तीस लाख (एक तालातोड़ के
जुनून की दास्तान)
“उस्तादजी, जिससे मुहब्बत
हो, उसका बुरा नहीं चाहा जाता।”
जीतसिंह उर्फ़ जीता जैसे
तालातोड़, कातिल, वॉल्ट बास्टर से ऐसे शब्दों को सुनना, विश्वास करने के काबिल नहीं
लगता है। एक तरफ तो पाठक साहब ने इस किरदार को नेगेटिव शेड में ही बनाया और उस
नेगेटिव शेड में स्याही डालने का काम सुष्मिता ने किया जब वह अपने किये वादे से
फिर गयी और जीत सिंह को दिए गए वक़्त के मियाद खत्म होने से पहले ही बूढ़े, मालदार,
सेठ पुरुसुमल चंगुलानी से शादी कर लिया। अब सोचने वाली बात आती है कि इस किरदार ने
इतनी पते की बात कह कैसे दी। क्या सच ही उसे सुष्मिता से बेपनाह मोहब्बत थी जैसा
की उपरोक्त पंक्ति दर्शाती है।
“उस एक औरत के अलावा अब
मुझे दुनिया जहान की औरतों से नफरत है। मेरा बस चले तो मैं दुनिया के तख्ते से औरत
जात का नामोनिशान मिटा दूँ।”
“सिवाय उस एक औरत के?”
“हाँ। वो सलामत रहेगी तो
देखेगी कि मैंने क्या किया? वो भी मर गयी तो फिर क्या फायदा?”
“बेटा, तू किसी जुनून के
हवाले है। तू नहीं जानता तू क्या कह रहा है।”
अब यहाँ, हमें नज़र आता है
की कैसे जीत सिंह उर्फ़ जीता के अन्दर का नकारत्मक किरदार बाहर निकल कर आ जाता है।
लेकिन शायद मोहब्बत उसे भी कहते हैं जिसमे इंसान किसी की जान लेता नहीं है बल्कि प्यार
के लिए जान देता है। यहाँ जान देने का मतलब अपनी जिन्दगी को समाप्त करने से नहीं
बल्कि अपनी प्रेयसी के ख़ुशी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने से है। लेख की पहली
पंक्ति यह दर्शाती है कि जीत सिंह के अन्दर दिल है और उस दिल में प्यार का असीम
भण्डार है वहीँ उपरोक्त प्रसंग इसी किरदार के उस पहलु को दर्शाता है जो हर इंसान
के अन्दर अमूमन पाया जाता है।
किसी भी इंसान के एक “अच्छा
इंसान” और एक “बुरा इंसान” होता है। जो समय समय पर अपने आपको दुनिया के सामने लाते
रहते हैं। जीता भी कुछ ऐसा ही इंसान था। यहाँ पाठक साहब की तारीफ किये बगैर मैं रह
सकूँगा की उन्होंने एक ऐसा किरदार बनाया जिससे न चाहते हुए भी दिल से जुड़ाव हो
जाता है। आज के समय में अगर कोई तालातोड़ जिसका दिल टूटा हो मेरे सामने आ जाए तो
मैं उससे दूरी बनाने की कोशिश करूँगा। मैं उसके दिल की हालात नहीं देखूंगा बल्कि
वो मुजरिम है इसलिए मैं उससे दूर रहना ही पसंद करूँगा। मैं क्या, इंसान का हर
बच्चा, वर्तमान में “जीत सिंह उर्फ़ जीता” जैसे हर इंसान से परहेज ही करेगा।
जीत सिंह उर्फ़ जीता जिसका
दिल “दस लाख” उपन्यास में ऐसा टूटा था कि गर वर्तमान में ऐसा किसी के साथ हो जाए
तो हॉस्पिटल केस बन जाए। खैर जीते के साथ ऐसा नहीं हुआ था। उसका दिल बहुत मजबूत था
या जुनून ने मोहब्बत पर जीत पा लिया था। पहले उसका जुनून अपनी प्रेयसी के बहन के
इलाज़ के लिए १० लाख जुटाना था पर अब उसका जूनून इतना खतरनाक था कि वह जुर्म की
धधकती लावा के दलदल में घुसने से भी परहेज़ नहीं कर रहा था। “तीस लाख” उपन्यास में
जीत सिंह का जुनून सभी पाठकों के सामने आता है।
एडुआर्डो के सलाह पर जीत
सिंह पुणे पहुँचता है जहाँ दिलीप बिलथरे नामक कॉइन डीलर को एक वॉल्ट बस्टर की
जरूरत है। जीत सिंह को पता चलता है दिलीप बिलथरे पुणे के होटल ब्लू स्टार में होने
वाले कॉइन कन्वेंशन को लूटना चाहता है। जीत सिंह की मुलाक़ात दिलीप बिलथरे के टीम
से होती है जो कॉइन कन्वेंशन को मिलकर लूटना चाहते हैं। भागचंद नवलानी, नयन
बलसारा, दिलीप बिलथरे और सुकन्या उस टीम का हिस्सा थे। जीत सिंह ने दिलीप बिलथरे
की योजना सुनी और उसने इसमें हिस्सा लेने से मना कर दिया। साथ ही साथ नयन बलसारा
ने भी इस योजना में हिस्सा लेने से मना कर दिया।
लेकिन बाद में सुकन्या के सदके
जीत सिंह इस योजना में भाग लेने के लिए हामी भर देता है। भागचंद नवलानी, दिलीप
बिलथरे और सुकन्या मिल कर योजना को पोलिश करते हैं तो उन्हें दो और व्यक्तियों
जरूरत महसूस पड़ती है। इसके लिए जीत सिंह एडुआर्डो की मदद से कार्लो (बतौर ड्राईवर)
और ईमरान मिर्ची (बतौर हेल्पिंग हैण्ड) बुलाता है और उन्हें भी इस योजना में शामिल
करता है।
योजना की पहली कड़ी में वे
होटल ब्लू स्टार के स्पेशल वॉल्ट की नकली चाबी बनाने की सोचते हैं जिसके लिए होटल
ब्लू स्टार से सम्बंधित तीन लोगों से उन्हें असली चाबी तक पहुँच बनाने की जरूरत
पड़ती है। साम, दान, दंड, भेद की सहायता से वे वॉल्ट की तीनों चाबियों तक पहुँच बना
कर नकली चाबी बना लेते हैं। साथ ही साथ वे होटल ब्लू स्टार के वॉल्ट के ऊपर वाले
कमरे को किराए पर लेकर उसके फर्श को खोद कर वॉल्ट तक सफलता पूर्वक पहुँचने का
रास्ता भी बना लेते हैं।
क्या इस बार जीत सिंह को
उसकी तकदीर साथ देगी। क्या जीत सिंह और उसके साथी सफल डकैती डाल पायेंगे। क्या जीत
सिंह का जुनून पूरा हो पायेगा। लेकिन सोचने वाली बात यह है की जीत सिंह डकैती डालना
क्यूँ चाहता है। उसे और धन की जरूरत क्यूँ है। “दस लाख” की उसे जरूरत थी, जो पूरी
हुई लेकिन जिस काम के लिए जरूरत थी, वो पूरी ना हुई और ना ही पूरी हो सकती थी अब।
तब फिर जीत सिंह को क्यूं पैसों की जरूरत थी? उसका जुनून क्या था? जीत सिंह आखिर सुष्मिता को क्या साबित करके
दिखाना चाहता था? ऐसे कई प्रश्न है जिनके जवाब आपको “तीस लाख” पढने के बाद ही
हासिल होगा।
“तीस लाख” उपन्यास के अगर किरदारों
की बात करें तो हम देखते हैं की लगभग १२-१५ किरदार इस उपन्यास में हैं। जीत सिंह,
एडुआर्डो, दिलीप बिलथरे, नयन बलसारा, सुकन्या, भागचंद नवलानी, कार्लो, ईमरान
मिर्ची, शिवारमण(होटल का मद्रासी मेनेजर), मगनाया (सर्कस वाला लड़का), एग्नेस (होटल
के मालिक कोठारी की मेड), शेख मुनीर उर्फ़ डिब्बा (फेंस)। जिनमे से एडुआर्डो,
शिवारमण, मगनाया, एग्नेस और शेख मुनीर को बहुत कम वक्फे के लिए उपन्यास में जगह दी
गयी हैं। बाकी बचे किरदार मुख्य हैं और इनके इर्द गिर्द ही उपन्यास की कहानी घुमती
है।
उपन्यास की कहानी तेज़
तर्रार है और इसमें हर वो मसाला मौजूद है जिसके लिए सर पाठक साहब जाने जाते हैं।
भावनात्मक एहसास, जुनून, दोस्ती, डकैती, योजना, थ्रिल, धोखा, घात, अघात और प्रतिघात
से ओत-प्रोत यह उपन्यास, एक पाठक को शानदार कहानी प्रदान करता है। कहानी कसी हुई
पृष्ठभूमि से आगे बढती जाती है और ज्यों यह बढती जाती है त्यों त्यों इसका थ्रिल
बढ़ता जाता है। इस उपन्यास में डकैती डालना उतना बड़ा मुद्दा नहीं लगता जितना की
डकैती के लिए योजना बनाई गयी है। एक दम सटीक योजना को बनाया गया फिर डकैती डाली
गयी। पाठक साहब का हाथ इस विषय पर कितना मजबूत है, यह उनके प्रशंसक भली भाँती
जानते हैं।
कहानी में एक ऐसी घटना है
जो जिक्र के काबिल है। वह है – बाल वैश्यावृति। होटल के मेनेजर शिवारमण से चाबी
हासिल करने के लिए जीत सिंह और उसकी टीम बाल वैश्यावृति का सहारा लेते हैं। लेकिन
यह बात उस अंधविश्वास के परदे को भी हटाती है की अगर किसी कुँवारी कन्या के साथ
सम्बन्ध बनाया जाए तो गुप्त रोग दूर हो जाएगा। हालांकि इस प्रसंग से पाठक साहब पर
उस वक़्त के कई प्रशंसकों ने आलोचना भी किया था। लेकिन सत्य से मुहं मोड़ना, कहाँ
संभव है। आये दिन हम “बाल वैश्यावृति” के बारे में सुनते ही रहते हैं। यह एक अपराध
ही नहीं, एक नीच-पूर्ण और घृणित अपराध है और इस अपराध का हमारे देश से सफाया होना
जरूरी है। पाठक साहब ने इस मुद्दे को उठा कर कई पाठकों को बाल-वैश्यावृति के खिलाफ
आवाज उठाने के लिए जागरूक किया है।
मुझे यह उपन्यास बहुत पसंद
आया है। अगर आप सभी ने नहीं पढ़ा है तो जरूर पढ़ें। अगर पढ़ा है तो अपने विचार को जरूर
साझा करें। आप सभी को समीक्षा कैसा लगा इसके बारे में भी अपनी राय जरूर दें।
आभार
राजीव रोशन
बेहतरीन समीक्षा,राजीव जी। आपकी समीक्षा को पढने के बाद उपन्यास को पढने की लालसा दोगुनी हो जाती है । इस उम्दा समीक्षा के लिए साधुवाद स्वीकार करें।
ReplyDeleteVikash jee, aapko yah novel aasaani se prapt Ho sakta hai. Aap aas pass ke purane book stores par try kijiyega jahan novels milte hain.
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