मैं
उन्हें ऐसा मित्र नहीं मानता था की उनकी पुस्तक का प्रचार-प्रसार करूँ या उस वक़्त
मेरी समझ ऐसी नहीं थी। यहाँ प्रचार-प्रसार का मतलब आप इस बात से मत निकालिए कि मैं
अपने जानने वालों का हाथ-पाँव पकड़ कर कहूँ – ‘भाई, एक बार पढ़ ले। बहुत अच्छी किताब
है।’ मैं ऐसा कदापि नहीं करना चाहता और न ही करूँगा। मैं इस मामले में अपनी सीमा
जानता हूँ और उसी में रहता हूँ। हालांकि सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कोई नयी आने
वाली पुस्तक होती है तो उसकी सुचना मैं उनके उन प्रशंसकों तक जरूर पहुंचाने की
कोशिश करता हूँ जो मेरी मित्रता सूची में होते हैं।
हाल ही में, मेरे एक मित्र,
मोहन मौर्य की किताब ‘एक हसीन क़त्ल’ ‘सूरज पॉकेट बुक्स’ से प्रकाशित हुई और
उन्होंने मुझे एक प्रति उपहार स्वरुप भी भेजी है जिसे मैं जल्दी ही पढने वाला (मैं
कई किताबें सामानांतर में पढता हूँ जिसके कारण अभी उनकी किताब को पढने का टाइम
नहीं आया है।) हूँ। लेकिन उनके इस कार्य से, मैं सोच में डूब गया। बेशक, मोहन भाई और
प्रकाशक ने पुस्तक के प्रमोशन में जी-जान लगा दिया और इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन
यह एक लेखक और प्रकाशक का नैतिक और व्यावसायिक कर्तव्य था, जिसे निभाना लाज़मी था।
परंतु, मैं यह सोच रहा था की एक मित्र होने के नाते मैंने क्या किया? चलिए मैंने मानता
हूँ की एक मित्र होने के नाते मैंने उनके लिए कुछ नहीं किया लेकिन सोच रहा हूँ की
मेरे एक और मित्र ‘कँवल शर्मा’ जी की पुस्तक ‘वन शॉट’ जल्दी ही बाज़ार में आने वाली
है और उसके प्री-आर्डर भी शुरू हो गए हैं। तो ऐसे में, एक मित्र होने के नाते मैं
क्या-क्या कर सकता हूँ, वही मैं आपको निम्न पंक्तियों में बताने वाला हूँ जिसका
इस्तेमाल आप अपने आप पर भी तब कर सकते हैं जब आपके किसी मित्र की किताब प्रकाशित
होने वाली हो।
मैं सोचता हूँ, की कम से
कम, एक कॉपी तो मुझे खरीदना ही चाहिए। ऐसा नहीं की, मैं इंतज़ार करता हूँ कि, दोस्त
है मेरा, एक ऑथर कॉपी तो दे ही देगा। मैंने ऐसे कई लेखकों के मित्रों को देखा भी
है जो ऑथर कॉपी का इंतज़ार करते रहते हैं, जबकि वे इतने सक्षम होते हैं की, किताब
खरीद कर पढ़ सकते हैं। अगर वे किताब खरीद कर पढ़ें तो इससे यह फायदा होगा की उसकी
रॉयल्टी लेखक के पास जायेगी। अगर आपने प्री-आर्डर किया तो प्रकाशक के पास
प्री-आर्डर की जो संख्या जायेगी, वह उसका ध्यान खींचेगी जिससे वह प्रभावित होगा।
लेखन की दुनिया में जितनी आवश्यकता नए लेखकों की होती है उतनी ही अच्छे प्रकाशकों
की।
मैं ऐसा भी कर सकता हूँ की
अपने लेखक मित्र की पुस्तक को खरीदकर उन दोस्तों को उपहार स्वरुप दूँ - जिनको किताबें
पढना पसंद नहीं है या जिनको किताबें पढने की आदत नहीं है। इसके दो फायदे मुझे नज़र
आते हैं – एक तो यह की अगर उसे किताबें पढने की आदत नहीं है या पढना पसंद नहीं तो
इस कर्टसी से तो एक बारगी किताब पढ़ेगा की मैंने उसे उपहार स्वरुप किताब दिया है। वहीँ
दूसरा फायदा यह होगा की मेरे मित्र को लेखक के रूप में जानने वालों की संख्या
बढ़ेगी और जहाँ तक मेरा मानना है गिफ्ट देने से मान तो बढ़ता ही है। हो सकता है अगली
दफा वह मित्र मुझे भी कोई पुस्तक गिफ्ट कर दे।
मैं किसी बुक स्टोर पर या
लाइब्रेरी में जाऊँगा तो कोशिश करूँगा की अपने मित्र की पुस्तक हमेशा सामने रहे, सबसे
आगे रहे ताकि सभी की नज़र उस पर पड़ती रहे। वहीँ मैं यह कोशिश भी करूँगा की बुक
स्टोर के मालिक या लाइब्रेरी के मेनेजर से, पुस्तक का नाम और लेखक नाम लेकर पूछूं
की फलां किताब कहाँ रखी है। अगर कई लोगों ने उनसे यही सवाल किया तो बुक स्टोर का
मालिक या लाइब्रेरी का मेनेजर निश्चय ही इस बात पर ध्यान देने लग जाएगा की फलां
किताब की बहुत डिमांड है तो वह दुसरे ग्राहकों और पाठकों को सलाह देगा की उस किताब
को पढ़े।
मैंने कई बार मेट्रो, बस या
ट्रेन में यात्रा करने के दौरान देखा है की जब भी मैं कोई पुस्तक पढ़ रहा होता हूँ
तो किताबें पढने वाले लोग या पाठक मेरी पुस्तक को नीचे से झुककर, दायें-बाएं होकर या
कभी पूछकर, पुस्तक नाम जानने की कोशिश करते हैं। यही कारनामा तब भी होता है जब मैं
किसी पार्क में, बस स्टॉप पर या किसी सार्वजानिक जगह पर किताब पढता हूँ। इस अनुभव
से मैंने जाना और समझा की, अगर मैं अपने मित्र की पुस्तक को सार्वजानिक स्थलों पर
पढूं, मैंने कहा पढने के लिए दिखावा करने के लिए नहीं, तो यह क्रिया पुस्तक और
लेखक के प्रति लोगों का ध्यान खींचेगी। इस तरह से लोग उस लेखक और पुस्तक का नाम
जान जायेंगे और कभी-कभार पूछेंगे भी कि कैसी पुस्तक है और बाद में जाकर उस पुस्तक
को शायद खरीद कर पढेंगे भी।
अब अगर मैं सोशल प्लेटफार्म
पर हूँ, जैसे – फेसबुक, ट्विटर और इन्स्टाग्राम आदि पर तो कम से कम अपने मित्र के
द्वारा बनाए गए ‘पुस्तक के फेसबुक पेज’ या ‘पुस्तक के ट्विटर अकाउंट’ को फॉलो करना
तो बनता है। कितना वक़्त लगता है, आपको इस काम को करने में। कभी कभार अगर कोई अच्छी
पोस्ट उस पेज पर आ गयी तो आप शेयर भी कर सकते हैं। क्यूंकि ये एक ऐसा काम है जो
सिर्फ आपका १-२ मिनट लेता है और आशा है की अपने मित्र के लिए इतना समय तो दे ही
सकते हैं आप। वहीँ अगर आपने अपने मित्र की पुस्तक को पढ़ लिया है तो फेसबुक, ट्विटर,
ब्लॉगर, गुडरीडस, माउथशट आदि वेबसाइट पर उस पुस्तक की रिव्यु भी लिख सकते हैं और
इससे भी आपके लेखक मित्र को फायदा ही होगा। अगर आपने पुस्तक को पढ़ा है और ईमानदाराना
तरीके से उसके बारे में सोचते हैं कि आपके मित्र ने वाकई पुस्तक को अच्छा लिखा है
और उसने मेहनत की है तो, गुडरीड्स पर रेटिंग और रिव्यु देने में कोई बुराई नहीं।
फेसबुक की अपनी वाल पर पुस्तक के बारे में दो शब्द लिखने में कोई बुराई नहीं और ये
ऐसी चीज़ें है जो आपका ज्यादा वक़्त भी नहीं लेती। आपकी ये समीक्षाएं, निःसंदेह,
आपके मित्र एक लेखन जीवन और पुस्तक के भविष्य को निर्धारित करेगी।
अंत में, यह भी कहना चाहुगा
की, अगर आपके मित्र के पुस्तक को लांच किया जा रहा है या कोई पुस्तक विमोचन जैसा
कोई इवेंट हो रहा है तो जरूर जाइए। इससे आपके लेखक मित्र को एक मोरल सपोर्ट
प्राप्त होगा। हो सके तो अपने साथ कुछ मित्रों को भी ले जाइए, मित्रों के साथ
घूमना-फिरना भी हो जाएगा, कुछ देर उनके साथ वक़्त भी बीत जाएगा, वो पुस्तक और लेखक
के बारे में जान भी जायेंगे, उनके अन्दर वहां मौजूद दुसरे पाठकों को देख पढने की
इच्छा भी जागृत हो सकती है। अगर आपने वहां अपने मित्र द्वारा लिखित पुस्तक को
खरीदा है तो उस पर उस प्रिय मित्र के हस्ताक्षर लेना न भूलें। क्यूंकि वो पुस्तक और
उस पर उसका हस्ताक्षर हो सकता है की भविष्य उसकी यादें संजोने के काम आये।
तो मेरे ख्याल से मेरे
मित्र कँवल शर्मा जी की पुस्तक जब अगले महीने बाज़ार में आने वाली होगी तो मैं
उपरोक्त में से कई क्रियाकलापों को करना चाहूँगा। यहाँ तक इस लेख के लिखने तक मैं
कुछ कामों को अंजाम भी दे चूका हूँ। मेरे मित्र मोहन मौर्य दूसरी पुस्तक भी आने
वाली है, बस एक झलक मिल जाए तो उधर भी काम शुरू। मेरे एक कामचोर मित्र भी अपने
लघु-कथाओं के संग्रह को प्रकाशित करवाने के फिराक में है, अल्लाह उसे जल्दी से
जल्दी इस काम को करवाने की शक्ति प्रदान करे। वहीँ हाल में बने मेरे एक मित्र
जिसकी लघु-कथाएं, मैं आजकल चाव से पढने लगा हूँ वो भी अपनी लघु-कथाओं के संग्रह को
प्रकाशित करवाना चाहते हैं। आशा है, मैं उनकी कुछ मदद कर पाऊंगा। तो दोस्तों, आप
सभी अपने आपको लांच करने के लिए तैयार रहिये, क्यूंकि आप यह मित्र, अपनी कोशिश में
कोई कमी नहीं आने देगा।
एक सवाल आप पाठकों से, जवाब
नहीं चाहिए, बस चिंतन कीजिये, मंथन कीजिये – “क्या आपने कभी अपने लेखक मित्र के
लिए वह सब किया जो उपरोक्त में मैंने उद्धृत किया है?”
आभार
राजीव रोशन
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