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आखिरी मकसद (द लास्ट गोल)

आखिरी मकसद (द लास्ट गोल)

सुधीर कोहली – द फिलोस्फर डिटेक्टिव – द लक्की बास्टर्ड – सीरीज



दो बहनें सुधा और मधु, शायद समाज के एक ऐसे दृश्य को दिखाती हैं जिसे हम बार बार दरकिनार कर जाते हैं। सुधा, मधु से ३-४ वर्ष बड़ी है। दोनों ही बहने अपने नव-यौवन की अवस्था में हैं। सुधा, जो कृष्ण बिहारी माथुर नामक दिल्ली के बूढ़े अपाहिज धनवान सेठ से विवाहित है और जिसके नाजायज सम्बन्ध अपने ही सौतेले बेटे अर्थात माथुर के पहली पत्नी के बेटे मनोज के साथ हैं। सुधा और मनोज में भी ३-४ वर्ष का ही अंतर होगा। मधु जिसने लेखराज मदान जैसे दिल्ली के दादा से बस इसलिए शादी की ताकि धन की बारिश से उसकी प्यास बुझ सके लेकिन उसने अपने शारीरिक पूर्ति के लिए अपने पति के वकील पुनीत खेतान के साथ ही नाजायज सम्बन्ध बना लिए और किसी से भी सम्बन्ध बना लेने में उसे हिचक नहीं होती है।

सुधीर कोहली, द फिलोस्फर डिटेक्टिव, द लकी बास्टर्ड ने दिल्ली की इन खास किस्म की महिलाओं के बारे में अगर कुछ खास विचार कहे हैं तो गलत नहीं कहे होंगे (नीचे कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये गए हैं)। उपरोक्त पंक्ति, हमें सभ्य समाज में रहने वाले ऊँचें लोगों का वो चेहरा प्रस्तुत करती है जिसे हम खुली आँखों से मेक-अप के नीचे तक नहीं देख पाते हैं। क्या ऐसा हमारे समाज में घटित नहीं होता? इस प्रश्न का उत्तर किसी दुसरे व्यक्ति से पूछने के बजाय आप अपने अन्तः मन से पूछेंगे तो जवाब जल्दी और सही मिलेगा।

“खूबसूरत औरत का दर्जा ताजमहल जैसा होता है, उसकी खूबसूरती का आनंद लेने का हक हर किसी को होना चाहिये। पति नाम का सांप उसका मालिक बनकर उसकी छाती पर जमकर बैठ जाए, यह मुनासिब बात नहीं।”

“खूबसूरत औरत के पति की एक जोड़ी आँख पीठ पीछे भी होनी चाहिये।”

“औरतौं के मामले में बाज लोगों का हाज़मा कुछ खास ही तगड़ा होता है, कुछ हज़्म कर जाते हैं और डकार भी नही लेते।“


“सृष्टि में कोई उम्रदराज खाविंद पैदा नही हुआ जो अपनी नौजवान बीवी पर शक न करता हो।”

“सृष्टि में कोई ऐसी नौजवान बीवी पैदा नहीं हुई जो अपने खाविंद को धोखा न देती हो।”

ऐसा नहीं है कि सुधीर कोहली के ये विचार संसार की सभी महिलाओं के लिए हैं या दिल्ली की सभी महिलाओं के लिए हैं। सुधीर कोहली तो यह बात भी कहता है की ये विचार बस उन्हीं महिलाओं के बारे में हैं जिनसे वह आजतक मिला है। सुधीर कोहली, द लक्की बास्टर्ड, की जिन्दगी कुछ ऐसी ही दार्शनिकताओं से भरी हुई है। जिन्दगी के बारे में उसका सोचने का नज़रिया, आम लोगों के नज़रिए से कहीं अधिक अलग है। ऐसा इसलिए भी है क्यूंकि दिल्ली शहर में सुधीर कोहली ही एक ऐसा जासूस है जो दिल्ली या उसके आस पास के चालीस कोसों तक पाया जाता है।

लेखराज मदान, दिल्ली अंडरवर्ल्ड का दादा था लेकिन जब पुलिस और सरकार ने मिलकर उस पर दबाव बनाया तो उसका बसा बसाया सब कुछ बर्बाद हो गया था। अब अपनी माली हालात को सुधार पर लाने के लिए उसने एक षड़यंत्र रचा, जिसका ख़ास और अहमतरीन मोहरा उसने सुधीर कोहली को बनाया। सुधीर कोहली, जिसका चेहरा लेखराज मदान के छोटे भाई शशिकांत से मिलता था। शशिकांत ने अपना ५० लाख का इन्सुरेंस कराया हुआ था। लेखराज मदान के षड़यंत्र के अनुसार, सुधीर कोहली को जबरदस्ती अपहरण करके, शशिकांत के घर में शशिकांत के कपडे पहना कर और आइडेंटिटी के साथ उसका मर्डर कर दिया जाता। पुलिस जब तहकीकात करने आती तो उन्हें लगता की शशिकांत की हत्या हो गयी है और लेखराज मदान को ५० लाख रूपये का बीमा राशि प्राप्त हो जाता फिर उसके बाद वह भारत छोड़ कर भाग जाता।

लेकिन, इस षड़यंत्र की टांग तब टूटती है जब सुधीर कोहली अपहरण के चक्रव्यूह को तोड़कर सीधे लेखराज मदान के सिर पर खड़ा हो जाता है। लेखराज मदान, सुधीर कोहली से माफ़ी मांगता है लेकिन अपनी सांसत में फसी जान से बाहर निकालने के लिए कोई जुगत करने की सलाह मांगता है। सुधीर, लेखराज मदान के साथ शशिकांत के घर पहुँचता है जहाँ उन्हें शशिकांत की लाश मिलती है। शशिकांत की हत्या २२ कैलिबर के रिवाल्वर से किया गया बताया जाता है। मौकायेवारदत से यह पता चलता है की छः गोलियां चलाई गयी, जिसमें से एक गोली शशिकांत को लगी और बाकी की गोलियां कमरे में इधर उधर चलाई गयी थी। अब या तो गोली चलाने वाला नौसिखिया था या जान बुझ कर उसने ऐसा किया था।

लेखराज मदान, सुधीर कोहली को इस क़त्ल की तहकीकात और असली कातिल को बेनकाब करने के लिए रीटेन करता है। सुधीर कोहली को महसूस होता है की क़त्ल किसी महिला द्वारा किया गया है क्यूंकि २२ कैलिबर की गन का इस्तेमाल अमूमन महिलायें ही करती हैं। आगे तहकीकात के दौरान उसे कृष्णबिहारी माथुर, उसकी पत्नी सुधा, उसकी बेटी पिंकी पर भी शक होता है। कृष्णबिहारी माथुर की बेटी पिंकी को ड्रग्स की तलब थी इसलिए वह शशिकांत के पास क़त्ल के दिन गयी थी। कृष्णबिहारी माथुर की पत्नी एक इंटीरियर डेकोरेटर के हैसियत से क़त्ल के समय के आस पास उसके घर के करीब गयी थी। व्हील चेयर के निशान शशिकांत के घर के बाहर पाए गए थे, इसलिए सुधीर का शक कृष्णबिहारी पर था। शक की सुई को वह पुनीत खेतान पर भी घुमाता है, क्यूंकि क़त्ल से पहले शशिकांत के साथ उसका झगडा हुआ था। सुधीर कोहली, अपने क्लाइंट की बीवी मधु को भी शक के दायरे से बाहर नहीं रखता क्यूंकि वह भी क़त्ल के वारदात के समय शशिकांत के घर के आस पास थी।

इस कहानी में क़त्ल होने के बाद से ही एक के बाद एक नए सस्पेक्ट सामने आते जाते हैं जो कि कातिल हो सकने के दावेदार लगते हैं। सुधीर कोहली, द फिलोस्फर डिटेक्टिव, द लक्की बास्टर्ड, अपनी तहकीकात को धीरे धीरे आगे बढ़ता जाता है लेकिन साथ ही वह दिल्ली की खास अपनी हरामीपन को भी कैश करता हुआ जाता है। दिल्ली का ख़ास, यह पंजाबी पुत्तर, कैसे इस साधारण केस को सुलझाता है और अपनी नाक कटने से बचाता है।

सुधीर सीरीज के उपन्यासों में जो ख़ास बात होती है, वह है सुधीर का जिन्दगी देखने का नजरिया। उसका बेबाकपन जैसा कि अमूमन दिल्ली वालों में होता है। उसकी अपने काम के प्रति ईमानदारी और दृढ़ निष्ठा। इस सबके अलावा जो खास होता है, वह है, सुधीर और रजनी की नोक-झोक। रजनी, सुधीर कोहली के यूनिवर्सल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी के ऑफिस में कार्यरत रिसेप्शनिस्ट है। जहाँ, सुधीर उसे आम दिल्ली की लड़कियों की तरह देखना चाहता है जिन्हें तितलियों की तरह उड़ने की चाहत होती है वहीँ रजनी एक रिज़र्व लड़की की तरह अपने काम पर ध्यान लगाती है न की अपने बॉस पर।

सर सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित यह पुस्तक उनके प्रसिद्द किरदार, सुधीर कोहली, द फिलोस्फर डिटेक्टिव, द लक्की बास्टर्ड के सीरीज का ८ वां शाहकार है। यह उपन्यास सन १९९० के दिसम्बर मास में पहली बार प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद, डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा “द लास्ट गोल” के नाम से प्रकाशित किया गया था। ताज्जुब वाली बात यह है की हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही प्रिंट आज के समय में बाजार में उपलब्ध नहीं है। हालांकि, न्यूज़-हंट पर आपको यह उपन्यास ईबुक के रूप में मिल सकता है। तो जब तक आपके पास, हार्ड कॉपी में यह पुस्तक नहीं मिल जाता तब तक तो ईबुक में इस पुस्तक को जरूर पढ़ें।

"आखिरी मकसद" उपन्यास का ईबुक लिंक - 

आभार
राजीव रोशन 

Comments

  1. the review has its true colour of the book.

    its just superb. It has been some time when i had read this story but after reading this it occur to me as if it was just yesterday.

    Pathak ji is magnificent craftsman when it comes to display some philosophy with his Sudheer Kolhi series.

    keep it bro.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thank you very much Kanwal sir for your kind and encouraging words. It really means for me.

      Delete

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