चैनल ५ – खुशबुओं की मलिका
दोस्तों, मैं सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का पाठक और प्रशंसक दोनों ही हूँ। कई बार मुझे कई चीज़ों/नैतिक मूल्यों/विचारों आदि के बारे में जानकारी इनके उपन्यासों को पढ़ कर मिलती है। सर सुरेन्द्र मोहन पाठक सिर्फ एक अपराध कथा लेखक ही नहीं बल्कि एक ऐसे गुरु भी हैं जो जिनसे और जिनकी पुस्तकों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। आज भी मैं ऐसा ही कुछ सीख कर हटा हूँ जो मेरे लिए एक नयी जानकारी है।
सर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कई उपन्यासों में एक ऐसे सेंट या इत्र का जिक्र आता है जिससे उपन्यास के नायक को कई बातों का पता चल जाता है। जैसे की अगर किसी मौकायेवारदात पर अगर किसी महिला किरदार द्वारा फलाना इत्र का इस्तेमाल किया गया हो और नायक की भविष्य में या भूत में अगर उससे मुलाक़ात हुई हो तो वह इस आंकलन पर पहुँचता है की वह भी मौकाए वारदात पर मौजूद थी। या नायक को यह पता चल जाता है की मौकायेवारदात पर किसी स्त्री का आगमन हुआ था जो फलां सेंट लगाती थी।
मैंने गौर किया है कि पाठक साहब के उपन्यासों में अधिकतर “चैनल ५” नामक इत्र का नाम आता है। पहले मैं इसे कल्पना ही समझता था लेकिन जब आज गूगल बाबा की सहायता ली तो पता चला की “चैनल ५” तो इत्रों की दुनिया की मलिका कही जाती है।
चैनल-५ दुनिया भर की महिलाओं की पसंदीदा इत्र मानी जाती है। एक आंकड़े के अनुसार सन १९४० तक चैनल-५ की बिक्री सालाना ९० लाख डॉलर थी। आरम्भ में चैनल-५ सिर्फ और सिर्फ कुछ खास दुकानों में और कुछ ख़ास लोगों के बिक्री के लिए ही मौजूद थी लेकिन १९२४ से चैनल-५ ने विश्व भर में धूम मचाना शुरू कर दिया।
इस इत्र का नाम चैनल-५ क्यूँ पड़ा इसके पीछे की कहानी भी पाठक साहब के काल्पनिक किरदारों की तरह ही रोचक है। चैनल-५ का आविष्कार Ernest Beaux नाम के इत्र निर्माता ने किया था जो कि मदाम Gabrielle "Coco" Chanel के बुटिक में कार्यरत था। रोचक बात यह भी है कि मदाम चैनल को ५ नंबर से बड़ा लगाव था। मदाम चैनल के लिए पांच नंबर एक प्रेरणा श्रोत के रूप में काम करता था। इसलिए जब अर्नेस्ट ने इत्र के पांच नए सैंपल तैयार करके चैनल को दिखाए तो उसने पांचवे नंबर के इत्र को चुना और उसका नाम दे दिया – चैनल-५।
जिस प्रकार से चैनल-५ का नाम बहुत ही रोचक तरीके से पड़ा उसी प्रकार चैनल-५ ने अपने आस्तित्व को बचाने के लिए घनघोर लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई मदाम चैनल और उसके पार्टनरों के बीच हुई। हुआ ये कि मदाम चैनल ने १९२४ में एक कंपनी के साथ समझौता किया लेकिन कंपनी ने धोखे से सभी शेयर अपने नाम कर लिए और मदाम चैनल के इत्र पर कब्ज़ा सा कर लिया। इसके लिए २० साल तक मदाम चैनल ने लड़ाई लड़ी और द्वित्य विश्व युद्ध के बाद सन १९४७ में दोनों ही पक्षों ने समझौता कर लिया।
आज चैनल-५ सिर्फ नाम ही ब्रांड नेम है जिसके लिए लिए मर्लिन मुनरो से लेकर निकाल किडमन तक ने विज्ञापन और मार्केटिंग की है। सन २०१२ में पहली बार किसी पुरुष ने इस ब्रांड के लिए मार्केटिंग किया। निकोल किडमन के अदाकारी से और बाज़ लुहर्मन द्वारा निर्देशित 2 मिनट की फिल्म ने पुरे मार्केटिंग वर्ल्ड में तहलका मचा दिया था। इस दो मिनट की फिल्म के लिए बाज़ को १.८ करोड़ पौंड मिले थे और किडमन को ३.7 मिलियन डॉलर प्राप्त हुए थे।
चैनल-५ आज के समय के सबसे महंगे इत्रों में गिनी जाती है और जिस प्रकार से इसने लगभग १०० वर्षों से विश्व के बाज़ार पर कब्ज़ा किया हुआ है वह दर्शाता है कि पाठक साहब जैसे लेखक इस इत्र को अपने महिला किरदारों के लिए पसंद करते हैं।
अब इस से अधिक क्या विश्वसनीयता की मांग कीजियेगा किसी लेखक से जो अपने किरदारों द्वारा इस्तेमाल किये जाने इत्रों को भी वास्तविक दुनिया से लेता है ताकि किसी पाठक को यह न लगे की वह काल्पनिक कथा पढ़ रहा है।
पाठक साहब आपको और आपकी लेखनी को सलाम है। आप यूँ ही लिखते रहें और हम यूँ ही पढ़ते रहें।
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