स्टॉप प्रेस - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक
मैंने मोटर साइकिल को अपने कॉलेज के गेट से अन्दर घुसाया और
मोड़ काटते हुए उसे पार्किंग एरिया में लगाया। देखा तो वहां तीन-चार लड़के खड़े थे।
उन्होंने मुझे आवाज लगाईं पर मैंने उन्हें अनसुना कर दिया। पीछे से तंज कसते हुए
उन्होंने कहा देखो बीबीसी का नया पत्रकार जा रहा है, और हंस दिए। मुझे बहुत देर हो रही थी, मैं वैसे
ही दिल्ली की जाम की वजह से लेट हो गया था। मैं अपने कक्षा में गया तो देखा
"नावेद सर" आ चुके थे। मैं अन्दर जाकर एक खाली बेंच पर बैठ गया और अपनी
किताबें निकाल ली। "नावेद सर" हिंदी दैनिक "दैनिक भारत" के बहुत
बड़े पत्रकार हैं। उनके लेख "दैनिक भारत" में तो छपते ही है, साथ में
कई अन्य मैगज़ीन में भी उनके लेख छपते हैं। हमारे विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर की
कमी होने के कारण उन्हें अस्थायी रूप से विश्वविद्यालय प्रबंधन ने बुलाया है। वे
सप्ताह में तीन दिन क्लास लेते थे और
विद्यार्थी भी उनके क्लास का आनंद लेते थे।
आज का विषय थे श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित उपन्यास
"स्टॉप-प्रेस"। स्टॉप प्रेस सुनील सीरीज का क्राइम-फिक्शन उपन्यास है
लेकिन हमारे सीखने के लिए सुनील सीरीज के उपन्यासों में बहुत कुछ होता है। आज नावेद
सर इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं।
"तो दोस्तों आज हम पढने वाले हैं श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित बेहतरीन
उपन्यास 'स्टॉप प्रेस'। हम लोग आज इसकी कहानी का पुनरावलोकन करेंगे, फिर आप
लोग इसे घर से पढ़ कर लाइयेगा।" नावेद सर बोले।
सभी विद्यार्थियों ने सहमती में सिर हिलाया।
नावेद सर बोले " तो फिर हम शुरू करते हैं। "स्टॉप
प्रेस" कहानी है सुनील कुमार चक्रवर्ती नाम के एक खोजी पत्रकार की। सुनील
"ब्लास्ट" नाम के अखबार में काम करता है। जिसके मालिक का नाम है -
श्रीमान मलिक।
श्रीमान मलिक के आज्ञा पर सुनील राजनगर के मशहूर उद्योगपति
दिलीप थापर से मिलने जाता है। सुनील कुछ दिनों से दिलीप थापर की जांच पड़ताल कर रहा
था। सुनील को पता लगा की हरिमोहन थापर राजनगर के मशहूर उद्योगपति थे। अपनी मृत्यु
के समय उन्होंने अपनी वसीयत अपने पोते दिलीप थापर के नाम कर दिया था। लेकिन दिलीप
थापर का कुछ अता पता नहीं था। जवानी में
ही हरिमोहन थापर के बेटे ने शादी कर लिया था और घर छोड़ दिया था। उसके बाद से उसका
कुछ पता नहीं चला। लेकिन हरिमोहन थापर के मरने के पश्चात पता नहीं कैसे उसका पोता
निकल आया था। दिलीप थापर पहले एक फैक्ट्री में मामूली सा काम करता था। लेकिन अब
हरिमोहन थापर के जायदाद मिलने के बाद से बड़ा आदमी बन गया था। सुनील को यह भी पता
लगा था की दिलीप थापर की खोज एक निजी जासूस ने किया था। दिलीप थापर अच्छा इंसान
नहीं था और उसने कई बार सुनील को और मलिक साहब को धमकी भी दिया था की अगर ब्लास्ट
में उसके खिलाफ कुछ छपा तो वह ब्लास्ट में आग लगा देगा। इसलिए मलिक साहब ने सुनील
को बोला की वो किसी और को भी अपने साथ ले जाए। पता है, इस बात पर
सुनील ने क्या जवाब दिया था। मैं पूरा अनुच्छेद पढ़ के सुनाता हूँ।"
"मैं अखबारनवीस हूँ जहाँ खबर है, वहां
पहुंचना मेरा कारोबार है, मेरा फ़र्ज़ है,
मेरा धर्म है । मैं अपने साथ दस बॉडीगार्ड
लेकर खबर सूंघने जाना अफ़्फोर्ड नहीं कर सकता । यूँ सिर्फ मेरी कमजोरी उजागर होगी | ये जाहिर
होगा की मैं डरता हूँ | मैं अपना ऐसा इमेज बनाना अफ़्फोर्ड नहीं कर सकता जिससे ये
स्थापित हो की मैं इस धंधे के काबिल नहीं | डर से कहीं अखबारनवीसी होती है ? डर के कही
किसी के पीछे पड़ा जाता है ? मैंने सत्यमेव जयते का सबक सीखा है | जो सत्य
के रस्ते पर हो , उसकी हार कैसे हो सकती है ? सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुहं काला होता
कितनी बार ब्लास्ट की आँखों से दुनिया देख चुकी है और कितनी बार अभी और देखेगी , ये क्या
किसी से छुपा है ? कलम का सिपाही तोप -तलवार से खौफ खा सकता है ?"
"खींचो
न कमानों को, ना तलवार निकालो,
जब तोप मुकाबिल हो, अखबार निकालो ।"
"तो कुछ सीखने को मिला इससे, मैं अगली
कक्षा में इस अनुच्छेद पर तुम सभी के विचार चाहता हूँ, लिखित
में।"
सभी विद्यार्थी ने एक स्वर में " जी सर।"
नावेद सर बोले " हाँ तो, मैं कहाँ था। सुनील दिलीप थापर से मिलने
उसके नोर्थशोर कोठी की ओर जाता है। लेकिन मोहिनी नाम की लड़की उसे बताती है की
दिलीप थापर उसका इंतज़ार झेरी के कॉटेज पर कर रहे हैं। सुनील को बाद में पता चलता
है की वह लड़की दिलीप थापर की सबसे छोटी साली मोहिनी है। दिलीप थापर सुनील को फिर
से धमकी देता है की वह उसके बारे में ब्लास्ट में उल्टा-सुलटा छापना बंद कर दे। लेकिन सुनील पर उसकी धमकी का
कुछ असर नहीं होता। वहां उसका व्यवसाय में पार्टनर "विवेक" भी मौजूद
होता है। तब दिलीप थापर अपने गुंडों से कहकर सुनील के हाथ पैर बाँध कर एक कमरे में
बंद कर देता है और मारने की धमकी देते हुए एक होटल के कैसिनो के उदघाटन में चला
जाता है। सुनील थोड़ी देर अपने बंधनों को खोलने की कोशिश करता है पर असफल रहता है
इसीलिए वह सो जाता है। उसकी नींद तब खुलती है जब बाहर के एक कमरे से उसे एक जानना
और मर्दाना आवाज सुनाई देती है। आवाजों का सिलसिला बहुत देर तक चालु रहता है। फिर
किसी के दरवाजे पर आ जाने से उनके वार्तालाप या कार्य में व्यवधान पड़ जाता है। तभी
सुनील के कमरे का दरवाजा खुलता है और एक व्यक्ति अन्दर आकर छुप
जाता है। सुनील उस व्यक्ति से बात करता है और उसे ब्लैकमेल करके अपने बंधन
खोलने को कहता है। वह व्यक्ति सुनील का बंधन खोल देता है। सुनील को वह अपना परिचय
विक्रम उर्फ़ विक्की के रूप में देता है अन्दर जो महिला थी उसका परिचय दिलीप थापर
की पत्नी कृति के रूप में देता है। वह कबूल करता है की उसका कृति के साथ सम्बन्ध
हैं। वह बताता है की वह कृति से बेपनाह मोहब्बत करता है। सुनील के कपडे भी दिलीप
थापर के गुंडों ने ले लिए थे। इसलिए वो कपडे खोजने की कोशिश करता है पर उसे कही
नहीं मिलता।“
“फिर बाहर
से किसी महिला के आने की आवाज आती है। सुनील उसे अपना परिचय देता है और सहायता
मांगता है। वह लड़की नमिता थी, दिलीप थापर की दूसरी साली। नमिता उसको लेकर होटल जाती है ताकि
कपड़ों का इंतजाम करती है, लेकिन कपडे उसे फिट नहीं आते, नमिता उसे पैसों से सहायता भी करती है, फिर उसे
डॉ. के पास ले जाकर उसकी पट्टी करवाती है। नमिता फिर से उसे दिलीप थापर की उसी
कोठी पर ले जाती है जहाँ उसे दिलीप के कपडे मिल सके। नमिता से उसे बातों बातों में
पता चलता है की दिलीप थापर कृति के साथ बुरा व्यवहार करता है और उसे मारता पीटता
है लेकिन कीर्ति उससे तलाक नहीं ले पा रही है। वह बताती है की विवेक वर्मा पहले
डिटेक्टिव था। सुनील को दिलीप थापर की पूरी कहानी समझ में आने लगती है। वह सुनील
को कोठी के पीछे खड़े बोट पर जाने के लिए कहती है। सुनील को बोट पर अकेले में अहसास
होता है की और भी कोई है वहां पर। गौर से देखने पर पता लगता है की दिलीप थापर की
लाश है। थोड़ी देर में नमिता आती है तो सुनील उसे बताता है । नमिता वहां के सारे
सबूत मिटाती है। क्यूंकि वे सभी सबूत उसकी बड़ी बहन कीर्ति के खिलाफ थे। सुनील ने मना करने की कोशिश भी की लेकिन वह
नहीं मानी। सुनील वहां एक बारूद का सरिया भी देखता है जिसका सही मतलब वह लगा नहीं
पाता है। फिर नमिता ने पुलिस को फ़ोन कर दिया। सुनील भी अपने अखबार में खबर करके
प्रेस रुकवाता है और "स्टॉप प्रेस" कॉलम में इस खबर को डालने के लिए
कहता है। पुलिस को फ़ोन करके नमिता वहां से अपनी बहन को खोजने निकल जाती है । घटना
स्थल पर पुलिस पहुँचती है और काम संभाल लेती है। पुलिस नमिता को क़त्ल करने के
जुर्म में गिरफ्तार कर लेती है। लेकिन उन्हें कीर्ति का कुछ पता नहीं चलता। फिर
सुनील इस गुत्थी को सुलझाने में लग जाता है। "
"तो जैसा की आपने देखा की क्यूँ इस उपन्यास का नाम
"स्टॉप प्रेस" पड़ा। लेकिन इस उपन्यास में जो सीखने वाली बात है, वह यह की
सुनील, एक पत्रकार, कितना जीवट किस्म का इंसान है। जब उसे कहा गया की किसी को साथ
ले लो तो उसने मना कर दिया। जब दिलीप थापर ने उसे जान से मार देने की धमकी दी तो
तब भी नहीं डरा। मतलब, आप लोग देख सकते हैं की कैसे एक पत्रकार को निःस्वार्थ, अपनी जान
पर खेलकर सच को सामने लाने की कोशिश करता है। दुनिया की कोई ताक़त उसे सच को निकाल
कर लाने से रोक नहीं सकती है। पत्रकार का जीवन ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन पत्रकारों
का जीवन खतरों से भी भरा होता है। उसको कई बार सच को सामने लाने के लिए मौत से
टकराना भी पड़ता है और कभी कभी उससे दो-चार कदम आगे भी बढ़ाना होता है। पत्रकार की
दृष्टि से अगर देखें तो नमिता ने जिस प्रकार का व्यवहार सुनील के साथ किया, उसके साथ
सहानुभूति दिखाई, ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है। मुख्यतः लोग पत्रकार और
पुलिस को देखकर दूर भागते नज़र आते हैं। आप इस कहानी को आगे पढेंगे तो पायेंगे की
कैसे यह पत्रकार पुलिस से जूझता है। कैसे एक पत्रकार को पुलिस से कितनी मिन्नत
करके जानकारियाँ निकालता है। कैसे पुलिस विभाग पत्रकारों से कठोरता से पेश आता है।
आगे आप इस कहानी को पढेंगे तो पायेंगे की सुनील के ऊपर ही क़त्ल का इलज़ाम लग जाता
है। एक कातिल कितना होशियारी से अपने काम को अंजाम देता है आपको इस उपन्यास को पढ़
कर पता चलेगा, लेकिन आपको सीखना यह की सुनील कैसे उस परिस्थिति का सामना
करते हुए, अपने आप को बेगुनाह साबित करते हुए असली गुनाहगार का पता लगता
है। गुनाहगार कितना भी कोशिश करले लेकिन कुछ न कुछ सबूत या सुराग जरूर छोड़ जाता
है। पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जिसमे रोमांच, रहस्य, खोज सब होता है। मैं आशा करता हूँ की आप लोग
इस उपन्यास को पढ़ कर सुनील के चरित्र से बहुत कुछ सीखेंगे।"
तभी घंटी बजती है मतलब कक्षा ख़त्म।
नावेद सर "आप
सभी इस कहानी को पूरा पढ़ कर आइये। यह कहानी बहुत ही रोमांचऔर रहस्य से भरा पड़ा है।
मैं इससे सम्बंधित आपसे कई प्रश्न पूछूँगा।"
अगला पीरियड पूरा खाली था। और मैं बैठ गया, "स्टॉप प्रेस" को ख़तम करने में। और जब तक ख़तम न हुआ मैं उस रात सोया
नहीं।
१ दिन बाद.............
नावेद सर कक्षा में आ चुके थे। उन्होंने "स्टॉप
प्रेस" पुस्तक अपने हाथ में पकड़ रखी थी।
वे बोले "तो क्या सभी 'स्टॉप प्रेस' पढ़ कर आये हैं?"
सभी ने जवाब दिया " जी सर"
नावेद सर बोले " ठीक है, पहले तो सभी से इस पुस्तक के बारे में जानना
चाहूँगा? बताओ कौन कौन इस पुस्तक के बारे में बताना चाहेगा?"
सभी विद्यार्थियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे। मेरा भी दाहिना
हाथ उसमे सम्मिल्लित था।
नावेद सर बोले " ठीक है । सभी अपने हाथ नीचे कर लीजिये।
मैं जिससे पूछूँगा वो जवाब देगा। हाँ तुम, हाँ मैं तुम्हे ही कह रहा हूँ। ब्राउन
टीशर्ट वाले।"
वे इशारा मेरी तरफ कर रहे थे। मैं खड़ा हो गया।
नावेद सर " हाँ, तो यह पुस्तक तुम्हे कैसी लगी, इसकी
खामियों और खुबिओं के बारे में बताओ। पुस्तक से तुमने क्या सीखा ये भी बताओ।?
मैंने बोलना शुरू किया " सर, सुरेन्द्र
मोहन पाठक जी द्वारा रचित यह पुस्तक पत्रकारिता के दृष्टि से अतिउत्तम है। इस
पुस्तक वह सभी बातें हैं जो एक पत्रकार को सीखनी चाहिए। अगर मैं पुस्तक की कहानी
पर आऊं तो सम्पूर्ण कहानी एक ऐसा पैकेट है जिसमे दिवाली पर जलाने के लिए पटाखे ही
पटाखे हैं। पाठक जी ने इस कहानी का प्लाट बहुत ही विस्तार से लिखा है। जैसे की
दिलीप थापार का भूतकाल आदि। सुनील और मालिक साहब के बीच का वह वार्तालाप जो आपने
हमें पिछली कक्षा में सुनाया था वह तो इतना जबरदस्त है की मैंने उसे अपने डेस्क
बोर्ड पर लिख कर लिया है। इतनी प्रेरणा है उसमे की एक पत्रकार जी उठता है उसे
पढ़कर। नमिता और कीर्ति का किरदार को अत्यधिक जगह दी गयी है कहानी में। विवेक वर्मा
और विक्रम उर्फ़ विक्की बीच बीच में इस्तेमाल किया गया है। सुनील के तहिकात के
तरीके तो लाजवाब है। सुनील के सहायक पत्रकार अर्जुन का मजाकिया अंदाज भी सुन्दर है
जो कहानी में हसी ठिठोली का कार्य करता है। कहानी में दिलीप थापर के क़त्ल से लेकर
अंत तक कही भी लेखक ने कहानी पर से अपनी पकड़ ढीली नहीं की है। दिलीप थापर के
किरदार का किस्सा जल्दी ख़तम कर दिया गया जबकि शुरुआत में ऐसा लगता था की सुनील और
दिलीप थापर की अच्छी टक्कर होगी आगे। सुनील जिस प्रकार से तीक्ष्ण बुद्धि का
प्रयोग किया, अपने आप को बेगुनाह साबित करके दिखाया। पुलिस विभाग से डर के
रहा लेकिन एक सीमा तक। जब प्रभुदयाल और अनिल कपूर नामक अधिकारियों ने उसके साथ
ज्यादती करने की कोशिश की तो उसने उसी प्रकार का जवाब भी दिया। कहानी में सब
इंस्पेक्टर अनिल कपूर का किरदार भी सुन्दर है और कभी कभी अपनी हरकतों के कारण मेरी
शक की दृष्टि में भी आया की कही वह ही कातिल नहीं है। यह पुस्तक मुझे जिंदगी भर याद
रहेगी। कमियों के बारे में कहूँ तो कुछ भी नहीं था। क्यूंकि कहानी इस धारा में
बहती है की कमियों को देखने का समय ही नहीं मिल सकता किसी को। खूबियों में कहूँ तो
पाठक जी ने इतनी शानदार रचना हम पत्रकारों के लिए की है उसके लिए हम उनके शुक्र
गुजार हैं। काश और भी ऐसी पुस्तकें वे पत्रकारों के लिए लिखें। हमें बहुत ख़ुशी
होगी। मैंने इस पुस्तक से सीखा की पत्रकारिता के क्षेत्र में पत्रकार को हर प्रकार
की परिस्थिति में अपने संयम को बरक़रार रखते हुए सच को सामने लाने की कोशिश करते
रहना चाहिए। और मेरी भी यही कोशिश रहेगी।"
मैं चुप हो गया था और पूरी कक्षा मेरी तरफ देख रही थी। तीस
सेकंड के लिए तो पूरी कक्षा का ध्यान सिर्फ मेरी तरफ था और मैं उनके चेहरे देख रहा
था। तभी नावेद सर ने ताली बजाई तो सभी ने उनका साथ दिया। मैं सभी का और सर का
अभिवादन किया।
नावेद सर बोले " बरखुरदार, तुम कक्षा के बाद मुझसे मिलना।"
मैं तपाक से बोल" जी, जरूर सर।"
नावेद सर बोले" तो अब हम प्रश्नोउत्तर शुरू करते हैं।
पहले मैं कहानी के उस हिस्से ही प्रश्न पूछूँगा जितना की मैंने कल बताया था। ठीक
है न। तो ये प्रश्न हैं:-
१) दिलीप थापर की हत्या किसने की?
२) क्या कीर्ति ने दिलीप थापर की हत्या की क्यूंकि सारे सबूत उसके खिलाफ थे जो की नमिता
ने अपने हाथों नष्ट कर दिए थे?
३) बोट में बारूद की छड क्यूँ रखी हुई थी?
4) विक्रम सिंह उर्फ़ विक्की का क्या इस केस सम्बन्ध हो सकता
था?
५) क्या सुनील इस केस को हल कर पायेगा?
सभी इस प्रश्न का जवाब जानते थे। और जो नहीं जानते थे
उन्होंने "स्टॉप प्रेस" नहीं पढ़ा था। इसलिए अब वो इस प्रश्न के जवाब के
लिए "स्टॉप प्रेस" पढेंगे।
विनीत
राजीव रोशन
नोट : - उपरोक्त कहानी का प्रस्तुतीकरण "स्टॉप
प्रेस" के सारांश और विश्लेषण के लिए ही केवल है। इस कहानी के सभी पत्र
काल्पनिक है। उनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस कहानी
का सम्बन्ध बस श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास "स्टॉप प्रेस" से
है। आपको यह प्रस्तुतीकरण कैसा लगा इसके बारे में जानने की बड़ी प्रबल इच्छा है।
अपने विचार जरूर प्रकट करें। मैं आप सभी का आभारी रहूँगा।
मैंने मोटर साइकिल को अपने कॉलेज के गेट से अन्दर घुसाया और
मोड़ काटते हुए उसे पार्किंग एरिया में लगाया। देखा तो वहां तीन-चार लड़के खड़े थे।
उन्होंने मुझे आवाज लगाईं पर मैंने उन्हें अनसुना कर दिया। पीछे से तंज कसते हुए
उन्होंने कहा देखो बीबीसी का नया पत्रकार जा रहा है, और हंस दिए। मुझे बहुत देर हो रही थी, मैं वैसे
ही दिल्ली की जाम की वजह से लेट हो गया था। मैं अपने कक्षा में गया तो देखा
"नावेद सर" आ चुके थे। मैं अन्दर जाकर एक खाली बेंच पर बैठ गया और अपनी
किताबें निकाल ली। "नावेद सर" हिंदी दैनिक "दैनिक भारत" के बहुत
बड़े पत्रकार हैं। उनके लेख "दैनिक भारत" में तो छपते ही है, साथ में
कई अन्य मैगज़ीन में भी उनके लेख छपते हैं। हमारे विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर की
कमी होने के कारण उन्हें अस्थायी रूप से विश्वविद्यालय प्रबंधन ने बुलाया है। वे
सप्ताह में तीन दिन क्लास लेते थे और
विद्यार्थी भी उनके क्लास का आनंद लेते थे।
आज का विषय थे श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा रचित उपन्यास
"स्टॉप-प्रेस"। स्टॉप प्रेस सुनील सीरीज का क्राइम-फिक्शन उपन्यास है
लेकिन हमारे सीखने के लिए सुनील सीरीज के उपन्यासों में बहुत कुछ होता है। आज नावेद
सर इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं।
"तो दोस्तों आज हम पढने वाले हैं श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित बेहतरीन
उपन्यास 'स्टॉप प्रेस'। हम लोग आज इसकी कहानी का पुनरावलोकन करेंगे, फिर आप
लोग इसे घर से पढ़ कर लाइयेगा।" नावेद सर बोले।
सभी विद्यार्थियों ने सहमती में सिर हिलाया।
नावेद सर बोले " तो फिर हम शुरू करते हैं। "स्टॉप
प्रेस" कहानी है सुनील कुमार चक्रवर्ती नाम के एक खोजी पत्रकार की। सुनील
"ब्लास्ट" नाम के अखबार में काम करता है। जिसके मालिक का नाम है -
श्रीमान मलिक।
श्रीमान मलिक के आज्ञा पर सुनील राजनगर के मशहूर उद्योगपति
दिलीप थापर से मिलने जाता है। सुनील कुछ दिनों से दिलीप थापर की जांच पड़ताल कर रहा
था। सुनील को पता लगा की हरिमोहन थापर राजनगर के मशहूर उद्योगपति थे। अपनी मृत्यु
के समय उन्होंने अपनी वसीयत अपने पोते दिलीप थापर के नाम कर दिया था। लेकिन दिलीप
थापर का कुछ अता पता नहीं था। जवानी में
ही हरिमोहन थापर के बेटे ने शादी कर लिया था और घर छोड़ दिया था। उसके बाद से उसका
कुछ पता नहीं चला। लेकिन हरिमोहन थापर के मरने के पश्चात पता नहीं कैसे उसका पोता
निकल आया था। दिलीप थापर पहले एक फैक्ट्री में मामूली सा काम करता था। लेकिन अब
हरिमोहन थापर के जायदाद मिलने के बाद से बड़ा आदमी बन गया था। सुनील को यह भी पता
लगा था की दिलीप थापर की खोज एक निजी जासूस ने किया था। दिलीप थापर अच्छा इंसान
नहीं था और उसने कई बार सुनील को और मलिक साहब को धमकी भी दिया था की अगर ब्लास्ट
में उसके खिलाफ कुछ छपा तो वह ब्लास्ट में आग लगा देगा। इसलिए मलिक साहब ने सुनील
को बोला की वो किसी और को भी अपने साथ ले जाए। पता है, इस बात पर
सुनील ने क्या जवाब दिया था। मैं पूरा अनुच्छेद पढ़ के सुनाता हूँ।"
"मैं अखबारनवीस हूँ जहाँ खबर है, वहां
पहुंचना मेरा कारोबार है, मेरा फ़र्ज़ है,
मेरा धर्म है । मैं अपने साथ दस बॉडीगार्ड
लेकर खबर सूंघने जाना अफ़्फोर्ड नहीं कर सकता । यूँ सिर्फ मेरी कमजोरी उजागर होगी | ये जाहिर
होगा की मैं डरता हूँ | मैं अपना ऐसा इमेज बनाना अफ़्फोर्ड नहीं कर सकता जिससे ये
स्थापित हो की मैं इस धंधे के काबिल नहीं | डर से कहीं अखबारनवीसी होती है ? डर के कही
किसी के पीछे पड़ा जाता है ? मैंने सत्यमेव जयते का सबक सीखा है | जो सत्य
के रस्ते पर हो , उसकी हार कैसे हो सकती है ? सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुहं काला होता
कितनी बार ब्लास्ट की आँखों से दुनिया देख चुकी है और कितनी बार अभी और देखेगी , ये क्या
किसी से छुपा है ? कलम का सिपाही तोप -तलवार से खौफ खा सकता है ?"
"खींचो
न कमानों को, ना तलवार निकालो,
जब तोप मुकाबिल हो, अखबार निकालो ।"
"तो कुछ सीखने को मिला इससे, मैं अगली
कक्षा में इस अनुच्छेद पर तुम सभी के विचार चाहता हूँ, लिखित
में।"
सभी विद्यार्थी ने एक स्वर में " जी सर।"
नावेद सर बोले " हाँ तो, मैं कहाँ था। सुनील दिलीप थापर से मिलने
उसके नोर्थशोर कोठी की ओर जाता है। लेकिन मोहिनी नाम की लड़की उसे बताती है की
दिलीप थापर उसका इंतज़ार झेरी के कॉटेज पर कर रहे हैं। सुनील को बाद में पता चलता
है की वह लड़की दिलीप थापर की सबसे छोटी साली मोहिनी है। दिलीप थापर सुनील को फिर
से धमकी देता है की वह उसके बारे में ब्लास्ट में उल्टा-सुलटा छापना बंद कर दे। लेकिन सुनील पर उसकी धमकी का
कुछ असर नहीं होता। वहां उसका व्यवसाय में पार्टनर "विवेक" भी मौजूद
होता है। तब दिलीप थापर अपने गुंडों से कहकर सुनील के हाथ पैर बाँध कर एक कमरे में
बंद कर देता है और मारने की धमकी देते हुए एक होटल के कैसिनो के उदघाटन में चला
जाता है। सुनील थोड़ी देर अपने बंधनों को खोलने की कोशिश करता है पर असफल रहता है
इसीलिए वह सो जाता है। उसकी नींद तब खुलती है जब बाहर के एक कमरे से उसे एक जानना
और मर्दाना आवाज सुनाई देती है। आवाजों का सिलसिला बहुत देर तक चालु रहता है। फिर
किसी के दरवाजे पर आ जाने से उनके वार्तालाप या कार्य में व्यवधान पड़ जाता है। तभी
सुनील के कमरे का दरवाजा खुलता है और एक व्यक्ति अन्दर आकर छुप
जाता है। सुनील उस व्यक्ति से बात करता है और उसे ब्लैकमेल करके अपने बंधन
खोलने को कहता है। वह व्यक्ति सुनील का बंधन खोल देता है। सुनील को वह अपना परिचय
विक्रम उर्फ़ विक्की के रूप में देता है अन्दर जो महिला थी उसका परिचय दिलीप थापर
की पत्नी कृति के रूप में देता है। वह कबूल करता है की उसका कृति के साथ सम्बन्ध
हैं। वह बताता है की वह कृति से बेपनाह मोहब्बत करता है। सुनील के कपडे भी दिलीप
थापर के गुंडों ने ले लिए थे। इसलिए वो कपडे खोजने की कोशिश करता है पर उसे कही
नहीं मिलता।“
“फिर बाहर
से किसी महिला के आने की आवाज आती है। सुनील उसे अपना परिचय देता है और सहायता
मांगता है। वह लड़की नमिता थी, दिलीप थापर की दूसरी साली। नमिता उसको लेकर होटल जाती है ताकि
कपड़ों का इंतजाम करती है, लेकिन कपडे उसे फिट नहीं आते, नमिता उसे पैसों से सहायता भी करती है, फिर उसे
डॉ. के पास ले जाकर उसकी पट्टी करवाती है। नमिता फिर से उसे दिलीप थापर की उसी
कोठी पर ले जाती है जहाँ उसे दिलीप के कपडे मिल सके। नमिता से उसे बातों बातों में
पता चलता है की दिलीप थापर कृति के साथ बुरा व्यवहार करता है और उसे मारता पीटता
है लेकिन कीर्ति उससे तलाक नहीं ले पा रही है। वह बताती है की विवेक वर्मा पहले
डिटेक्टिव था। सुनील को दिलीप थापर की पूरी कहानी समझ में आने लगती है। वह सुनील
को कोठी के पीछे खड़े बोट पर जाने के लिए कहती है। सुनील को बोट पर अकेले में अहसास
होता है की और भी कोई है वहां पर। गौर से देखने पर पता लगता है की दिलीप थापर की
लाश है। थोड़ी देर में नमिता आती है तो सुनील उसे बताता है । नमिता वहां के सारे
सबूत मिटाती है। क्यूंकि वे सभी सबूत उसकी बड़ी बहन कीर्ति के खिलाफ थे। सुनील ने मना करने की कोशिश भी की लेकिन वह
नहीं मानी। सुनील वहां एक बारूद का सरिया भी देखता है जिसका सही मतलब वह लगा नहीं
पाता है। फिर नमिता ने पुलिस को फ़ोन कर दिया। सुनील भी अपने अखबार में खबर करके
प्रेस रुकवाता है और "स्टॉप प्रेस" कॉलम में इस खबर को डालने के लिए
कहता है। पुलिस को फ़ोन करके नमिता वहां से अपनी बहन को खोजने निकल जाती है । घटना
स्थल पर पुलिस पहुँचती है और काम संभाल लेती है। पुलिस नमिता को क़त्ल करने के
जुर्म में गिरफ्तार कर लेती है। लेकिन उन्हें कीर्ति का कुछ पता नहीं चलता। फिर
सुनील इस गुत्थी को सुलझाने में लग जाता है। "
"तो जैसा की आपने देखा की क्यूँ इस उपन्यास का नाम
"स्टॉप प्रेस" पड़ा। लेकिन इस उपन्यास में जो सीखने वाली बात है, वह यह की
सुनील, एक पत्रकार, कितना जीवट किस्म का इंसान है। जब उसे कहा गया की किसी को साथ
ले लो तो उसने मना कर दिया। जब दिलीप थापर ने उसे जान से मार देने की धमकी दी तो
तब भी नहीं डरा। मतलब, आप लोग देख सकते हैं की कैसे एक पत्रकार को निःस्वार्थ, अपनी जान
पर खेलकर सच को सामने लाने की कोशिश करता है। दुनिया की कोई ताक़त उसे सच को निकाल
कर लाने से रोक नहीं सकती है। पत्रकार का जीवन ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन पत्रकारों
का जीवन खतरों से भी भरा होता है। उसको कई बार सच को सामने लाने के लिए मौत से
टकराना भी पड़ता है और कभी कभी उससे दो-चार कदम आगे भी बढ़ाना होता है। पत्रकार की
दृष्टि से अगर देखें तो नमिता ने जिस प्रकार का व्यवहार सुनील के साथ किया, उसके साथ
सहानुभूति दिखाई, ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है। मुख्यतः लोग पत्रकार और
पुलिस को देखकर दूर भागते नज़र आते हैं। आप इस कहानी को आगे पढेंगे तो पायेंगे की
कैसे यह पत्रकार पुलिस से जूझता है। कैसे एक पत्रकार को पुलिस से कितनी मिन्नत
करके जानकारियाँ निकालता है। कैसे पुलिस विभाग पत्रकारों से कठोरता से पेश आता है।
आगे आप इस कहानी को पढेंगे तो पायेंगे की सुनील के ऊपर ही क़त्ल का इलज़ाम लग जाता
है। एक कातिल कितना होशियारी से अपने काम को अंजाम देता है आपको इस उपन्यास को पढ़
कर पता चलेगा, लेकिन आपको सीखना यह की सुनील कैसे उस परिस्थिति का सामना
करते हुए, अपने आप को बेगुनाह साबित करते हुए असली गुनाहगार का पता लगता
है। गुनाहगार कितना भी कोशिश करले लेकिन कुछ न कुछ सबूत या सुराग जरूर छोड़ जाता
है। पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जिसमे रोमांच, रहस्य, खोज सब होता है। मैं आशा करता हूँ की आप लोग
इस उपन्यास को पढ़ कर सुनील के चरित्र से बहुत कुछ सीखेंगे।"
तभी घंटी बजती है मतलब कक्षा ख़त्म।
नावेद सर "आप
सभी इस कहानी को पूरा पढ़ कर आइये। यह कहानी बहुत ही रोमांचऔर रहस्य से भरा पड़ा है।
मैं इससे सम्बंधित आपसे कई प्रश्न पूछूँगा।"
अगला पीरियड पूरा खाली था। और मैं बैठ गया, "स्टॉप प्रेस" को ख़तम करने में। और जब तक ख़तम न हुआ मैं उस रात सोया
नहीं।
१ दिन बाद.............
नावेद सर कक्षा में आ चुके थे। उन्होंने "स्टॉप
प्रेस" पुस्तक अपने हाथ में पकड़ रखी थी।
वे बोले "तो क्या सभी 'स्टॉप प्रेस' पढ़ कर आये हैं?"
सभी ने जवाब दिया " जी सर"
नावेद सर बोले " ठीक है, पहले तो सभी से इस पुस्तक के बारे में जानना
चाहूँगा? बताओ कौन कौन इस पुस्तक के बारे में बताना चाहेगा?"
सभी विद्यार्थियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे। मेरा भी दाहिना
हाथ उसमे सम्मिल्लित था।
नावेद सर बोले " ठीक है । सभी अपने हाथ नीचे कर लीजिये।
मैं जिससे पूछूँगा वो जवाब देगा। हाँ तुम, हाँ मैं तुम्हे ही कह रहा हूँ। ब्राउन
टीशर्ट वाले।"
वे इशारा मेरी तरफ कर रहे थे। मैं खड़ा हो गया।
नावेद सर " हाँ, तो यह पुस्तक तुम्हे कैसी लगी, इसकी
खामियों और खुबिओं के बारे में बताओ। पुस्तक से तुमने क्या सीखा ये भी बताओ।?
मैंने बोलना शुरू किया " सर, सुरेन्द्र
मोहन पाठक जी द्वारा रचित यह पुस्तक पत्रकारिता के दृष्टि से अतिउत्तम है। इस
पुस्तक वह सभी बातें हैं जो एक पत्रकार को सीखनी चाहिए। अगर मैं पुस्तक की कहानी
पर आऊं तो सम्पूर्ण कहानी एक ऐसा पैकेट है जिसमे दिवाली पर जलाने के लिए पटाखे ही
पटाखे हैं। पाठक जी ने इस कहानी का प्लाट बहुत ही विस्तार से लिखा है। जैसे की
दिलीप थापार का भूतकाल आदि। सुनील और मालिक साहब के बीच का वह वार्तालाप जो आपने
हमें पिछली कक्षा में सुनाया था वह तो इतना जबरदस्त है की मैंने उसे अपने डेस्क
बोर्ड पर लिख कर लिया है। इतनी प्रेरणा है उसमे की एक पत्रकार जी उठता है उसे
पढ़कर। नमिता और कीर्ति का किरदार को अत्यधिक जगह दी गयी है कहानी में। विवेक वर्मा
और विक्रम उर्फ़ विक्की बीच बीच में इस्तेमाल किया गया है। सुनील के तहिकात के
तरीके तो लाजवाब है। सुनील के सहायक पत्रकार अर्जुन का मजाकिया अंदाज भी सुन्दर है
जो कहानी में हसी ठिठोली का कार्य करता है। कहानी में दिलीप थापर के क़त्ल से लेकर
अंत तक कही भी लेखक ने कहानी पर से अपनी पकड़ ढीली नहीं की है। दिलीप थापर के
किरदार का किस्सा जल्दी ख़तम कर दिया गया जबकि शुरुआत में ऐसा लगता था की सुनील और
दिलीप थापर की अच्छी टक्कर होगी आगे। सुनील जिस प्रकार से तीक्ष्ण बुद्धि का
प्रयोग किया, अपने आप को बेगुनाह साबित करके दिखाया। पुलिस विभाग से डर के
रहा लेकिन एक सीमा तक। जब प्रभुदयाल और अनिल कपूर नामक अधिकारियों ने उसके साथ
ज्यादती करने की कोशिश की तो उसने उसी प्रकार का जवाब भी दिया। कहानी में सब
इंस्पेक्टर अनिल कपूर का किरदार भी सुन्दर है और कभी कभी अपनी हरकतों के कारण मेरी
शक की दृष्टि में भी आया की कही वह ही कातिल नहीं है। यह पुस्तक मुझे जिंदगी भर याद
रहेगी। कमियों के बारे में कहूँ तो कुछ भी नहीं था। क्यूंकि कहानी इस धारा में
बहती है की कमियों को देखने का समय ही नहीं मिल सकता किसी को। खूबियों में कहूँ तो
पाठक जी ने इतनी शानदार रचना हम पत्रकारों के लिए की है उसके लिए हम उनके शुक्र
गुजार हैं। काश और भी ऐसी पुस्तकें वे पत्रकारों के लिए लिखें। हमें बहुत ख़ुशी
होगी। मैंने इस पुस्तक से सीखा की पत्रकारिता के क्षेत्र में पत्रकार को हर प्रकार
की परिस्थिति में अपने संयम को बरक़रार रखते हुए सच को सामने लाने की कोशिश करते
रहना चाहिए। और मेरी भी यही कोशिश रहेगी।"
मैं चुप हो गया था और पूरी कक्षा मेरी तरफ देख रही थी। तीस
सेकंड के लिए तो पूरी कक्षा का ध्यान सिर्फ मेरी तरफ था और मैं उनके चेहरे देख रहा
था। तभी नावेद सर ने ताली बजाई तो सभी ने उनका साथ दिया। मैं सभी का और सर का
अभिवादन किया।
नावेद सर बोले " बरखुरदार, तुम कक्षा के बाद मुझसे मिलना।"
मैं तपाक से बोल" जी, जरूर सर।"
नावेद सर बोले" तो अब हम प्रश्नोउत्तर शुरू करते हैं।
पहले मैं कहानी के उस हिस्से ही प्रश्न पूछूँगा जितना की मैंने कल बताया था। ठीक
है न। तो ये प्रश्न हैं:-
१) दिलीप थापर की हत्या किसने की?
२) क्या कीर्ति ने दिलीप थापर की हत्या की क्यूंकि सारे सबूत उसके खिलाफ थे जो की नमिता
ने अपने हाथों नष्ट कर दिए थे?
३) बोट में बारूद की छड क्यूँ रखी हुई थी?
4) विक्रम सिंह उर्फ़ विक्की का क्या इस केस सम्बन्ध हो सकता
था?
५) क्या सुनील इस केस को हल कर पायेगा?
सभी इस प्रश्न का जवाब जानते थे। और जो नहीं जानते थे
उन्होंने "स्टॉप प्रेस" नहीं पढ़ा था। इसलिए अब वो इस प्रश्न के जवाब के
लिए "स्टॉप प्रेस" पढेंगे।
विनीत
राजीव रोशन
नोट : - उपरोक्त कहानी का प्रस्तुतीकरण "स्टॉप
प्रेस" के सारांश और विश्लेषण के लिए ही केवल है। इस कहानी के सभी पत्र
काल्पनिक है। उनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस कहानी
का सम्बन्ध बस श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास "स्टॉप प्रेस" से
है। आपको यह प्रस्तुतीकरण कैसा लगा इसके बारे में जानने की बड़ी प्रबल इच्छा है।
अपने विचार जरूर प्रकट करें। मैं आप सभी का आभारी रहूँगा।
Note:- सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों से सम्बंधित और कई ख़बरों, गॉसिप के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग करें
http://www.facebook.com/groups/smpathak/?bookmark_t=group
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