संघर्ष और सफलताएं एक दुसरे
की सहचारिणी रही हैं। जहाँ इंसान अपने जीवन में संघर्ष को स्थान देता है, वहां
सफलताएँ जरूर एक न एक दिन उसके कदम चुमते नज़र आती है। मानव को जीवन में सफलताओं की
सीढ़ी चढ़ने में हमेशा से भिन्न-भिन्न प्रकार के संघर्षों का सामना करना पड़ता है। ऐसे
ही संघर्ष और सफलता के रूपक के रूप में हम “बेगम अख्तर” को जानते हैं। बेगम अख्तर का
संघर्ष भरा जीवन, एक औरत की कहानी को दर्शाता है जो अपने अस्तित्व की खोज में जीवन
के आरम्भ से जीवन के अंत तक लगी रही। भारतीय परिवेश में स्त्री का जीवन हमेशा से
कई प्रकार के बंधनों में बंधा हुआ रहा है, ऐसे में दुनिया से लड़ झगड़ कर हमारे
होठों, दिल, दिमाग और मन पर छा जाने वाली इस गायिका की कल्पना मात्र से, मन में
जीवन से लड़कर, अपने हिस्से की सफलता खोज कर लाने का मन करता है।
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे
रोना आया,
जाने क्यों आज तेरे नाम पे
रोना आया...
वो दिन, मुझे बखूबी याद है,
मेरे ऑफिस के मित्र, श्याम दीक्षित उपरोक्त पंक्तियों को बार-बार गुनगुना रहा था।
मैंने उत्सुकतावश उससे इस गाने के बारे में पूछा तो उसने बताया की “बेगम अख्तर” ने
यह ग़जल गाया है। उस समय तक मुझे “क्वीन-ऑफ़-ग़जल”, बेगम अख्तर जी के बारे में कुछ भी
नहीं पता था। फिर मैंने यू-ट्यूब पर, इस ग़जल को कई बार सुना, इसका MP3 वर्शन
डाउनलोड किया और साथ ही और भी कई ग़ज़लों को डाउनलोड किया जो बेगम अख्तर ने गाई थी।मैं मुतवातर, एक साल से बेगम अख्तर द्वारा गाई
ग़ज़लों को सुन रहा हूँ। इस तरह से मैं भी, अजीमोशान गज़ल गायिका, जिसे दुनिया “क्वीन-ऑफ़-गज़ल”
के नाम से भी जानती है, बेगम अख्तर के आवाज़ का दीवाना बन गया। मैं यह सहर्ष
स्वीकार करता हूँ की अगर श्याम दीक्षित ने उपरोक्त ग़ज़ल गुनगुनाया न होता और मैंने
उससे इसके बारे में पूछा न होता तो, शायद मैंने बहुत कुछ खो दिया होता।
दीवाना बनाना है तो दीवाना
बना दे....
वरना कहीं तकदीर तमाशा न
बना दे....
बेगम अख्तर जी द्वारा गाई ग़ज़लों
का दीवाना तो मैं उनको सुनकर ही बन चूका था। अब बारी थी उनके जीवन, संघर्ष भरे
जीवन को पढ़ कर, उनके व्यक्तित्व से दीवाना बनने की। उनके जीवन के बारे में कई
किस्से गाहे-बगाहे कहीं न कहीं से सुनने को मिल ही जाते थे लेकिन ऐसी किस्सागोई का
अंत तब हुआ जब पिछले महीने, मुझे “बेगम अख्तर” के जीवन पर लिखी गयी एक किताब को
पढने का मौका मिला। किताब का नाम था– “Ae Mohabbat…. Reminiscing Begum Akhtar” - जिसे प्रसिद्ध गायिका, नर्तकी
और बेगम साहिबा की सबसे करीबी शिष्या रीता गांगुली जी ने लिखा था। रीता गांगुली जी
ने अपने करियर की शुरुआत एक नर्तकी के रूप में किया लेकिन जब वह बेगम साहिबा की
शिष्या के रूप में आई तो बेगम साहिबा की सबसे करीबी में से एक हो गयी।
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा, मुझे
दोस्त बनके दागा न दे...
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जांवलब,
मुझे जिंदगी की दुआ न दे....
शकील बदायूं साहब द्वारा
लिखी गयी यह ग़ज़ल जब बेगम अख्तर की आवाज़ में सुनने को मिलता है तो, मन और तन दोनों
ही इसी ग़ज़ल में खो जाता है। जिस नफ़ासत, सादगी और भाव के साथ, बेगम साहिबा इस ग़ज़ल
के भावों को अपनी आवाज़ से, हमारे कानों तक पहुंचाती है जो सीधे दिल में जाकर घुसती
है तब हमें महसूस होता है की ग़ज़ल में जान आ गयी है, उसके अन्दर जीवन का संचार हो
चूका है। रीता गांगुली जी ने “Ae
Mohabbat…. Reminiscing Begum” पुस्तक को तीन भागों में
विभाजित किया है। प्रथम भाग, पूरी तरह से बेगम अख्तर साहिबा के जीवन के शुरुआत से
अंत तक के समय को दर्शाता है। लेखिका ने इस भाग के साथ पूरा न्याय करते हुए बेगम साहिबा
के जीवन के स्याह और सफ़ेद, सभी परतों को खोल कर पाठक के सामने प्रस्तुत कर दिया है।
पाठक इस भाग में, बेगम साहिबा का, गज़ल गायिकी से पहली मुलाक़ात, फिर भिन्न-भिन्न
उस्तादों से गायिकी की शिक्षा ग्रहण, अलग-अलग समय पर बेगम साहिबा का शोषण, बेगम
साहिबा के जीवन के उतार-चढ़ाव को आसानी से पढ़ पाते हैं। जिस तरह आजकल के माता-पिता
की सबसे पहली कोशिश यही होती है की उनके बच्चे पढ़-लिख लें, ऐसी ही कोशिश बेगम
साहिबा की माताजी ने बेगम साहिबा के लिए किया था लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था। बेगम
साहिबा की माता जी ने, बेगम अख्तर के ग़ज़ल के प्रति उमड़े अपार प्रेम को देखते हुए,
उनके कंधे से कन्धा मिलाते हुए पूरा साथ दिया और समय-समय पर अलग-अलग उस्तादों से संगीत
की शिक्षा को प्रदान करवाने में कोई कोशिश कोई कसर नहीं छोड़ी। बेगम अख्तर साहिबा
ने अपनी माता जी की तरह ही संघर्षशील जीवन जिया।
हमरी अटरिया आओ सांवरिया,
देखा देखी बलम हुई जाए...
प्रेम की भिक्षा मांगे
भिखारन, लाज हमारी राखिओ साजन...
आओ बलम तुम हमारे द्वार,
सारा झगड़ा ख़तम हुई जाए..
जब इस दादरा को १९७२ के
शिमला समझौते के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने सुना था
तो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बेगम साहिबा की तारीफ की थी। रीता गांगुली जी इस
दादरा के पीछे का एक किस्सा और सुनाती हैं की एक दिन बेगम साहिबा रीता जी के घर पर
ही थी की सुबह धोबिन यही गीत गुनगुनाते हुए आई, बेगम साहिबा ने इसे सुन लिया और इस
गीत को उठाकर कुछ फेरोबदल करके शिमला समझौते के दौरान सुनाया। और आज हम जानते हैं
की यह दादरा कितना प्रसिद्ध है। याद है “डेढ़ इश्किया” में रिकार्ड्स पर बजता हुआ
यही गाना और उस पर नाचती हुई माधुरी दीक्षित।
दुसरे भाग में लेखिका ने बताया
है की वह कैसे बेगम अख्तर साहिबा की शिष्या बनी। रीता गांगुली जी ने अपने बारे में
बताया है की कैसे वह नर्तकी से एक गायका के रूप में उभर कर आई। इस भाग में लेखिका
ने, बेगम साहिबा के साथ बिताये कई वर्षों के यादों को एक जगह एकत्रित करके बेगम
साहिबा के व्यक्तित्व का परिचय हमें दिया है। लेखिका ने कई ऐसे प्रसंगों का खुलासा
किया है, जिसमे वह बेगम साहिबा के साथ, कई कॉन्सर्ट में गई और वहां क्या अटपटी और
चटपटी घटनाएं घटी।
आह को चाहिए एक उम्र असर
होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के
सर होने तक
हमने माना की तगाफुल न
करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको
खबर होने तक
तीसरे भाग में लेखिका ने
ग़ज़ल और ग़ज़ल गायिकी को बहुत ही गहराई से अपने शब्दों में समझाया है। उन्होंने बेगम
अख्तर सहिबा द्वारा गाई कई गज़लों के बारे में बताया है की किस ग़ज़ल को बेगम साहिबा
ने किस राग में गाया और किस तरह गाया है। लेखिका ने बहुत ही विस्तृत रूप में, इस
भाग में, बेगम साहिबा द्वारा गाई ग़ज़ल को एक अलग ही फॉर्मेट में प्रस्तुत किया है
जिससे पाठक आसानी से बेगम साहिबा द्वारा गाई ग़ज़लों को समझ सकता है। लेखिका ने इस
भाग में उन कवियों एवं शायरों के बारे में भी बताया है जिनके लिखे ग़ज़लों को बेगम
साहिबा ने अपनी आवाज़ दी।
वो जो हम में तुम में करार
था,
तुम्हें याद हो के न याद
हो,
वही, यानी, वादा निबाह का,
तुम्हें याद हो के न याद
हो,
यह ग़ज़ल ऐसी वाहवाही बटोर कर
ले गयी की, बेगम साहिबा के साथ-साथ मोमिन खां मोमिन साहब भी इस ग़ज़ल को लिखने के
लिए प्रसिद्ध हो गए। लेखिका बताती हैं की अधिकतर इवेंट्स में प्रशंसक एवं दर्शक इस
ग़ज़ल को गाने की ही फरमायश किया करते थे।
पुस्तक में वैसे तो कोई कमी
नहीं लेकिन एक कमी का जिक्र फिर भी करना चाहूँगा – “इस पुस्तक में और भी पन्ने
होने चाहिए थे।” क्यूंकि ऐसा लगा की जैसे पुस्तक बहुत जल्दी समाप्त हो गयी हो|
जैसा की मैं ऊपर बता चूका हूँ, लेखिका स्वयं एक गायिका हैं और उन्होंने बेगम
साहिबा से भी संगीत की शिक्षा ली है इसलिए उन्होंने पुस्तक को बहुत ही सुन्दर
तरीके से तीन भागों में बांटा और उतने ही शानदार तरीके से तीनो भागों में बेगम
अख्तर साहिबा से सम्बंधित जानकारियों को प्रस्तुत किया। पुस्तक के बीच-बीच में
बेगम साहिबा और उनसे सम्बंधित कई चित्र हैं, जो आपको इस पुस्तक को पढने के साथ-साथ,
जीने पर मजबूर कर देते हैं।
सुदर्शन फाकिर साहब की
निम्न ग़ज़ल आप बेगम साहिबा की आवाज़ में सुनिए, youtube पर आसानी मिल जाएगा, तब आप
पायेंगे की कैसे बेगम साहिबा ने शायर के शब्दों में उभर रहे भाव को अपनी आवाज़ के
साथ मिला कर ग़ज़ल को अमर कर दिया है। गज़ब का एहसास और रूह से बात करते हुए पायेंगे
आप खुद को:-
कुछ तो दुनिया कि इनायात ने
दिल तोड़ दिया...
और कुछ तल्खिये हालात ने
दिल तोड़ दिया....
हम तो समझे थे के बरसात में
बरसेगी शराब....
आई बरसात तो बरसात ने दिल
तोड़ दिया....
अंग्रेजी में प्रकाशित, बेगम
अख्तर साहिबा पर लिखी गयी यह पुस्तक तकरीबन ३८० पन्नों में सिमिटी है और आप इसे
kindle पर पढ़ सकते हैं। यह पुस्तक आपको सिर्फ बेगम अख्तर साहिबा के बारे में ही
नहीं बताएगी बल्कि भारतीय संगीत विधा के कई ऐसे नामों से आप रूबरू होंगे जिनके
बारे में आपने कभी सुना नहीं होगा। आप जब इस पुस्तक को पढेंगे तो पायेंगे की कई
ऐसी जानकारियाँ है जिनके बारे में आपको जो मालूम था वो गलत था। जब बेगम अख्तर ने
ग़ज़ल गाने की शुरुआत भी नहीं की थी, वह ऐसा दौर था जब स्त्रियों का गाना गाना ही
गलत समझा जाता था। ऐसे में उस दौर की कई महिला संगीतकारों के सामने बेगम अख्तर ने न
सिर्फ शानदार प्रदर्शन किया बल्कि उनके रिकॉर्ड किये गए कई ग़ज़लों ने रिकॉर्ड तोड़
बिक्री की।
नशेमन ही जो लुट जाने का ग़म
था तो क्या था...
यहाँ तो बेचने वालों ने
गुलशन बेच डाला है....
फ़ानी बदायुनी, साहब द्वारा
लिखी यह ग़ज़ल, जब बेगम साहिबा ने गया था तो उन्होंने पहली लाइन में मौजूद जीवन के
दुःख और संताप को बखूबी गाया वहीँ दूसरी लाइन में वो एक विद्रोही के किरदार में आ
गयी। मेरे हिसाब से जिस प्रकार से आज के संगीत का बाज़ार चल निकला है, ऐसे में उपरोक्त
ग़ज़ल का यह शेर हमें कुछ कहना चाह रहा है। भले ही आज के समय में महिला एवं पुरुष गायकों
की होड़ लगी है, भले ही आज के दौर में फूहड़ गीतों का लोग मजा उठा रहे हैं लेकिन ऐसे
समय में अगर बेगम साहिबा द्वारा गाई एक भी ग़ज़ल जेठ की गर्मी में वर्षा की उस बूँद
की तरह काम करेगी, जो आपके चेहरे को छूते ही जन्नत का एहसास करा देती है। बेगम
अख्तर साहिबा आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा गयी हर ग़ज़ल हमारे दिलों में
जिन्दा थी, है और रहेगी।
ग़ज़ल को हुस्न और मोहब्बत की
जान कहते हैं...
बदल बदल के मेरी दास्तान
कहते हैं...
सच है, किसी ने बेगम साहिबा
के लिए कहा है, ग़जल का मतलब है बेगम अख्तर और बेगम अख्तर का मतलब है ग़ज़ल। बिलकुल
सही कहते हैं, ग़ज़ल और बेगम अख्तर दोनों ही एक दुसरे के पर्याय बन चुके हैं। जब भी
हम ग़ज़ल के बारे में बात करेंगे तो जो नाम अनायास ही होठों से निकल पड़ेगा, वह
निःसंदेह बेगम अख्तर साहिबा का ही होगा। अंत में, मैं आप सभी को प्रोत्साहित और
प्रेरित करना चाहूँगा की आप इस पुस्तक को जरूर पढ़ें और एक शेर जो इसी पुस्तक में
लिखा है, जिसे जिगर मुरादाबादी ने लिखा है:-
हमको मिटा सके...ये ज़माने
में दम नहीं..
हम से ज़माना खुद है...
ज़माने से हम नहीं....
आभार
राजीव रोशन
Beautiful
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