Skip to main content

A letter - SMP Novels & Social Issues

मेरे प्रिय मित्र,

आशा है की तुम सकुशल अपनी जिन्दगी बसर कर रहे होगे। मैं भी स्वस्थ हूँ और जीवन का आनंद उठा रहा हूँ। बहुत समय बीत चूका है तुम से मुझे बात किये हुए। ऐसा लगता है कि उस दिन की बात तुम्हारे दिल पर बहुत आघात कर गयी। जबकि होना तो यह चाहिए था की मैं नाराज़ होता। यह तुम्हारा कहना गलत था की मैं सिर्फ एक लेखक तक ही सिमित हूँ जो सिर्फ अपराध कथाएं ही लिखते हैं। मैं इस बात पर बहस नहीं करना चाहूँगा लेकिन तुम्हें बताना चाहूँगा की अगर तुमने एक बार भी उस लेखक को पढ़ा होता तो शायद तुमने वह बात बोली नहीं होती। तुमने दुनिया के कई जाने-माने लेखकों के पुस्तकों को पढ़ा है और इस कारण मैं तुम्हें किसी वृहद् चर्चा की ओर नहीं ले जाऊँगा| मैं तुम्हें सिर्फ वह पहलु दिखाता हूँ जो सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों में अधिकतर देखा जाता है|

तुम्हारा यह कहना की सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित उपन्यास सिर्फ और सिर्फ अपराध कथा पर आधारित होते हैं। लेकिन क्या हमें नहीं सोचना चाहिए की “अपराध” भी समाज का एक अभिन्न अंग ही है। क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए की “अपराध” को जन्म भी हमारा समाज ही देता है।

आज मैं तुम्हें सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी कुछ ऐसे उपन्यासों के बारे में बताना चाहूँगा जो कि अपराध कथा तो हैं लेकिन उसमे सामाजिक समस्याओं को भी उजागर किया गया है।



शायद तुमने लेपर कॉलोनी के बारे में सूना होगा। यह एक ऐसा समाज होता है जहाँ कोढ़ से पीड़ित लोगों को अलग रखा जाता था। पाठक साहब ने अपने उपन्यास “खून से रंगा चाकू” में इस कॉलोनी का बहुत ही वृहद् रूप में जिक्र किया है। उन्होंने बताया है की इस कॉलोनी में लोगों का रहन-सहन कैसा है और उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है। तुम्हें पता है कि लेपर कॉलोनी में वो आम मुद्राएँ नहीं चला करती थी बल्कि वहां एक स्पेशल मुद्रा चलाई जाती थी – जिनकी किस्म ही अलग होती थी। विश्व भर में ऐसी कई बस्तियों का अस्तित्व आज भी मौजूद है। इस उपन्यास में एक व्यक्ति इस कॉलोनी में जाने से बचने के लिए अपराध करता है। मित्र, मुझे अभी भी लगता है की हमारे देश में इतनी उन्नति के बाद भी इस प्रकार का भेदभाव खुले आम होता है। अपने दिल से पूछों तो पता चलेगा की इसमें जो बात कही गयी है वह सच है कि नहीं।

अब शिक्षा के ऊपर चलते हैं। “गैंगवार” उपन्यास में पाठक साहब उच्चोत्तर शिक्षा में होने वाली धांधली को बखूबी दर्शाते हैं। उन्होंने उपन्यास के नायक को एक दौलतमंद बाप का बेटा बताया है जो पैसे के दम पर डॉक्टरी की डिग्री हासिल कर लेता है और पैसे के ही बल से किसी दुसरे से रिसर्च पेपर लिखवा कर विदेश में एक सेमीनार में शामिल होता है। क्या तुम्हें लगता नहीं की यह बात आज भी शिक्षा में लागू है। अमूमन तुमने साल में ४-५ बार विश्वविद्यालय या प्रवेश परीक्षा में होने वाले घोटाले और धांधली के बारे में अखबार में या मीडिया में जरूर देखा होगा।

चलो छोडो। “अनोखी रात” उपन्यास को देखो। इसमें एक प्रोफेसर को अपने पत्नी के अतीत बारे में ऐसी-ऐसी बाते जानने को मिलती हैं कि वह आश्चर्यचकित रह जाता है। इसके बावजूद वह अपने पत्नी में भरोसा दिखाता है और पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती को बरकरार रखता है। वहीँ “लम्बे हाथ” नामक उपन्यास एक टूटते परिवार की दास्ताँ है जिसमे पति का द्वन्द, उसकी बेहया पत्नी और इन दोनों के बीच पिसते बच्चों का जिक्र है। जबकि “बीवी का हत्यारा” उपन्यास पति-पत्नी के संबंधों और आपसी रिश्तों में आये दरार को बखूबी दर्शाता है। तुम तो सोचते होगे की सिर्फ महान लेखक ही ऐसे पति-पत्नी के रिश्तों को कागज़ पर उकेरते होंगे। देखों मैं तुम्हें वही दिखा रहा हूँ जो तुम देखना चाहते हो। मेरे शब्दों में अपराध का कोई जिक्र ही नहीं है। यह तुम पर निर्भर करता है की उपन्यास में से तुम क्या लेना चाहते हो।

“डायल – १००” जैसा उपन्यास तुम्हें इस बात का यकीन दिला देगा की कैसे एक पुलिस कर्मी फ़र्ज़ के राह पर अपनी जान तक कुर्बान करने को आमदा है। यह एक ऐसा उपन्यास है मेरे दोस्त जिसे प्रत्येक पुलिस कर्मी को जरूर पढना चाहिए। वहीँ “खाली मकान” उपन्यास में पाठक साहब ने धर्म के ठेकेदारों को समाज के सामने नंगा किया है। जबकि “धोखाधड़ी” उपन्यास में तुम एक ऐसे युवा का सामना करोगे जो किसी आदतन गैर-कानूनी काम करता है न की मजबूरी में। ये उपन्यास तुम्हें हमारे समाज के उन युवाओं के तस्वीर को प्रस्तुत करता है जो कि एडवेंचर और मजे के लिए जुर्म करना पसंद करते हैं।

“सीक्रेट एजेंट” जैसा शानदार उपन्यास तुम्हें वर्तमान के एक ऐसे सिस्टम से रूबरू कराएगा जहाँ नेता, पुलिस और जुर्म एक साथ मिलकर पुरे शहर को बर्बाद कर देते हैं। आशा है भारत में तुम्हें ऐसे कई उदाहरण मिल भी जायेंगे। पैसा कैसे लोगों के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है इसका सही सही नज़ारा तुम्हें “आस्तीन के सांप” उपन्यास में पढने को मिल सकता है जिसमे दौलत पर कब्जा पाने के लिए रिश्तेदार ही मुखिया को पागल करार देते हैं।

समाज के आधार स्तम्भ और ऊँचे दर्जे के लोग जब आर्गनाइज्ड क्राइम में हिस्सा लेते हैं तो कैसे हाहाकार मच सकता है समाज में इसका सटीक वर्णन पाठक साहब ने अपन उपन्यास “रेड सर्किल सोसाइटी” में किया है। एक परिवार अपनी दकियानूसी परम्पराओं का पालन करते हुए अपनी लड़की की शादी नहीं करता तो वह लड़की अपनी शारीरिक जरूरते पूरी करने के लिए अपराध की ओर कदम बढ़ा देती है। ऐसा ही कुछ दर्शाया गया है “विष कन्या” उपन्यास में। यह उपन्यास सामाजिक कुरीतियों को आधार बना कर लिखा गया शानदार उपन्यास है।

ऐसे ही अगर तुम्हें और उदाहरण दूँ – जैसे की “मैं बेगुनाह हूँ” में पाठक साहब ने राजनीति और पत्रकारिता के कारण प्रिंट मीडिया में होने वाले धांधली को बखूबी दर्शाया है। ऊँचे पद पर पहुँचने की लालसा और राजनीती के गिरते मूल्यों को शानदार तरीके से “आगे भी मौत पीछे भी मौत” में दर्शाया गया है। नकली मुद्राओं का समाज में चलन और अपराध की उत्पत्ति को “गुनाह का कर्ज” उपन्यास में शानदार प्रस्तुती की गयी है। समाज और मेट्रो सिटीज में “भू-माफियाओं” के बढ़ते अतिक्रमण को “अँधेरी रात” उपन्यास में दिखाया गया है। “साजिश” उपन्यास में एक ऐसे लड़की की कहानी कही गयी है जो फिल्म-स्टार्स बनने के लिए अपने घर से भाग जाती है। “निशानी” उपन्यास, नाजायज औलाद को अपनाने और ठुकराने की शानदार कहानी है।

मित्र मैंने तुम्हें बहुत उदाहरण प्रस्तुत किये हैं और आशा करता हूँ कि इससे तुम्हारे आँखों पर पड़े परदे को उठाने थोड़ी सहायता तो हो ही जायेगी। मित्र हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ अपराध के बिना समाज की कल्पना नहीं कर सकते। अभी कई और उदाहरण हैं जिनका एक पत्र में संकलन आसान नहीं होंगे। मेरे इस पत्र में तुम्हें कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं से सामना होगा जिसे हम रोज समाज में घटित होते देखते हैं। मेरा विश्वास है की तुम अब जरूर पाठक साहब के उपन्यास पढना चाहोगे। मैं यह भी आशा करता हूँ की इस पत्र के बाद तुम्हारे मन में मेरे लिए जो खटास है वह समाप्त हो जायेगी।

पत्र मिलते ही अपने विचार मुझसे जरूर साझा करना और हो सके तो एक बार जरूर पाठक साहब का कोई उपन्यास पढना।

तुम्हारा प्रिय मित्र

राजीव रोशन 

Comments

Popular posts from this blog

कोहबर की शर्त (लेखक - केशव प्रसाद मिश्र)

कोहबर की शर्त   लेखक - केशव प्रसाद मिश्र वर्षों पहले जब “हम आपके हैं कौन” देखा था तो मुझे खबर भी नहीं था की उस फिल्म की कहानी केशव प्रसाद मिश्र की उपन्यास “कोहबर की शर्त” से ली गयी है। लोग यही कहते थे की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “नदिया के पार” का रीमेक है। बाद में “नदिया के पार” भी देखने का मौका मिला और मुझे “नदिया के पार” फिल्म “हम आपके हैं कौन” से ज्यादा पसंद आया। जहाँ “नदिया के पार” की पृष्ठभूमि में भारत के गाँव थे वहीँ “हम आपके हैं कौन” की पृष्ठभूमि में भारत के शहर। मुझे कई वर्षों बाद पता चला की “नदिया के पार” फिल्म हिंदी उपन्यास “कोहबर की शर्त” की कहानी पर आधारित है। तभी से मन में ललक और इच्छा थी की इस उपन्यास को पढ़ा जाए। वैसे भी कहा जाता है की उपन्यास की कहानी और फिल्म की कहानी में बहुत असमानताएं होती हैं। वहीँ यह भी कहा जाता है की फिल्म को देखकर आप उसके मूल उपन्यास या कहानी को जज नहीं कर सकते। हाल ही में मुझे “कोहबर की शर्त” उपन्यास को पढने का मौका मिला। मैं अपने विवाह पर जब गाँव जा रहा था तो आदतन कुछ किताबें ही ले गया था क्यूंकि मुझे साफ़-साफ़ बताया गया थ

विषकन्या (समीक्षा)

विषकन्या पुस्तक - विषकन्या लेखक - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सीरीज - सुनील कुमार चक्रवर्ती (क्राइम रिपोर्टर) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ नेशनल बैंक में पिछले दिनों डाली गयी एक सनसनीखेज डाके के रहस्यों का खुलाशा हो गया। गौरतलब है की एक नए शौपिंग मॉल के उदघाटन के समारोह के दौरान उस मॉल के अन्दर स्थित नेशनल बैंक की नयी शाखा में रूपये डालने आई बैंक की गाडी को हजारों लोगों के सामने लूट लिया गया था। उस दिन शोपिंग मॉल के उदघाटन का दिन था , मॉल प्रबंधन ने इस दिन मॉल में एक कार्निवाल का आयोजन रखा था। कार्निवाल का जिम्मा फ्रेडरिको नामक व्यक्ति को दिया गया था। कार्निवाल बहुत ही सुन्दरता से चल रहा था और बच्चे और उनके माता पिता भी खुश थे। चश्मदीद  गवाहों का कहना था की जब यह कार्निवाल अपने जोरों पर था , उसी समय बैंक की गाड़ी पैसे लेकर आई। गाड़ी में दो गार्ड   रमेश और उमेश सक्सेना दो भाई थे और एक ड्राईवर मोहर सिंह था। उमेश सक्सेना ने बैंक के पिछले हिस्से में जाकर पैसों का थैला उठाया और बैंक की

दुर्गेश नंदिनी - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय

दुर्गेश नंदिनी  लेखक - बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय उपन्यास के बारे में कुछ तथ्य ------------------------------ --------- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया उनके जीवन का पहला उपन्यास था। इसका पहला संस्करण १८६५ में बंगाली में आया। दुर्गेशनंदिनी की समकालीन विद्वानों और समाचार पत्रों के द्वारा अत्यधिक सराहना की गई थी. बंकिम दा के जीवन काल के दौरान इस उपन्यास के चौदह सस्करण छपे। इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण १८८२ में आया। हिंदी संस्करण १८८५ में आया। इस उपन्यस को पहली बार सन १८७३ में नाटक लिए चुना गया।  ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ यह मुझे कैसे प्राप्त हुआ - मैं अपने दोस्त और सहपाठी मुबारक अली जी को दिल से धन्यवाद् कहना चाहता हूँ की उन्होंने यह पुस्तक पढने के लिए दी। मैंने परसों उन्हें बताया की मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है पढने के लिए तो उन्होंने यह नाम सुझाया। सच बताऊ दोस्तों नाम सुनते ही मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन अर्थात बीते हुए कल को पुस्तक लाने को कहा। और व