"आखिरी शिकार" - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक
दोस्तों मैं फिर से आप लोगों के
सम्मुख मौजूद हूँ एक नयी समीक्षा लेकर। पाठक साहब ने सुनील को लेकर कई उपन्यास
स्पाई सीरीज में लिखा है। जहाँ सुनील को जासूस के रूप में विभिन्न देशों में भेज
जाता था और भारत के जासूसी संस्था के लिए
काम करता था। उपन्यासों की संख्या का मुझे पूरा अंदाज़ा नहीं है।
"आखिरी शिकार" सुनील सीरीज में
३८वां उपन्यास है और पाठक साहब के लेखन कृतियों की संख्या में ५१ वां उपन्यास है।
यह उपन्यास सन १९७१, मार्च में आया था।
देखिये दोस्तों कैसा इत्तेफाक है की
मैं १९७१ में छपा उपन्यास पढ़ चूका हूँ और मेरा जन्म १६ वर्ष बाद हुआ। जब मेरा जन्म
हुआ था तब तक पाठक साहब के १६० उपन्यास आ चुके थे। जबकि मैं अब पाठक साहब के कई
उपन्यास पढ़ भी चूका हूँ और उनका साक्षात दर्शन भी कर चूका हूँ। इससे अधिक किसी
प्रशंसक को और क्या चाहिए। मैं आज भी पाठक साहब के उन उपन्यासों को जरूर पढना
चाहता हूँ जो मेरे जन्म से पहले छपे थे।
"आखिरी शिकार" की कहानी की
पृष्ठभूमि लन्दन है। सुनील, भारतीय
प्रधानमंत्री के साथ गए पत्रकारों के विशेष दल में सम्मिलित हो कर लन्दन पहुचता
है। जहाँ वह भारतीय गुप्त सेवा के कुछ एजेंट्स से संपर्क स्थापित करता है और मिलने
की मांग करता है। इन एजेंट्स का साथी मिलर सुनील को मीटिंग स्थल तक ले कर जाता है
है और भारतीय गुप्त सेवा के एजेंट्स से मिलवाता है। सुनील वहां तीन एजेंट्स से
मिलता है, जॉन फ्रेडरिक जो अपना एक हाथ और एक आँख खो
चूका है, रोशिनी और अनिल साहनी। सुनील उनसे पूछता है
की उसे तो भारतीय गुप्त सेवा द्वारा बताया गया था की ६ व्यक्ति मिलेंगे। इस बात पर
फ्रेडरिक उसे बताता है उसके तीन साथियों की हत्या कर दी गयी है। सुनील इस का कारण
पूछता है। जिसमे यह पता लगता है की जॉर्ज टेलर नामक उन्ही एक साथी ने तौफीक स्माइल,
जे. सिंहकुल और तंग पाई की हत्या कर दिया है। क्यूंकि
सभी छह एजेंट्स ने जॉर्ज टेलर को मारने की कसम खाई थी। क्यूंकि रौशनी के अनुसार
जॉर्ज टेलर ही वह व्यक्ति था जिसने चाइना में चल रहे गुप्त अभियान के दौरान चाइना
पुलिस के सामने अपना मुह खोल था और गुप्त स्थानों की जानकारी दी थी। इस जानकारी के
आधार पर चाइना पुलिस ने छापे मारे थे जिसमे ४ एजेंट्स के साथ समूह का लीडर ज्योति
विश्वास भी मारा गया था। तौफीक स्माइल की माशूक भी उसी छापे में पुलिस द्वारा मारी
गयी थी। इसलिए इन छह एजेंट्स ने जॉर्ज टेलर को मारने की कसम उठाई थी। जब वे जॉर्ज
टेलर की तलाश में लन्दन पहुंचे और धीरे
धीरे जब उसके करीब जाने की कोशिश की तब तब एक एक एजेंट्स को जान से हाथ धोना पड़ा।
सुनील उनसे पूछता है की वे उससे क्या
चाहते हैं तो उन्होंने बताया की उन्हें सुनील की सहायता चाहिए जॉर्ज टेलर को खोजने
में और उसे मारने में। सुनील बिना कोई निश्चय किये और आगे अधिकारीयों से बात करने
का आश्वासन देकर चला जाता है। होटल पहुँचने पर सुनील कुछ संदिग्ध लोगों को अपने
कमरे में पाता है जो सुनील को लन्दन छोड़ देने की धमकी देते हैं। सुनील उनकी धमकी
अनसुना कर देता जिसके फलस्वरूप वे लोग सुनील को शराब पी कर एक्सीडेंट करने के झूठे
इलज़ाम में फंसा देते हैं। सुनील को प्रधानमंत्री सचिव से भी लन्दन छोड़ देने की
शख्त हिदायत मिल जाती है। सुनील लन्दन से दिल्ली के लिए फ्लाइट पकड़ता है लेकिन वह
पेरिस उतरकर समुद्र के रास्ते लन्दन पहुँच जाता है। रात के समय वह उसी फ्लैट पर
जाता है जहाँ उसकी पहले फ्रेडरिक और बाकी एजेंट्स से मुलाक़ात हुई थी। वहां उसे मिलर की लाश देखने को मिलती है और
उस पर जानलेवा हमला होता है। हमला करने वाले की आवाज़ भारी भारी सी थी। सुनील उसके
पीछे भागता है लेकिन हमलावर उसके हाथ से निकल जाता है और उसे उसी गली में रौशनी
मिलती है। जब सुनील हमलावर के बारे में और उसके विशेष आवाज़ के बारे में बताता है
तो रौशनी बताई है की जॉर्ज टेलर की आवाज भी भारी थी।
दोस्तों इसके बाद कहानी की रफ़्तार
दोगुनी हो जाती है। "आखिरी शिकार" एक थ्रिलर उपन्यास है, जिसका कथानक बहुत ही तेज़ तर्रार है। प्लाट सीमित है परन्तु
मजेदार है। लन्दन की गलियां में घूमना और उसके कुछ शहरों और गलियों के बारे में
जानना पाठक साहब के ज्ञान को दर्शाता है। पाठक साहब ने बड़े ही रोचक तरीके से सुनील
का प्रवेश कहानी के जाल में कराया और उसी ख़ूबसूरती से बहार निकाल देने की भी कोशिश
की और फिर दुबारा बेहतरीन तरीके से कहानी में प्रवेश करा दिया।
पल पल पर कहानी में रोमांच की मात्रा
स्थित है। सुनील पर जानलेवा हमला होने के बाद सुनील भी जी जान से जॉर्ज टेलर की
तलाश में जुट जाता है। कहानी में आगे प्रवेश होता है जॉर्ज टेलर की बहन मार्गरेट
टेलर का जिसकी सहायता से सुनील जॉर्ज टेलर को तालाशता है। मार्गरेट टेलर का किरदार
बहुत ही सुन्दर है।
आगे की कहानी में जॉन फ्रेडरिक सभी
एजेंट्स के लिए एक मिसाल प्रस्तुत करता है।
और आगे की कहानी में जाऊं तो
मार्गरेट टेलर सुनील को जॉर्ज टेलर के आइलैंड पर ले जाती है जहाँ सुनील जॉर्ज टेलर
को तलाश करना चाहता है। सुनील को शंका है की जॉर्ज टेलर वहां मजूद हो सकता है।
थ्रिलर और मिस्ट्री भरपूर इस उपन्यास
में सुनील का कई बार लन्दन की पुलिस से सामना होता है लेकिन सुनील उनको भी चकमा दे
देता है। एक समय तो सुनील के बारे में रेडियो पर खबर प्रसारित कर दी जाती। एक बार
तो सुनील पुलिस के हाथों में आते आते बच जाता है। दो बार तो सुनील को गोली लगते
लगते रह जाती है।
पाठक साहब ने कहानी को तेज़ रफ़्तार
में खींचते हुए कहानी ज्यादा बड़ा करने या ज्यादा लम्बा खींचने की कोशिश नहीं की।
रौशनी और अनिल साहनी का किरदार छोटा है पर महत्वपूर्ण है।
इस उपन्यास से एक चीज़ तो सीखने को
मिलती है की विदेशी होकर भी जिन्होंने अपने नौकरी के लिए जान दे दिया वो सच्चे देशभक्त
कहलाते हैं और उनको हमारा सलाम। कुछ तो भारतीय ऐसे हैं जो भारतीय होते हुए भी भारत
की गुप्त जानकारियाँ विदेशी ताक़तों को बेच देती है।
कहानी उतनी बड़ी नहीं है, लेकिन जॉर्ज टेलर को खोजने में और धीरे धीरे कथित जॉर्ज टेलर
द्वारा एजेंट्स की हत्या करने में सफल होना और सुनील की हत्या की कोशिशों के कारण,
यह उपन्यास रोचक उपन्यासों की श्रेणी में आता है। इसे एक
बार तो पढना ही चाहिए।
आभार
राजीव रोशन
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