मौत आई दबे पाँव - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक
हिंदी पल्प फिक्शन साहित्य में कई लेखक हैं जो लिखते हैं,
लेकिन श्री
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की अपनी एक विशिष्ट पहचान है। पाठक साहब ने उस समय
अपने लेखन की शुरुआत की जब कई दिग्गज लेखक इस विधा में अपना पैर जमा चुके थे।
उन्होंने ऐसे किरदार को लेकर अपना इस पेशे में हाथ आजमाया जिसके बारे में कहा जाने
लगा था की यह किरदार चलेगा नहीं। लेकिन आज की तारीख में श्री सुरेंदर मोहन पाठक जी
ने इस किरदार को लेकर १२० उपन्यास लिख डाले हैं जो की एक विश्व रिकॉर्ड है। पाठक
साहब ने इस किरदार को लेकर ही सिर्फ उपन्यास नहीं लिखे, उन्होंने कई ऐसे उपन्यास भी लिखे जो थ्रिलर श्रेणी में आते हैं और उनमे
कोई स्थायी किरदार नहीं है। श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब ने थ्रिलर श्रेणी
में लगभग ४३ पुस्तकों की रचना की है। उनमे
कई ऐसे थ्रिलर हैं जो पाठक बार बार पढना पसंद करते हैं।
श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने अपने कई उपन्यासों में ऐसे
घटनाक्रम का जिक्र किया है जिसमे एक व्यवसायी किसी अपने से आधी उम्र की लड़की से
विवाह करता है और आगे कहानी बढती जाती है एक रहस्य और अपराध की दुनिया की तरफ। एक
ऐसी ही कहानी है "मौत आई दबे पांव"। "मौत आई दबे पांव" पाठक
साहब का २०४ वां उपन्यास है जो पहली बार जनवरी १९९७ में प्रकाशित हुआ था।
मीरा अधिकारी रोज की तरह अपने पति के स्टडी रूम जाती है तो
उसे मृत पाती है। श्रीमान अधिकारी कई वर्षों से दिल की बिमारी से बुरी तरह ग्रसित
थे। श्रीमान अधिकारी ने उसके नाम एक पत्र
लिखा था जिसके अनुसार उसने आत्महत्या की थी और इसकी वजह थी मीरा और डॉ. परमार की
आशनाई। मीरा अधिकारी इस पत्र नामोनिशान मिटा देती है।
मीरा, निधि और अभिषेक
को इस बाबत बताती है। निधि और अभिषेक श्रीमान अधिकारी के बड़े भाई के पुत्र थे और
कुछ दिनों से इसी कोठी में ठहरे हुए थे। डॉ. परमार को बुलाया जाता है। मुआयना करने
के पश्चात, डॉ. परमार, डॉ. देवेरे को बुलवाते हैं। डॉ. देवेरे अधिकारी के मृत शरीर का मुआयना
करने पश्चात पोस्टमॉर्टेम की सलाह देते हैं। पोस्टमॉर्टेम के उपरांत पता चलता है की
श्रीमान अधिकारी की मृत्यु दिल के दौड़े से नहीं बल्कि ज़हर खाने से हुई है।
पुलिस इस बात की तहकीकात करती है की श्रीमान अधिकारी ने ज़हर
खुद खाया है या उसकी हत्या की गयी है। मीरा के कमरे से एक शीशी भी मिली जिसमे ज़हर
था। पुलिस को गेराज में से २ कैप्सूल के खोल भी मिले। पुलिस के नज़रों में 5 संदिग्ध हैं।
१) मीरा - क्यूंकि पुलिस को लगता है की डॉ. परमार के साथ उसके
सम्बन्ध है। और अगर किसी अमीर बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु ज़हर से हुई हो तो उसका सीधा
शक उसकी नौजवान बीवी पर किया जाता है। मीरा भी कैप्सूल बदल सकती थी।
२) डॉ. परमार - जिस प्रकार मीरा, अधिकारी
का क़त्ल कर सकती है उसी प्रकार डॉ. परमार भी कर सकता था। डॉ. परमार ने कैप्सूल
खाने के लिए श्रीमान अधिकारी को दिया ही था इसलिए वह भी इसे बदलने में सक्षम थे।
३) अभिषेक - अभिषेक को अपनी फिल्म पूरी करने के लिए १० लाख
रूपये की जरूरत थी जिसकी मांग उसने अपने चाचा से की थी लेकिन उन्होंने मना कर दिया
था।
४) निधि - निधि, प्रभात नाम के लड़के से प्यार करती थी जो
उसके साथ ही थिएटर में काम करता था। श्रीमान अधिकारी को प्रभात और निधि का सम्बन्ध
पसंद नहीं था।
५) प्रभात - चूंकि प्रभात भी निधि से प्यार करता था तो दौलत
के लिए शायद वह भी अधिकारी का क़त्ल कर सकता था।
6) भोजानी - एक रहस्यमय व्यक्ति जिसका धंधा जासूसी का था और
वो कुछ दिनों से अधिकारी के लिए काम कर रहा था।
आगे की कहानी में भोजानी की मुलाक़ात मीरा से होती है, जिसमे भोजानी बताता है की उसने श्रीमान अधिकारी को सभी की
रिपोर्टें दी थी और उसकी ओरिजिनल कॉपी मीरा खोज कर नष्ट कर दे क्यूंकि अगरचे यह
पुलिस के हाथ लग गयी तो वह एक मजबूत संदिग्ध के रूप में उभर आएगी।
मीरा पुरे घर में रिपोर्ट को तलाशती है और रिपोर्ट उसे निधि
के कमरे में मिल जाती है। रिपोर्टों को थोडा पढने के बाद उसे कई सनसनीखेज
जानकारियां प्राप्त होती है जो की उसकी भी, डॉ. परमार, निधि और प्रभात पर भी क़त्ल का इलज़ाम
लगा सकती थी। २ रिपोर्ट उनमे नहीं थी।
भोजानी द्वारा दी गयी सात रिपोर्ट सात संदिग्धों को जन्म देती
हैं लेकिन पुलिस को उसकी कोई खबर ही नहीं। डॉ. परमार भी भोजानी की तलाश में लगे
हुए हैं। अधिकारी के वकील साबले के अनुसार अधिकारी के आखिरी वसियत के अनुसार मीरा,
निधि और अभिषेक, तीनों को
बराबर का हिस्सेदार बनाया गया था।
इस कहानी में थ्रिल का जबरदस्त डोज है। यह कहानी रहस्यों में गुथी हुई है। कई बार प्रश्न यह उठने लगता
है की मीरा को लिखे पत्र में अधिकारी आत्महत्या की बात कहता है लेकिन वो इसे साबित
नहीं कर सकती और इस्सके बिना वह एक क़त्ल के संदिग्ध बन जाती है। डॉ. परमार जिसके
मन में मीरा के लिए ऐसा कुछ नहीं था लेकिन फिर भी धुआं तो कही से उठ रहा था जिसके
कारण उसे भी कातिल समझा जा रहा था। पाठक
साहब ने बड़े ही सुन्दर कहानी हम सभी के सामने प्रस्तुत की है। कई प्रकार के रोचक
तथ्यों से भरी हुई कहानी है। कहानी में भोजानी के रिपोर्टों से चार चाँद लग जाता है
क्यूंकि इससे संभावित कातिलों की संख्या बढ़ जाती है और कहानी एक रोचक मोड़ ले लेती
है। डॉ. परमार इस गुत्थी के अंत तक पहुँचते हैं और पता लगाते हैं की असली कातिल
कौन था।
पाठक साहब ने कहानी में किरदारों को सिमित रखा है और उनका सही
प्रयोग किया है। निधि, अभिषेक, प्रभात और साबले का किरदार सिमित है लेकिन जरूरत के अनुसार है। मुख्यतः
पूरी कहानी डॉ. परमार और मीरा के इर्दगिर्द घुमती है। डॉ. परमार का किरदार मजबूत
है तो वहीँ मीरा का किरदार भी कम नहीं है। भोजानी के कुछ डायलाग हैं जो जिन्हें वह
बार बार दोहराता है। मुख्यतः भोजानी की डॉ. परमार से और मीरा से मुलाक़ात के दौरान
की बातचीत बहुत ही सुन्दर है।
दोस्तों यह उपन्यास बारम्बार पठनीय है क्यूंकि इसमें जो रहस्य,
रोमांच, थ्रिल का फैक्टर
है वह आपको कई कई बार पढने को मजबूर कर देता है।
आभार
राजीव रोशन
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Maut Aayi Dabe Paanv is one of the underrated novels of SMP Saheb. Actually the problem is that the publisher had not paid attention to the quality of print and that's why it did not get the reception it deserved. The mystery of Adhikari's murder is good, however the murderer can be guessed with a little bit of effort. This is one novel of SMP Saheb whose story is set in the beautiful town of Lonavla. Another such novel is Saazish. Despite knowing the solution of the mystery, I have read this novel several times because the characters, their relationships and interaction and their dialogs have won my heart. Thanks for posting this nice review.
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