“वो कौन थी?”
श्री
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की शानदार रचना
शीर्षक
पढ़ के आपको ऐसा तो नहीं लगा की मैं अपने जीवन की कोई अनसुलझी कहानी की किसी युवती
की बात कर रहा हूँ जिससे मिलते मिलते रह गया था। माफ़ी चाहूँगा दोस्तों, ऐसा कुछ भी
नहीं है। दोस्तों आज मैं बात कर रहा हूँ श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखित
थ्रिलर उपन्यास “वो
कौन थी?” के बारे में।
यह उपन्यास मई १९८५ में पहली बार प्रकाशित हुआ था। पाठक साहब के उपन्यासों की
क्रमानुसार प्रकाशित उपन्यासों की श्रेणी में यह उपन्यास १५१ वें स्थान पर आता है।
विविध एवं थ्रिलर उपन्यासों के श्रेणी में यह उपन्यास १८ वें स्थान पर आता है।
श्री
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने अभी तक कुल ६० उपन्यास थ्रिलर एवं विविध श्रेणी में
लिखे हैं। इस श्रेणी के प्रत्येक उपन्यास एक से बढ़कर एक हैं। पाठक साहब ने सभी कृतियों
में अपने कलम के जादू को बिखेरा है। प्रत्येक उपन्यास की कहानी अद्वितीय होती है।
प्रस्तुत
उपन्यास “वो कौन थी?” कहानी है चार
सिलसिलेवार हुए कत्लों की जो दो महीने के अंतराल पर घटित हुए। प्रत्येक क़त्ल के बाद
पुलिस को पता चलता है की एक रहस्यमयी, सुन्दर, अद्वितीय सुंदरी उस दौरान
मौकायेवारदात पर देखी गयी थी। चारों कत्लों के दौरान पुलिस को इस बात की भनक तक
नहीं लग पाती की यह सुंदरी कौन है और कहाँ से आई है। प्रत्येक क़त्ल से पहले यह
रहस्यमयी युवती सुन्दर परिधान में एक हुस्न की मलिका की तरह मकतूलों के साथ देखी गयी
थी। लेकिन क़त्ल हो जाने के पश्चात यह रहस्यमयी युवती धुएं की तरह हवा में गायब हो
जाती थी। क़त्ल के पश्चात उसका कही भी कोई भी अस्तित्व नज़र नहीं आता है। प्रत्येक
क़त्ल के पश्चात पुलिस तहकीकात करके केस बंद कर देती थी पर फिर २ महीने पश्चात एक
क़त्ल हो जाता था। पुलिस ने गहन तहकीकात के बाद मान लिया था की यह रहस्यमयी लड़की ही
कातिल थी। कातिला की यह विशेषता थी की वह व्यक्ति का क़त्ल करने के पश्चात उसके पास
२ गज का एक काला कपडा छोड़ जाती थी। पुलिस को इस सबूत के अलावा और कुछ इस रहस्यमयी
लड़की के बार में पता नहीं था। पुलिस के पास उस लड़की का चेहरा तो उपलब्ध था परन्तु
हर बार यह युवती अपना चेहरा और वेश बदल कर क़त्ल करती थी। चार कत्लों के पश्चात भी
पुलिस के पास यही सवाल था की “वो
कौन थी?”।
जिन
चार व्यक्तियों को सिलसिलेवार तरीके से क़त्ल हुआ उनके नाम थे दीपक भंडारी,
राजेंद्र रोहतगी, ए.एन. आहूजा और विवेक खास्त्गीर। सब-इंस्पेक्टर माहेश्वरी इन
चारों क़त्ल के केसेस की तहकीकात करता है। माहेश्वरी की तहकीकात तो शुरू होती है
लेकिन ख़त्म होती है एक दिवार पर जाकर, जहाँ से आगे कोई रास्ता उसे नज़र नहीं आता।
अपने वरिष्ट अधिकारी के बार बार इस कथन के विरोध में की ये चारों केस क़त्ल के नहीं
दुर्घटना के हैं, वह कोई भी तथ्य प्रस्तुत करने में असमर्थ रहता है। लेकिन फिर भी,
इंस्पेक्टर भूपसिंह जो सब-इंस्पेक्टर माहेश्वरी का वरिष्ट अधिकारी है इस बात का अनुमोदन दे देता है की वह इस केस पर काम कर सकता है। इंस्पेक्टर
माहेश्वरी के दिमाग में कई तर्क आते हैं पर वह इस आगे नहीं बढ़ पाता।
यहाँ
कातिला सभी व्यक्तियों को अलग अलग तरीके से मारती है। दीपक भंडारी का क़त्ल छत से
धक्का मार कर करती है, तो वहीँ राजेंद्र रोह्तागी का क़त्ल जहर से करती है। विवेक खास्त्गीर का क़त्ल वह सीने में तीर मार
कर करती है। सबसे दर्दनाक क़त्ल वह ए. एन. आहूजा का करती है। ए.एन. आहूजा को कातिल
रेफ्रीजिरेटर में धोखे से बंद कर देती है। कातिला की एक और खासियत है, वह किसी का
भी क़त्ल करने से पहले उससे घनिष्टता बढाती है ताकि क़त्ल करने में कोई रुकावट ना आ
सके।
ए.एन.
आहूजा के क़त्ल के लिए कातिला इंसानियत की सीमा पार कर देती है। वह ए.एन. आहूजा के
८ साल के के बेटे विकास आहूजा का सहारा
लेती है। वह धोखे से पहले ए.एन. आहूजा की पत्नी को उसके मायेके भेज देती है। फिर
विकास आहूजा की कक्षा अध्यापक मिस भटनागर बन ए.एन.आहूजा की सहायता करने का दिखावा
करते हुए आ जाती है। जहाँ वह विकास आहूजा के साथ लूका-छिपी का खेल खेलती है। बाद
में वह ए.एन. आहूजा को भी इस खेल में शामिल कर ए.एन. आहूजा को रेफ्रीजिरेटर में
छुपने का सलाह देती है। ए.एन. आहूजा जब रेफ्रीजिरेटर में घुस जाता है तो वह फ्रीज
को बंद कर देती है जिसके कारण उसका दम घुट कर मृत्यु की प्राप्ति होती है। पुलिस
को एक कोण से तो यह दुर्घटना लगती है पर लाश के पास काला कपड़ा मिलने से यह भी एक
क़त्ल ही नज़र आने लग जाता है। पुलिस मिस भटनागर को को क़त्ल के जुर्म में हिरासत में
ले लेती है। विकास आहूजा भी मिस भटनागर को ही वह महिला बताता है जो पिछली रात उसके
घर आई थी। लेकिन यहाँ एक चमत्कार की तरह, कातिला सब-इंस्पेक्टर माहेश्वरी को फ़ोन
करके बताती है की मिस भटनागर ने क़त्ल नहीं किया है। पुलिस फिर मिस भटनागर को छोड़
देती है।
लेकिन
होना वही होता है, आज तक सभी जुर्म करने वाले के साथ हुआ है। आखिरकार कातिला पकड़ी
जाती है। लेकिन मुख्य बिंदु यह होता है की वह है कौन? वह क़त्ल क्यूँ कर रही है?
उसका इन व्यक्तियों के क़त्ल करने के पीछे उद्दयेश क्या है? क्या वह कोई पागल या
सनकी है जो बस हत्या करना चाहती है? या, क्या उसे किसी ने उन चारों और आगे और
व्यक्तियों को मारने की सुपारी दी है? या, क्या वह किसी ऐसी संस्था से सम्बंधित है
जो इन व्यक्तियों के किसी कारगुजारियों से खफा है? कई ऐसे प्रश्न हैं जिनका खुलासा
उपन्यास के अंत में जाकर ही होता है। पाठक साहब ने इस उपन्यास को रहस्यों से भरा
हुआ बनाया है और रहस्यों का खुलासा उपन्यास के अंत में ही होता है।
इस
उपन्यास का मुख्य किरदार रहस्यमयी युवती ही है जो पुरे उपन्यास में छाई हुई है।
पाठक साहब ने इस युवती को बड़ी बखूबी से सुन्दर और अद्वित्य चित्रण के साथ उपन्यास
में प्रस्तुत किया है। इस नव-यौवना की सुन्दरता के बारे में पाठक साहब ने उपन्यास
में बार बार जिक्र किया है। जब यह सुन्दरता की देवी क़त्ल कर रही होती है तब भी
इसके चेहरे पर एक कातिल सी भंगिमाएं नहीं होती। ऐसा लगता है जैसे कि वह प्राण ले नहीं रही है, उल्टा दे रही रही है। ऐसा लगता है की इश्वर ने उसे इस धरा पर प्राण लेने
के लिए ही भेजा है और सभी मकतूल इस बात को जानते हैं इसलिए बड़ी आसानी से प्राण दे
दे रहे हैं।
सब-इंस्पेक्टर
माहेश्वरी का किरदार भी मजबूत और सराहनीय है। एक क़त्ल की तफतीस आगे नहीं बढ़ पाई
लेकिन जैसे ही उसे पता चला की अगले क़त्ल में भी लाश के पास काला कपडा मिला है।
माहेश्वरी फिर जुट जाता है कातिल को पकड़ने के लिए। लेकिन फिर उसे हताशा ही हाथ आती
है। लेकिन माहेश्वरी हिम्मत नहीं हारता वह कोशिश पर कोशिश करता जाता है। कई
नाकामियाँ उसके हाथ आती है लेकिन वह कोशिश करता जाता है। एक प्रसंग में माहेश्वरी
अपने वरिष्ट अधिकारी भूपसिंह से कहता है की वह कार्यालय समय से पहले आ जाएगा और
कार्यालय समय के बाद जाएगा लेकिन वह कातिल को पकड़ कर रहेगा। किसी पुलिस के अधिकारी
के ऐसे जज्बे को देखने के लिए हम भारतीय की आँखे तरस सी जाती हैं। पता नहीं कब इस
प्रकार का पुलिसिया भी पुलिस विभाग में होगा।
इन
दो किरदारों के अलावा दीपक भंडारी, राजेंद्र रोह्तागी, ए.एन.आहूजा एवं विवेक
खास्त्गीर का किरदार भी इस उपन्यास में मौजूद है लेकिन वह सिर्फ एक भाग तक ही
सिमित सा रहता है। इस उपन्यास में एक उपन्यास लेखक का भी जिक्र आता है जिसका
योगदान भी महत्वपूर्ण है।
उपरोक्त
विवरण से आप सभी को पता लग ही गया होगा की इस उपन्यास में किसी भी मसाले की कमी
नहीं है। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस उपन्यास में पाठक साहब ने ऐसा कहानी का शमा
बाँधा है की आप पन्ना पलटने से अपने आप को रोक नहीं पायेंगे। बहुत दिनों के बाद
इतने सवालों और रहस्यों से भरे उपन्यास को पढ़ा तो लगा की हाँ श्री सुरेन्द्र मोहन
पाठक जी के अलावा कोई दूसरा लेखक नहीं है जो इस प्रकार का क्राइम-फिक्शन उपन्यास
लिख सके। सच, श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक सर इस विधा के बादशाह है, राजा है। पाठक
साहब के उपन्यासों के आगे और कोई उपन्यास नहीं जो इतना मनोरंजन और रोमांच का मजा
दे सके। पाठक साहब ने कहानी को बड़ी मजबूती से और सुन्दरता से प्रस्तुत किया है।
पाठक साहब ने परत दर परत कहानी को आगे बढाया है जिससे रोमांच और रहस्य तिगुना होता
गया है।
कहानी
का शीर्षक कहानी की आत्मा को सार्थक करता है। “वो कौन थी?” यह सवाल आखिरी तक आपकी जुबान पर आता ही
रहता है। आप अगर किसी ऐसे उपन्यास को पढने को इच्छुक हैं जो आपके तीन घंटे बाँध कर
रख सके तो इस उपन्यास को उठाइये और शुरू हो जाइए। आप अपने सभी क्रियाकलाप भूल
जायेंगे जब इसे पढ़ रहे होंगे। यह एक ऐसा उपन्यास है जो आपको मजबूर कर
देता है इसको पहले ख़त्म करने के लिए।
मेरा
इस लेख के द्वारा कोशिश है की श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कुछ यादगार, शानदार,
शाहकार, मनिखेज, रोमांचक, रहस्यमयी, अविस्मरणीय, अद्भुत, अद्वितीय, प्राचीन और
क्लासिक उपन्यासों से आप सभी को रूबरू कराऊँ। आशा करता हूँ की इस कोशिश में यह लेख
एक और सीढ़ी का काम करेगी।
आभार
सहित
राजीव
रोशन
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